साल 1973. देश में इंदिरा की राजनीति और छात्र राजनीति दोनों ही ध्रुव मजबूत होते दिख रहे थे. इसी दौरान यूपी के मेरठ के मेरठ कॉलेज में एक घटना हुई. कॉलेज में पढ़ने वाली लता गुप्ता नाम की छात्रा का अपहरण हो गया. अखबारों में खबर की हेडिंग बनी 'लता गुप्ता कांड'. आरोप लगे कि इस अपहरण में DIG मेरठ रेंज के जुड़े कुछ पुलिसकर्मी भी शामिल है. कॉलेज के छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा. मेरठ की सड़कें छात्रों से पट गईं. ये एक प्रदर्शन था अपहरण के खिलाफ लेकिन किसी आंदोलन से कम नहीं था. प्रशासन को इतने बड़े प्रदर्शन की उम्मीद नहीं थी. कर्फ्यू लगा दिया गया. छात्र यूनियन के चुनाव चल रहे थे. मेरठ कॉलेज से जगत सिंह छात्र संघ का चुनाव जीत गए. प्रदर्शनकारियों ने ये ऐलान कर दिया कि अगले दिन कर्फ्यू का उल्लंघन करेंगे. अगले दिन प्रदर्शकारी जिमखाना मैदान में पहुंचे. पुलिस ने मोर्चा संभाला. टकराव हुआ तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया. इस आंदोलन की अगुवाई कर रहा था मेरठ कॉलेज का एक पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष. पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया.
ये बात चौधरी चरण सिंह को पता चली. चरण सिंह ने अपनी पार्टी के तत्कालीन जिलाध्यक्ष माम चंद मलिक और अपने एक करीबी रणबीर ललसाना को एक संदेश के साथ जेल भेजा. संदेश था – ‘मेरे साथ आ जाओ’. वो छात्रनेता जेल से निकला तो सीधे चरण सिंह के पास पहुंचा. चरण सिंह ने पार्टी की सदस्यता दिलाई. और उस नौजवान को बड़ौत में उसी के गांव हिसावदा लेकर आए. चौधरी चरण सिंह ने एक बड़ी जनसभा की. कहा- “मुझे मेरा वारिस मिल गया है”. वो छात्रनेता, जिसे चौधरी चरण सिंह ‘वारिस’ कहकर बुला रहे थे, उसका नाम था ‘सत्यपाल मलिक’.
वही सत्यपाल मलिक जो एक समय चौधरी चरण सिंह के आंख का तारा हुआ करते थे, वही सत्यपाल मलिक, जो अब मेघालय के राज्यपाल और भाजपा की किसान संबंधीनीतियों के मुखर आलोचक हैं.

सत्यपाल मलिक.
लोहियावादी सत्यपाल! सत्यपाल मलिक का जन्म 1946 में उत्तर प्रदेश यूनाइटेड प्रोविंस के बागपत जिले के हिसावदा गांव में हुआ. पिता बुद्ध सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे. जब सत्यपाल मलिक की उम्र डेढ़-दो साल थी, तभी उनके पिता का निधन हो गया. शुरुआती पढ़ाई पास के स्कूल से और 12वीं गांव के नजदीक कस्बे ढिकौली में एक इंटर कॉलेज से. स्कूल खत्म. मेरठ कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई और फिर यहीं से वकालत की भी पढ़ाई. लेकिन इस समय ही सत्यपाल मलिक को छात्र राजनीति में मज़ा आने लगा था.
साल 1967. कॉलेज में छात्रसंघ चुनाव हुए. सत्यपाल ने अध्यक्षी का पर्चा भरा था. जीत गए. छात्रसंघ अध्यक्ष सत्यपाल मलिक ने ये ऐलान कर दिया कि अपने कॉलेज में किसी भी पार्टी के नेता की एंट्री नहीं होने देंगे. खासकर किसी कांग्रेस नेता की. सत्यपाल को समाजवादी राजनीति रास आ गई थी. इतनी पसंद कि वो आज भी खुद को लोहियावादी कहना पसंद करते हैं.
लेकिन 1967 में ही सत्यपाल मलिक ने कुछ ऐसा कर दिया जिससे पूरे देश का ध्यान उन पर गया. सालों से अंग्रेज़ी के खिलाफ कुछ छात्रों में गुस्सा बढ़ रहा था. लेकिन अब इस गुस्से ने आंदोलन का रूप ले लिया था. छात्रों का गुस्सा इतना बढ़ गया था इसकी धमक दिल्ली तक पहुंच चुकी थी. छात्र दिल्ली पहुंचे. और संसद के घेराव का ऐलान कर दिया. इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे सत्यपाल मलिक. मामला इतना बढ़ गया था कि संसद के आप पास शूट एट साइट का ऑर्डर दे दिया गया. पहली विधायकी छात्र राजनीति के दिनों से ही सत्यपाल मलिक चौधरी चरण सिंह के चेले बन चुके थे. सियासत में उनकी पहली आज़माइश चौधरी चरण सिंह ने 1974 में करवाई. 1974 विधानसभा चुनाव में सत्यपाल मलिक ने भारतीय क्रांति दल के टिकट पर अपने होम टर्फ बागपत से चुनाव लड़ा. सत्यपाल के सामने थे कॉमरेड आचार्य दिपांकर. CPI के आचार्य दिपांकर का बागपत में नाम था. दशकों से वो बागपत की राजनीति में क़ाबिज़ थे. लेकिन सत्यपाल मलिक ने बाज़ी पलट दी. कॉमरेड करीब साढ़े आठ हजार वोटों से हार गए और सत्यपाल मलिक ने पहली बार यूपी की विधानसभा में कदम रखा.
चरण सिंह के इस युवा नेता का भाषण सुनने के लिए लोग दूर दूर से आते थे. बोलने की कला में माहिर सत्यपाल जनता को खुद से जोड़ना बखूबी जानते थे. चौधरी चरण सिंह सिंह अपने इस युवा नेता की परफॉर्मेंस से बागबाग थे.

चौधरी चरण सिंह के साथ सत्यपाल मलिक.
इमरजेंसी में कहां छुपे हुए थे सत्यपाल? सत्यपाल मलिक विधायक बने ही और कुछ महीनों बाद देश में इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया. लोग बताते हैं कि उस दौर में कांग्रेस की विरोधी पार्टियों के नेताओं को देश विरोधी बताया जाता था. 25 जून 1975. दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्ष ने एक बड़ी रैली की. उस रैली में में इमरजेंसी के खिलाफ हर विरोधी दल से एक एक नेता मंच से भाषण देने आया. जेपी का भाषण हुआ. कांग्रेस (ओ) की तरफ से मोरारजी देसाई आए. जनसंघ से अटल बिहारी. और भारतीय लोक दल से चौधरी चरण सिंह ने अपने भरोसेमंद सत्यपाल मलिक को भेजा. दिग्गजों के सामने उस समय सत्यपाल की उम्र 29 साल थी.

इंदिरा गांधी की सांसदी रद्द होने के बाद राज नरायण के साथ राष्ट्रपति भवन के बाहर धरना देते सत्यपाल मलिक. साथ में हैं राज नारायण, नाना जी देशमुख, जनेश्वर मिश्र और पीलू मोदी.
सत्यपाल मलिक आपातकाल के दौरान अपने पार्टी के कुछ नेताओं और दोस्तों के साथ छिपते छिपाते दिल्ली पहुंचे. दिल्ली में उनके कुछ दोस्त JNU और IIT में रहते थे. सत्यपाल ने इन्हीं दोस्तों के हॉस्टल के कमरों में छिपकर इमरजेंसी का विरोध किया. सत्यपाल के खिलाफ सरकार ने गिरफ्तारी वॉरंट जारी किया था. लेकिन सत्यपाल नहीं चाहते थे कि पुलिस उनके ऐसे ही कहीं से पकड़ कर जेल में डाल दे. सत्यपाल ने हापुड़ में होने वाले गढ़ मेला चुना. वहां पहुंचे और खुद ऐलान करते हुए अपनी गिरफ्तारी दी."
सत्यपाल मलिक को गिरफ्तार कर मेरठ जेल भेज दिया गया. मेरठ के बाद फतेहगढ़. और फतेहगढ़ के बाद दिल्ली के तिहाड़ जेल में सत्यपाल मलिक का ट्रांसफर कर दिया गया. तिहाड़ जेल में सत्यपाल उसी बैरक में पहुंच गए जहां चौधरी चरण सिंह को रखा गया था. अटल के कहने पर चरण सिंह ने सत्यपाल मलिक को पार्टी से निकाला! आपातकाल खत्म हो चुका था. जनता पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद को लेकर सिर फुट्टौवल चल रही थी. मोरारजी देसाई राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. और चौधरी चरण सिंह उपाध्यक्ष बनाए गए. मोरार जी देसाई का प्रधानमंत्री बनना लभगभ तय था. चरण सिंह अपने भविष्य के लिए असमंजस में थे. लेकिन चरण सिंह का संकट मोचक उनके लिए कुछ और योजना बना रहे थे. सत्यपाल मलिक और बीजू पटनायक जय प्रकाश नारायण के पास गए. मलिक और बीजू पटनायक ने जेपी को इस बात के लिए राज़ी किया कि उत्तर भारत की लगभग 365 सीटों का बंटवारा चरण सिंह करेंगे और बाकी बची सीटों का मोरार जी देसाई. हालांकि जब ये नया फॉर्मूला तय हुआ तो जनसंघ थोड़ा सकते में था.
लेकिन दूसरी तरफ सत्यपाल मलिक के खिलाफ एक गुट ने खेल कर दिया था. ये गुट था RSS से जुड़े नेताओं का. इधर सत्यपाल मलिक चरण सिंह के नई रणनीति बनाने में व्यस्त थे उधर वाजपेयी, नाना जी देशमुख के साथ चौधरी चरण सिंह के पास पहुंचे. अटल ने चौधरी चरण सिंह से कहा-
"चौधरी साहब आप हमारे लिए इंदिरा गांधी हैं और मोरारजी देसाई, डीके बरुआ."अटल का तंज मोरारजी देसाई पर था. उस समय देश की प्रधानमंत्री थीं इंदिरा गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष थे डीके बरुआ. लेकिन पार्टी में डीके बरुआ की अहमियत सबको पता था. अटल ने उस दिन चरण सिंह को उनके जीवन का सबसे बड़ा ऑफर दे दिया था. अटल ने कहा,
"जनसंघ आपको प्रधानमंत्री बनाना चाहता है. लेकिन एक शर्त रख है. सत्यपाल मलिक को आप अपनी पार्टी से निकाल दें. सत्यपाल RSS के खिलाफ लगातार बयान देते रहते हैं. हम उनको साथ लेकर नहीं चल सकते. "उस दौर में मधु लिमये के साथ सत्यपाल मलिक उन नेताओं में शामिल थे जो RSS के खिलाफ खुल कर बोलते थे. चरण सिंह के लिए दुविधा का समय था. एक तरफ़ देश का सबसे ताकतवर पद था. दूसरी तरफ़ उनकी पार्टी का सबसे प्रिय नेता. लेकिन चरण सिंह सियासत के अच्छे खिलाड़ी थे. लेकिन आख़िर में चरण सिंह ने सत्यपाल मलिक को बाहर करना ज़रूरी समझा. आरोप लगाया पार्टी विरोधी गतिविधियों का और सत्यपाल मलिक 6 साल के लिए राष्ट्रीय लोक दल से निष्कासित.
इधर सत्यपाल को चरण सिंह ने पार्टी से निकाला, उधर जेपी ने मोरारजी देसाई के नाम पर प्रधानमंत्री पद की मुहर लगा दी. चौधरी चरण सिंह को गृह मंत्री के पद से संतोष करना पड़ा. अटल चरण सिंह के पास पीएम पद का ऑफर लेकर गए जरूर थे, लेकिन जनसंघ मोरारजी देसाई के साथ था. "सत्यपाल को बोलो, मुझे उनकी ज़रूरत है" चौधरी चरण सिंह बीमार रहने लगे थे. स्वास्थ्य लाभ लेने सूरजकुंड चले गए. उन दिनों सत्यपाल मलिक ने ग्रामीण युवा संगठन बना लिया था. दिल्ली के साउथ एवेन्यू में MP's Club में सत्यपाल मलिक अपने साथियों के साथ बैठक कर रहे थे. तभी खबर आती है कि मोरारजी देसाई ने बीमारी का हवाला देकर चरण सिंह को गृहमंत्री पद से हटा दिया है. सत्यपाल मलिक को ये महसूस हो चुका था कि चौधरी साहब को उनकी जरूरत है.
अपने साथियों के साथ सत्यपाल सूरजकुंड पहुंचे. चरण सिंह लॉन में बैठ कर किसी से बात कर रहे थे. घर के बाहर चरण सिंह के समर्थन में नारेबाज़ी शुरू हो गई. चरण सिंह का ध्यान गया तो देखा बाहर उनका पुराना चेला खड़ा था. उनसे रहा नहीं गया. अंदर बुलाया. धोती पहनने वाले चौधरी चरण सिंह ने उस दिन पायजामा पहना था. दोनों के बीच 15 मिनट तक बात हुई फिर सत्यपाल घर लौट आए.
चरण सिंह दिल्ली लौटे. मंत्री पद को लेकर मान मन्नौवल हुई. इस बार चरण सिंह को वित्त मंत्रालय मिला. लेकिन एक बात चरण सिंह के दिल में लगातार खटक रही थी. उन्होंने अपने साथियों से कहा कि सत्यपाल मलिक को बता दो कि मुझे उनकी जरूरत है.
5 रेस कोर्स तब चरण सिंह का बंगला हुआ करता था. सत्यपाल उनके घर पहुंचे. वहां चरण सिंह, उनकी पत्नी, सत्यपाल मलिक और कुछ गिने चुने नेता मौजूद थे. उस दिन चौधरी साहब ने जो कहा वो अगर वो हो गया होता तो इतिहास कुछ और होता. उस दिन चरण सिंह ने सत्यपाल मलिक से कहा था,
"सत्यपाल अगर मेरे से गलती नहीं कराई गई होती, तो मैं तुम्हें 1977 में यूपी का मुख्यमंत्री बनाना चाहता था."सत्यपाल राष्ट्रीय लोकदल में वापिस लौट आए. इस बार और बड़ी जिम्मेदारी थी. जिम्मेदारी चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनाने की. बताया जाता है कि चौधरी चरण सिंह की सरकार बनाने के लिए राज नारायण और सत्यपाल मलिक ही इंदिरा गांधी के पास समर्थन मांगने गए थे. जिसके बाद चौधरी चरण सिंह आखिरकार पीएम की कुर्सी पर बैठ ही गए.
जो पॉलिटिकल ग्राफ गिरने लगा था, वो फिर से शबाब पर लौट रहा था. पहले 1980 में चरण सिंह ने उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया और फिर इसी साल उन्हें राज्यसभा भेज दिया. चौधरी देवीलाल समेत कई लोगों ने इस बात का विरोध किया. चौधरी साहब के पास इसके जवाब तो कई थे लेकिन उन्होंने कहा,
"अगर सत्यपाल से बेहतर कोई वक्ता है तो मुझे बता दो, मैं उसे भेज दूंगा."फिर अलग सत्यपाल सत्यपाल को राज्यसभा भेजने का विरोध सिर्फ देवीलाल या पार्टी के दूसरे नेताओं तक सीमित नहीं था. आवाज़ें अब घर के अंदर से भी आने लगी थीं. चरण सिंह पहले ही कई बार सत्यपाल को अपना राजनीतिक वारिस बता चुके थे. लेकिन घर का विरोध चरण सिंह झेल नहीं पाए. साल था 1984. सत्यपाल मलिक को नोटिस भी नहीं दिया गया. और खबर आई कि सत्यपाल मलिक को चौधरी चरण सिंह ने रालोद से निष्कासित कर दिया है. सत्यपाल मलिक पर एक बार फिर आरोप लगा पार्टी विरोधी गतिविधियों का.
कांग्रेस का हाथ थामा और छोड़ दिया चौधरी चरण सिंह से अलग होने के बाद इस बार सत्यपाल मलिक ने आगे बढ़ने का मन बना लिया था. 1984 में ही वो कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस में आए सत्यपाल मलिक अरुण नेहरू के काफी नज़दीक हो गए थे. इस नज़दीकी का सत्यपाल को फायदा भी मिला. राजीव गांधी ने सत्यपाल मलिक को एक बार फिर राज्यसभा भेज दिया. पार्टी के अंदर कुछ नेताओं ने इस बात को लेकर नाराज़गी ज़ाहिर की. ये वो नेता थे जो काफी समय से खुद के लिए राज्यसभा में अपने लिए सीट तलाश रहे थे. लेकिन अरुण नेहरू ने सबको शांत करा लिया. उन्होंने कहा- राज्यसभा में सीट खाली नहीं है क्योंकि इस सीट के लिए वो पहले ही सत्यपाल मलिक से वादा कर चुके थे.
सत्यपाल को जानने वाले बताते हैं कि वो यारों के यार हैं. हर पार्टी के नेताओं से उनकी दोस्ती है. इंडिया टुडे के नेशनल अफेयर्स एडिटर राहुल श्रीवास्तव बताते हैं,
"ऐसा शायद ही कोई हो जिससे सत्यपाल मलिक की दोस्ती ना हो. आपातकाल का पुरजोर विरोध किया लेकिन उनकी दोस्ती इंदिरा गांधी से भी थी और संजय गांधी से भी. उनकी दोस्ती लाल कृष्ण आडवाणी से भी है और अहमद पटेल से भी थी. फारुक अब्दुल्ला से लेकर गुलाम नबी आज़ाद तक हर कोई उनका दोस्त है."

साल 1986 में जन मोर्चा आंदोलन के दौरान जीप पर सवार सत्यपाल मलिक.
साल आया 1987. राजीव गांधी पर बोफोर्स घोटाले का आरोप लगा. वीपी सिंह ने नई पार्टी बना ली. राम धन वीपी सिंह के साथ हो लिए. इसके बाद सत्यपाल के दोस्त अरुण नेहरू और आरिफ़ मोहम्मद खान, जो इस समय केरल में राज्यपाल हैं, वो भी वीपी सिंह के रथ पर सवाल हो गए. अभी राज्यसभा में सत्यपाल मलिक के कार्यकाल के तीन साल बचे हुए थे. लेकिन उनके दोस्त पार्टी छोड़ चुके था. उन्होंने भी 1987 में कांग्रेस छोड़ दी और वीपी सिंह के साथ जनता दल चले गए.
1989 में देश में आम चुनाव हुए. सत्यपाल मलिक ने यूपी की अलीगढ़ सीट से चुनाव लड़ा और पहली बार लोकसभा पहुंचे. अरुण नेहरू एक बार फिर सत्यपाल मलिक के काम आए. अरुण नेहरू ने वीपी सिंह सरकर सत्यपाल मलिक को मंत्री बनवाया. उनको संसदीय कार्य मंत्री बनाया गया. सत्यपाल मलिक के पास टूरिज़्म विभाग का भी ज़िम्मा था. भाजपा के सत्यपाल सत्यपाल मलिक के पॉलिटिकल ग्राफ एक बार फिर गिरना शुरू हो गया. और इस बार ऐसा गिरा कि मलिक राजनीतिक गलियारों में कहीं खो कर रह गए. 1996 में सत्यपाल में मलिक ने मुलायम सिंह की सपा ज्वाइन कर ली. कुछ साल वहां रहे फिर 2004 में बीजेपी में आ गए कि अब तक यहीं हैं. 2004 में बीजेपी ने इन्हें चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह के खिलाफ बागपत से टिकट दिया. लेकिन हार गए.
2005 में बीजेपी ने इन्हें यूपी में पार्टी उपाध्यक्ष बनाया. सत्यपाल किसान आंदोलन पर भले ही आज बयान दे रहे हों लेकिन वो राजनीति के शुरुआती दिनों से ही किसानों से जुड़े रहे हैं. बीजेपी ने 2009 में उन्हें किसान मोर्चा का अध्यक्ष बनाया. समय और गुज़रा. सत्यपाल मलिक का पार्टी में कद और बढ़ा. 2012 में बीजेपी ने इन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया. और 2014 में एक बार फिर इसी पद पर काबिज़ हो गए. कैसे बने जम्मू कश्मीर के राज्यपाल? रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति बनने के बाद बिहार में राज्यपाल का पद खाली था. मोदी सरकार ने सत्यपाल मलिक को बिहार राजभवन भेज दिया. लेकिन अभी वो होना बाकी था, जिसने उन्हें देश की राजनीति के मंच पर दोबारा बैठा दिया. अगस्त 2018 में मोदी सरकार ने सत्यपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बना दिया. जानकार बताते हैं कि देश के किसी भी राज्य के राज्यपाल की तुलना में जम्मू कश्मीर के राज्यपाल या अब उपराज्यपाल की अहमियत दिल्ली में ज़्यादा होती है. करीब तीन दशक बाद सत्यपाल मलिक देश के मीडिया की सुर्खी बन चुके थे.
2019 में नरेंद्र मोदी को देश की जनता ने दोबारा प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाया. और 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार में गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का ऐलान कर दिया. जम्मू कश्मीर को केंद्रशासित राज्य घोषित कर दिया गया. एक साल से ज्यादा से समय से राज्य में चुनी हुई सरकार नहीं थी. नेशनल कॉन्फ्रेंस और PDP के बड़े नेताओं को या तो गिरफ्तार कर लिया गया था या नज़रबंद. सूबे की पूरी कमान सत्यपाल मलिक के हाथों में थी.
लेकिन तीन महीने भी नहीं बीते और कहते हैं कि मोदी सरकार का सत्यपाल मलिक से मोहभंग हो गया. राजनीतिक एक्सपर्ट बताते हैं कि सत्यपाल मलिक से जो अपेक्षाएं थी वो उन पर खरे नहीं उतरे. सत्यपाल मलिक को गोवा भेज दिया गया. लेकिन सत्यपाल वहां भी ज्यादा दिन नहीं टिके. मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत से खटपट हुई. और सत्यपाल मलिक को इस बार दिल्ली से थोड़ा और दूर मेघालय भेज दिया गया. विवादित बयान राज्यपाल बनने के बाद सत्यपाल मलिक की एक खास बात देखने को मिली. जिस भी राज्य से जाते थे, दूसरे राज्य में जाकर उसकी बुराई करते थे. ये सिलसिला शुरू हुआ कश्मीर पहुंचकर. जनवरी 2019 में सत्यपाल मलिक ने बयान दिया-
सत्यपाल मलिक ने कहा-
"जम्मू कश्मीर भी देश के दूसरे राज्यों की तरह है. यहां कोई कत्लेआम नहीं चल रहा है. जितनी मौतें कश्मीर में एक हफ्ते में होती हैं उतने मर्डर तो पटना में एक दिन में हो जाते हैं. कश्मीर में अब पत्थरबाजी और आतंकी संगठनों में लड़कों का शामिल होना अब बंद हो गया है."बयानबाजी का सिलसिला शुरू हो चुका था. एक और झन्नाटेदार बयान आया. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, सत्यपाल मलिक ने कहा था,
"यहां लड़के खुलेआम हथियार लेकर घूमते हैं और राज्य के पुलिसकर्मियों को मारते हैं. आप उन्हें क्यों मार रहे हैं? अगर मारना ही है तो उन्हें मारो, जिन्होंने आपके देश और कश्मीर को लूटा है. क्या आपने ऐसे किसी शख्स को मारा है?"बाद में राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने सार्वजनिक तौर पर इस बयान के लिए माफी मांग ली.

सत्यपाल मलिक
कश्मीर के बाद गोवा पहुंचे सत्यपाल मलिक एक बार फिर चर्चा में आए. गोवा में अपनी ही पार्टी की प्रमोद सावंत सरकार पर उन्होंने भ्रष्टाचार का आरोप लगा दिया. इस बारे में इंडिया टुडे के राजदीप सरदेसाई ने एक इंटरव्यू में उनसे इस बारे मे सवाल पूछा तो उन्होंने कहा
"गोवा में कोरोना काल में हर मामले में भ्रष्टाचार हो रहा था. मैंने प्रधानमंत्री को ये बात बताई थी. लेकिन उन्होंने उन्हीं लोगों से इस बारे में पूछ लिया जो भ्रष्टाचार कर रहे थे."गोवा में हंगामा हुआ तो सत्यपाल मलिक मेघालय भेज दिए गए. देश में किसान आंदोलन हो रहा था. सत्यपाल मलिक ने किसानों का समर्थन कर दिया. उन्होंने तीनों कृषि कानून को गलत करार दिया. उन्होंने कहा कि इन तीनों कानूनों को रद्द कर देना चाहिए. राजदीप सरदेसाई के साथ इंटरव्यू में सत्यपाल मलिक ने कहा,
"सरकार को किसानों को MSP की गारंटी देनी चाहिए. मैं किसानों का समर्थन करता हूं. अगर सरकार को मेरी बात से कोई दिक्कत है तो मैं अपने पद से इस्तीफा दे सकता हूं, लेकिन किसानों का साथ नहीं छोड़ूंगा."इसके अलावा सत्यपाल मलिक ने एक और बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा,
"जब मैं जम्मू कश्मीर में था तो मेरे पास दो फाइलें आईं. एक फाइल अनिल अंबानी की कंपनी से जुड़ी हुई थी और एक फाइल RSS के किसी करीबी की थी. मुझे ये जानकारी दी गई कि इन फाइलों पर साइन करने की एवज में 150-150 करोड़ रुपये दिए जा रहे हैं. अगर मैं चाहूं तो मुझे दे दिए जाएंगे. ये फाइलें क्लियर करनी हैं. मैंने ये बात पीएम मोदी को बताई, तो उन्होंने साफ मना कर दिया. मैंने उन फाइलों पर साइन नहीं किए."बयानबाजी नहीं थमी. इस हफ्ते जो उन्होंने पीएम मोदी को लेकर कहा वो सबसे ज्यादा चौंकाने वाला था. हरियाणा के दादरी में उन्होंने कहा,
"मैं जब किसानों के मामले को लेकर प्रधानमंत्री से मिलने गया तो मेरी 5 मिनट में लड़ाई हो गई. उस समय वो बहुत घमंड में थे. मैंने उनसे कहा कि हमारे 500 लोग मर गए, जब कुतिया भी मरती है तो आप चिट्ठी भेजते हो. तो उसने कहा- क्या मेरे लिए मरे हैं वो? उन्होंने कहा तुम अमित शाह से मिल लो. मैं अमित शाह से मिला तो शाह ने कहा- मोदी की अक्ल कुछ लोगों ने मार रखी है. तुम बेफिक्र रहो. कुछ दिन में समझ में आ जाएगा. "बाद में उन्होंने ये सफाई दी कि अमित शाह ने मोदी को लेकर मुझसे कुछ नहीं कहा. लेकिन तबतक देर हो चुकी थी. बयान वायरल हो चुका था. बीजेपी क्यों नहीं कर रही कार्रवाई? बीजेपी का एक नेता जो एक संवैधानिक पद पर काबिज है वो लगातार अपनी पार्टी की लाइन से अलग बयान दे रहा है. पार्टी के खिलाफ बोल रहा है. कोई नेता, पार्टी और पद पर रहते हुए सीधे नरेंद्र मोदी को टार्गेट कर रहा है. लेकिन इन बयानों के बाद भी ना तो पार्टी उन पर कोई एक्शन लेती है ना ही कोई प्रतिक्रिया आती है. इस मामले में नवभारत टाइम्स से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार बृजेश कहते हैं,
"अगर किसी घर में एक शख्स बोलता रहे लेकिन कोई भी उसे जवाब ना दे, तो वो क्या करेगा. वो कुछ दिन बोलेगा और फिर शांत हो जाएगा और अपना दूसरा घर तलाशेगा. कुछ ऐसी ही स्थिति यशवंत सिन्हा की थी जिन्हें पार्टी ने नहीं निकाला अंत में उन्होंने खुद पार्टी छोड़ दी. कुछ ऐसा ही हाल सत्यपाल मलिक का है. यूपी चुनावों तक बीजेपी उन्हें निकालने तो नहीं जा रही."लेकिन बीजेपी भी सत्यपाल मलिक पर कार्रवाई करने के मूड में नहीं दिखती है. दी हिंदू की पॉलिटिकल एडिटर निस्तुला हेब्बार कहती हैं,
"मेरी बात बीजेपी के लोगों से हुई हैं. उन्होंने साफ कर दिया है कि पार्टी इन पर कोई कार्रवाई नहीं करने वाली."राजनीति के जानकार बताते हैं कि जम्मू कश्मीर से गोवा और फिर मेघालय भेजा जाना राज्यपाल मलिक पचा नहीं पा रहे हैं. पहले उन्होंने मोदी से नज़दीकी बढ़ाने की कोशिश की लेकिन वो समझ चुके हैं कि इससे कोई फायदा नहीं होने वाला. सत्यपाल जानते हैं कि मेघालय के बाद उनके लिए बीजेपी में अब ज्यादा कुछ बचा नहीं है. सत्यपाल मलिक ने क्या कहा? द लल्लनटॉप से बात करते हुए सत्यपाल मलिक ने कहा,
"मेरी दोस्ती ज़्यादा ज़रूरी है" सत्यपाल मलिक नज़दीक से जानने वाले बताते हैं कि सत्यपाल का जीवन दोस्तों और किस्सों से भरा हुआ है. ऐसा ही एक किस्सा साल 2020 का है. सत्यपाल गोवा के राज्यपाल थे. उन्हें गोवा में भूटान के कुछ विदेशी मेहमानों का स्वागत करना था. कार्यक्रम पहले से तय था. उसी दिन अरुण जेटली के बेटे रोहन जेटली की शादी थी. सत्यपाल शादी में शरीक हुए, भूटान के मेहमानों के कार्यक्रम में नहीं पहुंचे. इस पर विदेश मंत्रालय और दिल्ली में कुछ नेता खफा हो गए. लेकिन सत्यपाल मलिक ने साफ कह दिया- मेरे लिए मेरी दोस्ती ज्यादा ज़रूरी है.''मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है. किसानों के मुद्दे पर मैंने अपनी बात एक किसान नेता या एक किसान के तौर पर कही. मुझे लगा कि किसानों के साथ ज्यादती हो रही है इसलिए मैंने अपनी बात कही. मेरा इरादा राजनीति करने का नहीं है. जिस वक्त मुझे लगेगा कि प्रधानमंत्री या अमित शाह मेरी बात से अन्कफर्टेबल हैं, या उन्होंने इशारा भी कर दिया तो मैं इस्तीफा दे दूंगा.''