गुलाम ज़रूर देखी होगी. ये विक्रम भट्ट की उस समय की फिल्म है जब वो सस्ता हॉरर नहीं बनाया करते थे. 1998 की फिल्म. इसका आखिरी सीन बहुत फेमस है. आमिर खान और फिल्म का विलेन आमने सामने हैं. आमिर विलेन के भड़काने पर उसपर कूदता है. 2-4 लगा भी देता है. दोनों ही बॉक्सिंग के माहिर हैं. मुक्केबाज़ी का एक ओपन मैच सा चलता है. 10 सेकंड बराबरी पर रहने के बाद आमिर पिटना शुरू हो जाता है. विलेन घूंसे मार-मार के आमिर को खून में नहला देता है. विलेन जो है न, पट्ठा पूरा पहलवान है. घूंसे मारने की मशीन. मखौल से गुस्साया आमिर उठता है. फिर पीट दिया जाता है. फिर उठता है, फिर पीट दिया जाता है. अगर आपको पता न हो ये हिंदी फिल्म है, तो डेविड और गोलिएथ की कहानी उलटी पड़ती दिखाई दे. मगर आपको पता है कि ये एक हिंदी फिल्म ही है. रॉनी ये मैच हारेगा. भले ही उसने आमिर खान को कितना भी मारा हो. वो हिंदी फ़िल्मों के सभी मुस्टंडों की डेस्टिनी है. मगर विलेन जितनी देर लड़ाई में टिक जाता है वो बड़ी बात है. टिक क्या जाता है, पूरी लड़ाई वही निकालता है. वो तो आखिर में आमिर खान को जीतना ही है. इस विलेन का रोल निभाया था बॉलीवुड के सबसे पढ़े लिखे गुंडे शरत सक्सेना ने. आज ही के दिन 1950 में एमपी के सतना में पैदा हुए थे.
विलेन का विचित्र चेहरा
सन 70 से 90 का पीरियड विलेन के लिए एक अलग ही रूप लेकर आया था. प्रेम चोपड़ा, रंजीत, जीवन और प्राण सरीखे विलेन अब कम दिख रहे थे. ये समय था विचित्र से दिखने वाले विलेन का. या तो वो एकदम 'काला' होगा, या फिर अंग्रेज ही होगा. ये विलेन भयंकर कसरती बंदे होते थे और साफ़ था कि अगर हीरो ज़्यादा बोला तो उसकी हड्डियां तोड़ दी जाएंगी. बॉब क्रिस्टो और गैविन पैकर्ड को हिंदी फिल्मों में अंग्रेजी सी हिंदी बोलते हुए देखा होगा. अक्सर ये विलेन फिल्म के मुख्य विलेन के टट्टू होते थे जो बात-बात पर दांत निकालकर खड़े हो जाते थे और बाजुओं को सहलाना शुरू हो जाते थे.
1972 में आए शरत सक्सेना. विलेनी में देसीपने और मस्कुलैरिटी को अपने बाइसेप्स में गूंथ कर लाए. जबड़ा और भौहें एक पर्सनल से गुस्से में अकड़ी हुईं.1977 की एजेंट विनोद इनकी ऐसी पहली फिल्म है जिसमें इन्हें ठीकठाक स्क्रीन टाइम मिला है. मिस्टर इंडिया में शरत ‘डागा’ बने हैं. इस फिल्म में इन्होंने गुंडों वाली बनियानें छोड़ बो वाली शर्टें पहनी हैं. शाहरुख़ खान स्टारर बादशाह में ऐसे कॉमिक विलेन का रोल किया है जो कुत्तों से डरता है.
पढ़ा-लिखा ‘विलेन’
जी हां. शरत ने 1971 में ही इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग कर ली थी. इन दिनों थोक के भाव न तो इंजीनियरिंग कॉलेज होते थे और न ही इंजीनियर. फिर क्यों गए हीरो बनने? दरअसल शरत के पिताजी का मानना था कि फिल्मों में आने से पहले पढ़ाई-लिखाई ज़रूरी है. बिलकुल आपके और मेरे पिताजी की तरह. बम्बई आ गए और 2 महीने नौकरी करने के बाद इन्हें फिल्मों में छोटा-मोटा काम मिला. ‘बेनाम’ इनकी पहली फिल्म थी. शरत कहते हैं कि इन्हें गुंडे का रोल करना नहीं सुहाया क्योंकि इनका इंटरेस्ट गंभीर एक्टिंग में था.
कॉमेडी ज़्यादा पसंद है
[video width="720" height="306" mp4="https://akm-img-a-in.tosshub.com/sites/lallantop/wp-content/uploads/2016/08/Sharat-Saxena-gif_170816-125857.mp4"][/video] 4 साल पहले शरत ने कहा था कि वो विलेन वाले रोल्स से बोर हो चुके हैं. कहते हैं कि वो गुलाम के लिए बेस्ट विलेन केवल नॉमिनेट हुए थे. उसे जीते नहीं थे. साल 2000 के बाद से वैसे भी शरत ने सपोर्टिंग और कॉमिक रोल किए हैं. पिछले ही साल आई ‘बजरंगी भाईजान’ में सलमान के ससुर बने थे. भाई को हवाईजहाज़ में अपनी सीटबेल्ट पहले बांधने की सलाह देते दिखे थे. 'हंसी तो फंसी' में सिद्धार्थ मल्होत्रा के शक्की बाप बने हैं. इन दोनों फिल्मों में शरत की पुरानी गुस्सेबाज़ इमेज को कॉमेडी के सांचे में डाल दिया गया है. बागबान में अमिताभ बच्चन और हेमा जी के मकानमालिक बने हैं. कृष में रोहित मेहरा के करीबी दोस्त बने हैं.
ऐसे पाएं इनके जैसे बाइसेप्स
मिथुन चक्रवर्ती के साथ बॉक्सर में इनकी लड़ाई देखकर ही आमिर खान ने गुलाम के लिए इनका नाम सुझाया था. दरअसल आमिर को चाहिए था बिलकुल बॉक्सर जैसा दिखने वाला एक्टर. ‘आग से खेलेंगे’ में शरत का हाथ तो टूटा ही, साथ ही चेहरे में कांच के टुकड़े घुस गए. शरत शुद्ध देसी घी खाकर इतने तगड़े हुए हैं. वो घर का खाना खाते हैं. इनका रूटीन है हफ्ते में एक बार चिकन ईरानी और भोपाली रिज़ाला खाते हैं. कहते हैं कि खूब खाना चाहिए और 35 साल से पहले जिम नहीं जाना चाहिए.
ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे प्रणय ने की है