फ़िल्म 'पद्मावती' की रिलीज़ डेट जैसे-जैसे पास आ रही है, वैसे-वैसे इससे जुड़े विवाद बढ़ते जा रहे हैं. हाल ही में करणी सेना के संरक्षक लोकेंद्र सिंह कालवी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुछ ऐसा बोल दिया जिससे आग और बढ़ गई. उन्होंने कहा, 'हमें उकसाना जारी रखा गया तो हम दीपिका की नाक काट देंगे.' 2017 में रिलीज़ हो रही इस फ़िल्म से कुछ लोगों को बहुत दिक्कत हो रही है, जबकि भारत में इससे पहले भी रानी पद्मावती पर दो फ़िल्में रिलीज़ हो चुकी हैं. इन दोनों ही फ़िल्मों में अल्लाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मावती के प्यार में दिखाया गया था.
चित्तौड़ रानी पद्मिनी
1963 में तमिल फ़िल्म 'चित्तौड़ रानी पद्मिनी' रिलीज़ हुई थी. इसे डायरेक्ट किया था चित्रापू नारायण मूर्ति ने. फ़िल्म में रानी पद्मिनी का रोल और किसी ने नहीं बल्कि वैजयंती माला ने किया था. चित्तौड़ के राजा रतन सिंह बने थे एक्टर शिवाजी गणेशन. खिलजी का किरदार निभाया था एक्टर मंजेरी नारायणन नंबियार ने. फ़िल्म मेकर्स ने इसे एक 'ऐतिहासिक फ़िक्शन' बताया था. फ़िल्म में दिखाया गया कि अल्लाउद्दीन रानी पद्मिनी के पीछे पागल था. उस समय औरतें, खासकर महल में रहने वालीं राजपूत औरतें पर्दा करके रहती थीं.
फ़िल्म 'चित्तौड़ रानी पद्मिनी' बॉक्स ऑफ़िस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई थी.
फ़िल्म में दिल्ली के सुल्तान खिलजी ने राजा राणा रतन सिंह को धमकी दी थी कि अगर उन्हें रानी पद्मिनी को देखने नहीं दिया गया तो वो राजस्थान को तबाह कर देंगे. जब राजा रतन सिंह के पास कोई ऑप्शन नहीं बचा तो एक प्लान तैयार किया गया. डिसाइड हुआ कि रानी पद्मिनी महल के तालाब के पास खड़ी होंगी और पानी में उनकी जो छवि बनेगी उसका रिफ़्लेक्शन महल के एक कमरे में मौजूद शीशे में दिखेगा. इसमें खिलजी की मौत का प्लान भी शामिल था. रानी पद्मिनी को इस तरह किसी अजनबी के सामने आना मंज़ूर नहीं था. उन्होंने 'सती' होना मुनासिब समझा.
महारानी पद्मिनी
1964 में 'महारानी पद्मिनी' नाम की बॉलीवुड फ़िल्म रिलीज़ हुई थी. इसे डायरेक्ट किया था जसवंत झावेरी ने. रानी पद्मिनी बनी थीं अनिता गुहा. जयराज ने महारावल रतन सिंह का और सज्जन ने खिलजी का रोल निभाया था. फ़िल्म के गाने मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले ने गाए थे. इस फ़िल्म में भी खिलजी रानी पद्मिनी के पीछे पागल थे. दिखाया गया कि अपने सेनापति मलिक काफ़ूर की वजह से खिलजी पद्मिनी के प्यार में पड़ जाते हैं. मलिक काफ़ूर का मकसद दिल्ली की गद्दी हासिल करना था. महारानी पद्मिनी को हासिल करने के लिए खिलजी राणा रतन सिंह को कैद कर लेते हैं. फ़िल्म के आखिर में खिलजी पद्मिनी को अपनी बहन मान लेते हैं और राजा राणा रतन सिंह मर जाते हैं. फ़िल्म रानी पद्मिनी के जौहर पर खत्म होती है. इस फ़िल्म के एक सीन में रानी पद्मिनी अलाउद्दीन खिलजी की जान भी बचाती हैं. इस फ़िल्म का भी कोई विरोध नहीं हुआ था.
'चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का जौहर' नाम का ये सीरियल 2009 में आया था.
इन सबके अलावा श्याम बेनेगल के डायरेक्शन में बने सीरियल 'भारत एक खोज' में भी रानी पद्मिनी पर एक एपिसोड दिखाया गया था. साल 2009 में 'चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का जौहर' नाम से सोनी टेलीविज़न पर सीरियल भी आया था. तय हुआ था कि इसके 104 एपिसोड शूट होंगे लेकिन सिर्फ़ 48 शूट हुए थे. इसके पीछे की वजह, लोगों का विरोध नहीं बल्कि पैसे की कमी थी. सीरियल की टीआरपी इतनी नहीं थी, जितना इसकी शूटिंग में पैसे जा रहे थे.
किसी भी फ़िल्म और सीरियल पर उस तरह का बवाल नहीं हुआ, जैसा संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती पर हो रहा है.
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