1. गिरिराज शुक्ला
इन्होंने रोल किया था नील और प्रहस्त का. पहले इन केरेक्टर्स के बारे में कुछ जान लेते हैं.
राम के लिए समुद्र पर पुल बनाने का काम किया दो वानरों ने. नल और नील. नल देवलोक के आर्किटेक्ट विश्वकर्मा के पुत्र थे. और नील अग्नि के पुत्र.
प्रहस्त एक राक्षस था. युद्ध में उसकी लड़ाई नील से हुई थी. इसका वर्णन युद्ध कांड के सर्ग 58 में है.
ऐसे में नील और प्रहस्त का डबल रोल करना बहुत ही मज़ेदार बात है. कि एक एक्टर खुद से ही लड़ रहा है. हालांकि रामानंद सागर के सीरियल रामायण में दिखाया गया है कि प्रहस्त का युद्ध लक्ष्मण के साथ होता है. जो उसे मौत के घाट उतारते हैं. प्रहस्त के रोल में गिरिराज शुक्ला की एक्टिंग देखिए -
गिरिराज का जन्म हुआ इलाहाबाद में. तारीख थी 01 दिसम्बर 1960. बचपन में फिल्में देखने का चस्का लग गया. दिल में एक्टर बनने की इच्छा जागी. पिताजी ने डांटा कि फिल्में देखने के पैसे हैं नहीं, और तुम चले हो फिल्मस्टार बनने. लेकिन उन्हें फ़िल्मी कीड़ा काट चुका था. पिताजी की बात नहीं सुनी, और जा पहुंचे मुंबई.
गांव से होने के कारण ठेठ बोली बोलते थे. ऑडिशन में रिजेक्ट हो जाते थे. एक थिएटर ग्रुप में एक्टिंग की बारीकियां सीखने लगे. फिल्म 'एक चादर मैली सी' में छोटा सा रोल मिला. फिल्म के डायरेक्टर थे सुखवंत ढड्डा. उनके ऑफिस में गिरिराज को असिस्टेंट का काम मिल गया. तीन साल वहां काम किया.

गिरिराज शुक्ला (सोर्स: यूट्यूब चैनल नारद टीवी)
साथ में थिएटर चल रहा था. एक दिन इनका नाटक देखने आ गए गुलज़ार. नाटक उन्हें अच्छा लगा. पूरी टीम के अभिनय से प्रभावित हुए. बोले कि नई फिल्म बना रहा हूं. आ जाओ, तुम सबको उसमें कहीं तो एडजस्ट करेंगे. फिल्म का नाम था 'लिबास'. लीड रोल में थे शबाना आज़मी, नसीरुद्दीन शाह और राज बब्बर. असल में फिल्म की कहानी का बैकग्राउंड एक थिएटर ग्रुप ही था.
दूरदर्शन का प्रभाव बढ़ने लगा था. गिरिराज की बात भी बन गई कुछ सीरियल में. जैसे 'दादा दादी की कहानियां' और 'इधर-उधर'. फिर इन्हें रोल मिला 'विक्रम और बेताल' में. 1985 में टेलीकास्ट हुए इस सीरियल को रामानंद सागर ने प्रड्यूस किया था. जब वे रामायण बनाने लगे, तो इस सीरियल के बहुत से एक्टर्स को उसमें रोल मिला. अरुण गोविल (राम), सुनील लहरी (लक्ष्मण), दीपिका चिखलिया (सीता), अरविन्द त्रिवेदी (रावण), विजय अरोड़ा (इंद्रजीत), मूलराज राजदा (जनक). और गिरिराज शुक्ला बने नील और प्रहस्त.
इसके बाद 'श्री कृष्णा' और 'अलिफ़ लैला' में नज़र आए. फिर दूसरे टीवी चैनलों की शुरुआत हुई. ज़्यादा चैनल, ज़्यादा सीरियल, ज़्यादा काम. गिरिराज बताते हैं कि वे करीबन 300 सीरियल में काम कर चुके हैं. इनमें 'सावधान इंडिया', 'क्राइम पैट्रोल', ''संत नरसी मेहता' और 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' शामिल हैं. ये मुंबई में रहते हैं. इनका फिल्म सफर जारी है. इनका बेटा फिल्मों में क्रिएटिव डायरेक्टर बन गया है.

कलर्स टीवी और सोनी टीवी चैनल के दो सीरियल में गिरिराज शुक्ला
2. गिरीश सेठ
ये रामायण में 'नल' और 'गंधर्व दनु' बने थे.
'नल' की बात तो हो चुकी है. दनु एक गंधर्व थे, जिन्हें अपने रूप पर बहुत गर्व था. ऋषि स्थूलशिरा को परेशान करने लगे. ऋषि ने श्राप देकर इन्हें डरावना राक्षस बना दिया. जिसका नाम था कबंध. उसके शरीर को राम और लक्ष्मण ने ज़िंदा जलाया. तब वह श्राप से मुक्त होकर वापस गंधर्व बन सका.

'नल' के रोल में गिरीश सेठ की एक तस्वीर (सोर्स: यूट्यूब चैनल नारद टीवी); 'गंधर्व दनु' के रोल में गिरीश सेठ
गिरीश का 'नल' वाला रोल गिरिराज शुक्ला के 'नील' के रोल से मिलता-जुलता है. समानताएं इन दोनों की असल ज़िंदगी में भी बहुत हैं. ये भी एक छोटे से शहर से हैं. इन्होंने स्कूल के नाटकों में हिस्सा लिया. तो एक्टिंग में रुचि हो गई. ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद 1985 में मुंबई चले आए.
इनके पिताजी के दोस्त ने इन्हें होमी मुल्लान से मिलवाया. जो फिल्मों में संगीत बजाते थे. उन्होंने इनके लिए एक सिफारिशी चिट्ठी लिख दी. कैफ़ी आज़मी के नाम. कैफ़ी ने इनको एक सलाह दी. थिएटर ग्रुप में शामिल होकर एक्टिंग सीखने की. ये इप्टा में काम करने लगे. इप्टा यानि इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन. बैकस्टेज का काम करना पड़ा. फिर धीरे धीरे एक्टिंग का मौका भी मिला.
तीन महीने बाद इन्हें दूरदर्शन के सीरियल 'दर्पण' में काम करने का मौका मिला. इसके एक एपिसोड में इन्होंने ए.के.हंगल के दामाद की भूमिका निभाई थी. कोई डायलॉग नहीं था, लेकिन टीवी पर शुरुआत तो हो ही गई.

'दर्पण' सीरियल में ए.के.हंगल के साथ गिरीश सेठ (सोर्स: यूट्यूब चैनल नारद टीवी)
यहां से रोल मिल गया 'विक्रम और बेताल' में. फिर रामायण में नंबर पड़ गया. कभी गांव वाले के कपड़े पहने, तो कभी पहरेदार के.
फिर एक दिन शूटिंग में खलल पड़ गया. दशरथ का रोल करने वाले एक्टर बाल धुरी शूटिंग पर नहीं आ पाए थे. काफी लंबा सीन शूट होना था. कुछ दिनों बाद ही टेलीकास्ट होना था. रामानंद सागर बोले कि 'दशरथ' का कोई डुप्लीकेट ढूंढ लेते हैं. उसके साथ दूर वाले शॉट कर लेते हैं. जब बाल धुरी आएंगे, पास वाले शॉट तब हो जाएंगे. लेकिन उनकी कदकाठी का कौन मिलेगा? उनकी नज़र पड़ी गिरीश पर. पूछा कि ये रोल कर सकते हो. गिरीश बोले कि आप मौका तो दीजिए. रामानंद सागर बोले कि इस लड़के को दशरथ के कॉस्ट्यूम पहनाओ.
पहली बार इन्हें शूटिंग पर कोई डायलॉग बोलने का मौका मिला. रामानंद सागर उनके काम से खुश हो गए. तब उन्हें 'गंधर्व दनु' का रोल मिला. जिसके अच्छे-खासे डायलॉग थे. देखिए वो सीन -
उसके बाद इनके हाथ लगा 'नल' का रोल. उसके साथ फिर राक्षस का रोल मिल गया. 'अंगद' का पैर उठाने के लिए जो राक्षस सबसे पहले उठता है. रामायण के बाद इन्होंने 'उत्तर रामायण' में भारद्वाज मुनि का रोल किया. फिर अरुण गोविल के सीरियल 'मशाल' में भी काम किया.

राक्षस के रोल में गिरीश सेठ; उनके बारे में छपा हुआ किसी अखबार का आर्टिकल (सोर्स: नारद टीवी)
अब उन्हें मुंबई में रहते हुए 5 साल हो गए थे. उस दुनिया से मन भरने लगा था. पिताजी की तबियत भी ठीक नहीं रहती थी. इसलिए गिरीश मुंबई छोड़कर वापस घर आ गए. पिताजी का काम संभाला. उसके बाद कॉलेज से 'योग' की डिग्री ली. और उस क्षेत्र में सक्रिय हो गए.
3. विजय काविश
इन्होंने रामायण में शिव, वाल्मीकि और मयासुर राक्षस के रोल किए थे. जब 'राम' रामेश्वरम की स्थापना करते हैं, उस समय 'शिव' प्रकट होते हैं. देखिए इस सीन में विजय काविश की एक्टिंग -
'रामायण' से पहले वे 'इधर उधर' और 'विक्रम और बेताल' सीरियल में काम कर चुके थे. फिर 'श्री कृष्णा' सीरियल में 'उग्रसेन' का रोल किया. 'अरमान', 'फूल' और 'सलमा' फिल्मों में रोल निभाए.
वीडियो देखें - फिरोज़ खान की 'कुर्बानी' ने कैसे रामानंद सागर को 'रामायण' बनाने को प्रेरित किया?