पूर्वी चीन के तियानजिन शहर में एक खास मंच पर ऐसा नज़ारा बन रहा था, जो पूरे विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश लेकर आया. तीन बड़े नेता-चीन के शी जिनपिंग, रूस के व्लादिमीर पुतिन और भारत के नरेंद्र मोदी-मुस्कुराते हुए, बहुमुखी राजनीतिक रिश्तों का इज़हार कर रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे ये तीनों सालों पुराने मित्र हों, जो एक साझा लक्ष्य के लिए एकजुट हुए हैं.
SCO में मोदी, पुतिन और जिनपिंग की मुस्कुराती तस्वीर ट्रंप के लिए बड़ा संदेश देती है
What Modi, Putin and Xi’s Handshake Really Means: पहले भारत की नौकरशाही चीन-रूस से इतनी नजदीकी सार्वजनिक तौर पर नहीं दिखाती थी, ताकि अमेरिका से संबंध प्रभावित न हों. लेकिन ट्रम्प सरकार के शुल्क (50%) और रूसी तेल खरीद की सज़ा के बाद अब छिपी हुई साझेदारी का कोई लाभ नहीं बचा. इस बार मोदी ने खुद ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालीं.


शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक-दूसरे का हाथ पकड़कर बैठक कक्ष में पहुंचे, जहां पहले से ही कई विश्व नेता बैठे थे. दोनों सीधे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पास गए, हाथ मिलाया और तीनों मिलकर एक घेरा बना लिया. थोड़ी बातचीत होने लगी, फिर अनुवादक जुड़ गए. पुतिन ने ज़ोरदार हंसी के साथ मुस्कुराया और मोदी खुलकर हंस पड़े. एक बार तो मोदी ने दोनों नेताओं का हाथ पकड़कर आपसी एकता दर्शायी.
दोस्ती की तस्वीर: क्या संदेश था?विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की गर्मजोशी दिखाना कई संदेश देता है,
- चीन और रूस की नजदीकी: यह दिखाने के लिए कि वे अमेरिका को चुनौती देने वाली एक अलग राजनीतिक धारा तैयार कर रहे हैं.
- भारत का संदेश: चाहे चीन से सीमा विवाद चल रहा हो, लेकिन भारत के पास पश्चिमी देशों के अलावा भी मजबूत दोस्त हैं.
- अमेरिका की ट्रम्प सरकार द्वारा लगाए गए शुल्कों (टैरिफ़) के कारण भारत विकल्प तलाश रहा है.

यह दृश्य तिआनजिन में देखा गया, जहां 20 से अधिक देशों के नेता, विशेष रूप से मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के, जुटे थे. ट्रम्प नीतियों के चलते पैदा हुए संकट ने चीन और रूस को, ईरान, कज़ाख़िस्तान, किर्गिस्तान, बेलारूस और पाकिस्तान जैसे सहयोगियों को एक छत के नीचे लाने का मौका दिया.
वैश्विक राजनीति: चीन और रूस की रणनीतिचीन चाहता है कि अमेरिका की अस्थिर व्यापार नीतियों से नाराज देशों को भरोसेमंद नेता के रूप में उसका विकल्प दिखे. शी जिनपिंग ने अपने भाषण में अमेरिका पर सीधे कटाक्ष किए-कहा कि शीत युद्ध की मानसिकता, गुटबाजी और धमकाने की नीति का विरोध करना चाहिए. रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने पश्चिमी देशों को यूक्रेन युद्ध के लिए दोषी ठहराया और बताया कि ट्रम्प के साथ अलास्का में हुई बैठक की पूरी जानकारी शी जिनपिंग को दे दी गई है. इससे साफ है-चीन अब रूस की रणनीति में भी केंद्र बिंदु बन गया है.

भारत की स्थिति: नए संबंधों की ओर
प्रधानमंत्री मोदी ने “बहुपक्षवाद और समावेशी वैश्विक व्यवस्था” का समर्थन किया-अर्थात, भारत जैसे देशों को भी वैश्विक मंच पर महत्वपूर्ण भूमिका और सम्मान चाहिए. तीनों नेताओं का हाथ मिलाना रूस द्वारा प्रस्तावित "त्रिक" (troika) की संकल्पना को सार्वजनिक रूप से दिखाता है. इसके तुरंत बाद मोदी और पुतिन ने एक ही गाड़ी में बैठकर बैठक के लिए रवाना हुए. पुतिन की लिमोजीन में यह मुलाकात 50 मिनट चली. मोदी ने सोशल मीडिया पर तस्वीर डालकर लिखा-"उनसे संवाद हमेशा ज्ञानवर्धक रहता है". रूसी प्रवक्ता से जब पूछा गया, दोनों गाड़ी में क्यों चर्चा कर रहे थे, तो उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया-'हमारी अपनी दीवारें'.
पहले भारत की नौकरशाही चीन-रूस से इतनी नजदीकी सार्वजनिक तौर पर नहीं दिखाती थी, ताकि अमेरिका से संबंध प्रभावित न हों. लेकिन ट्रम्प सरकार के शुल्क (50%) और रूसी तेल खरीद की सज़ा के बाद अब छिपी हुई साझेदारी का कोई लाभ नहीं बचा. इस बार मोदी ने खुद ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालीं. बाद में उन्होंने पुतिन से कहा-‘‘1.4 अरब भारतीय नागरिक दिसंबर में दिल्ली में आपका स्वागत करने के लिए उत्सुक हैं.’’ मोदी ने आगे कहा-“हमारी 'विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी' का प्रमाण है कि कठिन समय में भारत और रूस हमेशा कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे हैं.”

वैश्विक शक्ति संतुलन
शिखर सम्मेलन के बाद शी जिनपिंग की अगुवाई में कई कार्यक्रम हैं, जिसमें बीजिंग में विश्व युद्ध विजय की 80वीं वर्षगांठ मनाने के लिए सैन्य परेड के आयोजन की तैयारी है, जिसमें पुतिन और उत्तर कोरिया के किम जोंग उन भाग लेंगे. शी चाहते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध में चीन की भूमिका को प्रमुखता से रखा जाए, ताकि कम्युनिस्ट पार्टी की छवि और दक्षिण चीन सागर व ताइवान पर उसका दावा मजबूत हो सके.
छिपे हुए मतभेदतीनों नेताओं की दोस्ती सार्वजनिक तौर पर तो दिखी, लेकिन अंदरूनी अविश्वास और विरोध भी हैं,
- चीन और भारत का सीमा विवाद अब भी बरकरार है.
- भारत चाहता है कि विवाद का हल निकले, जबकि चीन चाहता है कि यह मुद्दा संबंधों को प्रभावित न करे.
- रूस की आर्थिक हालत प्रतिबंधों के चलते खराब होने के कारण भारत के लिए वह पश्चिमी आर्थिक सहयोग का विकल्प नहीं बन सकता.
- चीन भी रूस की उत्तर कोरिया पर बढ़ती पकड़ से चिंतित है.
विशेषज्ञों का मानना है कि तीनों देशों की सार्वजनिक एकजुटता की तस्वीर से शक्ति का संतुलन तो तुरंत नहीं बदलता, लेकिन अमेरिका के विरोध में नया विकल्प खड़ा करने की कोशिश जरूर नजर आती है. विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ बाहरी दिखावे से भारत, चीन और रूस की त्रिमूर्ति में छिपे मतभेद दूर नहीं होते.
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