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क्या होगा अगर विज्ञान के तमाम नियम फेल हो जाएं, वेब सीरीज वाली '3 Body Problem' क्या बला है?

Netflix सीरीज 3 Body Problem में एक ग्रह की कल्पना की गई है. जहां 3 सूरज हैं. तीनों सूरज अपनी-अपनी गति में हैं. ग्रह में रहने वाले लोग इन सूरजों की चाल समझने की कोशिश में लगे हुए हैं. लेकिन समझ नहीं पाते. सूरजों के भविष्य की कई कल्पनाएं की जाती हैं. लेकिन हर भविष्य में सूरज उस ग्रह में तबाही ही लाते हैं. मतलब तीन सूरज वाला ये ग्रह कभी स्थिर नहीं रह पाता.

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3 Body Problem
3 Body Problem के साइंस को समझते हैं. (Image: Wikimedia)
12 अप्रैल 2024 (Updated: 12 अप्रैल 2024, 22:57 IST)
Updated: 12 अप्रैल 2024 22:57 IST
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चीनी लेखक लियू सिक्सिन की एक किताब आई, ‘द थ्री बॉडी प्रॉब्लम (The Three Body Problem).’ किताब साइंस फिक्शन थी. माने विज्ञान को आधार बना कर लिखी गई एक काल्पनिक कहानी. कहानी एलियन्स की. स्पेस और ग्रहों की. साथ ही जिक्र एक पुरानी विज्ञान की समस्या का, जिसे कहते हैं थ्री बॉडी प्रॉब्लम (3 Body Problem). इसी नाम से हाल ही में एक वेबसीरीज भी आई. जिसमें दुनिया के सारे हाइड्रान कोलाइडर (hadron collider) भी गलत आंकड़े बताने लगते हैं. आंकड़े जो विज्ञान के नियमों से परे थे. जो संभव नहीं होने चाहिए थे लेकिन हो रहे थे. यानी विज्ञान के तमाम नियम फेल हो रहे थे. तो आइए समझते हैं कि आखिर ये थ्री बॉडी प्रॉब्लम क्या चीज है. और इसे हल करना इतना मुश्किल क्यों समझा जाता है.

नेटफ्लिक्स (Netflix) सीरीज में एक ग्रह की कल्पना की गई है. जहां 3 सूरज हैं. तीनों सूरज अपनी-अपनी गति में हैं. ग्रह में रहने वाले लोग इन सूरजों की चाल समझने की कोशिश में लगे हुए हैं. लेकिन समझ नहीं पाते. सूरजों के भविष्य की कई कल्पनाएं की जाती हैं. लेकिन हर भविष्य में सूरज उस ग्रह में तबाही ही लाते हैं. मतलब तीन सूरज वाला ये ग्रह कभी स्थिर नहीं रह पाता.

ऐसी ही एक समस्या विज्ञान में भी है. जिसका कोई सामान्य हल नहीं निकाला जा सका है. इसका नाम है ‘थ्री बॉडी प्रॉब्लम (3 body problem)’, हिन्दी में अनुवाद की एक नाकाम कोशिश की जाए तो कह सकते हैं, ‘तीन पिंडों की समस्या’. समस्या ये कि इनकी चाल-ढाल को सटीक तरीके से समझ पाना और इसका कोई एक सूत्र या फार्मूला बना पाना मुश्किल है. ऐसा क्यों? समझते हैं.

आते हैं फिजिक्स से डरने वाले छात्रों में खौफ भरने वाले न्यूटन पर. ऐसा आदमी जो फिजिक्स की किताब के तमाम अध्यायों में मिल ही जाता है. न्यूटन साहब ने गति के नियम दिये, प्रकाशिकी( Optics) के बारे में कई बातें बताईं. साथ ही बताया गुरुत्वाकर्षण (gravity) के बारे में. गुरुत्वाकर्षण जिससे ग्रह आपस में बंधे हुए हैं.

जिससे पृथ्वी, सूरज का चक्कर काटती है, अपने पथ पर (orbit). पूरा मामला इसी पथ का है. न्यूटन के नियमों के आधार पर ऐसा फार्मूला बनाना तो आसान था, जिससे किन्हीं दो खगोलीय पिंडों (space bodies) के पथ और रफ्तार का अंदाजा लगाया जा सके. ग्रहों की गति के बारे में न्यूटन के साथ जोहान्स केप्लर (johannes kepler) ने भी नियम दिए थे. लेकिन जब इन दो ग्रहों के बीच में एक तीसरी बॉडी आ जाती है, तब मामला उलझता है. 

उलझता ऐसे है कि आपने गणित में x और y वाले सवाल तो पढ़े होंगे. जिसमें x का मान बता कर y का मान निकाला जाता था. इसमें एक कोई सूत्र भी दिया जाता था, जैसे अगर x का मान 1 है, तो x + y = 4 की मदद से y का मान निकालिए. माने y का मान निकालने के लिए हमें एक तो एक वैरिएबल x का मान मालूम होना चाहिए. साथ ही x और y के बीच संबंध पता होना चाहिए. तभी y का मान निकालना संभव हो पाता है. 

अब यही मामला दो स्पेस बॉडी के साथ है. गणित के नियमों से हम दो बॉडी के पथ की गणना तो कर सकते हैं.  इसको गणित की भाषा में एनालिटिकल एक्सप्रेशन कहते हैं. खैर ऐसे जटिल नामों से दूरी बनाते हैं और तीन पिंडों की समस्या (3 Body Problem) पर आते हैं. तीन ही क्यों? वास्तव में हमारे यूनिवर्स में तीन से कई ज्यादा बॉडी अपने-अपने गुरुत्वाकर्षण से एक दूसरे पर असर डालती हैं.

उनकी गति और पथ प्रभावित करती हैं. जिसकी वजह से x और y के अलावा और भी अज्ञात मान सिस्टम में शामिल हो जाते हैं. जिनकी गणना और अधिक जटिल हो जाती है.

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क्या हुआ जब बुध ग्रह और सूरज की दूरी को महज 1 मिलीमीटर कम कर दिया गया

2009 का एक प्रयोग ही ले लीजिए. कुछ वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर के जरिए एक प्रयोग किया. प्रयोग में हमारे सौर्य मंडल के ग्रहों की रफ्तार वगैरा के आंकड़े डाले गए. सब कुछ एक सा था, सिवाए एक चीज छोड़कर. वो थी बुध ग्रह और सूरज के बीच की दूरी. हर बार प्रयोग में इनके बीच की दूरी को महज 1 मिली मीटर कम कर दिया जाता था.

फिर कई लाख साल बाद के 2000 से ज्यादा अलग-अलग नतीजों पर नजर डाली गई. नतीजों में कई मामले सामने आए, कुछ में बुध ग्रह सूरज में समा गया. कुछ में वो बृहस्पति ग्रह से टकरा गया. ये सब महज 1 मिली मीटर के बदलाव की वजह है.

माने हम समझ सकते हैं. जब कई ग्रह एक साथ एक सिस्टम में होते हैं, तो छोटे से बदलाव भी बड़े असर ला सकते हैं. अब एक सवाल ये कि अगर दो ग्रहों के पथ की गणना इतनी मुश्किल है तो फिर रॉकेट और खगोल वैज्ञानिक कैसे पता लगा लेते हैं कि कब कौन सा ग्रह कहां से होकर गुजरेगा. कब कौन सा पिंड कहां होगा. 

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तो इसका जवाब होगा. ये गणनाएं संभावित होती हैं, एक सीमा तक ही. वो भी बड़े शक्तिशाली कंप्यूटर की मदद से. हालांकि n-बॉडी या कई खगोल पिंडों वाले सिस्टम जटिल होते हैं. इनका कोई फिक्स पैटर्न पता करना भी कठिन है. लेकिन इनके पथ का अनुमान लगाया जा सकता है.

1. इसे ऐसे समझिए, कि इनके लाखों साल के पथ का अंदाजा लगाना मुश्किल है लेकिन इनके पथ को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट कर इनकी चाल का अंदाजा लगाया जा सकता है.

2. वहीं अगर तीन पिंडों में से एक का गुरुत्वाकर्षण बल बहुत कम हो जैसे सूरज और धरती के ऊपर के सैटेलाइट. सैटेलाइट का गुरुत्वाकर्षण बल इतना कम होता है कि सूरज और धरती को 2 बॉडी सिस्टम समझकर इसके पथ की गणना की जा सकती है. 

3. वहीं इसका एक तरीका है कि कई सिस्टम को अलग-अलग करके उनके पथ का अनुमान लगाया जा सकता है. कुल मिला कर मामला ये है कि समस्या जटिल है लेकिन काम चलाने के हिसाब से गणना कर ली जा रही है. 

बाकी वेब सीरीज का मामला यही है, कि अगर कोई तीन बॉडी सिस्टम फेल होने को आया, जो कि आएगा ही तो इसको रोकने के लिए कुछ किया नहीं जा सकेगा. बस दूसरे ग्रह की खोज करनी होगी.

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