The Lallantop

जब सुभाष चंद्र बोस पर वल्लभभाई पटेल ने केस कर दिया

मुकदमा क्यों हुआ, क्या नतीजा रहा, नेताजी की जयंती पर जानिए कुछ जाने-अनजाने किस्से.

post-main-image
सुभाष भारत लौटे तो कांग्रेस के महासचिव बनाए गए. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.

anurag mishra

ये लेख हमारे लिए अनुराग मिश्र ने लिखा है. अनुराग लल्लनटॉप के दोस्त हैं. इन्होंने जेएनयू से हिस्ट्री में एमए किया है. अनुराग इतिहास के अच्छा जानकार हैं. वे लगातार इस विषय पर अलग-अलग जगहों पर लिखते रहते हैं. सुभाष जयंती के मौके पर ये लेख अनुराग ने विशेष तौर पर हमारे लिए लिखा है.




 
तारीखः 23 जनवरी, 1897. स्थानः उस वक्त बंगाल प्रेसीडेंसी का कटक (अब ओडिशा)
एक रसूखदार वकील जानकीनाथ और प्रभावती बोस के घर सुभाष का जन्म हुआ. सुभाष अपने माता-पिता की नौवीं संतान थे. कुल 14 भाई-बहन थे. पढ़ाई में होशियार सुभाष जल्द ही स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित हो गए. मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करके वह कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज पहुंचे. यहां भारत विरोधी बयान देने वाले प्रोफेसर ओटेन से भिड़ गए. टकराव बढ़ा तो वहां से निकलकर कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्कॉटिश चर्च कॉलेज में दाखिला ले लिया. फिर 1918 में दर्शनशास्त्र में ग्रैजुएशन किया. पिता को दिया वादा पूरा करने के लिए सिविल अफसर बनने लंदन पहुंच गए. एग्जाम पास किया और आईसीएस में चौथी रैंक आई. असहयोग आंदोलन से प्रभावित सुभाष चंद्र बोस ने 1921 में सिविल सेवा से इस्तीफा दे दिया. सुभाष बाबू भारत लौटे. फिर चितरंजन दास के निर्देशन में स्वराज और फॉरवर्ड अखबार का संपादन करने लगे. 1923 में कांग्रेस युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. फिर बंगाल कांग्रेस के महासचिव बनाए गए. कलकत्ता महापालिका के मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी रहे.
जेल से घर में अपनी सेहत अच्छी होने की गलत सूचनाएं भेजते थे सुभाष चंद्र बोष. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.
जेल से घर में अपनी सेहत अच्छी होने की गलत सूचनाएं भेजते थे सुभाष चंद्र बोस. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.

टॉम कैट के खिलाफ कौन सा केस चला? साल 1925 में राष्ट्रवादियों के दमन में लपेट लिए गए. और बर्मा के मंडले निर्वासित कर दिए गए. मंडले की जेल तब बीमारियों और अभावों का घर थी. मगर सुभाष इससे उलट बातें पत्र लिखकर घर वालों को सांत्वना देते रहते थे. टीबी हो गई थी और घर में लिखते थे कि यहां मस्त होटल वाला माहौल है. मैनेजर को पपीता बहुत पसंद है, इसलिए उसने पपीता को सब्जियों की रानी घोषित कर दिया है. सब्जी, फल, अचार सब जगह पपीता प्रयोग में लाया जाता है. पालक-बैगन-पपीता और बैगन-पालक... यही मेन्यू है. मंडले जेल का एक और किस्सा सुभाष बाबू ने यूं लिखा कि यहां पहले बिल्लियों की फौज थी. एक दिन इन्हें घात लगाकर दबोचा गया. फिर दूर छोड़ दिया गया. अफसोस, उनमें से तीन फिर लौट आईं. उनमें से एक ने एक कबूतर मार डाला. टॉम कैट के खिलाफ मुकदमा चलाया गया, जिसमें उसे कड़ी सजा देने का फैसला हुआ. पर वैष्णव भावना के चलते उसे माफ कर दिया गया.
पटेल ने सुभाष बाबू पर केस ठोका बोस भारत लौटे तो कांग्रेस के महासचिव बनाए गए. उन्होंने कांग्रेस वॉलंटियर कॉर्प्स नामक वर्दीधारी स्वयंसेवकों का दल भी बनाया. खुद इसकी कमान संभाली. 1930 में कलकत्ता के मेयर का पदभार भी संभाला. सविनय अवज्ञा आंदोलन में फिर गिरफ्तार हो गए. इस बार मामला कुछ अलग था. फ्रैक्चर होने से बिगड़ी तबीयत ने उनको ऑस्ट्रिया पहुंचा दिया. वहां मुलाक़ात हुई विट्ठल भाई पटेल से. विट्ठल भाई सरदार पटेल के बड़े भाई थे. विट्ठल भाई बीमार थे. बोस ने उनकी खूब सेवा की. विट्ठल भाई, सुभाष बाबू से प्रभावित हुए. और अपनी जायदाद का एक हिस्सा देशहित के कामकाज चलाने के लिए उनको लिख गए. इस मामले पर सुभाष बाबू का सरदार वल्लभ भाई पटेल से विवाद हो गया. सरदार ने सुभाष बाबू पर केस ठोक दिया. सुभाष केस हार गए. पटेल और बोस के बीच मतभेद तो रहे, मनभेद नहीं हुए.
ऑस्ट्रिया में एमिली शेंहकल के साथ सुभाष चंद्र बोष. एमिली तस्वीर में दाएं खड़ी हैं. फोटो. इंडिया टुडे आर्काइव.
ऑस्ट्रिया में एमिली शेंहकल के साथ सुभाष चंद्र बोस. एमिली तस्वीर में दाएं खड़ी हैं. फोटो. इंडिया टुडे आर्काइव.

चट-पट ब्याह ऑस्ट्रिया में ही उनकी मुलाकात एमिली शेंहकल से हुई. उन्होंने एमिली शेंहकल को अपनी किताब 'द इंडियन स्ट्रगल' को एडिट करने के लिए रखा. किताब तो ब्रिटिश हुकूमत ने प्रतिबंधित करा दी. लेकिन शेंहकल सुभाष बाबू की 1937 में जीवन संगिनी बन गईं. बिना पंडित, बिना पत्री, हिंदू शैली में चट-पट ब्याह करके बोस वतन लौट आए. फिर 1942 में कन्या रत्न की प्राप्ति भी हुई.
सुभाष बाबू 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने. 1939 में दोबारा मुखिया चुने गए. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.
सुभाष बाबू 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने. 1939 में दोबारा मुखिया चुने गए. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.

ठसक की राजनीति दौर करवट लेता है. सुभाष बाबू 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बनते हैं. अगले साल 1939 में दोबारा त्रिपुरी में मुखिया चुने जाते हैं. सामने गांधी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया हारते हैं. केंद्रीय समिति का काम ठप पड़ता है. नेताजी फॉरवर्ड ब्लॉक का सूत्रपात करते हैं. इसी बीच, द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होता है. नेताजी ने कांग्रेस का अध्यक्ष होने के नाते भारत को युद्ध में घसीटे जाने की सार्वजनिक निंदा की. उन्होंने तुरंत अवज्ञा आंदोलन छेड़ने का ऐलान किया. पर गांधी और अन्य से मतभेद के चलते उन्होंने फासीवादी मदद का रुख कर लिया. गांधीजी साधन और साध्य दोनों की पवित्रता के समर्थक थे. वे दूसरे विश्वयुद्ध में प्रतीकात्मक व्यक्तिगत सत्याग्रह के पक्षकार बने. मगर समाजवादी विचारों से प्रभावित बोस ने साध्य की पवित्रता का अनुसरण किया. वह देश की आजादी के लिए साम्राज्यवादी ब्रिटेन के खिलाफ मुसोलिनी और हिटलर के पास जा पहुंचे. उन्होंने फासीवादी ताकतों का सहारा लेना उचित समझा. दूसरे विश्वयुद्ध के चलते ब्रिटेन के बुरे वक़्त को देख नेताजी ने उसे भारत से भी खदेड़ने की ठानी.
भेष बदलकर क्यों रहे? सुभाष बाबू के भेष बदलकर चकमा देने के किस्से बहुत मशहूर रहे. इन पर श्याम बेनेगल के निर्देशन में बनी फिल्म 'बोस: द फॉरगॉटेन हीरो' और 'बोस: डेड-अलाइव' नाम की वेब सीरीज में इसे शानदार तरीके से फिल्माया गया है. 1942 के अंत तक गांधीजी जहां 'करो या मरो' का नारा दे चुके थे, वहीं बोस हिटलर से मिलकर जापानी युद्धपोत से सुमात्रा पहुंचे. यहां आजाद हिंद फौज की कमान संभाली. भारतीय युद्धबंदियों को जापान ने इनकी सेना की कमान में सौंप दिया. अंडमान निकोबार द्वीप समूह को जापान ने नेताजी को सौंप दिया. शहीद और स्वराज द्वीप पर 1943 में गठित अस्थाई सरकार के प्रधानमंत्री खुद सुभाष चंद्र बोस बने. उन्होंने सेना और विदेश जैसे विभाग अपने पास रखे. इसके बाद उन्होंने मुख्यालय रंगून बना लिया. रंगून से आजाद हिंद फौज के रेडियो से ही उन्होंने 'दिल्ली चलो' के नारे से पहले गांधीजी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया. और विजय श्री का आशीष मांगा था. ऐसे 1857 के विद्रोह का नारा 'दिल्ली चलो' एक बार फिर बुलंद हुआ.
18 अगस्त, 1945 को बोस की विमान हादसे में मौत हो गई थी.


वीडियोः क्या जवाहर लाल नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फोटो वाले नोट बंद करवाए?