जम्मू-कश्मीर, उत्तर-पूर्व भारत और अंतरराष्ट्रीय मामलों में खास रुचि. BJP और RSS के गलियारों में राम माधव (Ram Madhav) की पहचान कुछ ऐसी ही है. राम माधव RSS की वैचारिकी में रचे-बसे सदस्य हैं. साल 2014 में जब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार आई, तो राम माधव की एंट्री BJP में हुई. उन्होंने जम्मू-कश्मीर में BJP-PDP गठबंधन वाली सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उत्तर-पूर्व भारत में BJP की चुनावी जीत की कहानी लिखी. एक समय पार्टी में उनकी हैसियत अमित शाह के बाद नंबर-2 की हो गई. फिर अचानक से वो किनारे हो गए. और अब उनकी वापसी हुई है.
राम माधव की BJP में वापसी किसने कराई? जम्मू-कश्मीर चुनाव के साथ एक और बड़ा काम करेंगे
Jammu Kashmir Election के लिए BJP ने Ram Madhav को इनचार्ज बनाया है. जम्मू-कश्मीर में BJP-PDP गठबंधन सरकार बनाने में माधव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. एक वक्त पार्टी में उनकी हैसियत अमित शाह के बाद नंबर-2 की हो गई थी. लेकिन फिर वो किनारे हो गए. अब उनकी वापसी हुई है.

BJP ने राम माधव को केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी के साथ आगामी जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव का इनचार्ज बनाया है. राम माधव की यह नियुक्ति ऐसे समय में हुई है, जब चर्चा है कि BJP और RSS के बीच पिछले कुछ महीनों से सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. खासकर, लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से. ऐसे में राम माधव की BJP में वापसी के कई मायने निकाले जा रहे हैं. इन मायनों और BJP में राम माधव की वापसी पर हम आगे बात करेंगे, लेकिन उससे पहले उनके बारे में थोड़ा सा जान लेते हैं. आखिर कैसे उनकी छवि एक ऐसे नेता की बनी, जिसकी पहुंच हर पार्टी में रही और जिसने पार्टी के लिए बहुत मुश्किल लगने वाले गठजोड़ों को साकार किया.
RSS के ‘बाल प्रचारक’साल 2014 में जब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार आई, तब RSS ने राम माधव को BJP में भेजा. राम माधव को पार्टी का महासचिव बनाया गया. RSS में राम माधव ने अपने करियर की शुरुआत बाल प्रचारक के तौर पर की थी. आपातकाल के दौरान उन्होंने संघ के नेताओं के साथ अंडरग्राउंड काम किया. अपने संगठन के एजेंडे और मेसेजिंग को आगे बढ़ाने में उन्होंने महारत हासिल कर ली. साल 2003 में RSS ने उन्हें अपना प्रवक्ता बनाकर दिल्ली भेजा. उद्देश्य था- RSS को बाहरी दुनिया के साथ जोड़ना. आधुनिक उदारवादी मूल्यों और संगठन की विचारधारा में कोई अंतर नहीं है, इस छवि को गहरा बिठाना.
राम माधव ने ये जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई और जल्द ही वो मीडिया सर्किल में पॉपुलर हो गए. राम माधव अकादमिक अंग्रेजी बोलते, रंग-बिरंगे कुर्ते पहनते, लेटेस्ट गैजेट्स का इस्तेमाल करते और बौद्धिक बहस-मुबाहिसों का हिस्सा बनते. RSS ने जिस काम के लिए उन्हें दिल्ली भेजा था, वो उसमें एकदम फिट बैठ गए. BJP और RSS के बीच लिंक का भी काम राम माधव ने किया. अंतरराष्ट्रीय मामलों में उनकी गहरी रुचि और ज्ञान ने उन्हें टीम मोदी का एक महत्वपूर्ण सदस्य बना दिया. खासकर, प्रधानमंत्री मोदी के अंतरराष्ट्रीय दौरों के संबंध में.

पहली बार देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के लिए उनका पहला अमेरिकी दौरा बहुत महत्वपूर्ण था. राम माधव ने इसके लिए बहुत मेहनत की. उन्होंने ये सुनिश्चित किया कि ना केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भव्य स्वागत हो, बल्कि वो अपनी शर्तों पर अमेरिका पहुंचे. इसके लिए राम माधव ने कई अमेरिकी सांसदों और अधिकारियों से बात की, NRI समूहों से संपर्क साधा. अमेरिका के बाद भी दूसरे विदेशी दौरों के लिए भी राम माधव ने ही इंतेजाम किए. इन दौरों की सफलता के साथ-साथ BJP के भीतर राम माधव का कद बढ़ता गया.
यहां से पार्टी ने उन्हें जम्मू-कश्मीर की जिम्मेदारी दी. साल 2015 में जम्मू-कश्मीर में चुनाव हुए. परिणामों में किसी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं था. यहां से शुरू हुई गठबंधन सरकार बनाने की कोशिशें. BJP और PDP के बीच बात हुई. अनुच्छेद 370 और AFSPA को लेकर दोनों का रुख एकदम अलग था. लेकिन एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बना. फिर इस गठबंधन की सरकार भी बनी. राम माधव ने इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सरकार बनने के बाद राम माधव ने कई इंटरव्यूज में बताया भी कि दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन होना बहुत मुश्किल था, लेकिन बातचीत के जरिए सभी के हितों का खयाल रखा गया. हालांकि, बाद में BJP ने हाथ पीछे खींच लिए. सरकार गिर गई.
जम्मू-कश्मीर में सफलता के बाद राम माधव को अगली जिम्मेदारी उत्तर-पूर्व भारत की मिली. खासकर, असम में कांग्रेस का किला ढहाने की जिम्मेदारी. राम माधव ने उत्तर-पूर्व में अलग-अलग दलों के साथ BJP का गठजोड़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वो हिमंता बिस्वा सरमा जैसे नेताओं को पार्टी में लेकर आए. और जब 2016 में असम के चुनावी नतीजे आए, तो कांग्रेस की सरकार जा चुकी थी. राज्य में पहली बार BJP की सरकार बनी. सर्वानंद सोनोवाल पूर्वोत्तर भारत में BJP के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने.
मणिपुर में जहां 2012 के विधानसभा चुनाव में BJP को एक भी सीट नहीं मिली थी, वहीं 2017 के चुनाव में पार्टी ने 21 सीटें जीतीं. कांग्रेस पार्टी ने 28 सीटें अपने नाम कीं, लेकिन वो सरकार नहीं बना पाई. BJP ने नेशनल पीपल्स पार्टी, नागा पीपल्स फ्रंट और लोक जनशक्ति पार्टी से गठबंधन किया और राज्य में पहली बार अपनी सरकार बनाई. इसका श्रेय भी राम माधव को गया. त्रिपुरा में भी BJP ने CPM का किला ढहा दिया. नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में भी BJP के गठबंधन वाली सरकारें आईं.
इस दौरान राम माधव के सितारे बुलंदी पर पहुंच गए. कहा गया BJP के भीतर राम माधव की हैसियत तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बाद नंबर-2 की हो गई. संगठन पर भी उनकी पकड़ मजबूत होती जा रही थी. हालांकि, जम्मू-कश्मीर में गठबंधन की सरकार गिरने के साथ ही राम माधव किनारे होते गए. पार्टी के अलग-अलग विदेशी डेलिगेशन में उन्हें शामिल नहीं किया गया. जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व भारत की जिम्मेदारी भी दूसरे नेताओं को दे दी गई. यहां तक कि जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया गया, तो राम माधव को लूप में भी नहीं रखा गया.

इस दौरान खुद राम माधव के रुख में बदलाव आने लगा. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां अमित शाह BJP के अकेले दम पर 300 सीटों का आंकड़ा पार करने की बात कह रहे थे, वहीं राम माधव ने एक इंटरव्यू में कहा कि ऐसा हो सकता है कि इस बार BJP अपने दम पर बहुमत ना ला पाए. नौबत ऐसी आ गई कि नितिन गडकरी को राम माधव की आलोचना करनी पड़ी.
जानकार बताते हैं कि इस दौरान BJP के कई बड़े नेताओं ने राम माधव की शिकायत अमित शाह से की. कहा कि राम माधव पार्टी के कामकाज से ज्यादा अपनी ब्रांडिंग कर रहे हैं. उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं सीमाएं पार कर रही हैं. जिक्र विदेशी डिप्लोमैट्स से राम माधव की मुलाकातों का भी हुआ. इसके बाद सितंबर 2020 में BJP ने राम माधव को राष्ट्रीय महासचिव के पद से हटा दिया. माधव दोबारा RSS में चले गए.
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वापसी के पीछे की रणनीतिअब एक बार फिर से राम माधव की BJP में वापसी हुई है. विश्लेषक इसके पीछे कई वजहें गिनाते हैं. सबसे पहली वजह तो यह है कि राम माधव के पास जम्मू-कश्मीर में चुनावी रणनीति बनाने का पुराना अनुभव है. मौजूदा परिस्थितियों में यह अनुभव पार्टी के काफी काम आ सकता है. दरअसल, ऐसा माना जाता है कि अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी, गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी और सज्जाद लोन की पीपल्स कॉन्फ्रेंस पार्टी के गठन में BJP ने अहम भूमिका निभाई है. लेकिन हाल के दिनों में इन पार्टियों के प्रभावशाली नेताओं ने इस्तीफे दिए हैं. ऐसे में BJP चाहती है कि ये नेता किसी तरह से उसके काम आ सकें.
एक बड़ी वजह ये भी है कि बीते कुछ समय से RSS और BJP के बीच दूरियां बनी हैं. इस लोकसभा चुनाव के दौरान BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने RSS से जुड़े एक सवाल के जवाब में कहा था कि BJP शुरू में अक्षम थी, RSS की जरूरत पड़ती थी. लेकिन पार्टी अब सक्षम है और यह अपने आप को चलाती है. इधर, जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि एक सच्चे सेवक के भीतर अहंकार नहीं होता है. उन्होंने कहा कि इस बार के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मर्यादा नहीं बरती गई.
ऐसे में संघ परिवार का लक्ष्य है कि माधव के जरिए BJP-RSS के बीच बनी इस दरार को भरा जाए. वहीं जम्मू-कश्मीर में चुनाव से पहले और चुनाव नतीजे आने के बाद भी पार्टी संभावनाएं तलाशना चाहती है. पार्टी से जुड़े लोगों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में पिछली बार का गठबंधन राम माधव के चलते ही संभव हुआ था, ऐसे में इस बार भी अगर ऐसी नौबत आती है तो राम माधव वहां मौजूद होंगे.
साल 2020 में भले ही राम माधव BJP से बाहर चले गए, लेकिन उन्होंने पार्टी के नेताओं से संपर्क बनाए रखा. संघ में होते हुए वो पार्टी के लिए वैचारिक कामकाज करते रहे. जानकार बताते हैं कि इस बार BJP में उनकी वापसी RSS के चलते हुई है. अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि राम माधव BJP और RSS को सफलता दिला पाते हैं या नहीं.
वीडियो: बीजेपी को बहुमत नहीं तो नागालैंड में राम माधव सरकार कैसे बनवाएंगे?