टेंशन वाला काम तो है. पर इस मिशन के कामयाब होने के पीछे कई महिला वैज्ञानिकों का हाथ है. इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही टीम में 30 फ़ीसदी औरतें हैं. ऐसा हिंदुस्तान में पहली बार हुआ है. क्या? कि किसी स्पेस मिशन को औरतें हेड कर रही हैं. जिसमें से दो नाम- रितु और मुथैया ख़ूब सुर्खियां बटोर रहे हैं.

22 जुलाई 2018. चंद्रयान 2 चांद पर जाने के लिए रवाना हुआ.
# कौन हैं मुथैया वनिता-
मुथैया इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम इंजिनियर हैं. प्रोजेक्ट डायरेक्टर होने के नाते मिशन का काफ़ी भार उनके कंधों पर था. वो पिछले 32 सालों से इसरो के लिए काम कर रही हैं. पर बात जब चंद्रयान 2 पर काम करने के आई तो मुथैया ने शुरुवाती दौर में मना कर दिया. वो ये ज़िम्मेदारी उठाने से हिचक रही थीं. उन्हें मनाया एम. अन्नादुरै ने. वो चंद्रयान 1 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं. उनका मानना था कि प्रॉब्लम सॉल्व करने में मुथैया का कोई जवाब नहीं है. कुछ समय प्रोजेक्ट पर काम करने के बाद मुथैया ने अंततः हां बोल दी.
मुथैया इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम इंजिनियर हैं.
मुथैया ख़ुद चेन्नई से हैं. उनके पिता भी सिविल इंजिनियर थे.
एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में मुथैया ने कहा था-
जब मैनें इसरो ज्वॉइन किया था तो मैं जूनियर इंजिनियर थी. काफ़ी जूनियर. मैनें लैब में काम किया. गाड़ियां टेस्ट कीं. धीरे-धीरे मैं मेनेजर वाली पोजीशन पर पहुंची. मैं आसानी से दूसरे इंसान का दिमाग समझ सकती हूं. हम सब आराम से साथ मिलकर काम कर सकते हैं. इतने सालों से करते आए हैं. मैं हर इंसान का रोल और उसकी रेस्पॉन्सिबिलिटी समझ सकती हूं. मुझे जो उनसे फ़ीडबैक मिलता है, मैं उसकी कद्र करती हूं.इसीलिए एम. अन्नादुरै मुथैया को टीम मैनेजमेंट में उस्ताद मानते हैं. न्यूज़ 18 को दिए एक इंटरव्यू में एम. अन्नादुरै बताते हैं-
मुथैया डेटा संभालने में एक्सपर्ट हैं. उनको डिजिटल और हार्डवेयर का काम बहुत सही लगता है. उसमें वो कम्फ़र्टेबल भी थीं. पर प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनने से वो हिचक रही थीं. इसमें दिन में 18 घंटे काम करना होता है. साथ ही ये बहुत ज़िम्मेदारी का काम है. ऊपर उसे पूरे देश की निगाह आप पर होती है.

एम. अन्नादुरै चंद्रयान 1 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं.
अभी तक कई देशों ने अपने रॉकेट चांद पर भेजे हैं. इसलिए मुथैया के सामने एक चुनौती थी. वो थी इस प्रोजेक्ट को कम से कम पैसों में निपटाना. जितना ख़र्चा नासा और बाकी एजेंसीज़ ने किया है, उसकी आधी कीमत में. और वो कामयाब भी रहीं.
मुथैया को 2006 में बेस्ट वुमन साइंटिस्ट अवार्ड मिल चुका है. 2013 में हुए मंगलयान प्रोजेक्ट में भी उनका अहम रोल था.
अब आते हैं इस मिशन के दूसरे बड़े नाम पर. रितु करिधाल. इनको ‘रॉकेट वुमन ऑफ़ इंडिया’ भी कहा जाता है. ये चंद्रयान 2 की मिशन डायरेक्टर हैं. और क्योंकि चंद्रयान 2 अब उड़ चुका है, रितु को काफ़ी समय तक चैन की सांस लेने का मौका नहीं मिलेगा. उनका काम ही कुछ ऐसा है. मिशन डायरेक्टर होना सुनने में बहुत सही लगता है. है भी. पर सिर झन्ना देने वाला काम है. मिशन डायरेक्टर मतलब स्पेसक्राफ्ट पर हो रही सारी चीज़ें हैंडल करनी हैं. ये कुछ महीनों का नहीं, सालों का काम है. एक बार ये धरती से उड़ चुका तो समझो उसकी सारी ज़िम्मेदारी इन्हीं की.# कौन हैं रितु करिधाल-

रितु चंद्रयान 2 में मिशन डायरेक्टर हैं.
रितु लखनऊ से हैं. मज़ेदार बात ये है कि रितु चार साल की उम्र से चांद पर चलने के सपने देखती थीं. उन्होंने बेंगलुरु में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस से एयरोस्पेस इंजिनियरिंग की. यानी एयरक्राफ्ट और स्पेसक्राफ्ट जैसी चीज़ों की पढ़ाई. इसमें रितु ने मास्टर्स डिग्री ली. इसरो में काम करते हुए उन्हें 22 साल हो गए हैं. 2013 से 2014 के दौरान रितु मंगलयान मिशन में डिप्टी ऑपरेशंस डायरेक्टर भी थीं. फिलहाल वो बेंगलुरु में रहती हैं.
न्यूज़ 18 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ समय पहले मुंबई में एक कॉन्फ्रेंस हुई थी. उसमें रितु भी शामिल थीं. उस दौरान रितु ने एक बात बोली जिसने सबका दिल छू लिया है. उन्होंने कहा-
हमने मिशन पर दिनभर काम किया. रातभर भी किया. इस इसके बीच में समय निकालकर हमने अपने बच्चों और परिवारवालों का ध्यान रखा.रितु के बच्चों ने ये भी बताया कि वो कैसे शाम को उनको पढ़ाती थीं. पढ़ाने के बाद फिर लैपटॉप पर अपना काम शुरू करती थीं, जो देर रात तक चलता रहता था. रितु फिर सुबह उठकर साढ़े छह बजे अपने बच्चों को जगातीं.

रितु के परिवार में उनके पतिअविनाश और दो बच्चे हैं.
सुनने में थका देने वाला काम लगता है. एक तो चांद पर जाने वाला स्पेसक्राफ्ट बनाना. दिन-रात उसपर काम करना. परिवार संभालना. साथ ही देश की नज़र भी आप पर टिकी हो. टू मच वर्क!
रितु की कामयाबी को लेकर उनके परिवार वाले भी बहुत ख़ुश हैं. रितु की बहन वर्षा लखनऊ में रहती हैं. ‘द न्यूज़ मिनट’ को दिए इंटरव्यू में वो कहती हैं-
हम अपनी बहन पर बहुत गर्व महसूस कर रहे हैं. हमारे माता-पिता की डेथ के बाद उन्होंने मुझे और मेरे छोटे भाई रोहित को संभाला. दीदी को हमेशा से ही सितारे बहुत पसंद थे. उन्हें ये जानना था कि आसमान के परे क्या है.पूरे मिशन के दौरान रितु के पति अविनाश और उनके दोनों बच्चों आदित्य और अनीशा ने ख़ूब सपोर्ट किया.
नतीजतन रितु का नाम जीते जी इतिहास के पन्नों में दर्ज़ किया जा चुका है. जाते-जाते आपको एक और फैक्ट बताते हैं. वो ये कि इसरो में प्रोजेक्ट डायरेक्टर के तौर पर नियुक्त होने वाली रितु करिधाल पहली महिला हैं.
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