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क़िस्सागोई 18: लॉकडाउन में उस्ताद की ये सीख बहुत काम आएगी

एक से बढ़कर एक सीख देने वाले उस्ताद की ये सीख बड़े काम की थी.

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नौशाद साहब रिकॉर्डिंग के समय भी किस्से कहानियां ख़ूब सुनाते थे (फ़ाइल फोटो)

लॉकडाउन चल रहा है. बाक़ी लोगों के साथ ही जो लोक कलाकार हैं, आम कलाकार हैं वो मुश्किल में हैं. क्योंकि इनको इनकी कला के लिए तारीफ तो फिर भी मिल जाती है, इतना नज़राना नहीं मिल पाता कि ज़िन्दगी महफूज़ हो सके. इसी अफसोस से जुड़ा  ये किस्सा मशहूर संगीतकार नौशाद सुनाते थे. जिसे उन्होने अपने उस्ताद मशहूर सितारवादक यूसुफ़ अली खां से सुना था. कई बरस पहले लखनऊ में संगीत के एक जाने माने उस्ताद थे, जो बाद में गुमनामी के अंधेरों में खो गए. इनके बारे में मशहूर था कि ये किसी को अपना शागिर्द नहीं बनाते थे. जबकि दूर दूर से लोग इनकी शागिर्दी पाने की आरज़ू लेकर आते थे. आख़िरकार एक संगीत प्रेमी लड़का उस्ताद की ख़िद्मत में इस तरह बिछ गया कि उस्ताद उसे अपनी शागिर्दी में लेने पर राज़ी हो गए. पर एक शर्त के साथ, के शागिर्द उनसे गाना सीखेगा तो लेकिन जिन्दगी भर किसी सभा, समारोह या महफ़िल में नहीं गाएगा. बहरहाल लड़के ने इस शर्त को ख़ुशी से कुबूल कर लिया.

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उस्ताद ने लड़के को अपने घर में रखकर कई बरस तक संगीत सिखाया. धीरे धीरे लखनऊ में हर तरफ लड़के की गायिकी का चर्चा होने लगा. एक बार शहर में एक बड़ा संगीत सम्मेलन होने वाला था जिसमें पूरे भारत से कलाकार और कलाप्रेमी शिरकत कर रहे थे. लड़के के दोस्तों और दूसरे लोगों ने लड़के से बार-बार कहा कि वो इस सम्मेलन में ज़रूर गाए. ऐसा करने से वो अपने उस्ताद की तरह पूरे हिन्दुस्तान में मशहूर हो जाएगा. अब लड़का भी सोचने लगा कि कम से कम एक बार तो उसे अपनी कला का सार्वजनिक प्रदर्शन करना ही चाहिए. लेकिन उस्ताद की इजाज़त के बिना ये मुमकिन नहीं था. सो लड़का उस्ताद के पास गया और बहुत विनम्रता के उनसे अनुरोध किया के उसे सिर्फ एक बार सार्वजनिक प्रस्तुति की इजाजत दे दी जाए. काफी मनाने पर उस्ताद मान गए पर शर्त ये लगाई के वो ख़ुद भी उस समारोह में मौजूद रहेंगे. आख़िरकार उस्ताद और शागिर्द दोनो सम्मेलन में गए.


संगीतकार नौशाद अपने क़िस्सों के लिए ख़ूब मशहूर थे और रिकॉर्डिंग में माहौल बनाए रखते थे (फ़ाइल फोटो)
संगीतकार नौशाद अपने क़िस्सों के लिए ख़ूब मशहूर थे और रिकॉर्डिंग में माहौल बनाए रखते थे (फ़ाइल फोटो)

जब लड़का गाने आया तो उस्ताद मंच ने मंच के ठीक आगे अपना अंगौछा बिछाया और वहीं बैठ गए. लड़के के गाना शुरू करते ही लोग मस्त हो गए और दाद के रूप में मंच की तरफ फूल उछालने लगे. (उस दौर में दाद ऐसे ही दी जाती थी.) उस्ताद दाद के फूलों को क्रिकेट के खिलाड़ी की तरह हवा में लपक कर अंगौछे में रखने लगे. प्रदर्शन ख़त्म होने पर सम्मेलन में लड़के की धूम मच गयी. इतनी दाद मिली थी कि पूरा अंगौछा फूलों से भर गया था. उस्ताद ने उस अंगौछे को गठरी की तरह बांधा और पीठ पर लाद कर चलने लगे तो शागिर्द ने हैरत के साथ इसकी वजह पूछी. उस्ताद ने बेहद सहजता के साथ कहा कि इस गठरी में उसकी कला का मेहनताना बंधा है. इसी मेहनताने से वो गृहस्थी चलाएंगे, इसी से आटा-दाल आएगा, इसी से कपड़े सिलवाएंगे इसी से मकान की मरम्मत होगी. अब शागिर्द को माजरा समझ में आया. इसके बाद उस्ताद ने उसे झिड़कते हुए कहा कि इसीलिए सभाओं में गाने को मना किया था. यहां कला को सिर्फ तारीफ मिलती है, कलाकार की रोज़ी-रोटी के बारे में कोई नहीं सोचता.

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हिमांशु बाजपेयी
हिमांशु बाजपेयी

हिमांशु बाजपेयी. क़िस्सागोई का अगर कहीं जिस्म हो, तो हिमांशु उसकी शक्ल होंगे. बेसबब भटकन की सुतवां नाक, कहन का चौड़ा माथा, चौक यूनिवर्सिटी के पके-पक्के कान और कहानियों से इश्क़ की दो डोरदार आंखें.'क़िस्सा क़िस्सा लखनउवा' नाम की मशहूर क़िताब के लेखक हैं. और अब The Lallantop के लिए एक ख़ास सीरीज़ लेकर आए हैं. नाम है 'क़िस्सागोई With Himanshu Bajpai'. इसमें दुनिया जहान के वो क़िस्से होंगे जो सबके हिस्से नहीं आए. हिमांशु की इस ख़ास सीरीज़ का ये था क़िस्सा नंबर दो कम बीस, अठारह.




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