ये तो खैर अपनी जगह है. जो बुरा है वो ये कि जो गोरा नहीं है, उसे बदसूरत माना जाता है. उसका मजाक उड़ाया जाता है. ऐसा ही नजारा देखने को मिला किसी दोस्त की पार्टी में नहीं, नेशनल टीवी पर. जिसे पूरा देश देखता है.
एक बार 'कॉमेडी नाइट्स बचाओ' शो में फिल्म 'पार्च्ड' की टीम प्रमोशन करने पहुंची. वहां फिल्म की एक्ट्रेस तनिष्ठा चैटर्जी का 'रोस्ट' के नाम पर भद्दा मजाक उड़ाया गया. पहले तो बता दें कि रोस्ट क्या होता है. इसमें किसी बड़े और फेमस व्यक्ति को बुलाकर उसका मजाक उड़ाते हैं. मजाक इस नीयत से नहीं होता, कि गेस्ट हर्ट हो. बल्कि इस नीयत से होता है कि जो दर्शक हैं, वो मजे ले सकें. यानी रोस्ट के नाम पर किसी को गरिया देना कॉमेडी नहीं होती. लेकिन तनिष्ठा के साथ बेहूदे जोक्स मारे गए उनके रंग पर.

पढ़िए क्या लिखा तनिष्ठा ने क्या जवाब दिया:
कल कुछ ऐसा हुआ, कि मैं अब तक शॉक में हूं. मुझे 'कॉमेडी नाइट्स बचाओ' नाम के एक पॉपुलर कॉमेडी शो में बुलाया गया था, मेरे फिल्म 'पार्च्ड' के प्रमोशन के लिए, डायरेक्टर लीना यादव और मेरी साथी एक्टर राधिका आप्टे के साथ. मुझसे बताया गया था कि शो कॉमेडी है. जिसका मकसद है ह्यूमर, रोस्ट और लोगों को आहत करना. रोस्ट की परिभाषा मैंने टीवी शो 'सैटरडे नाईट लाइव' से सीखी थी. और मुझे ये पता था कि रोस्ट का मतलब होता है किसी को उसका मजाक उड़ाते हुए सम्मानित करना. ये 'टोस्ट' पर व्यंग्य है. और मैं यही सोचकर आई थी कि यहां मुझे रोस्ट किया जाएगा.
शो शुरू हुआ. मेरे लिए ये जानना नया था कि रोस्ट का मतलब बुली करना होता है. और जल्द ही मुझे पता चल गया कि मेरे बारे में मज़ाक उड़ाने वाली कोई बात है तो वो मेरा रंग है. ये ऐसे शुरू हुआ, 'आपको तो जामुन बहुत पसंद होगा. कितना जामुन खाया आपने बचपन से?' और इसी दिशा में बढ़ता चला गया. एक दबे रंग की एक्ट्रेस के बारे में अगर उन्हें कोई मजाक उड़ाने लायक चीज दिखी तो वो उसका रंग था. वो केवल इसी से मेरी पहचान कर पा रहे थे. मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं 2016 में मुंबई जैसे शहर में बने एक ऐसे स्टूडियो में बैठी हूं जहां कॉमेडी के माने रंगभेदी बातें करना है. मेरा दम घुटने लगा. लेकिन मैंने सोचा एक मौका और देती हूं. जब ये नहीं रुका तो मैं उठकर चली आई. जब मैंने आयोजकों को बताया कि मुझे क्या तकलीफ है, उन्होंने मुझसे कहा कि हमने तो आपको बताया था कि ये एक 'रोस्ट' है. मैंने भी उन्हें समझाया कि रोस्ट और बुली करने में फर्क होता है. कॉमेडी भेदभाव से नहीं की जाती. पर मुझे नहीं लगता वो इस बात को समझ पाए.तनिष्ठा पूणे, महाराष्ट्र की रहने वाली हैं.
मेरे दोस्तों ने भी मुझसे कहा, कि इसे सीरियसली न लूं. ये तो बस कॉमेडी है. मुझे लगता है कि शो की भी सोच यही है. ये मौज मस्ती जैसा है. बस बात इतनी है कि इस बारे में कुछ भी फनी नहीं है. क्योंकि जिस देश में आज भी गोरा ही सुंदर है, जहां लोगों को उनके रंग की वजह से नौकरी नहीं मिलती, जहां शादी के हर इश्तेहार में दूल्हा-दुल्हन के रंग की बात होती है. इस समाज की बहुत सारी समस्याएं रंगभेद की वजह से हैं. और ये जाति भेद से उपजता है. ये सोचना कि काले रंग पर जोक बनाए जा सकते हैं, एक भेदभाव करने वाली मानसिकता से उपजता है.
मैंने ये समझाने की कोशिश की कि ये मेरा पर्सनल मुद्दा नहीं बल्कि समाज के तौर पर एक बड़ा मुद्दा है, ये हमारी मानसिकता का दोष है और समाज में पनप रहे भेदभाव के आधार पर ह्यूमर बनाना एक बेहूदी हरकत है. मसला ये नहीं कि आप मुझसे माफ़ी मांग लें. लेकिन इस विचार को बढ़ावा देते रहना अपने आप में एक दिक्कत है. खासकर जब वो एक टीवी चैनल के पॉपुलर कॉमेडी शो के जरिए हो रहा हो. ये मेरा पर्सनल मसला नहीं बल्कि बड़ा मुद्दा है, कि किसी के काले होने पर मजाक बनाना फनी कैसे हो जाता है. 2016 में भी सफ़ेद चमड़ी का हैंगोवर क्यों है? क्या हमारा रंग दबा होने पर एक देश के तौर पर हमारा मान कम हो जाता है? एक बार मुझसे पूछा गया, आपका सरनेम चैटर्जी है? ओह आप तो ब्राह्मण हैं. आपकी मां का सरनेम मैत्रा है. ओह वो भी ब्राह्मण हैं! जैसे वो सदमे में हो कि ब्राह्मण होते हुए मेरा रंग काला कैसे हो सकता है.तनिष्ठा अपनी 'अनइंडियन' फ़िल्म के को-स्टार ब्रेट ली के साथ.
ये समस्या हमारी जाति, क्लास और रंग की समझ से जुड़ी हुई है. ऊंची जाति का मतलब गोरा रंग, मतलब उसे छू सकते हैं. नीची जाति का मतलब काली स्किन, मतलब अछूत. हां मैं ये कह रही हूं. हममें से बहुत लोग ये नहीं मानेंगे कि हमारा रंगभेद, जातिभेद से आता है. मैंने पार्च्ड फिल्म बनाई. 'मैंने बनाई' इसलिए कह रही हूं कि फिल्म का हर कलाकार ये मानता है कि ये फिल्म उसकी है. हमने फिल्म के जरिए जेंडर, सेक्स, बॉडी, स्किन, जाति के बारे में बात करना चाहते हैं. फिल्म के प्रमोशन के दौरान पता चलता है कि जिन समस्याओं की हम बात कर रहे थे वो हमें खुद झेलनी पड़ रही हैं. मुद्दों की फेहरिस्त बहुत लंबी है, और भेदभाव बहुत गहरा है. जो प्रिविलेज इन चीजों को पनपने देती है, उसी के खिलाफ हमारी लड़ाई है.