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PM मोदी के फ़्रांस दौरे से भारतीय नेवी को क्या फायदा होने वाला है?

फ्रांस भारत को बड़ी संख्या में हथियार सप्लाई करता है.

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PM मोदी ने पेरिस की बैस्टिल डे परेड में गेस्ट ऑफ ऑनर की हैसियत से शिरकत की

60 के दशक में महाराष्ट्र के पालघर में परमाणु ऊर्जा सयंत्र लगता है. तारापुर एटॉमिक पावर स्टेशन. ये देश का पहला कमर्शियल न्यूक्लियर पावर स्टेशन था. ये परियोजना अमेरिका के सहयोग से अस्तित्व में आई थी. लेकिन 1974 में जब भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया गया, अमेरिका सहित पूरे पश्चिम ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिए. अमेरिका ने तारापुर प्लांट के लिए न्यूक्लियर फ्यूल की सप्लाई बंद कर दी. उत्पादन ठप होने वाला था. उस वक्त अपने दोस्तों की लीक से अलग होकर एक देश आगे आता है और तारापुर पावर प्लांट के लिए न्यूक्लियर फ्यूल देता है. संकट के समय मदद का हाथ बढ़ाने वाला वो देश था - फ्रांस. और फ्रांस के साथ भारत का ये पहला सिविल न्यूक्लियर समझौता था.

वैसे तो आज़ादी के बाद से ही फ़्रांस ने भारत के साथ राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए थे. तय हुआ कि भारत में फ़्रांस के कब्ज़े वाले इलाके के लोग अपना भविष्य ख़ुद चुनेंगे. अगस्त 1962 में दोनों देशों ने एक नई संधि की. इसके तहत फ़्रांस ने अपने कब्जे वाले क्षेत्रों को भारत को सौंप दिया. इममें पॉन्डिचेरी भी शामिल था.

लेकिन 1974 वो साल था, जब दोनों देशों के सामरिक दोस्ती की नींव पड़ी. और वो दोस्ती आज एक नए मुकाम पर पहुंच गई है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज पेरिस में बैस्टिल डे परेड में गेस्ट ऑफ ऑनर की हैसियत से शिरकत की. दोनों देशों के बीच अहम समझौते होने वाले हैं.

प्रधानमंत्री के फ्रांस दौरे पर एक बात बार-बार दोहराई जा रही है. कि इसी बरस भारत और फ़्रांस के रणनीतिक साझेदारी के 25 साल भी पूरे हो रहे हैं. इन 25 सालों की एक मुकम्मल कहानी है, लेकिन जैसा कि हमने अभी बताया, सामरिक महत्व के विषय में भारत-फ्रांस संबंध कहीं पुराने हैं. इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुए परमाणु परिक्षण के बाद फ्रांस ने किस तरह से हमारी मदद की थी, इसकी कहानी हमने आपको शुरुआत में ही बताई. एक किस्सा और है. जून 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया. परमाणु परीक्षण के बाद से पश्चिम तो खफा था ही. मगर फ़्रांस इससे अलग रहा. 1976 में जैक शिराक ने भारत का दौरा किया. शिराक उस समय फ़्रांस के प्रधानमंत्री हुआ करते थे. उनसे भारत में इमरजेंसी के बारे में सवाल पूछा गया. तो शिराक ने जवाब दिया- ये भारत का इंटरनल मैटर है.

यही शिराक 1995 में फ़्रांस के राष्ट्रपति बन गए. तीन बरस बाद भारत ने दूसरा परमाणु परीक्षण किया. अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. उन दिनों एक फ्रेंच प्रतिनिधिमंडल भारत आने वाला था. दिल्ली इस सोच में थी, कि ये दौरा रद्द तो नहीं हो जाएगा. लेकिन फ्रांस एक बार फिर लीक से हटकर चला. दौरा रद्द नहीं हुआ और 1998 में ही शिराक भी भारत आए.

शिराक 2007 तक फ़्रांस के राष्ट्रपति रहे. इसी दौरान दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर डील का मंच भी तैयार हुआ. 2008 में भारत और फ्रांस के बीच न्यूक्लियर समझौता हुआ था. 1974 के परमाणु परीक्षण की वजह से लगे प्रतिबंधों के 34 साल बाद नई दिल्ली को पहली ऐसी डील मिली थी जिससे देश में परमाणु ईंधन की आपूर्ति को बढ़ाया जा सके. तब फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोज़ी थे, जो 2008 की गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि थे.

इसके बाद से लगातार दोनों देशों के नेता एक दूसरे के यहां जाने लगे -
>2009 में मनमोहन सिंह को बास्तील डे परेड में गेस्ट ऑफ़ ऑनर बनाया गया. इसी परेड के लिए प्रधानमंत्री मोदी आज पेरिस में थे.
> इसके बाद फ्रांस के लगभग सभी राष्ट्रपति कभी न कभी भारत आए. निकोलस सरकोजी दोबारा आए, फ़्रांस्वा ओलांद आए और इमैन्युअल मैक्रों भी. बदले में प्रधानमंत्री मोदी ने भी कम से कम आधा दर्जन यात्राएं की. कभी एजेंडा द्विपक्षीय रहा, तो कभी क्लाइमेट समिट, तो कभी G7 की बैठक.

एक और बात है. आमतौर पर हम हथियारों के आयात का विषय आते ही अमेरिका या रूस के बारे में सोचते हैं. लेकिन इस मामले में फ्रांस बहुत बड़ा सहयोगी है. Stockholm International Peace Research Institute (SIPRI) के मुताबिक 2018 से 2022 के बीच भारत के 30 फीसद डिफेंस इंपोर्ट फ्रांस से थे. और ये सहयोग आज से नहीं है, बहुत पुराना है.

1978 में भारतीय वायुसेना के लिए जैगुआर अटैक जेट्स को खरीदा गया, जो कारगिल युद्ध में इस्तेमाल किए गए, आज भी सेवा में हैं. ये एक एंग्लो फ्रेंच डिज़ाइन था. माने ब्रिटेन और फ्रांस ने मिलकर बनाया था. फिर हमने 1982 में मिराज 2000 फाइटर जेट लिए, ये फ्रेंच कंपनी दासौ के बनाए थे. बालाकोट स्ट्राइक के लिए हमने इन्हीं विमानों का इस्तेमाल किया था. 2005 में हमने फिर एक फ्रेंच कंपनी नेवल ग्रुप के साथ करार किया. इसके तहत नेवल ग्रुप को मुंबई के मज़गांव डॉक लिमिटेड के साथ मिलकर 6 स्कॉरपेन पनडुब्बियां बनानी थीं. जुलाई 2023 तक इनमें से 5 नौसेना को मिल चुकी हैं और छठवी के ट्रायल चल रहे हैं. ये इस साल के अंत या अगले साल की शुरुआत तक नौसेना को मिल जाएगी. हम इन्हें कलवरी क्लास पनडुब्बी कहते हैं.

2015 में भारत ने फ्रांस की दासौ से फिर फाइटर जेट खरीदे - रफाल. 36 की बात हुई थी, सब के सब वायुसेना को मिल चुके हैं. और भारत एक रिपीट कस्टमर की तरह दासौ और नेवल ग्रुप से, या कहिए फ्रांस से 24 रफाल M और 3 स्कॉर्पेन पनडुब्बियां खरीद रहा है. प्रधानमंत्री मोदी जब फ्रांस के लिए रवाना हो गए थे तब ये खबर आई कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाले डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल (DAC) ने इन दोनों सौदों को मंजूरी दे दी है. जिस खरीद को लेकर औपचारिक समझौता प्रधानमंत्री के फ्रांस दौरे पर होना था.

ये दोनों नेवी के लिए कितने जरूरी है अब इसको भी विस्तार से समझते हैं.
भारतीय नौसेना के पास दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं - INS विक्रमादित्य और INS विक्रांत. विक्रमादित्य से MiG 29 K विमान ऑपरेट करते हैं. बीते दिनों जब INS विक्रांत नौसेना में शामिल हुआ, तो एक अजीब स्थिति बनी. कैरियर तो मिल गया, लेकिन एयरक्राफ्ट अभी तक नहीं आए हैं. इसीलिए हम विक्रांत से भी मिग 29 K ही ऑपरेट कर रहे हैं. भारतीय नौसेना इसी से बचना चाहती थी. इसीलिये वो लंबे समय से 57 नेवल फाइटर खरीदने की कोशिश कर रही है.

दिक्कत ये है कि नेवल फाइटर एक बेहद जटिल तकनीक वाला विमान होता है. इसीलिए दुनिया में ईन-मीन-तीन लोग ही इन्हें बना पाते हैं. रूसी फाइटर हम खरीदना नहीं चाहते थे, क्योंकि उनसे जैसे प्रदर्शन की उम्मीद थी, वो मिला नहीं. तो हमने बाकी दो बड़े खिलाड़ियों - अमेरिका और फ्रांस की तरफ देखा. अमेरिका में बोइंग और फ्रांस में दासौ से कहा गया कि आइए और हमारे यहां डेमो दीजिए. 2022 में बोइंग अपना FA 18 सूपरहॉर्नेट और दासौ अपना रफाल M लेकर गोवा स्थित नौसेना के फाइटर बेस - INS हंसा पर पहुंचे. यहां नौसेना ने दोनों विमानों को अपनी ज़रूरतों के हिसाब से टेस्ट करके देखा.

2023 की शुरुआत में ये जानकारी प्रेस में लीक हुई, कि नौसेना ने सरकार से रफाल M पर मुहर लगाने को कहा. इसके पीछे एक कारण ये बताया गया कि वायुसेना पहले से रफाल फाइटर उड़ा ही रही है. तो हमें ट्रेनिंग, मेंटेनेंस और रिपेयर आदि में अपने अनुभव का फायदा मिलेगा. ये एक बड़ी वजह है कि हम अमेरिका की जगह फ्रांस से नेवल फाइटर ले रहे हैं, जबकि बोइंग ने जो लाल कालीन बिछाया था, उसे इग्नोर करना बहुत मुश्किल था.

रफाल और रफाल M सुनने में एक जैसे लगते हैं और कुछ मायनों में हैं भी. लेकिन ये दोनों बहुत अलग-अलग फाइटर जेट हैं. रफाल M वो सारे काम कर सकता है, जो वायुसेना वाला रफाल कर सकता है, लेकिन वो ये सब करते हुए एक ढाई सौ मीटर लंबे जहाज़ से टेक ऑफ कर सकता है और लैंड भी कर सकता है. एक तैरते हुए नौसैनिक अड्डे पर उतरने के लिए इसमें एक हुक लगा है, जिसकी मदद से ये एक वायर के सहारे सेकंड्स में रुक जाता है. इसके पांव, माने लैंडिंग गियर इतने मज़बूत हैं कि ये जहाज़ पर उतरने से लगने वाला झटका सह सकता है. हवा में अगर किसी दूसरे जेट को फ्यूल की ज़रूरत पड़े, तो अपना फ्यूल उसे उड़ते उड़ते ट्रांसफर कर सकता है. ये सारी खूबियां IOR माने इंडियन ओशियन रीजन में भारत की रक्षा ज़रूरतों के मद्देनज़र बेहद ज़रूरी हैं.

अब आते हैं स्कॉरपेन या कलवरी पनडुब्बी पर. स्कॉरपेन का मतलब स्कॉर्पियन माने बिच्छू नहीं है. पहले हमें भी यही लगता था. बाद में मालूम चला कि स्कॉर्पेन एक ज़हरीली मछली होती है, जो समंदर में पाई जाती है. इसपर ज़हरीले कांटे होते हैं. तो समंदर में सब इससे बचकर रहते हैं. जैसा हमने बताया, 6 पनडुब्बियों का सौदा 2005 में हो गया था. तब से अब तक - माने 18 साल से भारत ने एक भी अटैक सबमरीन का सौदा नहीं किया. बस बातें होती रहीं, प्रोजेक्ट 75, प्रोजेक्ट 75 I, प्रोजेक्ट 75 A, प्रोजेक्ट 76. लेकिन सब तय करके पनडुब्बी बनना शुरू हुई हो, ये नहीं हो पाया. कई विशेषज्ञ मानते हैं कि ये एक बड़ी सामरिक चूक थी, क्योंकि इस दौरान न सिर्फ चीन, बल्कि पाकिस्तान ने भी पनडुब्बियों पर बहुत ध्यान दिया.

दूसरी दिक्कत ये थी, कि मज़गांव डॉक लिमिटेड, जहां फ्रांस और भारत मिलकर पनडुब्बी बना रहे थे, वहां स्कॉरपेन वाली प्रॉडक्शन लाइन खाली हो गई थी. क्योंकि सारी पनडुब्बियों का प्रॉडक्शन पूरा हो गया था. हमारे इंजीनियरों ने सालों लगाकर जो महारथ हासिल की, उसके यूं ही ज़ाया होने का खतरा था. फिर हमारी पुरानी पनडुब्बियां उम्र के चलते रिटायर होती रहीं. और अब तो कुछ सालों में स्कॉर्पेन पनडुब्बियां भी रीफिट के लिए जाएंगी, माने तब वो महीनों सेवा से बाहर होंगी. ऐसे में नौसेना के पास पनडुब्बियों का भारी संकट खड़ा हो गया था, वो भी तब, जब भारत के प्रतिद्वंद्वी तेज़ी से अपनी ताकत बढ़ा रहे थे.

आज प्रधानमंत्री परेड में शामिल हुए, तो वो रफाल भी परेड का हिस्सा थे, जो हमने फ्रांस से लिए, और वो रेजिमेंट भी परेड का हिस्सा थी, जिसके सैनिक महायुद्धों में मित्र देशों की तरफ से लड़े - सिख रेजिमेंट. एक नौसैनिक टुकड़ी भी गई थी. इसका मतलब, न फ्रांस ने मेहमान नवाज़ी में कोई कोताही की, न हमने अपनी ओर से कोई कसर छोड़ी.

वीडियो: दुनियादारी: PM मोदी के फ़्रांस दौरे से भारत को रफ़ाल और ख़तरनाक पनडुब्बियां मिल जाएंगी?