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यस बैंक: जिसने किसी भी डूबती कंपनी को 'नो' नहीं कहा और खुद डूब गया

बाजार के बैड बॉयज़ को लोन दे-देकर खुद डूब जाने वाले बैंक की कहानी.

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रिजर्व बैंक का आदेश आने के बाद से ही यस बैंक से लोग अपना पैसा निकालने में लगे हुए हैं. (फोटो-पीटीआई)
6 मार्च, 2020. सुबह हुई. शेयर मार्केट खुला और यस बैंक के शेयर 80 फीसद तक धड़ाम हो गए. बाजार खुला तो यस बैंक का शेयर 33.20 रुपये पर था. 11.30 बजते-बजते ये 5.55 रुपये के अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. हालांकि जब मार्केट बंद हुआ तो ये 16.2 रुपए पर था. 20 अगस्त, 2018 को यस बैंक के एक शेयर की कीमत 404 रुपये थी. और 6 मार्च, 2020 को मार्केट बंद होने के बाद है 16.2. यानी कि अगस्त 2018 से अब तक इसमें 96 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है.
आसान भाषा में कहें तो,
अगर 20 अगस्त, 2018 को किसी ने यस बैंक में एक लाख रुपये लगाए होते. तो आज उसके 96 हज़ार रुपये डूब गए होते.
ये तो हो गया शेयर मार्केट का हाल. यस बैंक के ब्रांचेज़ और ATM में लोगों की लंबी भीड़ लगी है. हर कोई अपना पैसा इस बैंक से निकालने में लगा हुआ है. एक अच्छा खासा बैंक, जिसे बाजार में औसत दर से ज्यादा ब्याज देने के लिए जाना जाता था. जिसका प्रमोटर अपने शेयर्स को हीरे-मोती बताता था और कभी न बेचने की बात कहता था, उसके इतने बुरे दिन आ गए कि उसे अपनी हिस्सेदारी बेचनी पड़ी. आखिर क्या हुआ ऐसा कि प्राइवेट सेक्टर के टॉप बैंकों में से एक बैंक के इतने बुरे दिन आ गए? हर किसी के मन में ये सवाल है. # हुआ क्या है? आरबीआई ने, यस बैंक को ‘मोराटोरियम’ में रख दिया है. ‘मोराटोरियम’ बोले तो यस बैंक की बैंकिंग गतिविधियों पर आंशिक रूप से रोक लगा दी गई है. RBI का कहना है,
यस बैंक की वित्तीय स्थिति में लगातार गिरावट आई है. इसका कारण ये रहा कि संभावित ऋण घाटे से उबरने के लिए यस बैंक पूंजी जुटाने में असमर्थ रहा. बैंक के साथ गंभीर गवर्नेंस इश्यूज़ हैं. यस बैंक अपने को रिस्ट्रक्चर कर पाए, इसके लिए RBI ने उसे हरसंभव सहयता दी. साथ ही उसे मौके दिए कि वो कुछ पैसे बैंक के लिए इकट्ठा कर पाए. लेकिन इन सब से कोई फायदा होता नहीं दिखा.
बैंक के बोर्ड को 30 दिन की अवधि के लिए अधिग्रहित किया गया है. भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व सीएफओ (मुख्य वित्त अधिकारी) प्रशांत कुमार को यस बैंक का प्रशासक नियुक्त किया गया है. अगले आदेश तक बैंक के ग्राहकों के लिए पैसे निकालने की सीमा 50,000 रुपये तय की गई है. यस बैंक के इतने बुरे दिन आए कैसे?
बैंक दो तरीके से प्रॉफिट कमाते हैं.
- एक, बड़े-बड़े कॉरपोरेट्स को बड़ा-बड़ा लोन देकर.
- दूसरा खुदरा ग्राहकों के जरिए.
मान लीजिए आपने बैंक में अकाउंट खुलवाया. जमा किए एक हजार रुपए. आपकी ही तरह हजारों और लोगों ने अकाउंट खुलवाए और पैसे जमा किए. बैंक इन पैसों को लोन पर दे देते हैं. किसी तीसरे आदमी को. बैंक आपके जमा किए पैसे पर ब्याज देता है 5 प्रतिशत. और जिन्हें लोन दिया है उनसे लेता है 8 प्रतिशत. बीच में जो तीन प्रतिशत का हिस्सा बचता है वो बैंक का मुनाफा होता है. लेकिन कई बार ऐसा होता कि लोन लेने वाला व्यक्ति या कंपनी हाथ खड़े कर देता है. कहता है कि अब हम लोन नहीं चुका पाएंगे. ऐसे लोगों को कंपनी NPA घोषित कर देती है. NPA यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट. यानी बैंक की वो संपत्ति जिससे कोई कमाई नहीं हो रही है.
यस बैंक की मौजूदगी खुदरा ग्राहकों के बीच कम है. कॉरपोरेट्स के बीच ज्यादा. यस बैंक ने जिन कंपनियों को लोन दिया अधिकतर घाटे में हैं. दिवालिया हो चुकी हैं या होने की कगार पर है. जब वे डूबने लगीं तो बैंक का हाल भी खस्ता होने लगा.
इसे ऐसे समझिएः
मान लीजिए आप सड़क पर चल रहे हैं. सारे नियम कायदे फॉलो करते हुए. अपनी सुरक्षा का पूरा ध्यान है आपको. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप सड़क पर पूरी तरह सुरक्षित हैं. आपकी सुरक्षा सड़क पर चल रहे दूसरे लोगों पर भी निर्भर करती है. अगर वे सही तरीके से नहीं चल रहे हैं तो इससे आपको भी दिक्कत होगी. आप एक्सीडेंट के शिकार भी हो सकते हैं.
ठीक यही हुआ है यस बैंक के साथ. बैंक ने जिन कंपनियों को कर्ज दे रखा है उनकी हालत है खराब. इनमें एस्सेल ग्रुप, अंनिल अंबानी की ADAG, DHFL, और इंडियाबुल्स हाउसिंग, दीवान हाउसिंग, जेट एयरवेज, कॉक्स एंड किंग्स, सीजी पावर, कैफे कॉफी डे कंपनी प्रमुख हैं. ये सारी कंपनियां हैं घाटे में. ये डगमगाईं तो सीधा असर पड़ा यस बैंक पर. यस बैंक की हालत खराब होनी शुरू हो गई.
एक उदाहरण इंडियाबुल्स का लीजिए. यस बैंक का कुल नेटवर्थ करीब 27,000 करोड़ रुपये है. इसका एक चौथाई इंडियाबुल्स समूह में फंसा हुआ है. यानी पूरे 6,040 करोड़ रुपये. इंडियाबुल्स के सितारे इन दिनों गर्दिश में हैं. इंडियाबुल्स के प्रमोटर्स पर वित्तीय अनियमितता के आरोप हैं. इस समूह पर बैंकों का करीब 27,580 करोड़ रुपया फंसा हुआ है. इंडियाबुल्स ने अगर डिफॉल्ट किया तो सबसे ज्यादा जोखिम यस बैंक के लिए ही है. कंपनी के प्रमोटर्स ही बेचने लगे शेयर
2004 में राणा कपूर ने अपने रिश्तेदार अशोक कपूर के साथ मिलकर यस बैंक की शुरुआत की थी. 26/11 के मुंबई हमले में अशोक कपूर की मौत हो गई. जिसके बाद अशोक कपूर की पत्नी मधु कपूर और राणा कपूर के बीच वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई. मधु अपनी बेटी शगुन को बैंक के बोर्ड में शामिल करना चाहती थीं. मामला बंबई हाईकोर्ट पहुंचा. 2011 में फैसला राणा कपूर के पक्ष में आया.
ज्वैलर्स फैमिली से ताल्लुक रखने वाले राणा कपूर यस बैंक में अपने शेयर्स को हीरा-मोती बताते थे, जिसे वे कभी नहीं बेचने की बात कहते थे. लेकिन चीजें हमेशा आपकी सोच के हिसाब से नहीं होतीं. नवंबर, 2019 में ही राणा कपूर यस बैंक की अपनी सारी हिस्सेदारी बेच चुके हैं. हालिया घटनाक्रम पर राणा कपूर ने मामले से ‘उचित दूरी’ बनाते हुए कहा, 'मैं बैंक से पिछले 13 महीने से नहीं जुड़ा हूं. तो मुझे इसके बारे में कोई क्लू नहीं है.'
राणा कपूर
राणा कपूर का कहना था कि वे अपने शेयर कभी नहीं बेचेंगे.

एक के बाद एक झटके # यस बैंक को पिछले कुछ समय में एक के बाद एक झटके लगे. शुरुआत तब हुई जब रिजर्व बैंक ने बैंक के चेयरमैन और को-फाउंडर राणा कपूर को उनके पद से हटा दिया. क्यों हटाया? कहा गया कि बैंक के कामकाज में कुछ ऐसा है जिसे छुपाया जा रहा है. रिजर्व बैंक को अंदेशा था कि यस बैंक की ओर से बैलेंस शीट में सही जानकारी नहीं दी जा रही है. आरबीआई ने 31 जनवरी, 2019 तक राणा कपूर से पद छोड़ने को कहा था. राणा कपूर ने ही 2004 में अशोक कपूर के साथ मिलकर यस बैंक की शुरुआत की थी.
# इसके बाद रिजर्व बैंक ने यस बैंक पर एक करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया. मार्च, 2019 में. कहा कि बैंक स्विफ्ट नियमों का पालन नहीं कर रहा है. स्विफ्ट एक मैसेजिंग सॉफ्टवेयर है. जिसका उपयोग वित्तीय संस्थाएं लेनदेन के लिए करती हैं. इसी मैसेजिंग सॉफ्टवेयर का दुरुपयोग करके नीरव मोदी और मेहुल चौकसी ने पीएनबी में 14 हजार करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की थी.
अगला झटका यस बैंक को क्यूआईपी ने दिया. क्यूआईपी यानी क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट. इसके जरिए कंपनियां अपने लिए पूंजी जुटाती हैं. यस बैंक ने क्यूआईपी के जरिए फंड इकट्ठा करने का जो लक्ष्य रखा था वो अचीव नहीं कर पाई. बैंक ने क्यूआईपी के जरिए 1,930 करोड़ रुपये जुटाए थे.
# मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने यस बैंक की रेटिंग घटा दी है. इसके अलावा दुनिया भर की रेटिंग एजेंसियां यस बैंक को संदिग्ध नजर से देख रही हैं. ये एजेंसियां कंपनियों को उनके कामकाज के हिसाब से रेटिंग देती हैं. मूडीज ने यस बैंक को B2 से Caa3 कैटेगरी में डाल दिया है. किसी कंपनी की रेटिंग डिग्रेड करने का मतलब होता है कि वहां सब ठीक नहीं चल रहा है.
रवनीत गिल का मानना है कि चुनौतियां काफी कठिन हैं लेकिन बैंक इनसे उबर जाएगा.
रवनीत गिल का मानना है कि चुनौतियां काफी कठिन हैं लेकिन बैंक इनसे उबर जाएगा.

अब आगे क्या?
जनवरी, 2019 में यस बैंक को संभालने की जिम्मेदारी रवनीत गिल को दी गई. तब इकोनॉमिक टाइम्स को दिए इंटरव्यू में उनका कहना था कि हर कंपनी में एक ऐसा समय आता है जब चीजों को फिर से सेट करना पड़ता है. यस बैंक भी इसी दौर से गुजर रहा है. आज की स्थिति के लिए बाहर मार्केट में हो रही चीजें भी जिम्मेदार हैं. हमें थोड़ी स्टेबिलिटी दिखानी होगी.
रवनीत गिल ने इन्वेस्टर्स में भरोसा जगाने की कोशिश भी की. लेकिन जबतक कंपनी संभलने की थोड़ी बहुत स्थिति में आती तब तक कोई न कोई नया मामला आ जाता. जैसे हम दीवाली पर घर साफ करते हैं. घर का सारा कचरा निकाल कर बाहर रख देते हैं. कहते हैं देख लो भइया. इतना कचरा था हमारे यहां. अब हमारा घर एकदम साफ है. देख लो. कोई गड़बड़ी नहीं है. कंपनियां इस कचरा निकाली को किचन सिंकिंग कहती हैं. लेकिन तभी कुछ नया आंधी तूफान आ जाए और घर फिर गंदगी से भर जाए. यही रवनीत गिल के साथ भी हुआ. फिलहाल रिजर्व बैंक ने यस बैंक पर 30 दिनों के लिए कुछ प्रतिबंध लगाए हैं. जिससे लोगों के बीच भगदड़ मच गई है. एटीएम के बाहर लंबी-लंबी लाइन लग गई हैं. वित्त मंत्री लोगों को भरोसा दिला रहीं हैं कि चिंता न करें. सभी का पैसा सुरक्षित है. घबराने की कोई बात नहीं है. हम आरबीआई के संपर्क में हैं. बैंक, अर्थव्यवस्था और जमाकर्ताओं के हित में लगातार कदम उठाए जा रहे हैं. 2017 से ही रिजर्व बैंक की इस पर नजर है. 30 दिनों के भीतर यस बैंक का री-स्ट्रक्चर किया जाएगा री-स्ट्रक्चरिंग को लेकर रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर पूरी जानकारी दी गई है.


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