‘देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सरकारी पैसे से बाबरी मस्जिद बनाना चाहते थे. सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसका विरोध किया और नेहरू को ऐसा करने से रोक दिया.’
नेहरू सरकारी पैसे से बाबरी मस्जिद बनाना चाहते थे? राजनाथ सिंह के दावे में दम कितना है?
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू 'सरकारी पैसे से बाबरी मस्जिद बनवाना चाहते थे'. राजनाथ सिंह के इस दावे पर सोशल मीडिया पर संग्राम छिड़ गया है.
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भाजपा के वरिष्ठ नेता और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने ये दावा किया है. उनका ये बयान सोशल मीडिया पर हॉट टॉपिक बन गया है. जवाहर लाल नेहरू को केंद्र में रखकर 'कौन हैं भारतमाता' नाम की किताब लिखने वाले प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने एक्स पर पोस्ट किया है कि गंभीर छवि के माने जाने वाले राजनाथ सिंह के इस वक्तव्य को हंसी में उड़ाने की बजाय गंभीर चुनौती दी जानी चाहिए.
आगे उन्होंने लिखा, ‘बेपर की उड़ान के बजाय वो (राजनाथ सिंह) अपनी बात के पक्ष में प्रमाण दें. नेहरू के बारे में तरह तरह की बेसिर-पैर की बातें प्रचारित करना संयोग नहीं है, बल्कि दशकों से निरंतर चला आ रहा प्रयोग है, जिसका गहरा राजनीतिक आशय है."
पुरुषोत्तम अग्रवाल ही नहीं, तमाम इतिहासकारों ने राजनाथ सिंह के इस दावे को खारिज किया है कि बाबरी मस्जिद बनाने के लिए नेहरू सार्वजनिक फंड का प्रयोग करना चाहते थे.
इतिहासकार एस इरफान हबीब ने दी लल्लनटॉप से बातचीत में कहा कि राजनाथ सिंह को यह पता होना चाहिए कि जवाहरलाल नेहरू या कोई भी बाबरी मस्जिद क्यों बनवाना चाहेगा? उन्होंने कहा, “बाबरी मस्जिद तो ऑलरेडी बनी हुई थी. वह तो 1992 में गिराई गई. उन्होंने कहा कि किसी पार्टी का कोई जूनियर लेवल का नेता ये बोले तो समझ में आता है, लेकिन राजनाथ सिंह ने ये बात कही है, ये अफसोस की बात है. यह एक जिम्मेदार आदमी कह रहा है, इसलिए दुख हो रहा है.”

एस इरफान हबीब ने आगे कहा, ‘बाबरी क्या किसी भी तरह की मस्जिद बनाने के लिए कभी भी नेहरू ने कोशिश नहीं की. नेहरू का सेक्युलरिज्म बेहद अलग तरह का था. वह एक तरह से महात्मा गांधी के सेक्युलरिज्म से भी ऊपर था. गांधी तो फिर भी खुद को धर्म से जोड़ते थे, लेकिन नेहरू ने कभी भी किसी भी धर्म से अपने को जोड़ने की बात नहीं कही. धर्म उनके लिए बड़ा व्यक्तिगत मामला था.’
चर्चित इतिहासकार ने बताया कि ऐसा नहीं था कि नेहरू धर्मों का सम्मान नहीं करते थे. उनकी सारी राइटिंग्स में संस्कृति और धर्म का बड़ा सम्मान है. हिंदू धर्म सहित सभी धर्मों को वह समान दृष्टि से देखते थे. लेकिन वह हमेशा स्टेट और गवर्नेंस को अलग रखना चाहते थे. यही सेक्युलरिज्म है.
'नेहरूः मिथक और सत्य' नाम की किताब लिखने वाले पत्रकार पीयूष बबेबे ने भी अपनी फेसबुक पोस्ट में इस दावे का खंडन किया. उन्होंने लिखा,
जो बोला गया है, वह तो झूठ है ही. लेकिन सच्चाई यह है कि सरदार पटेल ने यह कहा था कि जब तक वह जिंदा हैं, सोमनाथ मंदिर के लिए सरकारी खजाने से 1 पैसा नहीं देंगे.
उन्होंने आगे कहा,
सरदार पटेल सरकारी खर्च से किसी भी तरह की धार्मिक या सांप्रदायिक गतिविधि के वित्तपोषण के एकदम खिलाफ थे. जो नीति सरदार की थी. वही नेहरू की और वही गांधीजी की भी थी. वही भारत के संविधान की भी नीति है.

सोमनाथ मंदिर को लेकर भी राजनाथ सिंह ने दावा किया कि नेहरू ने गुजरात में मंदिर को ठीक करने का मुद्दा उठाया तो पटेल ने साफ किया कि मंदिर एक अलग मामला है. क्योंकि इसके सुधार के लिए जरूरी 30 लाख रुपये आम लोगों ने दान किए थे. एस इरफान हबीब कहते हैं कि सोमनाथ मंदिर से नेहरू की कंट्रोवर्सी जोड़ी गई. उन्होंने यही कहा था कि भारत सरकार को या राष्ट्रपति को मंदिर के उद्घाटन में नहीं जाना चाहिए. क्योंकि ये धार्मिक मामला है. धर्म से जुड़े लोग इसे करें. उन्होंने कहा,
यह तो एक डिबेट वाली चीज है. आप उससे एग्री करें न करें. लेकिन नेहरू ने उस वक्त अपनी राय रखी थी और अपना डिसएग्रीमेंट एक्सप्रेस किया था. कोई भी समझदार आदमी ये कर सकता है. जो कुछ सोच रखता है, वो एग्री या डिसएग्री कर ही सकता है.
हबीब कहते हैं कि राजनाथ सिंह को ये भी ख्याल नहीं है कि जिस इतिहास के बारे में वो बोल रहे हैं, वो सब डॉक्यूमेंटेड हिस्ट्री का पीरियड है. ये कोई मध्यकालीन या प्राचीन भारत की बातें नहीं हो रही हैं. ये तो डॉक्यूमेंटेड हिस्ट्री है, जिसका अंग्रेजों ने आर्काइव बनाया है. उसके अंदर सारी फाइलें मौजूद हैं. इसके अलावा, तब अखबार भी छप ही रहे थे. उस वक्त के जो कंटेंपररी न्यूज़पेपर्स हैं, उन न्यूजपेपर्स में ये सारी रिपोर्टें तो छपतीं ही कि प्रधानमंत्री (नेहरू) एक बाबरी मस्जिद बनवाना चाहते हैं. लेकिन ऐसा कहीं कोई डॉक्यूमेंटेड रिकॉर्ड नहीं है.
बाबरी मस्जिद की कहानीबाबरी मस्जिद के बनने का समय सन् 1527 माना जाता है. इतिहास है कि मुगल बादशाह बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने इसका निर्माण कराया था. हिंदूवादी संगठनों, विचारकों और नेताओं का दावा रहा है कि मस्जिद का निर्माण रामजन्मभूमि मंदिर को तोड़कर किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ऑब्जर्वर की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1885 में पहली बार इस पर अदालती विवाद शुरू हुआ. महंत रघुबीर दास ने इस मामले में पहला मुकदमा दायर किया था, जिसमें मस्जिद से सटी जमीन पर मंदिर बनाने की मांग की गई थी. लेकिन फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) ने उन्हें इसकी इजाजत देने से इनकार कर दिया.
1949 में दावा किया गया कि मस्जिद के अंदर राम की मूर्ति प्रकट हुई है. 22 दिसंबर की रात को मस्जिद के अंदर राम की एक मूर्ति मिली थी. द टेलीग्राफ की 2005 की एक रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि जवाहर लाल नेहरू ने बाबरी मस्जिद से इन मूर्तियों को हटाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को दिसंबर 1949 या जनवरी 1950 में टेलीग्राम या टेलेक्स संदेश भेजा था. रिपोर्ट में ये दावा सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से किया गया है.
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफर ए. जिलानी ने तब कहा था कि राज्य सरकार के पास बाबरी से जुड़े 5 दस्तावेज थे, जो मस्जिद गिरने से पहले 1991 तक यूपी सरकार के मुख्यालय में मौजूद थे. उनके पास इसका सबूत भी है. उन्होंने ये भी बताया कि इनमें से एक जवाहर लाल नेहरू की चिट्ठी भी थी, जिसमें मूर्ति को मस्जिद से हटाने की बात थी. लेकिन अचानक से ये दस्तावेज यूपी सरकार के पास से गायब हो गए. उन्होंने इसे साजिशन गायब किए जाने का आरोप लगाया और सीबीआई जांच की मांग भी की थी.
हालांकि, यह मुद्दा अब खत्म हो चुका है. 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आखिरी फैसला सुनाते हुए विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने के आदेश दिए थे.
वीडियो: सरकारी पैसों से बाबरी में मस्जिद में क्या कराना चाहते थे नेहरू? राजनाथ ने बताया













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