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बउआ देवी के पद्मश्री से याद आई मधुबनी पेंटिंग्स की

अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने हनोवर के मेयर को बउआ देवी की पेंटिंग को भेंट किया था.

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फोटो - thelallantop

मैं बचपन से ही अपनी मां को कभी घर के आंगन में, तो कभी कपड़ों पर तस्वीरें बनाते देखता था और इन तस्वीरों के बने बिना तो हमारे यहां कोई त्योहार पूरा ही नहीं होता है. जब बड़े हुए, तब जाकर पता चला कि दुनिया इन तस्वीरों को मधुबनी पेंटिंग के नाम से जानती है और ये पेंटिंग पूरी दुनिया में फेमस हैं. इस साल गणतंत्र दिवस के अवसर पर मधुबनी पेंटिंग के चर्चित कलाकार बउआ देवी को पद्मश्री दिया गया है. तो चलिए, बताते हैं आपको कि क्या है मधुबनी पेंटिंग.

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मधुबनी पेंटिंग मिथिला की एक फोक पेंटिंग है, जो मिथिला के नेपाल और बिहार के क्षेत्र में बनाई जाती है. इस पेंटिंग में मिथिलांचल की संस्कृति को दिखाया जाता है. मधुबनी पेंटिंग को मधुबनी आर्ट और मिथिला पेंटिंग भी कहा जाता है. इस पेंटिंग का नाम ही मधुबनी पेंटिंग है. मतलब की मधुबनी की पेंटिंग. मधुबनी बिहार में इंडिया और नेपाल के बॉर्डर के पास का एक जिला है. बताते हैं कि ये शहर रामायण के समय भी था. तब इसका नाम मधु के वन पर पड़ा था. इसी वन में राम और सीता ने पहली बार एक-दूसरे को देखा था. एक और इंट्रेस्टिंग फैक्ट ये है कि SBI के डेबिट कार्ड के कवर पर जो पेंटिंग आपको दिखती है, वो असल में मधुबनी पेंटिंग ही है.

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कैसे हुई शुरुआत

मधुबनी पेंटिंग की शुरुआत रामायण के दौर से ही हुई थी. तब मिथिला के राजा जनक थे. राम के शिव-धनुष तोड़ने के बाद जनक की बेटी सीता की शादी राम से तय हुई थी. राम के पिता अयोध्या के राजा थे, इसलिए मिथिला में अयोध्या से बारात आने वाली थी. जनक ने सोचा कि एक ही बिटिया है. शादी ऐसी होनी चाहिए कि जमाना याद रखे. तो उन्होंने जनता को आदेश दिया कि सब लोग अपने घरों की दीवारों और आंगनों पर पेंटिंग बनाएं, जिसमें अपनी संस्कृति की झलक हो. इससे अयोध्या से आए बारातियों को मिथिला की महान संस्कृति का पता चलेगा.

मधुबनी पेंटिंग मिथिलांचल में, खासकर बिहार के दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी और नेपाल के जनकपुर, सिरहा, धनुषा जैसे जिलों की मेन फोक पेंटिंग है. शुरुआत में ये पेंटिंग्स घर के आंगन और दीवारों पर रंगोली की तरह बनाई जाती थीं. फिर धीरे-धीरे ये कपड़ों, दीवारों और कागजों पर उतर आईं. मिथिला की औरतों की शुरू की गईं इन फोक पेंटिंग्स को पुरुषों ने भी अपना लिया. शुरू में ये पेंटिंग्स मिट्टी से लीपी झोपड़ियों में देखने को मिलती थीं, लेकिन अब इन्हें कपड़े या पेपर के कैनवस पर बनाया जाता है. इन पेंटिंग्स में खासतौर पर देवी-देवताओं, लोगों की आम जिंदगी और नेचर से जुड़ी पेंटिंग्स होती हैं. इनमें आपको सूरज, चंद्रमा, पनघट, तुलसी और शादी जैसे नजारे मिलेंगे.

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मधुबनी पेंटिंग्स कैसे बनाई जाती हैं

मधुबनी पेंटिंग्स दो तरह की होती हैं. एक भित्ति-पेंटिंग जो घर की दीवारों (मैथिली में दीवारों को भित्ति भी कहते हैं) पर बनाई जाती है और दूसरी अरिपन, जो घर के आंगन में बनाई जाती है. इन पेंटिंग्स को माचिस की तीली और बांस की कलम से बनाया जाता है. चटख रंगों का खूब इस्तेमाल होता है, जैसे गहरा लाल, हरा, नीला और काला. चटख रंगों के लिए अलग-अलग रंगों के फूलों और उनकी पत्तियों को तोड़कर उन्हें पीसा जाता है. फिर उन्हें बबूल के पेड़ की गोंद और दूध के साथ घोला जाता है.

पेंटिंग्स में कुछ हल्के रंग भी यूज होते हैं, जैसे पीला, गुलाबी और नींबू रंग. खास बात ये है कि ये रंग भी हल्दी, केले के पत्ते और गाय के गोबर जैसी चीजों से घर में ही बनाए जाते हैं. लाल रंग के लिए पीपल की छाल यूज की जाती है. आमतौर पर ये पेंटिंग्स घर में पूजाघर, कोहबर घर (विवाह के बाद का पति-पत्नी का कमरा) और किसी उत्सव पर घर की दीवार पर बनाई जाती हैं. हालांकि, अब इंटरनेशनल मार्केट में इसकी डिमांड देखते हुए कलाकार आर्टीफीशियल पेंट्स भी यूज करने लगे हैं और लेटेस्ट कैनवस पर बनाने लगे हैं.

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मधुबनी पेंटिंग के स्टाइल

भरनी, कचनी, तांत्रिक, गोदना और कोहबर. ये मधुबनी पेंटिंग्स के पांच स्टाइल हैं. भरनी, कचनी और तांत्रिक पेंटिंग स्टाइल के धार्मिक तरीके हैं, जिसकी शुरुआत मधुबनी की ब्राह्मण और कायस्थ महिलाओं ने की थी. 1960 में दुसाध (एक दलित समुदाय) महिलाओं ने भी इन पेंटिंग्स को नए अंदाज में बनाना शुरू किया. उनकी पेंटिंग में राजा सह्लेश की झलक दिखाई देती है. दुसाध समुदाय के लोग राजा सह्लेश को अपना कुल देवता मानते हैं. हालांकि, आज मधुबनी पेंटिंग्स पूरी दुनिया में धूम मचा रही हैं और कास्ट, रिलीजन और एरिया जैसे पैमानों से से उपर उठ चुकी है. अब आर्टिस्ट इंटरनेशनल मार्केट का रुख देखते हुए आर्ट में एक्सपेरिमेंट भी कर रहे हैं, जिनके नए स्टाइल निकल रहे हैं.

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जब दुनिया ने मधुबनी पेंटिंग को जाना

मधुबनी पेंटिंग्स मिथिलांचल में हजारों सालों से चली आ रही हैं, पर 1934 से पहले ये सिर्फ गांवों की एक लोककला ही थी. 1934 में मिथिलांचल में बड़ा भूकंप आया था, जिससे वहां काफी नुकसान हुआ. मधुबनी के ब्रिटिश ऑफिसर विलियम आर्चर जब भूकंप से हुआ नुकसान देखने गए तो उन्होंने ये पेंटिंग्स देखीं, जो उनके लिए नई और अनोखी थीं. उन्होंने बताया, 'भूकंप से गिर चुके घरों की टूटी दीवारों पर जो पेंटिंग्स हैं, वो मीरो और पिकासो जैसे मॉडर्न आर्टिस्ट की पेंटिंग्स जैसी थी'. फिर उन्होंने इन पेंटिंग्स की ब्लैक एंड वाइट तस्वीरें निकलीं, जो मधुबनी पेंटिंग्स की अब तक की सबसे पुरानी तस्वीरें मानी जाती हैं. उन्होंने 1949 में 'मार्ग' के नाम से एक आर्टिकल लिखा था', जिसमें मधुबनी पेंटिंग की खासियत बताई थी. इसके बाद पूरी दुनिया को मधुबनी पेंटिंग की खूबसूरती का अहसास हुआ.

1977 में मोजर और रेमंड ली ओवेंस (उस समय के एक फुलब्राइट स्कॉलर) के फाइनेंशियल सपोर्ट से मधुबनी के जितबारपुर में 'मास्टर क्राफ्ट्समेन असोसिएशन ऑफ मिथिला' की स्थापना की गई. इसके बाद जितबारपुर मधुबनी पेंटिंग का हब बन गया. इससे लोकल मधुबनी पेंटिंग आर्टिस्ट्स को बहुत फायदा हुआ. उनकी कला को सही कीमत मिलने लगी. फोर्ड फाउंडेशन का भी मधुबनी पेंटिंग के साथ लंबा असोसिएशन रहा. अब तो बहुत से इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन मधुबनी पेंटिंग्स को इंटरनेशनल मार्केट में पहुंचा रहे हैं.


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प्रधानमंत्री मोदी हनोवर के मेयर को बउआ देवी की पेंटिंग को भेंट करते हुए

मधुबनी पेंटिंग्स को मिले अवॉर्ड्स और इसके जाने-माने आर्टिस्ट्स

मधुबनी पेंटिंग्स को ऑफीशियल पहचान तब मिली, जब 1969 में सीता देवी को बिहार सरकार ने मधुबनी पेंटिंग के लिए सम्मानित किया था. 1975 में मधुबनी पेंटिंग के लिए जगदंबा देवी को पद्म श्री से सम्मानित किया गया. सीता देवी को भी 1984 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया. बाद में सीता को मधुबनी पेंटिंग के लिए 'बिहार रत्न' और 'शिल्प गुरु' सम्मान से भी सम्मानित किया गया. 2011 में महासुंदरी देवी को भी मधुबनी पेंटिंग के लिए पद्म श्री से नवाजा गया. और इस साल गणतंत्र दिवस के मौके पर बउआ देवी को पद्म श्री से सम्मानित करने की घोषणा की गई है. इनके अलावा भी कई महिलाओं को मधुबनी पेंटिंग्स के लिए सम्मानित किया गया. पिछले साल जब पीएम मोदी जर्मनी दौरे पर थे, तो हंनोवर के मेयर स्टीवन शोस्टॉक से मुलाकात के दौरान उन्होंने शोस्टॉक को बउआ देवी का बनाया हुआ मधुबनी पेंटिंग गिफ्ट की थी.




 ये स्टोरी आदित्य प्रकाश ने लिखी है


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