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जब वित्त मंत्रालय के अंदर मिली 'जासूसी चूइंगम' से प्रणब और चिदंबरम में अनबन की खबरें चिपकने लगी थीं

बीजेपी ने इस मामले को 2 टॉप मंत्रियों में मतभेद करार दिया था

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प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम मनमोहन सिंह सरकार के दो सबसे बड़े चेहरे थे
22 जून 2011. उस दिन सुबह-सुबह जिसके भी हाथ में इंडियन एक्सप्रेस अखबार आया, वो हेरान रह गया. अखबार में स्तब्ध कर देने वाली एक खबर थी. खबर देश के दो सीनियर कैबिनेट मंत्रियों के बीच आपसी अविश्वास इतना बढ़ जाने का आभास दे रही थी कि एक मंत्री को दूसरे पर जासूसी कराने का शक हो रहा था.
आखिर क्या था पूरा मामला? आइये जानते हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उस समय वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी ने कुछ महीने पहले शक जताया था कि उनके दफ्तर की सुरक्षा में सेंध लगी है. प्रणब ने सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से कहा था कि वह मामले की उच्च-स्तरीय जाँच कराएं. अखबार का दावा था कि मनमोहन सिंह को यह चिट्ठी एक साल पहले 7 सितंबर को भेजी गई थी. इसमें प्रणब ने लिखा था कि वित्त मंत्रालय में उनके दफ्तर में 16 जगहों पर चिपकने वाले पदार्थ पाए गए थे. शक है कि मंत्रालय के अंदरूनी कामकाज पर बदनीयती से नजर रखने की कोशिशें की जा रही है.
अखबार की रिपोर्ट में बताया गया था कि फाइनेंस मिनिस्ट्री के अंदर जिन 16 जगहों पर चिपकने वाले ये पदार्थ मिले थे, उनमें वित्त मंत्री, सलाहकार ओमिता पॉल, निजी सचिव मनोज पंत के दफ्तर और वित्त मंत्री द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले दो कॉन्फ्रेंस रूम शामिल थे. हालांकि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी का कहना था कि चिपकने वाले पदार्थों के साथ किसी तरह का माइक्रोफोन या रिकॉर्डिंग डिवाइस नहीं मिले थे.
अखबार के मुताबिक, चिपकने वाले पदार्थों की मौजूदगी का पता तब चला था, जब केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने प्राइवेट डिटेक्टिव की टीम से वित्त मंत्रालय की छानबीन कराई थी.
सीबीडीटी के सूत्रों के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने यह भी लिखा था-
'वित्त मंत्री के टेबल पर तीन जगहों पर चिपकने वाले पदार्थ पाए गए थे, इनमें से एक पर ऐसे निशान मिले थे, जिससे वहां किसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के चिपकाए जाने का शक हो रहा था.'
मामले की गंभीरता को देखते हुए इंटेलिजेंस ब्यूरो से जाँच कराई गई. आईबी के अधिकारियों ने उस चिपकने वाले पदार्थ को कथित तौर पर चूइंगम करार दिया था. लेकिन सीबीडीटी ने आईबी के दावे के ठीक उलट दावे किए. और माना कि 'चिपकने वाले पदार्थ जानबूझकर दफ्तर में लगाए गए थे.'
खबर बाहर आते ही हंगामा हो गया. ये आरोप ऐसे समय सामने आए थे, जब उस वक्त के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और गृह मंत्री पी. चिदंबरम के संबंधों में कड़वाहट की खबरें पहले से ही मीडिया में सुर्खियाँ बटोर रही थीं. इस कथित कड़वाहट का जो स्वाभाविक कारण मीडिया रिपोर्टस में सामने आया था, वो यह कि 'सरकार में गृह मंत्री का पद आमतौर पर प्राथमिकता में नंबर-2 माना जाता रहा है. (आज भी अमित शाह की हैसियत मोदी कैबिनेट में नंबर-2 की ही है) लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार में गृह मंत्री न होने के बावजूद यह दर्जा प्रणब मुखर्जी को हासिल था. और खबरों पर यकीन करें तो यह बात पी. चिदंबरम को खटकती रहती थी. प्रणब को यह दर्जा इसलिए भी हासिल था क्योंकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के राज्यसभा सदस्य होने के कारण वह लोकसभा में सदन के नेता भी थे. इसके अलावा, दो दर्जन से ज्यादा empowered group of ministers यानी E-GoM की अध्यक्षता भी कर रहे थे. ये E-GoM अलग-अलग लेकिन महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर गठित किए गए थे.
लेकिन इस कथित जासूसी विवाद के सामने आने के बाद दोनों वरिष्ठ मंत्रियों के कथित मतभेदों पर खुलकर चर्चा होने लगी थी. बवाल मचना स्वाभाविक था. विपक्ष को भी बैठे-बिठाए सरकार पर हमला करने का मौका हाथ लग गया. लोकसभा में उस वक्त की विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा था,
 "वित्त मंत्री इस मुद्दे पर जो चाहें कहें लेकिन 'चूइंगम थ्योरी' आसानी से गले नहीं उतरती. यह मामला चाहे कुछ भी हो लेकिन इसकी जांच होनी ज़रूरी है.."
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सुषमा स्वराज 2009 से 2014 के बीच लोकसभा में विपक्ष की नेता थीं

आईबी और सीबीडीटी की जांच के संदर्भ में तब भाजपा के प्रवक्ता रहे शाहनवाज हुसैन ने भी कहा था-
'अब तो प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के बीच मतभेद होने के सुबूत सामने आ रहे हैं. यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या वित्त मंत्री को गृह मंत्री और उनके गृह मंत्रालय की जाँच एजेंसियों पर भरोसा नहीं रह गया है, जो उन्हें निजी जांचकर्ताओं की मदद लेनी पड़ी.'
हालांकि कुछ दिनों के बाद वित्त मंत्रालय में जासूसी की आशंका वाली इस खबर पर प्रणब मुखर्जी की प्रतिक्रिया आ गई. तब प्रणब ने अपनी ओर से स्पष्टीकरण देते हुए कहा था,
"आईबी ने इस मामले की जांच की है और मैं साफ करना चाहूंगा कि उसे वहां कुछ नहीं मिला था." 
यह कहकर प्रणब मुखर्जी ने मामले को रफा-दफा करने की कोशिशें भले ही की थीं लेकिन इस सवाल का जवाब आज तक नहीं मिल पाया कि 'आखिर वित्त मंत्री के दफ्तर में प्राइवेट जासूसों को क्या खोजने के लिए लगाया गया था? मामला सुरक्षा में सेंध का था लेकिन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इसकी जानकारी गृह मंत्री पी चिदम्बरम को क्यों नहीं दी थी?' वित्त मंत्री ने सीधे पीएम से इसकी शिकायत क्यों की? और आखिर में सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर वो शख्स कौन था, जो वित्त मंत्रालय पर कथित रूप से नजर रख रहा था?'


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