The Lallantop

BJP IT सेल के ध्रुव सक्सेना का क्या हुआ, जिन पर पाकिस्तानी एजेंट होने का आरोप लगा था

ढाई साल पहले ISI एजेंट होने के आरोप में गिरफ्तारी हुई थी.

post-main-image
(बाएं) ध्रुव सक्सेना की 2017 की फोटो. इन्ही फोटोज़ के बाहर आने के बाद मीडिया में काफी ख़बरें बनी थीं.
मीडिया ट्रायल. मीडिया पर नज़र रखने वाले इस शब्द को बेहतर समझते होंगे. वो हालात जब मीडिया हाथ धोकर किसी अभियुक्त के पीछे पड़ जाए. कई बार मामला सनसनीख़ेज होता है. कई बार बना दिया जाता है. ISI टेरर फंडिंग मामले में आरोप झेल रहे ध्रुव सक्सेना ने भी मीडिया पर इसी तरह का आरोप लगाया है. सक्सेना और उनके करीबियों का कहना है कि वह मीडिया ट्रायल का शिकार हुए हैं.
मध्य प्रदेश के भोपाल में रहने वाले ध्रुव सक्सेना पर राजद्रोह का मुकदमा चल रहा है. 8 फरवरी, 2017 को उन्हें एंटी-टेरर स्क्वॉड ने गिरफ़्तार किया था. उनपर पाकिस्तानी हैंडलर्स के लिए काम करने का आरोप है. अभी बेल पर बाहर हैं. कोर्ट ने ध्रुव को निर्दोष नहीं कहा है. न ही जांच एजेंसियां उनके ख़िलाफ़ कुछ भी ठोस साबित कर पाई हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री के साथ लाल घेरे में दिख रहे हैं ध्रुव सक्सेना. 2017 में ज़्यादातर जगहों में यही तस्वीर वायरल हुई थी.
पूर्व मुख्यमंत्री के साथ लाल घेरे में दिख रहे हैं ध्रुव सक्सेना. 2017 में ज़्यादातर जगहों में यही तस्वीर वायरल हुई थी.

1 सितंबर, 2019 को ध्रुव का नाम फिर से चर्चा में आया. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के एक री-ट्वीट
 के बाद. जिस ट्वीट को उन्होंने री-ट्वीट किया था उसमें लिखा था कि ध्रुव सक्सेना ISI एजेंट हैं. और बीजेपी नेताओं से उनके गहरे रिश्ते हैं. उस ट्वीट में दो तस्वीरें भी थीं, जिनमें से एक में वह बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के साथ नज़र आ रहे हैं.
इसके बाद ध्रुव का नाम एक बार फिर टीवी स्क्रीन पर फ्लैश करने लगा. बकौल ध्रुव, बड़ी मुश्किल से थोड़ी-बहुत संभली ज़िदगी फिर से डांवांडोल लगने लगी.  इससे पहले 2017 में जब मामला सामने आया था, तब उनको बीजेपी से लिंक करते हुए कई सुर्खियां बनी थीं.

ध्रुव पर क्या केस है?

ध्रुव पर पाकिस्तानी हैंडलर्स के इशारों पर काम करने का आरोप है. उन पर भारत सरकार के ख़िलाफ़ जंग की तैयारी करने, धोखाधड़ी, काग़ज़ी जालसाज़ी और सबूतों से छेड़छाड़ करने  (इंडियन पीनल कोड IPC की धारा 122, 123, 420,467, 471, 120B) के तहत मुकदमा चल रहा है. 8 फरवरी, 2017 को गिरफ्तार होने के बाद उन्हें 11 महीने जेल में रखा गया था.
2017 में कुछ यूं छपी थीं ध्रुव सक्सेना के नाम से ख़बरें.
2017 में कुछ यूं छपी थीं ध्रुव सक्सेना के नाम से ख़बरें.

केस का मौजूदा स्टेटस क्या है?

फिलहाल मामला भोपाल की एक लोअर कोर्ट में चल रहा है. ATS (एंटी-टेरर स्कॉड) की ओर से चार्जशीट दायर की जा चुकी है. मिली जानकारी के मुताबिक 2600 पन्नों की चार्जशीट में ध्रुव के अलावा 15 और लोगों के नाम शामिल हैं. इन पर पाकिस्तानी एजेंट होने का आरोप है. हालांकि, इस चार्जशीट पर अभी तक कोर्ट में कोई सुनवाई नहीं हुई है.
गिरफ्तारी से पहले ध्रुव सक्सेना बीजेपी युवा मोर्चा के आईटी सेल के जिला संयोजक थे. भोपाल में. करीब दो साल तक. गिरफ्तारी के बाद उन्हें पोस्ट से हटा दिया गया. ध्रुव का कहना है कि उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर अजीब ही कैम्पेन चलाया गया. उनके आईटी सेल में होने की वजह से. वो खुद को निर्दोष बताते हैं. उनका पक्ष जानने के लिए हमने उनसे बात की.

ध्रुव का पक्ष

ध्रुव अपने साथ हुए पूरे मामले को कुछ यूं बयान करते हैं.
"मुझे 8 फरवरी (2017) को इंदौर-भोपाल के बीच पड़ने वाले आख़िरी टोल प्लाज़ा से गिरफ्तार किया गया था. दोपहर क़रीब 1 बजकर 50 मिनट पर. 8 और 9 फरवरी को मुझसे पूछताछ हुई और 10 तारीख़ को मुझे कोर्ट में पेश कर दिया गया. कार्रवाई चलती रही. महीना चढ़ गया मई का. 8 मई को कोर्ट में चार्जशीट पेश की गई. जिसपर पहली बहस सेशंस कोर्ट में 16 जून को हुई. वहां जज ने वकील से कहा,
'मैं आपकी दलील से सहमत हूं, पर इस स्टेज पर मैं ऑर्डर नहीं दे सकता. आपको हाईकोर्ट जाना पड़ेगा.'
24 जून को हमारे केस पार्टनर मनीष गांधी और मोहित अग्रवाल की बेल अर्ज़ी हाई कोर्ट में लगी. 17 जुलाई को मेरी बेल अर्ज़ी भी हाईकोर्ट में लग गई. 3 अगस्त को हमारी हाईकोर्ट में पहली सुनवाई हुई. वहां ATS के वकील ने अगली तारीख मांगी. अगली तारीख 11 अगस्त तय हुई. 11 अगस्त को ATS के वकील ने छुट्टी ले ली. उस दिन जज अतुल श्रीधरन ने अगली तारीख पर सिम बॉक्स भी मंगवाए (जिनका गैर-कानूनी इस्तेमाल करने के आरोप लगे थे.) फिर तारीख मिली 22 अगस्त. लेकिन ATS के वकील ने फिर वक्त देने की मांग की.
अगली सुनवाई हुई 5 सितंबर को. जिसमें जज ने लिखा कि इनका बलराम, राजीव तिवारी, जब्बार या पाकिस्तानी हैंडलरों के साथ रिश्ते होने का सबूत दे. या फिर साफ करे कि कहीं ये सिर्फ इल्लीगल गेटवे यानी फोन कॉल्स के लिए सुरक्षित सिस्टम मुहैया करवाने का मामला है. जज ने ATS को कार्रवाई पूरी करने के लिए1 महीने का वक्त दिया. अगली सुनवाई 5 अक्टूबर की बजाए 6 अक्टूबर को हुई. लेकिन ATS के हाथ फिर भी खाली थे.
6 अक्टूबर को ऑर्डर रिजर्व रख लिया गया. 3 जनवरी, 2018 को क़रीब 11 महीने जेल में रहने के बाद मुझे बेल मिली. बेल ऑर्डर में साफ-साफ लिखा था कि जांच एजेंसी लगाए गए इल्ज़ामों को संतुष्ट करने के लिए कोई भी सबूत नहीं दे पाई है."
ध्रुव सक्सेना का बेल ऑर्डर. ध्रुव सक्सेना ने ये बेल ऑर्डर उपलब्ध कराया है.
ध्रुव सक्सेना का बेल ऑर्डर. इसमें जज ने लिखा है कि जांच एजेंसी के पास अभियुक्त के किसी भी गैर-कानूनी काम में शामिल होने के कोई सबूत नहीं हैं. ध्रुव सक्सेना ने ये बेल ऑर्डर उपलब्ध कराया है.
ये ध्रुव का पक्ष था. हमने इस मामले को और गहराई से जानने के लिए उनके वकील प्रमोद सक्सेना से बात की. प्रमोद सक्सेना का कहना है कि ध्रुव निर्दोष हैं. उन्होंने ATS की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं. प्रमोद का कहना है,
मेरे मुवक्किल के खिलाफ कोई भी सबूत एजेंसियों के पास नहीं है. एजेंसियां असली दोषियों को नहीं पकड़ रही हैं. अगर ध्रुव सक्सेना के खिलाफ उनके पास कोई भी ठोस सबूत है तो मामला दर्ज होने के क़रीब ढाई साल बाद भी कोर्ट के सामने पेश क्यों नहीं किया.
2017 में ध्रुव सक्सेना की तस्वीर लगे पोस्टर भी वायरल हुए थे.
2017 में ध्रुव सक्सेना की तस्वीर लगे पोस्टर भी वायरल हुए थे.

जांच एजेंसियों का पक्ष
अगस्त 2019
में 5 लोगों को पाकिस्तानी कनेक्शन को चलते पकड़ा गया. मामला अवैध पैसे के लेनदेन का है. पकड़े गए लोगों में से एक बलराम भी था. इसे 2017 में भी पकड़ा गया था. बलराम पर अवैध पैसे के लेनदेन का मामला चल रहा है. ऐसा आरोप है कि इसने पैसे के अवैध लेनदेन में अपने भाइयों को शामिल कर लिया है. जब हमने 2017 और 2019 के मामले पर जानकारी के लिए स्पेशल टास्क फोर्स थाने से संपर्क किया. दो बार संपर्क करने के बाद भी हमारी बात किसी उच्चाधिकारी से नहीं करवाई गई. जूनियर अधिकारियों ने कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया. अगर ख़बर के बाद उनका कोई पक्ष हमें मिलता है तो हम उसे ज़रूर जोड़ देंगे.
अब ध्रुव राजद्रोह के दोषी हैं  या नहीं? इसका फैसला कोर्ट को करना है लेकिन उनकी बात को सुना जाना भी उतना ही जरूरी है जितना मामले की जांच का सही दिशा में, सही समय पर आगे बढ़ना. बहरहाल, आतंकी गतिविधियों के शक में कई लोग पकड़े जाते हैं. केस सालों साल चलते हैं. 15 साल, 20 साल बाद रिहा होते हैं. रिहाई के बाद उनका पक्ष छापा जाता है. अगर वक्त से कार्रवाई पूरी हो जाए, जांच एजेंसियां हीलाहवाली न करें तो दोषियों को सही वक्त पर कड़ी सजा मिल जाएगी. निर्दोष भी समय रहते बरी होकर अपनी ज़िंदगी बेदाग जी सकेंगे.


वीडियो- राजस्थान में पुलिस सोती नहाती रह गई, फिल्मी स्टाइल में बदमाश विक्रम गुज्ज़र को ले भागे अपराधी