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SC-ST आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने NDA में BJP की मुश्किलें कैसे बढ़ा दी हैं?

एक तरफ चंद्रबाबू नायडू ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है तो दूसरी तरफ खबर है कि केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की पार्टी इस फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दायर करेगी.

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सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़े वर्ग की तरह SC/ST में भी सब कैटगराइजे़शन करने का आदेश दिया है. (फोटो- PTI)

SC-ST आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के सहयोगी दलों में मतभेद नज़र आ रहा है. एक तरफ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है तो दूसरी तरफ खबर है कि केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की पार्टी इस फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दायर करेगी. दोनों पार्टियां केंद्र में बीजेपी की सहयोगी हैं. भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए इस मसले ने दुविधा पैदा कर दी है.

1 जून को पंजाब सरकार बनाम दविंदर सिंह केस में CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने बहुमत के फैसले में कहा कि राज्य अनुसूचित जातियों और जनजातियों में उपवर्गीकरण कर सकते हैं. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़े वर्ग की तरह SC-ST में भी क्रीमी लेयर बनाने को कहा है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अलग-अलग राजनीतिक दलों की टिप्पणियां सामने आ रही हैं. BSP सुप्रीमो मायावती ने भी इस फैसले का विरोध किया है. उन्होंने कहा कि वो इस फैसले से सहमत नहीं हैं. मायावती ने तर्क दिया कि एससी और एसटी समुदायों ने अत्याचारों का सामना एक समूह के रूप में किया है, और इन समूहों के भीतर किसी भी तरह का उपवर्गीकरण करना सही नहीं होगा.

हालांकि, मायावती NDA का हिस्सा नहीं है. लाज़मी है बीजेपी पर हमला करने की छूट है. मायावती ने कहा,

"उनकी मंशा ठीक नहीं है, एससी और एसटी को दिए गए आरक्षण को खुद खत्म करने के बजाय, वे इसे कोर्ट के जरिए से खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं और वे इसमें ज्यादातर सफल भी रहे हैं."

मायावती ने सरकार से सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने की भी मांग की है. उन्होंने कहा,

“अगर आपकी मंशा साफ है तो जो भी फैसला आया है, आप लोग संसद में संविधान में संशोधन करें या उसे संविधान की नौवीं अनुसूची में लाएं.”

मायावती की तरह ही चिराग पासवान ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया. उन्होंने कहा कि आरक्षण का आधार ही अस्पृश्यता (छुआछूत) से था. इसलिए क्रीमी लेयर का कॉन्सेप्ट पूरी तरह से निराधार है. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक चिराग ने कहा कि उनकी पार्टी जल्द ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पेटीशन दायर करेगी. मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री चिराग ने कहा, “हम सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से असहमत हैं. स्पष्ट है कि अनुसूचित जाति के वर्गीकरण का आधार अस्पृश्यता है, न कि शैक्षणिक या आर्थिक स्थिति. इसलिए, क्रीमी लेयर का प्रावधान नहीं हो सकता. आरक्षण के भीतर आरक्षण उचित नहीं है.”

चिराग पासवान की तरह ही बीजेपी की एक और सहयोगी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का खुलकर विरोध किया है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने कहा कि एससी/एसटी के लिए आरक्षण जाति पर आधारित है. उन्होंने कहा कि एससी और एसटी के लिए आरक्षण में क्रीमी लेयर के मानदंड लागू करने के किसी भी कदम का उनकी पार्टी कड़ा विरोध करेगी.

एक तरफ मायावती, चिराग पासवान और RSP के रामदास आठवले ने SC/ST आरक्षण में सब-कैटेगराइजेशन का विरोध किया. दूसरी तरफ चंद्रबाबू नायडू ने इस फैसले का स्वागत किया है. आंध्र प्रदेश के मंत्री और नायडू के बेटे नारा लोकेश ने ट्विटर पर लिखा,

"हम अनुसूचित जाति वर्गीकरण मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं. चंद्र बाबू गारू ने 30 साल पहले सामाजिक न्याय लागू किया था."

साथ ही उन्होंने कहा कि TDP जातियों के वर्गीकरण के लिए किए गए अपना चुनावी वादा पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है.

हालांकि, इस विषय पर अब तक बीजेपी की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. पार्टी का कहना है कि वो अभी इस पर मंथन कर रहे हैं. उसके बाद ही अपनी प्रतिक्रिया देंगे. लेकिन तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुसूचित जाति में वर्गीकरण की बात कही थी. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 2023 के विधानसभा चुनावों के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मडिगा समुदाय के उप-वर्गीकरण की लंबे समय से चली आ रही मांग पर विचार करने के लिए एक समिति के गठन की घोषणा की थी. ये तब हुआ था जब मडिगा आरक्षण पोराटा समिति के नेता मंदा कृष्ण मडिगा ने भी भाजपा का दामन थामा था.

दरअसल, अनुसूचित जाति आरक्षण में उप-वर्गीकरण की मांग और इसके इर्द-गिर्द की राजनीति कई राज्यों में चल रही है. इसका नेतृत्व राज्य के दूसरे सबसे बड़े दलित समुदाय और कुछ अन्य लोग कर रहे हैं. उनकी शिकायत है कि नौकरियों और दूसरे अवसरों में उनको उचित हिस्सा नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि उनमें से ज़्यादातर पर सबसे बड़े और ज्यादा सक्षम अनुसूचित जाति समुदाय का कब्ज़ा है.

बिहार में कई छोटी दलित जातियों ने आवाज़ उठाई कि उन्हें उनका हक नहीं मिल रहा है, उन्हें आरक्षित सीटों के लिए सक्षम और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली जातियों, जैसे पासवान और चमार समाज के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस आंदोलन का नेतृत्व मालाओं के खिलाफ़ मादिगा कर रहे हैं. पंजाब में वाल्मीकि समाज सबसे बड़ी दलित जाति चमार के वर्चस्व का विरोध करता है.

राजनीति भी इसी के इर्द-गिर्द घूमती है. क्षेत्रीय पार्टियां अपने वोटबैंक के लिए जातियों पर ही निर्भर रहती हैं. जैसे उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति में आने वाले जाटव मायावती का कोर वोट बैंक माने जाते हैं. बिहार में चिराग पासवान दलितों के नेता हैं, लेकिन पासी समाज उनके पीछे लामबंद है.

दूसरी तरफ बीजेपी लंबे समय से 'नॉन-यादव ओबीसी' और ‘नॉन-जाटव दलित’ की राजनीति करती रही है. जिसका फायदा पार्टी को उत्तर भारत में हुआ भी है. लेकिन अब ये दुविधा है कि अगर बीजेपी जैसी राष्ट्रीय और अन्य क्षेत्रीय पार्टियां सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करती हैं तो उन जातियों से कैसे डील करेंगी जो राज्यों में सबसे मजबूत हैं. जैसे यूपी में जाटव, पंजाब में चमार, बिहार में पासवान.

इस फैसले का एक बड़ा पहलू ये भी है कि अगर जातियों का वर्गीकरण होता है तो राजनीति की डायनमिक्स बदलेगी. छोटी-छोटी जातियों के नेता उभरेंगे. जिससे गठबंधन की राजनीति और मुश्किल हो सकती है. बड़ी पार्टियों को नए छोटे-छोटे दलों के साथ गठजोड़ करना पड़ेगा. उन्हें साथ लाना पड़ेगा.

बीजेपी की उससे भी बड़ी समस्या ये है कि गठबंधन की पार्टियां ही अलग-अलग सुर अलाप रही हैं. साथ किसका दें. पार्टी की तरफ से फिलहाल कोई प्रतिक्रिया आई भी नहीं है.

इस विषय पर हमने राजनीतिक विशेषज्ञ अभय दुबे से बात की. उन्होंने कहा,

“बीजेपी ने 90 के दशक में अपने मैनिफेस्टो में आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात कही थी. संसद में बहुमत मिलने पर पार्टी ने आर्थिक आधार पर पिछड़े (EWS) वर्ग के लिए संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया. इस बात का सहारा लेकर जब विपक्ष ने चुनाव में कहा कि बीजेपी आरक्षण खत्म कर देगी तो लोगों ने बात मान ली. नतीजा, बीजेपी को चुनाव में नुकसान हुआ. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी फंस गई है. अगर बीजेपी कहती है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पक्ष में नहीं है तो मायावती की बात मानकर संसद में कोर्ट का फैसला पलट दे. और अगर उसको सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कोई आपत्ति नहीं है तो जाति जनगणना करानी पड़ेगी. यानी विपक्ष की मांग माननी पड़ेगी.”

दरअसल, जातियों का वर्गीकरण करने से पहले ये जानना होगा कि किस जाति की कितनी जनसंख्या है. उसके लिए जाति जनगणना कराना ही एकमात्र रास्ता है. जबकि बीजेपी इसके पक्ष में नहीं है.

इस विषय पर बीजेपी को नज़दीक से देखने वाले भानु नागराजन कहते हैं कि 

फिलहाल इस बात की संभावना कम है कि बीजेपी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देगी. संसद सत्र खत्म होने के बाद हो सकता है कि पार्टी के नेता कुछ बोलें. 

लेकिन सिर्फ बीजेपी ही नहीं, असमंजस की स्थिति दूसरी पार्टियों के लिए भी है. जीबी पंत यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और 'रिपब्लिक ऑफ हिंदुत्व' किताब के लेखक बद्री नारायण कहते हैं,

“कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और राजद जैसी पार्टियों को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और बिहार में मुश्किल हो सकती है. इसकी वजह जाटव और चमार बिरादरी की बड़ी मौजूदगी है. भाजपा सबसे हाशिए पर और अदृश्य अनुसूचित जातियों के बीच आरक्षण के पुनर्वितरण का समर्थन कर सकती है, लेकिन इससे कुछ लाभ और कुछ नुकसान हो सकते हैं.”

हालांकि अभय दुबे इस पर कहते हैं कि जो पार्टियां INDIA गठबंधन में हैं उनके पास वर्गीकरण का समर्थन करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. उनका कहा है कि इंडिया गठबंधन की पार्टियां जाति जनगणना चाहती हैं. वजह है कि जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. इसलिए जनगणना की मांग है. तो इंडिया गठबंधन की पार्टियां सब-कैटेगरीज का विरोध नहीं करेंगी.

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