यह लेख डेली ओ से लिया गया है. जिसे लिखा है अशोक उपाध्याय ने. दी लल्लनटॉप के लिए हिंदी में यहां प्रस्तुत कर रही हैं शिप्रा किरण.
राष्ट्रपति बनने से पहले कोविंद ने जिस काम का विरोध किया था, अब वो खुद कर डाला
सच बात है, पॉलिटिक्स में कुछ भी हो सकता है.

राष्ट्रपति सचिवालय से 14 जुलाई को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई, जिसमें लिखा था - 'राष्ट्रपति ने राज्यसभा के लिए चार सदस्यों को मनोनीत किया है. वे चारों हैं- राम शकल, राकेश सिन्हा, रघुनाथ मोहपात्रा और सोनल मानसिंह. राम शकल की बात करें तो - ‘ये एक लोकप्रिय नेता हैं. उत्तर प्रदेश की जनता के प्रतिनिधि हैं. रॉबर्ट्सगंज संसदीय क्षेत्र से वे तीन बार सांसद रह चुके है.’

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 80 और प्रधानमंत्री की सलाह से इन चारों को राज्यसभा का मनोनीत सदस्य घोषित करते हुए भारत के राष्ट्रपति ने इन्हें अपनी शुभकामनाएं दीं. प्रेस रीलीज में आगे बताया गया है- संविधान के धारा 3 के अनुच्छेद 80 के अनुसार राज्यसभा के लिए वही लोग मनोनीत हो सकते हैं जो- साहित्य, विज्ञान कला या समाज विज्ञान के क्षेत्र में अपना विशेष स्थान रखते हों और इस क्षेत्र में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान भी दिए हों.’ असल में ये संगीतकारों, अभिनेताओं, कवियों या समाज सेवियों के लिए संसद तक पंहुचने का एक मौक़ा होता है. जो कोई चुनाव जीतकर संसद तक नहीं पहुंच सकते उनके लिए ये एक अवसर होता है. जिसके माध्यम से वे अपने अनुभवों से राजनीति को भी समृद्ध कर पाते हैं.


मनमोहन सिंह के कार्यकाल में मणिशंकर अय्यर का राज्य सभा के लिए मनोनयन सबसे विवादास्पद मनोनयन रहा है जब 2009 में वो लोक सभा चुनाव हार गए थे. तब भाजपा ने उनके मनोनयन का भारी विरोध किया था. साहित्य में मणिशंकर के योगदान को ध्यान में रखते हुए उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था. तब भाजपा प्रवक्ता रामनाथ कोविंद ने अनुच्छेद 80 का ज़िक्र करते हुए अय्यर के मनोनयन पर तमाम सवाल खड़े किए थे. उन्होंने कहा था कि जो इन श्रेणियों में आते हैं उन्हें ही इन पदों के अंतर्गत मनोनीत किया जाना चाहिए.
तब भाजपा प्रवक्ता रहे रामनाथ कोविंद ने कहा था कि मणिशंकर इस तरह की किसी भी श्रेणी में नहीं आते और वे कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता भी हैं. कोविंद ने आगे कहा था- मणिशंकर का मनोनयन संवैधानिक नियमों के खिलाफ है. कानून को ताक पर रखकर ये मनोनयन किया गया है. कांग्रेस अपनी सत्ता का दुरुपयोग कर रही है.’ 2010 में भाजपा के प्रवक्ता की भूमिका में कोविंद ने कांग्रेस के प्रतिबद्ध कार्यकर्ता के मनोनयन का विरोध किया था लेकिन अब 2018 में जब वे देश के राष्ट्रपति हैं तब भाजपा के इन सक्रिय कार्यकर्ताओं को राज्यसभा भेजने के लिए कैसे उन्होंने अपनी अनुमति दे दी. ऐसा लगता है जैसे राष्ट्रपति कोविंद ने उस सलाह पर ध्यान नहीं दिया जो कभी भाजपा प्रवक्ता कोविंद ने तब सत्ता में बैठे लोगों को दी थी.
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