इंद्र ने उन्हें ताड़ लिया. वो गुस्से में भूल गए कि ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया था कि विश्वरूप असुरों से भी प्यार करते हैं और यज्ञ में यह बात बर्दाश्त करनी होगी. इंद्र फुर्ती में उठे और हपक के विश्वरूप का सिर काट दिए. उनको लग गया पाप, वो भी ऐसा वैसा नहीं, ब्रह्महत्या का.
विश्वरूप के पापा थे त्वष्टा. उनको आया बहुत जबर गुस्सा और इंद्र को भस्म करने के लिए वह डालने यज्ञ में आहुति. पर गुस्से में वह गलत मंतर पढ़ गए. बस सावधानी हटी, दुर्घटना घटी. ऑन द स्पॉट पैदा हो गया राक्षस वृत्रासुर. पैदा होते ही वह दौड़ा देवताओं को निगलने. इंद्र जो हथियार चलाए तो राक्षसवा एक्कै सेकेंड में सब काट दीहिस.

दधीचि से मदद मांगने पहुंचे देवता. चित्र: जगन्नाथ
देवता सब रोते हुए पहुंचे भगवान विष्णु के पास. विष्णु सीधे बोले- मैटर आउट ऑफ कंट्रोल है. वृत्रासुर को मारने के लिए हथियार इंपोर्ट करने पड़ेंगे. चले जाओ दधीचि ऋषि के पास. उनकी हड्डियों से बने हथियार से ही ये राक्षस मर सकता है. इंद्र ने सारा ईगो बाजू रखकर दधीचि से रिक्वेस्ट की. जब दधीचि ने क्रॉस क्वेश्चन किया कि भाई हम ही क्यों शहीद हों, तब इंद्र ने उन्हें विष्णु जी के ऑर्डर के बारे में बताया. दधीचि फाइनली मान गए और अपना शरीर त्याग कर दिया. विश्वकर्मा जी ने उनकी हड्डियों से बनाया हथियार- वज्र.
फाइट भयानक थी और कई दिनों तक चली. न इंद्र हार मानते थे न वृत्रासुर. अंत में इंद्र ने दधीचि वज्र से राक्षस के हाथ काट दिए. राक्षस भी कम नहीं था, उसने इंद्र को ऐरावत के साथ निगल लिया. पर इंद्र डबल सेफ थे. उनके पास विश्वरूप का दिया हुआ नारायण कवच था जिससे वो बच गए. अंत में वृत्रासुर का पेट चीरकर ऐरावत के साथ बाहर निकल आए और राक्षस का हो गया काम तमाम.
(श्रीमद्भगवत महापुराण)