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ये बुर्कीनी क्या है, जो मुस्लिम औरतों को नहीं पहनने दी जा रही

बुर्कीनी पर फ्रांस में रोक लगाई जा रही है. वहां एक बुर्कीनी डे मनाया जाना है.

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ऐसी दिखती है बुर्कीनी. source Reuters
अभी दुनिया भर में बुर्के पर बहस थमी नहीं थी. अब बुर्कीनी आ गई. लेकिन ये बुर्कीनी है क्या ? जब बुर्के और बिकिनी की शादी हो जाती है तो बुर्कीनी पैदा होती है. बुर्कीनी मतलब एक तरह का स्विम सूट. जो जिस्म को पूरी तरह से कवर कर लेती है. फ्रांस के शहर मार्सेय में मुस्लिम औरतों के लिए बुर्कीनी डे मनाने की तैयारी हो रही है. इसमें मुस्लिम औरतें बुर्कीनी पहनकर वाटरपार्क जा सकेंगी. सेकुलर फ्रांस में इसी बात का विरोध हो गया. इवेंट पर रोक लगाने की बात होने लगी. क्योंकि फ़्रांस में पब्लिक पैलेस में बुर्का बैन है ये तो पता ही होगा. ये इवेंट 10 सितंबर को होना है. कहा जा रहा है कि बुर्का इस्लामी तानाशाही का सिंबल है जो किसी भी तरह की बुर्कीनी से खत्म नहीं होने वाला. ये बुर्के को बढ़ावा देने वाली है. बीच पर जाना है तो बिकिनी में ही जाएं.
आहीदा ज़नेती, जो बुर्कीनी की डिज़ाइनर हैं, कहती हैं, 'केवल मुस्लिम औरतें ही पर्दा नहीं करतीं. और भी शर्मदार लड़कियां होती हैं, जो बीच पर जाना चाहती हैं, पर बिकिनी नहीं पहनना चाहतीं. और फिर यह स्विम सूट केवल हया के लिए ही नहीं, यह आप की स्किन को धूप, रेत से भी बचाता है.'
कोई अगर औरत बुर्कीनी पहनती है तो इसमें किसी को क्या दिक्कत है. कोई औरत बिकिनी पहनकर बीच पर नहीं जाना चाहती तो इसमें आप क्यों परेशान हो रहे हैं. औरत की मर्जी है वो साड़ी में जाए या स्विम सूट में. आप किसी को बिकिनी में ही जाने के लिए फोर्स कैसे कर सकते हो. बुर्कीनी पर रोक हो या फिर बुर्के पर, ये रोक भले ही आप कट्टरपंथ को खत्म करने के लिए लगाएं, लेकिन मैसेज कुछ और ही जाता है. इस पाबंदी को औरत अपने धर्म से जोड़कर देखने लगती है. वो ये नहीं सोचती कि ये उनकी आजादी की बात है, बल्कि उसके मन में ये बात घर कर जाती है कि ये तो उसके धर्म पर पाबंदी है.
मैंने खुद देखा है कि मुस्लिम आपस में इस्लाम को लेकर मजाक करते हैं. फनी बात करते हैं. बुर्के को कैद बताया जाता है, लेकिन जब बुर्के पर पाबंदी लगती है तो उसका विरोध होता है, क्योंकि वो धर्म पर पाबंदी से जोड़कर देखा जाने लगता है.
अगर बुर्के की बात की जाए तो ये भी मेरा अपना अनुभव है कि मेरे अपने गांव की बहुत सारी औरतें बुर्का नहीं पहनती. या तो सिर से दुपट्टा ओढ़ लेती हैं. या फिर चादर. हां ऐसा भी देखा है कि जो गांव में बुर्का नहीं उतर पाती वो दिल्ली आकर उतार लेती हैं और गांव में ओढ़ लेती हैं, उन्हें वो कैद लगती है, लेकिन कुछ ऐसी भी हैं जो खुद को बिना बुर्के के नहीं रखना चाहतीं. अगर यहां भी बुर्के पर पाबंदी लगाई जाती है तो ये उन्हें अपनी आजादी की बात नहीं लगेगी. बल्कि उन्हें ये धर्म विरोधी फरमान लगेगा. फ्रांस में आज मुस्लिम औरतें क्यों बुर्कीनी पहनना चाहती हैं वो यही वजह है. उन्हें लगता है कि ये इस्लाम पर हमला है.

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