**लौंझड़**
एक बार फिर नागपंचमी छूछीनिकल गई. छूछी मतलब कछु न होना. बड़ी उम्मीद थी कि सरकार इस नागपंचमी पर नागिन नृत्य शैली को राष्ट्रीय नृत्य घोषित कर देगी. लेकिन राष्ट्रीय तो क्या किसी राज्य ने राज्यीय
नृत्य तक घोषित नहीं किया. मुझे समझ नहीं आता कि ज़मीन से जुड़ी इस नृत्य शैली की उपेक्षा आखिर कब तक सरकारें करेंगी?
नागिन नृत्य शैली 100 फीसदी टंच देसी नृत्य शैली है. दुनिया के किसी देश में नागिन नृत्य जैसा नृत्य नहीं होता. और दुनिया के किसी देश का कोई माई का लाल हिन्दुस्तानी सड़कों पर नागिन नृत्य करते नर्तकों से मुकाबला नहीं कर सकता. नागिन नृत्य नर्तकों की दो श्रेणियां होती हैं. पहली, जो कभी वास्तविक तो कभी अदृश्य रुमाल को बीन समझकर सड़क पर अर्धचंद्राकर अवस्था में लोटायमान होकर बीन बजाता है. दूसरी श्रेणी इसी बीन पर फन लहराते हुए नर्तकों की होती है, जिनमें धुन बजते ही अचानक सांपिन की आत्मा प्रवेश कर आती है. नागिन नृत्य नर्तक जमीन पर लोटते-लोटते खुलेमन से अपनी टांगों को इस तरह इधर-उधर फेंकता है कि आसपास के लोग उसके प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकलने में ही भलाई समझते हैं. नागिन डांस के कलाकारों की राष्ट्रीय धुन “तन डोले मेरा मन डोले” और “मैं तेरी दुश्मन तू दुश्मन है मेरा” मानी जाती है.

इस स्वदेशी नृत्य शैली को बढ़ावा देकर स्वदेशी आंदोलन को मजबूत किया जा सकता है. लेकिन इस तरफ सरकार का ध्यान जा ही नहीं रहा. इसका नुकसान यह हो रहा है कि गलत नागिन डांस कर लोग नागों को अपना दुश्मन बना रहे हैं. सांप उन्हें डस रहे हैं. आप सोचेंगे कि लेखक को फेंकने की पूरी आदत है. आप चाहें तो गूगल कर लें.
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले के नानौता थाना क्षेत्र में घुड़चढ़ी कार्यक्रम के दौरान डीजे की धुन पर एक बंदा नागिन डांस कर रहा था. नागिन डांस के दौरान ही वहां एक सांप आ गया. उसने कुछ देर डांस देखा. नागिन डांस कर रहा दूल्हे का दोस्त संजीव उसके पास गया और उसे उठाकर नागिन डांस करने लगा. ये देखकर नाग को गुस्सा आ गया और उसने संजीव को डस लिया. सांप नेता तो नहीं, जिसे हर बात पर बोलने की आदत हो. तो वो बिना वजह बताए चला गया.

असली नाग
हिन्दुस्तान की अच्छी बात यह है कि यहां शहरों से लेकर गांव-खेड़ों तक में हर बात के विशेषज्ञ पाए जाते हैं. तो वहां मौजूद सांपों के एक विशेषज्ञ (जिनका दावा था कि उन्होंने इच्छाधारी नागिन के दर्शन किए हैं) ने दावा किया कि संजीव गलत नागिन डांस कर रहा था. बारात में पधारी नागिन सब कुछ बर्दाश्त कर सकती थी, लेकिन अपने पूर्वजों की बनाई नागिन नृत्य शैली का अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाई और उसने संजीव नामक नर्तक को डस लिया. संजीव ने पानी मांगा. जब तक पानी लाया जाता-संजीव की मौत हो गई. सांप का डसा पानी मांग रहा था. हां, आजकल इंसानों का डसा पानी नहीं मांगता.खैर, अपनी चिंता यह है कि गलत नागिन डांस करके कहीं लोग सांपों को अपना दुश्मन न बना लें. शहरों के बच्चे तो कायदे से नागिन नृत्य कभी कर ही नहीं सकते क्योंकि उन्हें आइडिया ही नहीं कि इस नृत्य को साधना कितना मुश्किल है. नागिन नृत्य नर्तक में लात सहने की अद्भुत शक्ति होती है तो बदबू सहने की भी. जिस गंदे भरे नाले के पास बारात की कुल क्षमता झटके में आधी रह जाती है, वहां भी नागिन नृत्य नर्तक बदबू से अप्रभावित रहकर नृत्य सेवा में लगा रहता है. ज़ाहिर है, बिना नागिन नृत्य की बारीकियों को समझे जब भी कोई शहरी बच्चा इस शैली में हाथ आजमाएगा, वो गलती करेगा ही.
नागिन डांस का डेमो यहां देखेंः
नागिन डांस को बर्बाद करने की कोशिश हो रही है
नागिन नृत्य एक प्राचीन नृत्य शैली है, जिसे बचाने की जिम्मेदारी सरकार की है. लेकिन सरकार इस तरफ कोई ध्यान ही नहीं दे रही. उल्टा नागिन डांस को बर्बाद करने के उपाय खोजे जा रहे हैं क्योंकि जिस तरह राज्यों में मदिरा पर पाबंदी लग रही है उससे नागिन नृत्य में सेवारत कलाकार हतोत्साहित हो रहे हैं. नागिन नृत्य नर्तक बिना मदिरा के उस तरह परफॉर्म ही नहीं कर सकता, जिस तरह यह नृत्य शैली डिमांड करती है.
मेरी सरकार से मांग है कि नागिन डांस को बचाने की योजना ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम में शामिल की जाए. नागिन डांस शुद्ध भारतीय डांस है और इसका संरक्षण आवश्यक है. ठीक नागिन डांस सिखाने के लिए अकादमियां शुरु की जाएं, जहां निशुल्क नागिन डांस सिखाया जाए. नागिन डांस के विशेष कार्यक्रम तमाम सरकारी कार्यक्रमों की शुरुआत में रखे जाएं. नागिन नृत्य नर्तकों को बारात में निशुल्क मदिरा उपलब्ध कराई जाए. यकीन जानिए एक बार कायदे के नागिन डांसरों की फौज तैयार हो जाए तो उन्हें डोकलाम में भी छोड़ा जा सकता है. चीनी फौजी नागिन नर्तकों का नृत्य देखकर ही सीमा छोड़कर भाग जाएंगे.

भेजो चीन को हवेली पर
कितना हसीन ख्वाब है न !! यह सच हो सकता है बशर्ते नागिन नृत्य शैली के संरक्षण को गंभीरता से लिया जाए. पहली शर्त है कि अगली नागपंचमी पर इसे राष्ट्रीय नृत्य घोषित किया जाए और योगा दिवस की तरह नागिन नृत्य दिवस भी घोषित किया जाए. उस दिन पूरा देश 'मन डोले तन डोले' की धुन पर नृत्य करे. आहा ! क्या सुंदर दृश्य होगा !
तो मेरी सरकार से गंभीर मांग है कि सही नागिन नृत्य को बचाए. लेकिन मैं जानता हूं कि जिन राजनेताओं से यह मांग कर रहा हूं, उन्हें खुद नहीं पता कि वो कब किसकी धुन पर नाचेंगे. कल तक गुजरात में कई कांग्रेसी विधायक राहुल के चरणों में लोटायमान थे, वो अब मोदी शरणम् आ गए हैं. उनका कहना है कि हम पहले गलत पार्टी के लिए नाच रहे थे. विधायक ही क्या मुख्यमंत्री भी ऐसे हो चले हैं. 20 महीने एक तरफ से ठुमके लगाए और फिर लगा कि ठुमके गलत लगे तो वो दूसरी तरफ चले आए. यह हाल पूरी राजनीति का है. फर्क इतना है कि गलत नागिन डांस करने वालों को डसने सांप चले आ रहे हैं, अमर्यादित राजनीति करने वालों को डसने वाला कोई नहीं.

पीयूष पांडे टीवी पत्रकार हैं. व्यंग्यकार हैं. किताबें भी लिखी हैं, हाल ही में आई ‘धंधे मातरम’. पीयूष जी अब हमारे-आपके लिए भी लिख रहे हैं. पाठक उन्हें ‘लौंझड़’ नाम की इस सीरीज में पढ़ रहे हैं.
'धंधे मातरम' ऑनलाइन खरीदने के लिए इस लिंक पर
क्लिक करें.
लौंझड़ की पिछली किस्तें यहां पढ़ेंः