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बिना बैटरी-इंजन के 'चल रही' मशीन ने तोड़ दिए फिजिक्स के नियम? साइंस जानकर बहुत कुछ पता लगेगा

Perpetual motion machine का इतिहास लंबा रहा है. या कहें लंबा और मजेदार दोनों रहा है. सदियों पहले भी कई दावे किए गए हैं. वहीं अब भी एक Viral Video में दावा किया जा रहा है कि यह मशीन अपने ही किसी भाई ने बना ली है.

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MIT ग्रैजुएट हैरी पेरिगो भी 1910 के आस-पास ऐसे दावे किया करते थे. (Image: Social media)

हाल ही में ओलंपिक खेलों का उद्घाटन समारोह (Olympics opening ceremony controversy) विवादों में आया. विवाद था, इसमें हुए एक नाटक को लेकर. कहा गया कि यह नाटक, महान चित्रकार लियोनार्डो दा विंची (Leonardo Da Vinci) की पेंटिंग ‘द लास्ट सपर’ (The Last Supper) की नकल है. एलन मस्क से लेकर वेटिकन तक इसकी निंदा की गई. कहा गया इस नाटक में ईसाईयों की भावनाओं को आहत किया गया है. दरअसल, ‘द लास्ट सपर’ पेंटिंग में ईसाई मान्यताओं की एक कहानी दर्शायी गई है.

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जिसमें ईसा मसीह अपने बारह धर्मदूतों (Apostles) के साथ अंतिम भोज कर रहे होते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि इसी दौरान ईसा मसीह घोषणा करते हैं कि धर्मदूतों में से एक उन्हें धोखा देगा.

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लियोनार्डो दा विंची की पेंटिंग ‘द लास्ट सपर’ 

खैर ‘द लास्ट सपर’ की बात उठी ही है, तो इससे जुड़ी एक और मान्यता के बारे में जान लेते हैं,  ‘द होली ग्रेल’ (The Holy grail). माना जाता है, यह वह 'पवित्र प्याला' है, जिसका इस्तेमाल ईसा मसीह ने लास्ट सपर के दौरान किया था. इसमें खास शक्तियां होने की बात कही गई.

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फिर क्या था, मध्ययुग के सैनिकों से लेकर फिल्मों तक, इस ‘पवित्र प्याले’ को बेशकीमती के पर्याय की तरह इस्तेमाल किया गया.

कमोबेश कुबेर के खजाने से इसकी तुलना की जा सकती है. फिल्मों के शौकीनों के लिए ‘नागमणि’ भी कुछ ऐसी ही खोज है, जिसे पाने के लिए कभी अमरीश पुरी से लेकर, अनुपम खेर तक सपेरा बन निकले थे. अब आप सोच रहे होंगे कि ये सब कहानी बताने की कोई खास वजह?

वजह है, एक वायरल वीडियो जिसमें दावा किया जा रहा है कि ‘फिजिक्स की होली ग्रेल’ या नागमणि खोज ली गई है. फिजिक्स के नियम तोड़ दिए गए हैं. परपेचुअल मोशन मशीन (Perpetual motion machine) बना ली गई है.

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हिंदी में कहें तो सतत गति मशीन, जो बिना तेल-पानी और बिजली के चल सकती है. फिर क्या था, लोगों को ये वीडियो इतना भाया कि अब तक 64 लाख से भी ज्यादा बार इस वीडियो को देखा जा चुका है. पोस्ट करने वाले भाई कह रहे हैं, 

खुद से सीखे इस आदमी ने भौतिकी के सारे नियम तोड़ दिए हैं. 

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इस पर एक यूजर ने कॉमेंट छापा कि भौतिकी के नियम पता ना हों, तो उन्हें तोड़ना और भी आसान हो जाता है. बहरहाल, आगे यूजर ने सवाल किया गया कि लोग ऐसी तकनीक का इस्तेमाल सस्ती ऊर्जा बनाने के लिए क्यों नहीं करते हैं?

जवाब मिलेगा, बराबर मिलेगा. लेकिन पहले जानते हैं कि परपेचुअल मोशन मशीन क्या चीज है?

भौतिकी की ‘नागमणि’

परपेचुअल मोशन मशीन के बारे में वैज्ञानिक और लेखक ग्रेगोरी एन. डेरी अपनी किताब व्हाट साइंस इज़ एंड हाउ इट वर्क्स ( What Science Is and How It Works) में बताते हैं. वो लिखते हैं, 

परपेचुअल मोशन मशीन या सतत गति मशीन का काम भी नाम के मुताबिक ही है. यानी ये हमेशा चलती रह सकती है. हमेशा वो भी बिना तेल, बिजली, पानी, कोयला या फिर गैस वगैरा के. इस मामले में हमें बिना कुछ दिए ही कुछ मिल जाता है.

What Science Is and How It Works
What Science Is and How It Works किताब का एक हिस्सा

माने बिना ऊर्जा दिए ऊर्जा मिलना, वो भी हमेशा-हमेशा के लिए.

अब इसके इतने फायदे हैं, तो इसे बनाने के प्रयास किए जाने भी लाजिमी थे. प्रयोग किए भी गए. जिनका लंबा इतिहास है, या कहें लंबा मजेदार इतिहास है.

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भास्कर का चक्का

करीब हजार साल पहले भारतीय गणितज्ञ, भास्कर द्वितीय ने एक मशीन की कल्पना की. जिसमें एक चक्के में मोड़दार पट्टों के भीतर मरकरी (Mercury) या पारा भरकर, उसके हमेशा घूमते रहने की बात कही. 

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ऐसे कुछ चक्के की कल्पना की गई रही होगी. (Image: social media)

भास्कर इस बारे में सोचने वाले अकेले नहीं थे. कुछ लोगों ने चुंबक के जरिए ऐसी मशीन बनाने की कोशिश की. कुछ ने गर्मी का इस्तेमाल करके, ऐसी घड़ी बनाने की कोशिश की जो अनंत काल तक चल सके. ये सब बस दावे थे, कोई भी ऐसी परपेचुअल मोशन मशीन बनाने में कामयाब ना हो सका.

एक समय बाद ये दावे बेतुके लगने लगे, वजह आगे बताते हैं. इतने बेतुके कि अब अमेरिकी पेटेंट ऑफिस ऐसी किसी मशीन के दावे वाला एप्लीकेशन तक नहीं लेता. वहीं पेरिस एकेडमी ऑफ साइंस ने 1775 से ऐसा करना बंद कर दिया था. क्योंकि ऐसी मशीन बनाना नामुमकिन बताया गया.

कहा गया ऐसी मशीन बनाना नामुमकिन है! क्यों? 

परपेचुअल मोशन मशीन बनाने का सबसे मुश्किल काम है, यह पता लगाना कि बैटरी और मोटर कहां छिपाई जाए!

ये तो हो गई मजाक की बात, पर भौतिकी के नियमों के मुताबिक यही एकमात्र तरीका है. या तो आप बैटरी और मोटर छिपाकर ऐसी मशीन बनाने का दावा करें. 

जैसा कि 1910 के आस-पास हैरी पेरिगो किया करते थे. हैरी अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से ग्रैजुएट थे. इनका दावा था कि हवा या तरंगों से इनकी मशीन को शक्ति मिलती है. 5 दिसंबर, 1917 को इन्होंने अमेरिकी कांग्रेस के सामने इस मशीन की नुमाइश भी की. 

लेकिन जब बाद में मशीन की जांच की गई, तब पता चला, हैरी कोई ‘पॉटर’ नहीं थे. कहें तो कोई जादूगर नहीं थे. क्योंकि इनकी मशीन में मोटर बैटरी छिपाकर लगाई गई थी. 

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‘सतत गति के लालच पर एक लेख’ 1920 में छपी पॉपुलर साइंस मैग्जीन का कवर
फिजिक्स के नियमों की तोड़-फोड़!

फिजिक्स को लेकर दावों की बात करें तो इनका कोई अंत नहीं है. दावों पर दावे होते रहते हैं. लेकिन माजरा ये है कि यह सब बस झूठे दावे हैं. बचपन से हम विज्ञान की किताबों में पढ़ते आए हैं,

ऊर्जा को ना बनाया जा सकता है ना ही नष्ट किया जा सकता है. इसका केवल रूप बदला जा सकता है. 

इसका मतलब ये है किसी भी मशीन में ऐसा नहीं हो सकता कि उसे 1 जूल ऊर्जा दी जाए और उससे 2 जूल ऊर्जा निकल आए. ये तो वैसी ही बात है कि किसी चीज में 1 लीटर पानी डालकर बिना कुछ किए दो लीटर पानी बना दिया. 

दुनिया में कुछ भी ऐसे हवा में जादू से नहीं बनाया जा सकता है. कहीं से ऊर्जा मिल रही है, तो वो किसी दूसरे रूप से बदलकर आई होगी. मसलन धूप, जो सूरज के गर्भ में न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) से निकली ऊर्जा है. 

दरअसल, फ्यूजन में हाइड्रोजन के प्रोटान आपस में भिड़ते हैं और फ्यूज होकर हीलियम बनाते हैं. जिससे निकलती है, ऊर्जा. इसी धूप को सोलर पैनल के जरिए हम बिजली में बदलते हैं. इस बिजली से हम कार चला सकते हैं.

कुल मिलाकर हम समझे कि जितनी ऊर्जा हम आस-पास दर्ज करते हैं, वो किसी ना किसी दूसरे रूप से बदलकर आई है.

अब अगर कोई कहे कि उसने ऐसी मोटर बनाई है, जो बिजली बनाती है. और खुद उसी बिजली से चलती है. या ऐसा सोलर पैनल बनाया है, जिससे पैदा होने वाली बिजली से कई बल्ब जलते हैं, जिनसे सोलर पैनल फिर बिजली बना लेता है.

ये तो वही बात हो गई कि कोई सांप खुद की पूछ खाकर अनंत काल तक जिंदा रहे.

क्योंकि ऐसी मशीन में जितनी ऊर्जा बने ऊसे पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. कुछ ऊर्जा मशीन में घर्षण से गर्मी के रूप में बदलेगी. तो कुछ किसी दूसरे रूप में.

जाहिर सी बात है ऐसा होना मुमकिन नहीं है. सेम मामला परपेचुअल मोशन मशीन का है. अगर कोई मशीन बन भी जाए, जो 100% दक्षता (Efficiency) से चल सके, तो भी उससे किसी दूसरी चीज को ऊर्जा नहीं दी जा सकेगी. क्योंकि जैसा हमने आपको पहले बताया, कम ऊर्जा देकर ज्यादा ऊर्जा पैदा नहीं की जा सकती है.

बाकी वायरल वीडियो और दावों का सवाल है, तो दावे आते रहेंगे. गाहे-बगाहे किसी ना किसी को लगता रहेगा कि उसने कोई नई चीज खोजी है. पुराने नियम तोड़े हैं. और भौतिकी की इस 'नागमणि' की खोज जारी रहेगी. 

फिलहाल फिजिक्स के नियम नहीं टूटे हैं, क्योंकि ऐसी मशीन बनाना संभव नहीं है. वायरल वीडियो की मोटर घूम के कुछ दिन में जरूर रुक जाएगी. बाकी परपेचुअल मोशन मशीन की खोज कब रुकेगी ये कहना मुश्किल है.

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