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एक प्रेग्नेंट लड़की की डायरी: पार्ट-1

प्रेग्नेंसी से डर नहीं लगता साहब, उल्टी से लगता है!

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फोटो - thelallantop

अंकिता जैन. जशपुर छतीसगढ़ की रहने वाली हैं. पढ़ाई की इंजीनियरिंग की. विप्रो इंफोटेक में छह महीने काम किया. सीडैक, पुणे में बतौर रिसर्च एसोसिएट एक साल रहीं. साल 2012 में भोपाल के एक इंजीनियरिंग इंस्टिट्यूट में असिस्टेंट प्रोफेसर रहीं. मगर दिलचस्पी रही क्रिएटिव राइटिंग में. जबर लिखती हैं. इंजीनियरिंग वाली नौकरी छोड़ी. 2015 में एक नॉवेल लिखा. 'द लास्ट कर्मा.' रेडियो, एफएम के लिए भी लिखती हैं. शादी हुई और अब वो प्रेग्नेंट हैं. 'द लल्लनटॉप' के साथ वो शेयर कर रही हैं प्रेग्नेंसी का दौर. वो बता रही हैं, क्या होता है जब एक लड़की मां बनती है. पढ़िए पहली क़िस्त.

Cover नवीं क्लास की परीक्षा के बाद छुट्टियां शुरू ही हुई थीं, जब मेरी ज़िन्दगी का वो भूचाल भरा दिन आया था. मैं मंदिर से वापस आई तो उस दिन मां मेरे इंतज़ार में परेशान सी टेबल पर बैठी थीं, और मेरी मौसी जो उस दिन मेरे घर आई हुई थीं हमारे फ़ोन से मेरे रिश्तेदारों को फ़ोन कर करके किसी बात की बधाई दे रही थीं. मेरे लिए स्थिति थोड़ी असहज थी, जिसे मां ने और असहज बना दिया जब उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर पूछा था, "तुझे बाथरूम वाली जगह से खून आया तूने बताया क्यों नहीं ?"
मैं पहले थोड़ा डर गई और फिर रोने लगी. मौसी ने मुझे रोता देख तुरंत फ़ोन रखा और मुझे समझाने लगीं कि “पगली ये तो लड़की को सम्पूर्ण बनाता है, ये नहीं होता तो रोने वाली बात थी.. ये होना तो ख़ुशी की बात है." फिर धीरे-धीरे उस दिन मां और मौसी ने मुझे समझाया कि अगर पीरियड्स नहीं होंगे तो कोई लड़की कभी मां नहीं बन पाएगी.
उस दिन मुझे बहुत गुस्सा आया था कि ज़िन्दगी में एक बार मां बनने के लिए मुझे आने वाले लगभग 35 सालों तक हर महीने ये पीड़ा सहनी होगी, इससे तो बेहतर होगा कि मैं कोई बच्चा गोद ले लूं. लेकिन उस घटना के कुछ सालों बाद आज जब मैंने पहली बार अपने पेट में अपने बच्चे की हलचल महसूस की तो अब तक कष्ट में बिताए उन सारे महीनों का दर्द मिट गया. आने वाले हफ़्ते से मेरी प्रेग्नेंसी का पांचवां महीना शुरू होगा. अब तक का सफ़र आसान नहीं था, या ये कहना ठीक होगा कि बहुत मुश्किल था. उसी मुश्किल दौर की कहानी मैं किश्तों में आपके साथ बांटूंगी, जिसकी पहली किश्त में मैं उस तकलीफ़ के बारे में अपना अनुभव बताने जा रही हूं जिसे फिल्मों में मां बनने का पहला साइन दिखाया जाता है... यानि उल्टी होना. जवान लड़की अगर बिना किसी वजह के उल्टी करदे तो उसकी मां का माथा उल्टा हो जाता है, और न जाने कितने ही सवाल उसके मन में उलट पलट होने लगते हैं.
क्या आपने कभी किसी को उल्टी करते हुए देखा है ? मुंह से जो निकलता है सो ठीक है, लेकिन साथ में आंख-नाक से पानी के अलावा अंतड़ियां भी निकलने को होती हैं, ऐसा लगता है कि बस अभी पेट में ना पच पाए खाने के साथ पेट और आंतें भी बाहर निकल आएंगी.
"मुझे बचपन से सबसे ज़्यादा डर अगर किसी बीमारी से लगा है तो वो उल्टी ही है. मैं तब कुछ 10-11 साल की थी जब मेरी मां दोबारा मां बनने वाली थीं, उन्हें आए दिन होने वाली उल्टियों को देखकर मुझे लगता था कि मां के पेट में जो मेरा भाई या बहन है वो भी किसी दिन इसी उल्टी के साथ बाहर निकल आएगा, लेकिन शुकर है कि वैसा कुछ नहीं हुआ, और एक दिन अस्पताल से मेरा भाई निकला." ये किस्सा मेरी एक सहेली जो मेरी ही तरह उल्टी से बहुत डरती थी, ने हॉस्टल के दिनों में हंसी से लोट-पोट होते हुए सुनाया था. तब हम हंसे ज़रूर थे, लेकिन मन से उल्टी का डर नहीं निकला था, और अब प्रेगनेंसी के पहले महीने से ही होने वाली उल्टियों ने मेरे उस डर को राक्षस बना दिया. जब भी उल्टी होती मेरी हालत ख़राब हो जाती, प्रेग्नेंसी के हफ्ते बढ़ने के साथ-साथ जैसे जैसे यूट्रस बढ़ी, ब्लाडर पर प्रेशर बढ़ने से हर बार उल्टी करते वक़्त नीचे से भी कपड़े गीले होने से मन कड़वा हो जाता. उल्टी होना या उसकी फीलिंग होना ही एक होरिबल मोमेंट बन गया है. मन के किसी कोने से उस दबे हुए राक्षस की आवाज़ आती कि कहीं मेरा बच्चा भी किसी दिन इसी उल्टी के साथ बाहर तो नहीं निकल जाएगा.
नाक की सूंघने की बढ़ती क्षमताओं ने मेरे अंदर उबकाई का कीड़ा घुसा दिया था, खाने के नाम से ही उल्टी आती थी, और जो ना पसंद हो वो तो खाते ही निकल जाता.. ऐसे में मन और दिमाग दोनों काम करना बंद कर देते हैं, ख़ासकर कि जब आप ससुराल में हो, जहां भले ही सब अच्छा हो लेकिन मन में उलझन रहती है. आप सास की किसी काम में मदद कराने के लायक नहीं बचते, जो नापसन्द हो उसे नहीं खाना है ये खुलकर नहीं कह पाते. ऐसे में खाओ तो मरो और ना खाओ तो मरो वाली स्थिति हो जाती. पूरे घर में आप हर वक़्त मुंह पर हाथ रखकर घूम रहे होते हैं, और उबकाई को छुपाते फिर रहे होते हैं. सौंफ मिश्री खाकर या कुछ ब्रीथिंग एक्सरसाइज करके अपनी उल्टी को कंट्रोल करने की असफल कोशिश कर रहे होते हैं.
ऐसे में मायके की बहुत याद आती है. मुझे भी आ रही थी, लेकिन धीरे-धीरे माहौल बदलने लगा. जैसे ही मुझे उल्टी होती सब मेरे आस-पास मेरी देखरेख के लिए खड़े रहते, जो उस वक़्त उल्टी से हिली अंतड़ियों पर कुछ मलहम का काम करता. पति हर तीसरे मिनट मेरा हाल पूछता. बाथरूम में कुर्सी लगा दी जाती ताकि उल्टी करते वक़्त ज़ोर न पड़े. और जो उल्टी से पैदा होने वाली शर्म, झिझक को मिटाने की सबसे बड़ी वजह बनी वो थी उस दौरान मिला खुले दिल से अपनापन. मुझे सबसे ज़्यादा झिझक होती थी कि उल्टी की तो उसे साफ़ कौन करेगा, क्योंकि मुझे उल्टी देखकर और उल्टी होती है. जिस डर से मैं उल्टी आने की संभावना भांपते ही बाथरूम में पॉट की तरफ भागती, लेकिन फिर एक दिन कंट्रोल ना कर पाने की वजह से बाथरूम तक पहुंच नहीं पाई और आंगन में ही उल्टी करदी. तब पति ने मुझे संभालकर बैठाते हुए कहा, "तुम आराम करो, मैं साफ़ कर दूंगा. तुम देखोगी तो तुम्हें और उल्टी होगी."
जब आप मां बनने के दौरान अपने अंदर हो रहे बदलावों से जूझ रहे होते हैं, तब इस तरह का सपोर्ट हर तरह की तकलीफ़ और परेशानी से राहत दिलाता है. इस एक छोटे से इंसिडेंट ने मेरे अंदर से उल्टी को लेकर पैदा होने वाले डर, झिझक और शर्म तीनों को शायद हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया. बात छोटी है लेकिन मेरी ही तरह शायद एक मां बनती औरत के लिए इसके मायने बड़े होंगे.
बायोलोजिकली गर्भावस्था में उल्टी होना सामान्य बात है, जो एक गर्भवती महिला को चौथे हफ्ते से शुरू हो जाती हैं. किसी किसी को छठे हफ्ते से भी शुरू होती हैं. अधिकतर केसेस में यह चौदहवें सप्ताह से कम होना या ख़त्म होना शुरू हो जाती हैं, लेकिन किसी किसी को पूरी गर्भावस्था के दौरान भी रहती हैं. मेरे आस-पास की कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जो लेबर रूम के बाहर उल्टी करने के बाद अन्दर गयी हैं. उल्टी होने के कुछ विशेष कारणों में HCG और Estrogen हारमोंस का शरीर में बढ़ना, नाक का सुगंध के प्रति ज्यादा सेंसिटिव होना. पाचन शक्ति का धीमा होना. स्ट्रेस आदि कोई भी कई कारण हैं, लेकिन उल्टी के लिए आपको तब तक परेशान होने की ज़रुरत नहीं है जब यह बहुत ज्यादा ना हो रही हों. गर्भावस्था में हद से ज्यादा उल्टियां होना भी खतरे की, माता में कुपोषण या किसी अन्य शारीरिक कमी की निशानी हो सकती है, इसलिए हद से ज्यादा उल्टियां होने पर तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें.
मैंने अब कुछ हद तक उल्टी से राहत पा ली है, हालांकि नाक अभी भी कुत्ते की ही है. कई तरह की सुगंध नाक में घुसते ही उबकाई आती है, पर उल्टियां कुछ हद तक कम हो गई हैं. उम्मीद करती हूं आपकी गर्भावस्था भी उल्टी से जल्दी निजात पा ले. कोशिश करिए उन चीज़ों को पहचानने की जिनसे आपको उल्टी होती है और उनसे बचने की कोशिश कीजिए.
चलिए फिर मिलते हैं जल्दी ही... अगली किस्त में अपनी गर्भावस्था के शुरू के हफ़्तों के बारे में कुछ बातें बताऊंगी.. तब तक के लिए Happy Pregnancy.