रूस महाशक्ति बना. अमेरिकी पति-पत्नी की मदद से. आधी सदी के बाद कहानी खुली तो पता चला कि पत्नी को बेवजह मार डाला गया था. और उसे फंसाने में उसके अपने ही भाई का हाथ था. इस पूरी कहानी के सेंटर में था एक हथियार. जो दुनिया तबाह करने की ताकत रखता था. क्या थी इस जासूसी कांड की कहानी? जानिए. क्या आपको पता है रूस को महाशक्ति बनाने में दो आम अमेरिकियों का हाथ था. दो पति-पत्नी. लेकिन बदले में दोनों को सिर्फ दर्दनाक मौत मिली. जब आधी सदी के बाद कहानी खुली तो पता चला कि पत्नी को बेवजह मार डाला गया था. और उसे फंसाने में उसके अपने ही भाई का हाथ था. इस पूरी कहानी के सेंटर में था एक हथियार. जो दुनिया तबाह करने की ताकत रखता है.
अमेरिकी पति-पत्नी का जासूसी कांड जिसने रूस को दिलवाया एटम बम!
परमाणु शक्ति हासिल करने वाला अमेरिका पहला देश था लेकिन रूस भी कहां पीछे रहने वाला था. शुरू हुआ जासूसी का एक खेल जिसने एक अमेरिकी दंपती को मौत के मुहाने पहुंचा दिया.
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कौन थे ये पति पत्नी?
दो आम अमेरिकी नागरिक कैसे बने रूसी जासूस?
कैसे पहुंचा रूस के पास ऐटम बम का सीक्रेट?
लाल क्रांति और अमेरिकन लव
कहानी की शुरुआत होती है साल 1930 से. रूस में कम्युनिस्टों का राज आने के बाद कई देशों में युवा कम्युनिस्ट संगठनों की शुरुआत हुई थी. अमेरिका में इस संगठन का नाम यूथ कम्युनिस्ट लीग था. ग्रेट डिप्रेशन के दौरान, कई लोग इस लीग से जुड़े. इनमें से एक शख्स का नाम था जूलियस रोजनबर्ग. जूलियस यहूदी था और उसका परिवार रूस से पलायन कर अमेरिका आया था. (Ethel and Julius Rosenberg)

यूथ कम्युनिस्ट लीग में काम करते हुए जूलियस की मुलाक़ात एक लड़की से हुई. एथल नाम की ये लड़की भी यहूदी थी. दोनों में प्यार हुआ और जल्द ही शादी भी हो गई. शादी का मतलब था, घर की जिम्मेदारी आना. जल्द ही जूलियस ने आर्मी में नौकरी जॉइन कर ली. वो इंजीनियरिंग विभाग में काम करने लगा. अब तक सेकेंड वर्ल्ड वॉर शुरू हो चुका था. युद्ध के दौरान अमेरिका और रूस आपस में सहयोगी थे. लेकिन रूस को पता न था कि उसका साथी उसके पीठ-पीछे एक ऐसा हथियार बना रहा है, जो युद्ध का नतीजा तय कर देगा. 1942 में मैनहटन प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई. वो प्रोजेक्ट जिसने दुनिया को पहला ऐटम बम दिया. इसी दौरान रूस भी परमाणु बम बनाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन बार-बार तकनीकी पेच सामने आ रहे थे. ऐसे में उसने तय किया कि वो अमेरिका की जासूसी करेगा.
अमेरिका में रूसी जासूसों का जाल
रूस में एक आतंरिक मंत्रालय होता था, जिसे NKVD बुलाते थे. जासूसी का सारा काम यही संस्था संभालती थी. सिमोन सिम्योनव जासूसों के लीडर थे. अमेरिकी कम्युनिस्ट पार्टी में उन्होंने अपने गुर्गे बिठा रखे थे. ऐसे ही एक गुर्गे ने 1942 में सिम्योनव की पहचान जूलियस रोजनबर्ग से करवाई. जूलियस का झुकाव पहले ही कम्युनिजम की तरफ था. जल्द ही वो सिम्योनव के लिए काम करने को तैयार हो गया. (How Russia got Nuclear Bomb)
शुरुआत में जूलियस ने अमेरिकी हथियारों से जुड़ी जानकारियां रूस तक पहुंचाईं. इसमें अमेरिका के पहले फाइटर जेट, P-80 शूटिंग स्टार की सीक्रेट जानकारी शामिल थी. धीरे-धीरे जूलियस ने कई और लोगों को जासूसी के लिए रिक्रूट कर लिया और वो अमेरिका में रूसी जासूसी का सबसे बड़ा केंद्र बन गया. वो सारी जानकारी इकट्ठा कर एलेग्जेंडर फेक्लीसोव को देता. फेक्लीसोव राजदूत के तौर पर अमेरिका में रह रहा था. वो ये जानकारी सीधे रूस वैज्ञानिकों तक पहुंचाता. करीब एक साल तक ये धंधा ऐसे ही चलता रहा. फिर एक रोज़ फेक्लीसोव को ऐसी बात पता चली, जो रूस का भविष्य बदल सकती थी. यहां से इस खेल में एंट्री होती है, एथल रोजनबर्ग की.

जीजा जासूस, साला कारतूस
हुआ ये कि एक रोज़ बातों ही बातों में जूलियस ने सिम्योनव को अपने परिवार, खासकर पत्नी के बारे में बताया. पत्नी से बात साले तक पहुंची. डेविड ग्रीनग्लास जूलियस की पत्नी एथेल का भाई था. जो उस समय अमेरिक के परमाणु प्रोजेक्ट में काम कर रहा था. ये बात सुनते ही सिम्योनव की आंखें चमकने लगीं. वो किसी भी तरह डेविड तक पहुंचना चाहता था. उसने जूलियस से कहा कि वो अपनी पत्नी एथेल से बात करे. एथल ने डेविड को समझाया. उसके लिए ये पूंजीवाद और साम्यवाद की लड़ाई थी. ऐटम बम इस युद्ध में निर्णायक भूमिका अदा कर सकता था. डेविड तैयार हो गया. उसने यूरेनियम संवर्धन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां जूलियस को दी. जहां से वो रूस यूनियन पहुंचा दी गई. अमेरिकी सरकार इस बात से अनजान थी.
1945 में हिरोशिमा और नागासाकी में उन्होंने दुनिया को दिखाया कि आने वाला युग उनका है. और इस युग में सबसे बड़ी ताकत वही होंगे. लेकिन इसके कुछ साल बाद, 1949 में रूस ने अपना पहला परमाणु परीक्षण कर दिया. अमेरिकी सरकार के लिए ये चौंकाने वाली बात थी. हालांकि उन्हें इस बात का अंदाज़ा था कि एक न एक दिन रूस परमाणु शक्ति हासिल कर लेगा. लेकिन ये सब इतनी जल्दी होगा, इसकी उन्हें कतई भनक नहीं थी. लिहाजा अमेरिकी ख़ुफ़िया सर्कल्स में जल्द ही ये बात फैलने लगी कि हो न हो, उनके बीच रूस के जासूस बैठे हुए हैं. रोजनबर्ग दम्पती के लिए उलटी गिनती शुरू हो चुकी थी.
कैसे पकड़े गए जासूस?
जनवरी 1950 की घटना है. क्लाउस फक्स नाम का एक जर्मन वैज्ञानिक इंग्लैंड में पकड़ा गया. ब्रिटेन की तरफ से उसने मैनहैटन प्रोजेक्ट में हिस्सा लिया था. फक्स ने बताया कि उसने प्रोजेक्ट से जुड़ी कुछ जानकारियां रूस तक पहुंचाई थी. ऐसा करने में उसकी मदद हैरी गोल्ड नाम के एक अमेरिकी नागरिक ने की थी. तुरंत गोल्ड को अमेरिका में गिरफ्तार किया गया. पूछताछ में उसने पूरी कहानी उगल दी. रूसी जासूसों का सारा नेटवर्क खुल गया. पुलिस डेविड ग्रीनग्लास तक पहुंची. ग्रीनग्लास से उसकी बहन एथल और एथल से जूलियस रोजनबर्ग का पता चला. 17 जुलाई 1950 को रोजनबर्ग दम्पती की गिरफ्तारी हुई. यहां से मामला सीधा लग रहा था. गवाही के दौरान डेविड ग्रीनग्लास ने बताया कि उसने फैट मैन का स्केच जूलियस को दिया था.
फैट मैन उस परमाणु बम का नाम था, जो नागासाकी के ऊपर गिराया गया था. साथ ही उसने बताया कि उसकी बहन एथल सारी ख़ुफ़िया जानकारी टाइप करके जूलियस को देती थी. ऐसे ही कई और गवाहियां रोजनबर्ग दम्पती को कसूरवार ठहरा रही थी. 6 महीने चले केस के बाद कोर्ट ने दोनों को गुनहगार माना और मौत की सजा सुना दी. सजा डेविड ग्रीनग्लास को भी हुई. लेकिन वो मृत्युदंड से बच गया. हालांकि कहानी यहां ख़त्म नहीं हुई. इस केस ने दशकों तक अमेरिका में हंगामा बरपाया.

कोल्ड वॉर
रोजनबर्ग दम्पती ने कोई क़त्ल नहीं किया था. जासूसी के नाम पर आम नागरिकों को मौत की सजा मिलते जनता पहली बार देख रही थी. लिहाजा धीरे-धीरे रोजनबर्ग दम्पती को कुछ तबकों से सहानुभूति मिलने लगी. दोनों यहूदी थे. नाजियों द्वारा यहूदी नरसंहार की घटना को अभी कुछ ही साल हुए थे. इस मामले में अमेरिकी सरकार और कोर्ट पर एंटीसेमिटिस्म के आरोप लगे. प्रसिद्द दार्शनिक ज्यां पॉल सार्त्र जैसे दिग्गज़, रोजनबर्ग दम्पती के समर्थन में आगे आए. सार्त्र ने यहां तक कह दिया,
“तुम्हारा देश (अमेरिका) भय से बीमार हो चुका है. तुम अपने ही बम की परछाई से डरने लगे हो.”
पेरिस से लेकर यूरोप की तमाम राजधानियों में लोग सड़कों पर उतर आए. लेकिन अमेरिकी सरकार और कोर्ट्स टस से मस न हुए. इस कड़ी सजा का एक सिरा कोरिया युद्ध से भी जुड़ा था. तर्क ये था कि अगर जासूसों ने परमाणु जानकारी रूस को न दी होती तो कोरिया युद्ध में वो कहीं पहले घुटने टेक देता. जासूसों की गद्दारी से हजारों अमेरिकी जवानों की जान गयी थी. इन कारणों के चलते रोजनबर्ग दम्पती को मृत्युदंड के ही लायक समझा गया. अंत में 19 जून, 1953 के रोज़ दोनों को मौत की सजा दे दी गई. तब अधिकतर अमेरिकी राज्यों में मौत की सजा के लिए इलेक्ट्रिक चेयर का इस्तेमाल होता था.
रोजनबर्ग दम्पती अपने पीछे 10-11 साल के दो बच्चे छोड़ गया. गद्दार का बेटा कहकर किसी ने भी इन्हें अपनाने से इंकार कर दिया. बाद में एक समाजसेवी ने इनकी मदद की. बड़े होकर दोनों बच्चे अपने मां-बाप को बेगुनाह कहते रहे. उनके अनुसार उनकी मां को जासूसी की भनक तक नहीं थी. 1990 में रूस के विघटन के साथ ही ये केस एक नया मोड़ लेता है. आप पूछेंगे कि रोजनबर्ग तो मर चुके, अब क्या फायदा. तो इसकी वजह थी कानून का राज. लोकतंत्र की एकमात्र पहचान. गलती को पहचान कर ही उसे दोहराने से बचा जा सकता है.

आधी सदी का इंतज़ार
1995 में अमेरिकी सरकार ने कुछ ख़ुफ़िया दस्तावेज़ रिलीज़ किए. ये दस्तावेज़ रूस से हासिल किए गए थे. इनसे ये तो पक्का हो गया कि रोजनबर्ग दम्पती सच में जासूसी कर रहे थे. लेकिन दोनों का गुनाह क्या फांसी के लायक था?
साल 2001 में एथल रोजनबर्ग के भाई डेविड ने इस मामले में एक बड़ा खुलासा किया. जैसा कि हमने पहले बताया, डेविड खुद एक जासूस था. और उसकी गवाही इस केस में सबसे अहम साबित हुई थी. डेविड ने बताया कि असल में उसकी बहन का कोई कसूर नहीं था. टाइपिंग का काम उसकी खुद की पत्नी करती थी. लेकिन उसे बचाने के लिए उसने अपनी बहन को फंसा दिया. इस खुलासे के बाद एथल रोजनबर्ग को बेगुनाह करार देने की मांग ने एक बार फिर जोर पकड़ा. रोजनबर्ग के दोनों बेटे सालों तक अपने मां बाप को बेगुनाह साबित करने की कोशिश करते रहे. इस मामले में उन्होंने राष्ट्रपति ओबामा को खत लिखा. साल 2023 तक ये कोशिश जारी है. रोजनबर्ग दम्पती कोल्ड वॉर की भेंट चढ़ गए. लेकिन इस मामले में कमाल की बात ये है कि रूस ने कभी नहीं माना कि उसने परमाणु सीक्रेट अमेरिका से चुराया. वो हमेशा कहते रहे कि ये उनकी उपलब्धि है. परमाणु रेस के बाद दोनों देश स्पेस रेस में आमने सामने आए. लेकिन अबकी बाजी रूस के हाथ लगी.
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