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'महाबली सुशील कुमार को एक मौका मिलना ही चाहिए'

सुशील कुमार में बैल जैसी शक्ति है और बिल्ली सी फुर्ती. सुशील में कुश्ती के स्वर्णिम अतीत को फिर से हमें सौंप देने की आग है....

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फोटो - thelallantop
devanshu jha the lallantopये आर्टिकल देवांशु झा के कीबोर्ड से निकला है. पत्रकार हैं, सियासत पर खूब लिखते हैं. सुशील कुमार के रियो ओलंपिक में जाने को लेकर बवाल मचा हुआ है. कुछ कहते हैं सुशील कुमार को भेजा जाना चाहिए. कुछ कह रहे हैं बिलकुल नहीं भेजा जाना चाहिए. देवांशु झा सुशील को रियो ओलंपिक में भेजे जाने के पक्ष में हैं. ये आर्टिकल उन्होंने हमें लिख भेजा है. पढ़िए. अगर आपके पास भी कायदे का कंटेंट हो, तो हमें lallantopmail@gmail.com पर भेजिए. अच्छा लगा तो हम छापेंगे.
  भारत में मल्लयुद्ध के उज्ज्वल इतिहास को देखते हुए मुझे सबसे चमकीले वर्तमान को दरकिनार किया जाना साल रहा है. ओलंपिक और विश्वस्तर पर भारतीय कुश्ती को पुनर्जीवन देने वाला महामल्ल सुशील कुमार है. सुशील कुमार एक बलशाली योद्धा हैं, जिसके पास पर्याप्त तकनीकी दांवपेच हैं. अनुभव है. आकांक्षाएं हैं. अनुशासन है और कुश्ती के स्वर्णिम अतीत को फिर से हमें सौंप देने की आग है और इन सबसे ऊपर प्रमाणित उपलब्धियां हैं. आप नरसिंह पंचम यादव और सुशील कुमार का बायोडेटा खोल कर पढ़ लीजिए. सुशील कुमार ने विश्व चैंपियनशिप से लेकर कॉमनवेल्थ और एशियाड तक में कुल आठ स्वर्ण जीते हैं. जबकि नरसिंह यादव के हाथ में एक स्वर्ण है, कॉमनवेल्थ का. सुशील कुमार ओलंपिक में दो बार के पदक विजेता रहे हैं. नरसिंह यादव के हाथ वहां खाली हैं. आप कह सकते हैं कि नरसिंह यादव नैसर्गिक रूप से 74 किलोग्राम भारवर्ग के पहलवान हैं और सुशील नैसर्गिक रूप से 66 किलोग्राम भारवर्ग के जिन्होंने नियमों में बदलाव के बाद खुद को 74 किलोग्राम के लिए तैयार किया. लेकिन तैयारी में फर्क तो देखिए. सुशील कुमार अभी 85 दिनों के कैंप से रूस से लौटे हैं. सुशील कुमार ने कुश्ती के लिए साधना की है. ओलंपिक में स्वर्ण के बेहद करीब पहुंचकर फिसले हैं क्योंकि वो डीहाईड्रेशन के शिकार हो गए थे तो सिर्फ इसलिए नरसिंह यादव को मौका नहीं मिलना चाहिए कि उन्होंने सुशील कुमार की चोटिल अवस्था में उस भारवर्ग के लिए अपनी दावेदारी पेश की.
जिस वक्त ओलंपिक के लिए क्वालिफाइंग मैच चल रहे थे, उस वक्त सुशील कुमार अपने कंधे में चोट की वजह से उसमें हिस्सा नहीं ले सके. लेकिन पिछले दो सालों में उऩ्होंने खुद को निरंतर तपाया है. यहां तक की 66 साल किलोग्राम भारवर्ग का ये मल्लयोद्धा किसी साधक की तरह लगकर खुद को 74 किलोग्राम भारवर्ग के लिए तैयार कर चुका है. सुशील कुमार को जानने वाले सभी पहलवान, गुरु मानते हैं कि उनकी आंखें अचूक हैं. कलाइयों में कमाल की शक्ति है. भुजदंड भयंकर हैं. बाहुकंटक प्राणघातक हैं और जंघाएं जरासंध जैसी हैं.
कहते हैं सुशील कुमार में बैल जैसी शक्ति है और बिल्ली सी फुर्ती. जैसा कि रुस्तम ए जमां गामा के लिए उदाहरण दिया जाता था. और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि सुशील कुमार अपने जीवन का आखिरी ओलंपिक खेलने का सपना देख रहे. अपनी सारी संचित निधि, ऊर्जा, साधना लगाकर उन्होंने अपनी निगाहें वहां टिका रखी हैं जहां कुश्ती का सोना चमक रहा है. तो 32 साल के इस महाबली को एक मौका क्यों नहीं देते? अगर नरसिंह यादव में पौरुष है तो वो सुशील कुमार से द्वंद्व करे. जिसकी भुजाओं में जोर होगा वो जीतेगा और भारत से रियो जाएगा. ये तो वैसे भी खेल में दावेदारी और स्पर्धा से कहीं ज्यादा व्यक्तिगत ईमानदारी का सवाल है और इस परीक्षा में उसे ही पास होना चाहिए जिसका कुल, नाम और जन्म सबकुछ पौरुष है. तो मैं ये मानता हूं कि रियो जाने का दावेदार वही है, जिसकी मांसपेशियां अवयव सी हों. जिसका वीर्य ऊर्जस्वित हो, जिसकी शिराएं स्फीत हों. और जहां स्वस्थ रक्त बहता हो. (प्रसाद के शब्दों में ) पिछले पचास साल के इतिहास में भारतीय मल्ल परंपरा में मुझे सुशील कुमार जैसा कोई नहीं दिखता. उन्होंने भारत का बहुत मान बढ़ाया है. भारतीय कुश्ती की जो नई पीढ़ी फिर से उठ रही है उसके आदर्श सुशील कुमार हैं. उन्नायक सुशील कुमार हैं. उन्हें एक मौका मिलना ही चाहिए.
  ये लेखक के अपने विचार हैं. दी लल्लनटॉप ने भी सुशील कुमार के रियो जाने को लेकर अपना स्टैंड नीचे दिए पीस में बताया था. पढ़ें- सुशील भाई, पहलवानी का हर फैसला पहलवानी से नहीं होता )

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