बाबा भीमराव आंबेडकर ने समाज को एक चीज बताई थी- शिक्षा प्राप्त करो. यह आंतरिक शक्ति की तरह है. उन्होंने इस बारे में देश को रास्ता दिखाया है.1 दिसंबर की सुबह से ट्विटर पर स्टूडेंट एक खास ट्रेंड के साथ नजर आ रहे हैं. इस बार मामला किसी एग्जाम या भर्ती का नहीं है. इस बार का संघर्ष स्कॉलरशिप को लेकर है. ट्विटर पर #मोदी_स्कॉलरशिप_फेलोशिप_दो ट्रेंड कर रहा है. कहा जा रहा है कि मोदी सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति को दी जाने वाली स्कॉलरशिप को बंद कर दिया है. क्या वाकई में ऐसा है? कौन सी है वो स्कॉलरशिप जिसकी बात की जा रही है? आइए जानते हैं तफ्सील से.-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आंबेडकर मेमोरियल लेक्चर, 2016)
पहले जानिए कि मामला क्या है
पैसों के अभाव में किसी भी वर्ग के छात्र को पढ़ाई न छोड़नी पड़े, ये सुनिश्चित करने के लिए 10वीं-12वीं के SC, ST और अल्पसंख्यक छात्रों के लिए सरकार ने खास स्कॉलरशिप शुरू की थी. इस स्कॉलरशिप के लिए एक खास फॉर्मूले के तहत केंद्र और राज्य सरकारें पैसा जोड़ती थीं. इस स्कॉलरशिप का 60 फीसद केंद्र और 40 फीसद पैसा राज्य सरकार देती थी.
2017-18 में मोदी सरकार ने इस फॉर्मूले को बदल दिया. असल में 2017-18 में सरकार ने फाइनैंस मिनिस्ट्री के 'कमिटेड लाइबिलिटी' यानी प्रतिबद्ध जिम्मेदारी के फॉर्मूले पर हामी भर दी थी. प्रतिबद्ध जिम्मेदारी का मतलब यह कि 10 फीसदी पैसा तो सरकार पक्का देगी, बाकी देखा जाएगा.

हर साल लाखों स्टूडेंट्स स्कॉलरशिप के भरोसे ही अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखते हैं (सांकेतिक तस्वीर).
केंद्र की तरफ से केवल 10 प्रतिशत हिस्सा मिलने पर राज्य सरकारों पर इसका पूरा बोझ आ गया. इससे इस स्कॉलरशिप का पूरा सिस्टम लड़खड़ाने लगा. इकॉनमिक टाइम्स के मुताबिक, अब ये स्कॉलरशिप योजना बंद होने की कगार पर है. 14 राज्यों में स्थिति बेहद गंभीर हो गई है.
मतलब तीन साल से स्टूडेंट्स की स्कॉलरशिप अटकी पड़ी हैं. इसे लेकर ही ट्विटर पर #मोदी_स्कॉलरशिप_फेलोशिप_दो ट्रेंड हो रहा है.
इस स्कॉलरशिप योजना में 10वीं और 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के लिए छात्रों को 18 हज़ार रुपए सालान मदद की व्यवस्था थी. इसके जरिए वो अपनी फीस और बाकी के खर्च निकाल लेते थे. इसके लिए स्टूडेंट को अपने परिवार का आय प्रमाण पत्र देना होता है. साल में 2 लाख रुपए तक कमाई करने वाले परिवार के स्टूडेंट ही इस स्कॉलशिप को पाने के हकदार होते थे.

हर स्टूडेंट को 1 हजार रुपए महीने के आसपास की स्कॉलरशिप मिलती है . (सांकेतिक चित्र)
अनुसूचित जाति के स्टूडेंट्स ज्यादा परेशान हैं
अनुसूचित जाति के छात्रों की स्कॉलरशिप केंद्र और राज्य सरकार के फॉर्मूले से बंधी है. जबकि अल्पसंख्यकों की स्कॉलरशिप का 100 फीसदी और अनुसूचित जनजाति के लिए 75 फीसदी रकम का इंतजाम केंद्र सरकार अलग से करती है. ऐसे में कमिटेड लाइबिलिटी के फॉर्मूले का सबसे ज्यादा असर अनुसूचित जाति के स्टूडेंट्स पर पड़ा है. स्कॉलरशिप की रकम चूंकि काफी घट गई है ऐसे में राज्य सरकारें बहुत सीमित संख्या में ही अनुसूचित जाति के स्टूडेंट्स को स्कॉलरशिप दे सकेंगी. इकॉनमिक टॉइम्स की खबर के मुताबिक, इसका असर देशभर में अनुसूचित जाति के 60 लाख स्टूडेंट्स पर पड़ रहा है.
इंडिया स्पेंड डॉट कॉम के मुताबिक,
# 10 वीं से पहले दी जाने वाली स्कॉलरशिप 2015-16 और 2019-20 के बीच लगातार गिरी है. 2015-16 में जहां 24 लाख बच्चे इसका फायदा उठा रहे थे वहीं 2017-18 में इनकी संख्या 22 लाख रह गई. यह 8.3 फीसदी की गिरावटी थी.
# एक तरफ जहां 10 वीं के बाद एससी स्टूडेंट्स में स्कॉलरशिप की डिमांड बढ़ रही है वहीं फायदा उठाने वालों की संख्या घटती जा रही है. 2016-17 में 58 लाख स्टूडेंट्स को स्कॉलरशिप का फायदा मिला तो 2018-19 में यह फायदा 33 लाख स्टूडेंट्स तक ही सीमित रह गया. यह 43 फीसदी की गिरावट है.

स्कॉलरशिप रुकने का सबसे ज्यादा नुकसान अनुसूचित जाति के स्टूडेंट्स को हो रहा है. (File Photo)
तो अब हो क्या रहा है फिलहाल कई राज्य सरकारें भारत सरकार से इस समस्या को लेकर गुहार लगा चुकी हैं. पंजाब, हरियाणा, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड की सरकारें सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय के पास अपनी गुजारिश लेकर जा चुकी हैं. इसमें कहा गया है कि फाइनेंस मिनिस्ट्री अपने 60 फीसदी और 40 फीसदी वाले फॉर्मूले पर वापस आ जाए. ऐसा करने पर ही राज्य सरकारें शैक्षिक संस्थानों के लिए मेंटेनेंस फीस, हॉस्टल और ट्यूशन फीस फिर से जारी करने के हाल में होंगी. इसके अलावा राज्य सरकारों ने बेहतर इनकम मैपिंग करने, स्कॉलरशिप के लिए ज्यादा टेस्ट कराने जैसी योजनाएं भी रखी हैं जिससे स्कॉलरशिप योजना को ज्यादा जरूरतमंदों तक पहुंचाया जा सके. सरकारों ने दलील दी है कि स्कॉलरशिप प्रोग्राम के जरिए ही अनुसूचित जाति के स्टूडेंट्स को शिक्षा में बेहतर भागीदारी दी जा सकती है.
फिलहाल राज्य सरकारों की ये गुज़ारिशें भारत सरकार के पास सुनवाई का इंतज़ार कर रही हैं. इस बीच दूर-दराज बैठे लाखों अनुसूचित जाति के स्टूडेंट अपने भविष्य के सपने को डूबते-उतरते देख रहे हैं.