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चार बार का विधायक सुनील पांडेय, जिसने दी थी मुख्तार अंसारी को मारने के लिए 50 लाख की सुपारी!

अहिंसा में पीएचडी इस विधायक पर दर्ज हैं कई मुकदमे, एके-47 की तलाश में छापा मार चुकी है NIA

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चार बार के विधायक रहे सुनील पांडेय के कई ठिकानों पर एनआईए ने एके-47 राइफलों की तलाश में छापेमारी की थी.
कहा जाता है कि बिहार के अपराध जगत में अत्याधुनिक हथियार एके 47 की एंट्री 1990 के आसपास हुई थी. इस हथियार की पहली खेप बेगुसराय के माफिया डॉन अशोक सम्राट के पास पहुंची थी, जिससे एक ठेकेदार की हत्या की गई थी. एके 47 की पहली बरामदगी भी बिहार में 1994 में हुई थी और उस वक्त पुलिस मुठभेड़ में अशोक सम्राट मारा गया था. तब से लेकर अब तक बिहार में कई बार एके 47 का आना और उसका चलना खबरों में रहा है.
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बिहार में एके 47 की एंट्री 1990 के दशक में हुई थी.

बिहार में एके 47 2018 में भी खबरों में रही थी. अक्टूबर, 2018 में मुंगेर के मिर्जापुर बरदह गांव के नदी, नाले, कुएं, जंगल और खेतों से 20 एके 47 बरामद हुई थीं. इसके अलावा एके 47 के पार्ट्स भी मिले थे. ये एके-47 और उनके पार्ट्स जबलपुर ऑर्डिनेंस डिपो के थे, जिन्हें वहां से तस्करी कर लाया गया था. इसके बाद इस केस की जांच आतंकवाद की तफ्तीश के लिए बनी नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी को सौंप दी गई थी. अपनी इसी जांच को आगे बढ़ाते हुए एनआईए ने 20 जून, 2019 को बिहार के कई शहरों में छापेमारी की. इस पूरी छापेमारी के केंद्र में जो एक नाम था, वो नाम है सुनील पांडेय का.
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एनआईए ने सुनील पांडे और उनके भाइयों के ठिकानों पर एके 47 की तलाश में छापेमारी की है.

सुनील पांडेय, जिनका हालिया परिचय ये है कि वो राम विलास पासवान की पार्टी लोक जन शक्ति पार्टी के नेता हैं. उनका पुराना परिचय ये है कि वो जनता दल यूनाइटेड से दो बार विधानसभा का चुनाव जीते हैं. कुल तीन बार विधायक रहे हैं. और उनका इससे भी पुराना परिचय ये है कि वो बिहार के कुख्यात बाहुबली नेताओं में से एक हैं, जिनका नाम कभी ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या में आता है, तो कभी वो एक अपराधी को जेल से भगाने के मामले में गिरफ्तार होते हैं तो कभी यूपी के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी को मारने के लिए 50 लाख रुपये की सुपारी देते हैं. जिनकी आधी जिंदगी जेल में और आधी जिंदगी फरारी में बीती है. उनका एक और परिचय है. और वो ये है कि वो पीएचडी हैं. नाम के आगे डॉक्टर लिखते हैं और उनकी पीएचडी भगवान महावीर की अहिंसा पर है. लेकिन ये सब एक दिन में नहीं हुआ है. इस सुनील पांडेय की कहानी पूरी फिल्मी है.
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कहते हैं कि सुनील पांडेय पढ़ने के लिए बेंगलुरु गए थे और झगड़ा होने पर वापस लौट आए.

कहानी की शुरुआत होती है 1990 के दशक से. रोहतास के नावाडीह गांव के रहने वाले कमलेशी पांडेय ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. कभी नौकरी नहीं की. जाति से भूमिहार थे. सोन नदी से बालू निकालने के छोटे-मोटे ठेके लिया करते थे, जिससे इलाके में दबंग की छवि बनी हुई थी. उनके ही बड़े बेटे हैं नरेंद्र पांडेय, जिन्हें लोग सुनील पांडेय के नाम से जानते हैं. इंटरमीडिएट करने के बाद सुनील पांडेय को उनके पिता ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बेंगलुरु भेज दिया. कुछ ही दिनों में सुनील का एक लड़के से झगड़ा हो गया. कहा जाता है कि उस झगड़े के दौरान सुनील पांडेय ने उस लड़के को चाकू मार दिया और पढ़ाई-लिखाई छोड़कर वापस नावाडीह लौट आए. और फिर अपने पिता के ही नक्श-ए-कदम पर चलना शुरू कर दिया.
उस दौर में आरा और उसके आस-पास एक बाहुबली का नाम चलता था. नाम था सिल्लू मियां. उस वक्त बिहार में शहाबुद्दीन की धौंस हुआ करती थी. सिल्लू मियां शहाबुद्दीन का साथी हुआ करता था. कहा जाता है कि सुनील पांडेय ने अपराध जगत में कदम रखने की शुरुआत सिल्लू मियां की शागिर्दी से की. और धीरे-धीरे करके वो सिल्लू मियां के राइट हैंड हो गए. लेकिन वक्त के साथ महात्वाकांक्षाएं कुलांचे मारने लगी. खुद को सिल्लू मियां से ऊपर दिखने की चाहत बढ़ने लगी. और एक दिन सिल्लू मियां की हत्या हो गई. नाम आया सुनील पांडेय का, लेकिन सबूत नहीं मिले. तो केस भी दर्ज नहीं हुआ.
रणवीर सेना का साथ और फिर मुखिया से अदावत
जवानी के दौरा में बरमेसर मुखिया, कभी सुनील पांडेय इनके साथ हुआ करते थे.
जवानी के दौरा में बरमेसर मुखिया, कभी सुनील पांडेय इनके साथ हुआ करते थे.

बिहार में 90 का दशक रणवीर सेना का था. इस सेना में खास तौर पर भूमिहार जाति का वर्चस्व था और ब्रह्मेश्वर सिंह उसके मुखिया थे. कहा जाता है कि आरा और उसके आस-पास के पूरे इलाके में शायद ही कोई भूमिहार घर हो, जिसका प्रत्यक्ष और परोक्ष समर्थन रणवीर सेना के साथ न रहा हो. सुनील पांडेय और उनका परिवार भी इससे अछूता नहीं रहा. एक वक्त वो भी आया, जब सुनील पांडेय को रणवीर सेना का कमांडर माना जाने लगा. एक इंटरव्यू के दौरान सुनील पांडेय ने कहा भी था-
''मैं मुखियाजी को तबसे मानता आया हूं, जबसे मैंने होश संभाला है. वो मेरे लिए भगवान की तरह थे.''
लेकिन सुनील पांडेय और ब्रह्मेश्वर मुखिया के बीच अदावत की एक लंबी कहानी रही है. और ये कहानी है वर्चस्व की. रणवीर सेना मूल रूप से सवर्ण जातियों का हथियारबंद संगठन था, जिसमें ज्यादातर लोग भूमिहार जाति के थे. खुद ब्रह्मेश्वर सिंह भी भूमिहार थे और सुनील पांडेय भी. उस वक्त भूमिहारों के नेतृत्वकर्ता के तौर पर ब्रह्मेश्वर मुखिया का नाम बड़ा हो गया था. सुनील पांडेय खुद को भूमिहारों के नेता के तौर पर स्थापित करने में लगे हुए थे. और इसी वजह से दोनों के बीच अदावत हो गई. 1993 में एक ईंट भट्ठे के मालिक की हत्या हो गई थी. इसके बाद से ब्रह्मेश्वर मुखिया और सुनील पांडे के बीच खूनी जंग शुरु हुई. 10 जनवरी 1997 को भोजपुर के तरारी प्रखंड के बागर गांव में ब्रह्मेश्वर मुखिया गुट ने 3 लोगों की हत्या कर दी. मारे गए सभी लोग भूमिहार जाति के ही थे. मरने वालों में एक महिला भी थी, जो सुनील पांडेय की करीबी रिश्तेदार थी. इसके बाद से ही ब्रह्मेश्वर सिंह सुनील पांडेय के बीच लड़ाई चलती रही, जो 1 जून, 2012 को रणवीर सेना के मुखिया ब्रह्मेश्वर सिंह की हत्या तक जारी रही थी. कुछ लोग ये भी कहतेत हैं कि रणवीर सेना को चंदे के नाम पर जो पैसे मिलते थे, उसे लेकर ब्रह्मेश्वर मुखिया और सुनील पांडेय के बीच लड़ाई शुरू हुई थी.
2000 में पहली बार बने विधायक, बाहुबलियों को इकट्ठा कर बनाई थी सात दिन की नीतीश सरकार
नीतीश कुमार जब सात दिन के लिए पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, सुनील पांडेय ने विधायकों को जुटाने में अहम भूमिका निभाई थी.
नीतीश कुमार जब सात दिन के लिए पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, सुनील पांडेय ने विधायकों को जुटाने में अहम भूमिका निभाई थी.

मार्च, 2000. बिहार में विधानसभा के चुनाव थे. समता पार्टी के टिकट पर सुनील पांडेय भी चुनावी मैदान में उतर गए. रोहतास के पीरो विधानसभा से चुनाव लड़े. राजद प्रत्याशी काशीनाथ को चुनाव में मात दी और पहली बार विधायक बन गए. लेकिन चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला. उस वक्त समता पार्टी और बीजेपी का गठबंधन था. प्रधानमंत्री वाजपेयी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने को कहा. नीतीश कुमार ने 3 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और इस शपथ में पहली बार आरा के पीरो विधानसभा से विधायक बने सुनील पांडेय की अहम भूमिका थी. बहुमत किसी को नहीं मिला था तो सुनील पांडेय ने मोकामा के सूरजभान, बनियापुर के धूमल, राजन तिवारी, मुन्ना शुक्ला, रमा सिंह और अनंत सिंह जैसे उस वक्त के निर्दलीय बाहुबलियों को नीतीश के पाले में खड़ा कर दिया. सरकार तो बच नहीं पाई, लेकिन सुनील पांडेय का नाम बिहार की सियासत में अहम हो गया.
डॉक्टर का अपहरण और नाम आया सुनील पांडे का
पटना के न्यूरोसर्जन डॉ चंद्रा के अपहरण में निचली अदालत ने सुनील पांडेय को उम्रकैद की सजा दी थी. हाई कोर्ट से वो बरी हो गए थे.
पटना के न्यूरोसर्जन डॉ चंद्रा के अपहरण में निचली अदालत ने सुनील पांडेय को उम्रकैद की सजा दी थी. हाई कोर्ट से वो बरी हो गए थे.

17 मई 2003. पटना के मशहूर न्यूरो सर्जन डॉक्टर रमेश चंद्रा का अपहरण हो गया. पचास लाख रुपए की फिरौती मांगी गई. लेकिन पुलिस ने तत्परता दिखाई और पटना के नौबतपुर इलाके से डॉक्टर चंद्रा को बरामद कर लिया. केस में नाम आया पीरो के विधायक सुनील पांडेय का. सुनील उस वक्त समता पार्टी के विधायक थे और सरकार आरजेडी की थी. केस दर्ज हुआ. करीब पांच साल तक चला और फिर 2008 में सुनील पांडेय को इस अपहरण के मामले में तीन और लोगों के साथ उम्रकैद की सजा हुई. मामला हाई कोर्ट पहुंचा और फिर हाई कोर्ट ने सुनील को इस मामले में बरी कर दिया. लेकिन तब तक सुनील पांडेय 2005 में एक बार फिर से जेडीयू के टिकट पर पीरो से लगातार तीसरी बार विधायक बन गए थे. क्योंकि 2005 में फरवरी और नवंबर दो बाकर विधानसभा के चुनाव हुए थे. फरवरी में सुनील पांडेय ने राजद कोटे से मंत्री रह चुकीं कांति सिंह के पति केशव सिंह को हराया था, जबकि नवंबर में उन्होंने राजद प्रत्याशी त्रिवेणी सिंह को मात दी थी.
पटना के होटल में हंगामा, पत्रकारों को दी जान से मारने की धमकी
पटना के होटल में हंगामे करने के बाद उन्होंने किसी पत्रकार को जान से मारने की भी धमकी दी थी.
पटना के होटल में हंगामे करने के बाद उन्होंने किसी पत्रकार को जान से मारने की भी धमकी दी थी.

28 जून, 2006. सुनील पांडेय बिहार की राजधानी पटना के सबसे अच्छे होटलों में शुमार मौर्या होटल में रात में रुके. अगले दिन सुबह जब वो होटल से बाहर चेक आउट कर रहा था, तो उसने होटल के पैसे नहीं दिए. दावा किया कि होटल के मालिक ने उसके दोस्त से 47 लाख रुपये लिए थे, जो उसने नहीं चुकाए. ऐसे में वो होटल के पैसे नहीं देगा. उस वक्त जब पत्रकारों ने सुनील पांडेय से पूछा कि वो पैसे क्यों नहीं दे रहे हैं तो उन्होंने एक टीवी चैनल के कैमरामैन को जान से मारने की धमकी दी. ये पूरा वाकया रिकॉर्ड हो गया और टीवी चैनलों पर चला. मज़बूर होकर नीतीश कुमार ने सुनील पांडेय को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. लेकिन 2010 में नीतीश कुमार ने एक बार फिर से सुनील पांडे को टिकट दे दिया. और इस बार सुनील पांडेय पर सबकी नज़र चली गई. ऐसा इसलिए क्योंकि सुनील पांडेय ने चुनाव आयोग को जो एफिडेविट दिया था, उसमें सुनील पांडेय पर कुल 23 आपराधिक मुकदमे दर्ज थे, जिनमें लूट, रंगदारी, डकैती, हत्या की कोशिश और अपहरण के भी मामले थे.
ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड में आया नाम
ब्रह्मेश्वर मुखिया ने पूरी जिंदगी बंदूक के साए में गुजारी, आखिरकार इसी ने उनकी जान ली.
ब्रह्मेश्वर मुखिया ने पूरी जिंदगी बंदूक के साए में गुजारी, आखिरकार इसी ने उनकी जान ली.

1 जून, 2012 को रणवीर सेना के मुखिया ब्रह्मेश्वर मुखिया की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस मामले में जांच कर रही पुलिस का पहला शक नरेंद्र कुमार पांडे ऊर्फ सुनील पांडे पर गया था. पटना स्थित घर पर छापा मारकर पुलिस ने इनके ड्राइवर को गिरफ़्तार किया गया था. इसके अलावा उनके छोटे भाई और उस वक्त विधान परिषद में निर्दलीय सदस्य रहे हुलास पांडेय को हिरासत में लेकर पूछताछ की थी. बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया था.
लोकसभा में जेडीयू की हार और पार्टी से अलग हो गए सुनील पांडे
कभी नीतीश कुमार की पार्टी से चार बार विधायक बने सुनील पांडेय नीतीश से अलग हुए और उनकी पत्नी चुनाव हार गईं.
कभी नीतीश कुमार की पार्टी से चार बार विधायक बने सुनील पांडेय नीतीश से अलग हुए और उनकी पत्नी चुनाव हार गईं.

2014 में जब नीतीश कुमार ने एनडीए से अलग होकर लोकसभा का चुनाव लड़ा तो उनके खाते में सिर्फ 2 सीटें आईं. इस हार के बाद जेडीयू से लगातार दूसरी बार विधायक रहे सुनील पांडे ने पार्टी छोड़ दी. कहा कि गठबंधन तोड़ने के बाद मैं ही पहला आदमी था, जिसने नीतीश कुमार को आगाह किया था और 2010 के विधानसभा चुनाव में जो जीत मिली थी, वो सिर्फ जेडीयू की नहीं थी. इसमें एनडीए भी था. लेकिन नीतीश कुमार ने बात नहीं मानी और एनडीए से अलग हो गए. इसलिए मैंने भी जेडीयू छोड़ दिया.
आरा कोर्ट में धमाका, एसपी से मिलने पहुंचे सुनील पांडे और गिरफ्तार हो गए
आरा कोर्ट में हुए बम धमाके के मामले में एसपी ने सुनील पांडेय को पूछताछ के लिए बुलाया था और फिर गिरफ्तार कर लिया था.
आरा कोर्ट में हुए बम धमाके के मामले में एसपी ने सुनील पांडेय को पूछताछ के लिए बुलाया था और फिर गिरफ्तार कर लिया था.

23 जनवरी, 2015. आरा के सिविल कोर्ट में एक बम ब्लास्ट हुआ. आत्मघाती हमला था. दो लोगों की मौत हो गई. इस दौरान कोर्ट से दो कैदी फरार हो गए लंबू शर्मा और अखिलेश उपाध्याय. जब केस की तफ्तीश शुरू हुई तो पता चला कि इस धमाके को अंजाम देने वाला लंबू शर्मा ही था, जिसने अपनी फरारी के लिए ये पूरा खेल रचा था. 24 जून, 2015 को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने लंबू शर्मा को गिरफ्तार कर लिया. जब उससे पूछताछ हुई तो उसने कई खुलासे किए. पुलिस को दिए बयान में लंबू शर्मा ने बताया कि जेल से फरार होने में उसकी मदद सुनील पांडेय ने की थी. इसके बाद भोजपुर जिले के एसपी नवीन चंद्र झा ने सुनील पांडेय को एसपी ऑफिस में बुलाया. सुनील पांडेय पहुंचे तो एसपी नवीन झा ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
मुख्तार अंसारी को मारने के लिए दी थी 50 लाख की सुपारी
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आरा बम धमाके में गिरफ्तार किए गए लंबू शर्मा ने कहा था कि सुनील पांडेय ने मुख्तार अंसारी को मारने के लिए 50 लाख रुपये की सुपारी दी थी.

लंबू शर्मा की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने खुलासा किया कि लंबू शर्मा ने यूपी के बाहुबली मुख्तार अंसारी को मारने के लिए 50 लाख रुपये की सुपारी ली थी. ये सुपारी दी थी सुनील पांडेय ने. पुलिस के मुताबिक लंबू शर्मा ने सुनील पांडेय से फोन पर बात की थी. लंबू के मुताबिक मुख्तार अंसारी को मारने के लिए बृजेश सिंह ने छह करोड़ रुपये की सुपारी दी थी. कभी मुख्तार के करीबी रहे चांद मियां की मदद से लंबू ने मुख्तार की रेकी भी कर ली थी. मुख्तार को मारने के लिए सुनील पांडेय ने उसे 50 लाख रुपये भी दिए थे और जेल से भागने में मदद भी की थी. मुख्तार को मारने के लिए ही लंबू शर्मा जेल से भागा था. लेकिन मुख्तार को मारने के पहले ही वो दिल्ली पुलिस के हत्थे चढ़ गया. लंबू के इकबालिया बयान के बाद सुनील पांडेय गिरफ्तार तो हुए, लेकिन तीन महीने में ही उन्हें जमानत मिल गई.
और फिर आ गया विधानसभा का चुनाव
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2015 के विधानसभा चुनाव में सुनील पांडेय ने नीतीश का साथ छोड़ दिया और राम विलास पासवान के साथ आ गए.

नवंबर, 2015 में विधानसभा के चुनाव होने थे. सुनील पांडेय अब राम विलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी के नेता थे. विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे. वहीं आरा में बीजेपी की ओर से केंद्र में मंत्री थे आरके सिंह. पूर्व आईएएस, जिनकी छवि एक सख्त प्रशासक की है. कहा जाता है कि उन्होंने राम विलास पासवान को कहा कि वो सुनील पांडेय को टिकट न दें. सुनील को टिकट नहीं मिला, लेकिन उनकी पत्नी को मिल गया. परिसीमन के बाद पीरो से अलग होकर सीट बनी थी तरारी. सुनील पांडेय की पत्नी गीता देवी लोजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरीं. वो विधानसभा चुनाव आरजेडी और जदयू ने कांग्रेस के साथ महागठंधन बनाकर लड़ा था. नतीजा हुआ कि गीता हार गईं. और जीत मिली माले के सुदामा प्रसाद को. 272 वोटों से हारी थीं गीता देवी.
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सुनील पांडेय ने 2015 का चुनाव खुद नहीं लड़ा. लोजपा के टिकट पर उनकी पत्नी गीता चुनावी मैदान में उतरीं और हार गईं.

सुनील पांडेय की पत्नी गीता का विधायक बनने का ख्वाब पूरा नहीं हो सका. उनके भाई हुलास पांडेय भी एमएलसी से पूर्व एमएलसी हो चुके हैं. और सुनील पांडेय. वो तो डॉक्टर सुनील पांडेय हैं, जिन्होंने अहिंसा पर अपनी पीएचडी की है. रिसर्च आरा के वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के मुखिया रामजी राय की देख-रेख में हुई है. जेल में सजा काटने के दौरान ही उन्होंने पीएचडी का इंटरव्यू भी दिया है, जिसके लिए वो हथियारबंद पुलिसवालों के साथ इंटरव्यू टीम के सामने एक घंटे तक बैठे रहे थे और जिसके लिए उन्हें अदालत ने विशेष आदेश दिया था. वो कहते भी थे,
''मैं नेता हूं, जिससे उम्मीद की जाती है कि वो समाज का नेतृत्व करे. मुझे शिक्षित होना ही होगा. मैं जेल में हूं तो क्या हुआ, हमारे बहुत से नेताओं ने जेल में रहते हुए ही अच्छी किताबें लिखी हैं.''
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सुनील पांडेय, जिन्होंने अहिंसा पर पीएचडी कर रखी है और जो इतिहास में गोल्डमेडलिस्ट हैं.

सुनील पांडेय की ये बात सच है कि हमारे देश में लिखी गई बहुत सी अच्छी किताबें जेल में लिखी गई हैं. लेकिन सुनील पांडेय ये भूल गए कि जेल जाने वाले उन लोगों ने किसी का अपहरण नहीं किया था, उनलोगों पर किसी की हत्या, लूट या अपहरण करने का आरोप नहीं था, उनलोगों पर अपने देश के खिलाफ कोई काम करने का आरोप नहीं था और सबसे बड़ी बात, किताब लिखने वालों के घरों पर देश की कोई जांच एजेंसी एके 47 जैसे खतरनाक हथियार की तलाश में छापेमारी नहीं कर रही थी.

गले में सांप लपेटने वाले नेता संजय पासवान कभी नरेंद्र मोदी से ऊपर आंके गए थे