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हॉर्स ट्रेडिंग: बिकने को तैयार कर्नाटक के एक 'घोड़े' का खुला ख़त

सिर्फ कुत्तों का ही क्यों, घोड़ों का भी दिन होना चाहिए.

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सभी चित्र सांकेतिक हैं
पियूष पांडे

पीयूष पांडे टीवी पत्रकार हैं. व्यंग्यकार हैं. किताबें भी लिखी हैं, हाल ही में आई ‘धंधे मातरम’. पीयूष 'दी लल्लनटॉप' के लिए लिखते रहे हैं. हमारे लिए उन्होंने एक ‘लौंझड़’ नाम की सीरीज भी लिखी है. यहां पढ़िए उनका लिखा एकदम नया व्यंग्य- 


बिकने को तैयार कर्नाटक के एक 'घोड़े' का ख़त

आदरणीय अध्यक्ष महोदय जी,

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मैं जानता हूं कि इन दिनों आप दो टांग वाले ऐसे 'घोड़े' ढूंढ रहे हैं,जो कर्नाटक की रेस में आपकी तरफ से दौड़ सकें. मैं इस हेतु अपना आवेदन भेज रहा हूं. मैं आपकी तरफ से न केवल दौड़ने के लिए तैयार हूं बल्कि आप कहें तो दो-चार घोड़ों को लंगड़ी अड़ाकर गिराने को तैयार हूं. दो चार घोड़ों को अच्छी नस्ल की घोड़ी का लालच देकर आपकी तरफ से दौड़ने को बाध्य भी कर सकता हूं, बशर्ते पहले आप मुझे यह अवसर दें.

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आप जानते ही हैं कि इन दिनों महंगाई बहुत बढ़ गई है. कल ही खबर आई कि खुदरा महंगाई दर और थोक महंगाई दर दोनों बढ़ गए. बताइए-क्या हाल है देश का ! वैसे भी, दो टांग वाले घोड़ों को राजनीति के मैदान में बाजी मारने के लिए तिजोरी खाली करनी पड़ती है. टिकट पाने के लिए पार्टी फंड में करोड़ों जमा कराने से लेकर कार्यकर्ताओं को बांटने और फिर वोटरों को लुभाने के लिए शराब से लेकर नकद देने में ऐसी-तैसी हो जाती है.

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यकीन जानिए-वो तो 1000-2000 एकड़ जमीन पर कब्जा कर रखा है तो काम चल रहा है, वरना चुनाव के बाद कैश तो बचा ही नहीं. फिर, कर्नाटक में ही हमारे बड़े भाई जनार्दन रेड्डी ने बिना विधायक हुए, बिना मंत्री हुए जिस तरह बेटी की शादी में 500 करोड़ रुपए खर्च कर डाले-उसने दबाव बहुत बढ़ा दिया है. मेरी बीवी भी ज़िद पाले बैठी है कि बेटी की शादी में 250 करोड़ से कम खर्च किया तो अम्मा को घर बुला लूंगी और तुम्हारी छाती पर मूंग दलूंगी.


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एक घोड़े के साथ मोदी जी. इस तस्वीर का आर्टिकल से कोई संबंध नहीं है.

मैं और मेरे जैसे कई विधायक ये रिस्क नहीं ले सकते. लेकिन क्या करुं? अभी तक कोई प्रस्ताव आपकी तरफ से मुझे नहीं मिला. माना कि आपको किला फतह करने के लिए सिर्फ 15-20 घोड़े चाहिए लेकिन बाजार में हर घोड़े को बराबर माना जाना चाहिए. हर घोड़े को निरपेक्ष भाव से देखा जाना चाहिए. कई घोड़े सदैव बिकने को तैयार रहते हैं, लेकिन उन्हें कभी कोई प्रस्ताव ही नहीं मिलता. इस चक्कर में उन पर 'ईमानदार' होने का टैग लग जाता है, और फिर उन्हें भविष्य में सिर्फ इसलिए कोई प्रस्ताव नहीं मिलता कि ईमानदार घोड़े का राजनीति में क्या काम !

मेरा स्पष्ट मानना है कि अगर मंडी सजती है तो हर घोड़े को बिकने का हक मिलना चाहिए. घोड़ा अगर बालिग है या कहें कि घोड़े में लंगड़ी लड़ाने की हिम्मत है तो उसे बिकने का मौका मिलना ही चाहिए. राजनीतिक मंडी में बिकना हर घोड़े का जन्मसिद्ध अधिकार है, और कोई पार्टी उससे यह हक नहीं छीन सकती.

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मैं जानता हूं कि घोड़ों की खरीद-बिक्री खुलकर सामने आएगी तो आप पर लोकतंत्र की हत्या का आरोप लग सकता है. लेकिन-जिस लोकतंत्र की 1118384747 बार हत्या पहले ही हो चुकी है- उस लोकतंत्र की आप कैसे हत्या कर सकते हैं? फिर लोकतंत्र की कभी लाश भी नहीं मिली तो हत्या का आरोप सिद्ध नहीं हो सकता. मेरा मानना है कि ऐसे चिरकुटई भरे आरोपों से घबराने का मतलब नहीं है. खेल हमेशा खुलकर होना चाहिए. वैसे, मैं जानता हूं कि आप तो आरोपों से क्या ही घबराएंगे. जब आप आईपीसी की धारा में बाकायदा हत्या के आरोप लगने पर नहीं घबराए तो लोकतंत्र की हत्या के आरोप से क्या घबराएंगे.

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मैं फिर आपसे विनम्र गुजारिश कर रहा हूं कि मुझे खरीदें. मेरी बोली लगाएं. आजकल न बिकना गलत है, न बोली लगना. आईपीएल की मंडी सजती है तो धोनी और कोहली को भी बिकते देखा है हमने. बाजारवाद में बिकना ही अंतिम सत्य है. साबुन-शैंपू हो या घोड़ा या नेता-सबका महत्व बिकने से ही हैं. प्लीज-मेरे महत्व को खारिज मत कीजिए। मुझे खरीद लीजिए...मुझे खऱीद लीजिए...

-बिकने को तैयार एक सेवक
नोट-ये गुजारिश भरा खत कन्नड़ में लिखा गया है। खाकसार ने सिर्फ ट्रांसलेट किया है :)


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