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पाताल लोक विवाद : क्या इस सीरीज़ के कास्टिंग डायरेक्टरों ने ख़ुद ही सब रोल ले लिए?

हिंदी फ़िल्मों के नामी निर्देशक और कास्टिंग डायरेक्टर्स से हमने बात की. ये भी जानिए कि कास्टिंग कहते किसे हैं.

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दिल्ली के ब्रिज पर पकड़े गए चार अभियुक्तों को देखते इंस्पेक्टर हाथीराम (जयदीप अहलावत), जिन पर हत्या की कोशिश का चार्ज लगाना है. इनमें मुख्य अभियुक्त है हथौड़ा त्यागी (अभिषेक बैनर्जी). एकदम दाहिने. पाताल लोक. (फोटोः एमेज़ॉन प्राइम वीडियो/क्लीन स्लेट फिल्म्स)
एक नई सीरीज़ आई है. पाताल लोक. 9 एपिसोड की ये क्राइम थ्रिलर, एमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर चल रही है. जयदीप अहलावत, कहें तो, लीड रोल में हैं. पुलिस इंस्पेक्टर हाथीराम. जो अपराध, समाज, राजनीति, पत्रकारिता की दुनिया में फैली गंदगी देखता है, जैसे जैसे एक जर्नलिस्ट की हत्या की योजना बनाने के आरोप में गिरफ्तार 4 अभियुक्तों के केस की जांच करता है. शो आने के बाद से बहुत तारीफें पा रहा है. सबसे बेस्ट इंडियन सीरीज़, जैसी उपमाएं दी जा रही है. सीरीज के कलाकारों के बारे में खोजकर पता लगाया जा रहा है.
इसी बीच एक विवाद भी इससे जुड़ा है. दो एक्टर्स ने आरोप लगाया है कि पाताल लोक में एक्टर्स को चुनने वाली कंपनी के लोगों ने कई रोल अपने ही कास्टिंग असिस्टेंट्स को दे दिए है. इस सीरीज़ की कास्टिंग 'कास्टिंग बे' नाम की कंपनी ने की है. इसे चलाते हैं अनमोल आहूजा और अभिषेक बैनर्जी. अभिषेक हाल में स्त्री, बाला, ड्रीम गर्ल जैसी फ़िल्मों में दिखे हैं. पाताल लोक में अभिषेक ने हथौड़ा त्यागी का रोल किया है, जो मेन विलेन होता है. उनके अभिनय की तारीफ हो रही है.
हमने समझने की कोशिश की कि मसला क्या है. सभी पक्षों से बात की. एक-एक करके समझते हैं.

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(1.) विवाद शुरू हुआ जब एक्टर अभिमन्यु ने कास्टिंग के लोगों पर एतराज़ किया

अभिमन्यु गोरखपुर से हैं. दिल्ली में रंगमंच किया. 2009 में बॉम्बे पहुंचे. द अटैक्स ऑफ 26/11 (आतंकवादी), बजरंगी भाईजान (पाकिस्तानी टीवी रिपोर्टर), कैलेंडर गर्ल (रईस युवक) अकीरा (कॉलेज विलेन), फॉर हियर ऑर टू गो, फोर्स 2, पैडमैन जैसी फ़िल्मों में काम कर चुके हैं. आने वाली फिल्म 'भुजः द प्राइड ऑफ इंडिया' है, जिसमें अजय देवगन लीड रोल में हैं. उनसे हमने बात कीः
Abhimanyu Sarkar Actor Casting Controversy Paatal Lok Series
अक्षय कुमार के साथ और फ़िल्म 'अकीरा' के एक सीन में अभिमन्यु.

क्या शिकायत है आपकी? मुझे सब फ़िल्में ऑडिशन के थ्रू ही मिली हैं. छोटे शहर से सपना लेकर आते हैं कि एक्टर बनेंगे और यहां कास्टिंग में नेपोटिज़्म का शिकार होना पड़ता है. इतनी फिल्में करने के बाद, जाते हैं और ऑडिशन का मौका तक नहीं मिलता. गर्मी के टाइम में बाहर से ही भगा देते हैं. एक्टर मरा मरा फिरता है. कास्टिंग बे ने पातालोक ही क्या, स्त्री जैसी फिल्मों में खुद को कास्ट किया है. वो (अभिषेक) एक उम्दा अभिनेता हो सकते हैं, मेरा सवाल उनकी अभिनय क्षमता पर नहीं है. मैं ये कह रहा हूं कि आप किसी किरदार के लिए 100 मीटर लंबी लाइन लगवाते हो तो चुनाव उस ऑफिस में बैठे लोगों का क्यों हो जाता है. हमारा सवाल सिर्फ इतना है कि ये अनएथिकल प्रैक्टिस है. आपके ऑफिस में काम करने वाला असिस्टेंट उस रोल में कैसे ज्यादा फिट हो जाता है, बावजूद इसके कि सैकड़ों लोगों ने ऑडिशन दिया.
एक एक्टर ने मुझे कहा कि मैंने 35 ऑडिशन दिए थे इस दौरान लेकिन मुझे पाताल लोक के ऑडिशन का पता तक नहीं चला कि कब और कहां हो गए. 17 फिल्म करने के बाद मैं पाताल लोक के लिए कहां अनफिट हूं. मुझे ऑडिशन का मौका क्यों नहीं दिया गया. अब तो मुझे ब्लॉक ही कर दिया कास्टिंग बे द्वारा अपनी वॉल पर. अब आगे कोई ऑडिशन होगा उनके यहां तो मुझे पता भी नहीं चलेगा. ऑडिशन होते हैं लेकिन बंद कमरों में. बंद कमरों में लोग रोल बांट लेते हैं. मैं इसी चीज के खिलाफ हूं.
बाकी कास्टिंग के लोगों वालों को लेकर क्या कहेंगे? कास्टिंग में अच्छी प्रैक्टिस करने वालों में भरत झा जैसे डायरेक्टर भी हैं. सज्जन आदमी हैं. पांच असिस्टेंट रखे हैं उन्होंने. सबको सैलरी पर रखा है. बाकी कास्टिंग कंपनी वाले लोग तो अपने यहां असिस्टेंट्स को पैसा भी बहुत कम देते हैं. शानू मैम (यशराज फिल्म्स) ने खुद को कभी कास्ट नहीं किया (2002 में आई यशराज की साथिया में छोटा रोल किया, हालांकि वे यहां कास्टिंग डायरेक्टर 2010 में बनीं). मुकेश छाबड़ा ने 250 फिल्मों में कास्टिंग की हैं. लेकिन खुद को कम ही कास्ट किया (रमन राघव 2.0, गैंग्स ऑफ वासेपुर, चिल्लर पार्टी, लव शव ते चिकन खुराना में वे दिखे. मुकेश छाबड़ा के असिस्टेंट भी डेल्ही क्राइम, मुक्काबाज़ वगैरह में दिखे.) जोगी (मलंग) सर के ऑफिस के बाहर 6 साल गया. तब मिले. बोले बिजी हैं. पलावा सिटी में रहता था. 42 किलोमीटर दूर से आता था. कई बार दोस्त से मांगकर कपड़े लाता था. मैंने बोला भई बहुत दूर से आया हूं. पांच छह साल से सर नहीं मिल रहे मिलवा दो. वो गया सर को बोला. फिर जोगी सर ने बुलाया. मैंने व्यंग्य किया कि सर तो दस साल से बिजी हैं. अच्छे आदमी हैं लेकिन गलत करते हैं.
डायरेक्टर की मर्ज़ी के बिना कास्टिंग वाले खुद को कैसे कास्ट करेंगे? 100 लोगों का ऑडिशन तो डायरेक्टर नहीं देख सकता न. वो तो शॉर्टलिस्ट करके मंगाता है चार-पांच ऑडिशन. उनमें से किसे चुनना है ये वो कास्टिंग वाला तय करता है.
कास्टिंग असिस्टेंट वही लड़के लड़कियां हैं जो एक्टर बनने आए थे. तो वे क्यों न ऑडिशन दें और एक्टिंग करें? उन्होंने तो रास्ता चुन लिया न. उनके पास करने को कास्टिंग तो है. मेरे पास तो कोई भी ऑप्शन नहीं है न. ये खुद का ऑडिशन अच्छा बनाकर भेज देते हैं, हमारा बुरा. नए नए बच्चे हैं कास्टिंग में, ये हमें एक्टिंग की सीख भी देने लगेंगे, खैर कोई नहीं. ये सीधे मुंह बात भी नहीं करते. सामने वाले की पीड़ा को नहीं देखते. पहले एक्टर डायरेक्टर से सीधा मिल लेता था. अब कास्टिंग वाले मिडिल मैन हो गए हैं. वो हमारे चयनकर्ता बनकर बैठे हैं.
कहा जाता है कि आपके बिहेवियर को लेकर इश्यूज़ हैं, आप फ्रस्ट्रेटेड हैं? मेरे बिहेवियर को लेकर किसी ने कभी कोई शिकायत नहीं की. मैं खुश रहकर चलने वाला आदमी हूं. ईश्वर पर छोड़ा है सब. हंसता रहता हूं हमेशा. मेरे घर का किराया 40 हजार है. 2 बीएचके में रहता हूं. कोई घर आता है अच्छा खाना खिलाता हूं, अच्छी कॉफी पिलाता हूं. फ्रस्ट्रेटेड तो ये लोग बना देते हैं. फ्रस्ट्रेटेड तो इनके असिस्टेंट होते हैं. मैं दोस्तों को मेंटली सपोर्ट करता हूं. कइयों को डिप्रेशन से बाहर निकाला है. मैं ऐसे वैल्यूज़ वाले परिवार से आता हूं जहां हमारे बाबा कहते थे शाम को कि गांव में घूमकर आओ, देखो किसके घर में धुंआ नहीं उठ रहा है (चूल्हा नहीं जल रहा है).
कास्टिंग ऑफिसेज़ में इंट्रो तो होता ही है, वो एक ओपन सोर्स है. वहां दीजिए. शानू शर्मा के यहां दो महीने में एक बार इंट्रो होता है. रोज इंट्रो होता है तो ठीक रहता है. महीने में करोगे तो भीड़ हो जाती है. एक बार (2019 में) मैं शानू (यशराज फिल्म्स) के ऑफिस में गया तो लंबी लाइन लगी थी. बाहर भयंकर गर्मी पड़ रही थी. वहां ऑडिशन देने आई एक बच्ची को उल्टी होने लगी. तो मैंने वो बात सोशल मीडिया पर पोस्ट की. मैंने पहले उस लड़की के बाप को सुनाया, फिर गेटकीपर को सुनाया. बोला कि बच्ची को तो कम से कम अंदर ले लो. उसने मुझे कहा - जा जा.
कास्टिंग बे में तो रोज़ (हफ्ते में पांच दिन) एक घंटे का इंट्रो होता है. वो इंट्रो ले लेते हैं लेकिन अंदर गेम करते हैं. मैं कुणाल एम शाह के यहां गया. उनका अच्छा सिस्टम था. डायरी रखी थी. उसमें नाम लिख दिया गया. मुझे बता दिया गया कि फलानी तारीख को आकर अपना इंट्रो दे जाइए. ये सही तरीका है. भीड़ भी नहीं होती, धूप में भी नहीं खड़े रहना पड़ता.
आगे क्या भविष्य है आपका? मैं सीरियल्स की तरफ मूव कर जाऊंगा और क्या. लोग कहेंगे 10-12 फिल्म कर रखी है तो ले लो. ये लोग मुझे काम नहीं देंगे, लेकिन मेरा काम नहीं मार पाएंगे.

(2.) आंखों देखी, दम लगाके हईशा, सुई धागा जैसी फिल्मों के एक्टर महेश शर्मा ने भी आरोप लगाया


Mahesh Sharma Actor Ankhon Dekhi Dum Laga Ke Haisha
'दम लगाके हईशा' के दृश्य में आयुष्मान खुराना के साथ महेश.

महेश से हमने बात कीः
अपना पक्ष रखें. समस्या तब होती है कि कास्टिंग के ही लोग एक्टिंग करने लगते हैं. लोगों का विश्वास खत्म होने लगता है. मैं 12 साल से मुंबई में हूं. मुश्किल से 6-7 ऑडिशन दिए होंगे. कभी कास्टिंग वालों के जरिए कोई फिल्म नहीं मिली. मिलता ज़रूर रहता हूं सबसे. कास्टिंग वाले का काम रोल बांटने का होता है. उसके पेशे का सम्मान होना चाहिए. कुछ को छोड़ दें तो उनका कोई सम्मान ही नहीं है. जिसको काम नहीं मिलता तो उसे लगता है कि कास्टिंग असिस्टेंट बन जाऊं. ये सब इंटरव्यूज़ में अच्छे से बात करते हैं. असल में जाओ तो सीधे मुंह बात नहीं करते. कास्टिंग वालों का ऊंचा ओहदा है, उन्हें निभाना पड़ेगा. मेेरा कोई एक टारगेट नहीं है. मैं इस सिस्टम के खिलाफ हूं. दरअसल ये लोग ग्रुप बना लेते हैं. एक कास्टिंग असिस्टेंट दूसरे ग्रुप वाले को कास्ट कर देता है, दूसरा वाला उसे कर देता है.
आखिरी फैसला तो डायरेक्टर का होता है. उन्हें कास्टिंग वाला कैसे ठग सकता है? ये गेम खेलते हैं. कई बार कैमरा हिला देते हैं. कई बार अपना बढ़िया ऑडिशन भेजते हैं, दूसरों का खराब. अगर हम इतना खराब ऑडिशन देते हैं तो कई बार हमारा रेफरेंस ऑडिशन दूसरों को क्यों भेज देते हैं. मतलब कि इस तरह का ऑडिशन भेज दो. हमारा रेफरेंस ऑडिशन काम में ले लेते हैं, लेकिन हमें काम नहीं मिलता. जब कास्टिंग डायरेक्टर्स पर डाउट है तो पूरे सिस्टम पर डाउट उठ जाता है. मुझे बड़े बड़े एक्टर्स ने बताया, नाम नहीं कहूंगा. ये लोग कुछ भी बोल देते हैं, कि वो एक्टर तो अवेलेबल नहीं है, उसमें तो बहुत ईगो है. तो डायरेक्टर सोच नहीं पाता उस बारे में.
कोई एक्टिंग, कास्टिंग दोनों कर रहा है तो हम उसे कैसे रोक सकते हैं? ऐसे तो थियेटर वालों के साथ कैसे न्याय होगा. कुछ कास्टिंग डायरेक्टर जिनका एक्टिंग में अच्छा नाम हो गया है, फिर क्यों नहीं छोड़ देते. वो कास्टिंग वाले बनकर भी पैसा ले रहे हैं प्रोडक्शन से, और एक्टिंग करके भी पैसा ले रहे हैं.
आप एक-दो लोग ही शिकायत कर रहे हो, बाकी कोई बड़ा एक्टर-डायरेक्टर आपके पक्ष में बोला नहीं है. बोल रहे हैं लेकिन छुपकर. वो सामने नहीं आना चाहते. अनुराग (कश्यप) जी ने कह दिया कि 90 परसेंट एक्टर आलसी होते हैं. मैंने उनसे जिरह की ट्विटर पर कि ऐसा नहीं है. मुझे दुख हुआ. हमारे सीनियर एक्टर किसी मसले पर रिएक्ट नहीं कर रहे. आप मजदूरों के लिए बोल रहे हैं अच्छी बात है, लेकिन आपकी नाक के नीचे गरीब एक्टर्स के सपनों का हनन हो रहा है और आप कुछ बोल नहीं रहे हैं. हमारी इंडस्ट्री हमारा साथ नहीं दे रही है ये दुख की बात है. ये गलत को गलत नहीं बोल रहे. आपको रोल मिल गया, आप सीनियर हो तो अब दूसरों के लिए नहीं बोल रहे.
एक मशहूर कास्टिंग डायरेक्टर आपके काम के बड़े प्रशंसक हैं, उन्होंने कहा कि मैं इस बंदे को लेकर बहुत कुछ प्लान कर रहा था. हो सकता है एक-दो साल में आपको बड़ा रोल मिलता. फिर 12 साल में किसी कास्टिंग डायरेक्टर ने मुझे किसी सीरीज़ या फिल्म में काम क्यों नहीं दिया. एक एक्टर को इतना लगता है कि बस एक रोल मिल जाए. मैंने 'आंखों देखी' की. उसमें मेरे काम की इतनी तारीफ हुई. क्रिटिक्स ने सराहा. लेकिन मुझे दो साल कोई काम ही नहीं मिला. मैं दो साल सोचता रहा कि क्या मुझे एक्टिंग नहीं आती क्या. लोग कहते, महेश बहुत अच्छे एक्टर हो. लेकिन फिर काम तो कोई देता नहीं. दो साल में खाली बैठा रहा. फिर मुझे एक एपिसोड मिला. उसमें सिर्फ एक सीन. करके जब वापस आ रहा था तो रोता हुआ आ रहा था. नहीं करना था लेकिन मजबूरी में कर रहा था.

(3.) एक ट्रेड एनेलिस्ट और चर्चित एक्टर ने भी सपोर्ट किया, कि ऐसा होता है

अभिमन्यु अपने पास इनबॉक्स से बहुत सारे मैसेज दिखाते हैं जो उनके सपोर्ट में आ रहे हैं. वो कहते हैं कि ऐसे 500 मैसेज हैं. इनमें से दो मैसेज, दो जाने-माने लोगों के हैं. इनमें एक बड़े ट्रेड एनेलिस्ट हैं और एक चर्चित यंग एक्टर. चूंकि वो पर्सनल मैसेज हैं इसलिए उनकी पहचान उजागर करना ठीक नहीं होगा.
Abhimanyu Sarkar Actor Casting Controversy Paatal Lok
अभिमन्यु और उनके चैट की तस्वीरें.

इस मैसेज में अभिमन्यु इन मशहूर फिल्म ट्रेड एक्सपर्ट को ये मैसेज करते हैं - 'फरवरी में एक प्रोजेक्ट (पाताल लोग नहीं) के लिए कास्टिंग टीम ने झूठ बोला कि अभिमन्यु के पास डेट नहीं हैं. और अपने बंदे को कास्ट कर दिया. मार्च में ये बात डायरेक्शन टीम से पता चली, बड़ा दुख हुआ. पर शूट चालू हो चुका था. कुछ नहीं कर सकते. तबसे छला हुआ महसूस कर रहा हूं. सर, कास्टिंग के नाम पर ये लोग गेम कर रहे हैं. कृपया हमारी मदद कीजिए.'
इस पर उन ट्रेड एक्सपर्ट ने लिखा, "हां, आप सही कह रहे हैं. बहुत गड़बड़ होती है." ऐसा ही एक मैसेज, पर्सनल चैट में उन्होंने एक चर्चित एक्टर को भेजा था जो पोलिटिकल मामलों पर खुलकर बोलते हैं. उन्होंने जवाब में लिखा - "ये दुखद हकीकत है. ये सब के साथ हुआ है इंडस्ट्री में. दुखी मत हो."
एक्टर दर्शन ज़रीवाला ने अख़बार दैनिक भास्कर से बात करते हुए कहा है - "कास्टिंग एजेंसी वालों को एक्टिंग नहीं करनी चाहिए. पश्चिम में प्रोड्यूसर और डायरेक्टर किसी एक ही कास्टिंग डायरेक्टर या एजेंट के पास एक्टर्स की रिक्वायरमेंट नहीं भेजते, बल्कि सबके पास भेजते हैं ताकि लोकतांत्रिक तरीके से एक्टर का चयन हो सके. मगर बॉलीवुड में ऐसा नहीं है. यहां जिन कास्टिंग डायरेक्टर्स के पास प्रोजेक्ट आता है, वहां पर नेपोटिज़्म शुरू हो जाता है. कास्टिंग डायरेक्टर्स एसोसिएशन की जिम्मेदारी है कि वे इस पर रोक लगाएं."

(4.) कास्टिंग क्या होती है, कैसे होती है?

इस कहानी का दूसरा पक्ष जानने से पहले कास्टिंग को समझ लेते हैं, चूंकि कई लोगों को नहीं पता होगा.
कास्टिंग क्या होती है एक कहानी पर जब कोई फिल्म, सीरीज़ बननी होती है. तो उसके किरदारों में योग्य एक्टर ढूंढ़कर डायरेक्टर तक पहुंचाने के कई चरणों वाले काम को कास्टिंग कह सकते हैं. जिसमें आखिरी फैसला डायरेक्टर करता है.
कास्टिंग का भीतरी पदक्रम (hierarchy) 1. सबसे ऊपर - कास्टिंग डायेरक्टर 2. फिर - कास्टिंग असोसिएट / असोसिएट कास्टिंग डायरेक्टर 3. फिर - कास्टिंग असिस्टेंट 4. फिर - इन्टर्न 5. और - कास्टिंग कॉर्डिनेटर. इनका काम राज्यों, शहरों में कास्टिंग के काम को कॉर्डिनेट करने का होता है. ये पदक्रम में बराबर ही होते हैं, ऊपर नीचे नहीं. कहीं इन्हें क्रेडिट दिया जाता है, कहीं नहीं दिया जाता है.
पूरा प्रोसेस क्या रहता है किसी फिल्म, सीरीज़ की 120 या कम-ज़्यादा पन्नों की स्क्रिप्ट जब लिख ली जाती है. तो उसके प्रोड्यूसर या डायरेक्टर एक कास्टिंग कंपनी से संपर्क करते हैं. उन्हें अपना प्रोजेक्ट बताते हैं, कितने किरदारों में कितने एक्टर्स की जरूरत है ये बताते हैं. ज्यादातर प्रोजेक्ट्स में लीड रोल्स में कास्टिंग प्रोड्यूसर, डायरेक्टर के लेवल पर हो चुकी होती है. तो शुरुआती तौर पर वे ब्रीफ करते हैं. बजट तय होता है. कास्टिंग कंपनी की फीस भी. वो चर्चित एक्टर होना चाहिए, या नया एक्टर होना चाहिए, ये बात प्रोजेक्ट और डायरेक्टर पर निर्भर करती है.
उसके बाद कास्टिंग कंपनी अपने यहां किसी कास्टिंग असोसिएट को उसके मातहत टीम बनाकर, वो प्रोजेक्ट दे देती है. काम शुरू होता है. कास्टिंग कंपनी के पास हर एज-ग्रुप और लुक्स वाले एक्टर्स, उनके इंट्रोडक्शन, फोटोग्राफ, वीडियो वगैरह का बैंक होता है. वे पहले उनमें से एक्टर ढूंढ़ते हैं. शॉर्ट लिस्ट करते हैं. जरूरी होता है तो एक डेट तय करके उस प्रोफाइल वाले एक्टर्स को बुलाते हैं ऑडिशन देने. या तो पर्सनली फोन करके, या फिर एक ओपन ऑडिशन जैसा इवेंट रखकर. अगर शूटिंग मुंबई से बाहर होनी है, मसलन जयपुर या लखनऊ में होनी है तो उसी जगह के लोकल एक्टर भी ढूंढे जाते हैं. उन्हें ढूंढ़ने के लिए कास्टिंग टीम को वहां भेजा भी जाता है. इस तरह जब सब रोल में एक्टर्स के ऑडिशन आ जाते हैं. तो उनमें से बेस्ट विकल्प डायरेक्टर की टीम को भेजे जाते हैं. वो देखते हैं.
उसके बाद कास्टिंग डायरेक्टर/असोसिएट के साथ मीटिंग होती है. ये पहला राउंड होता है. इस मीटिंग में डायरेक्टर या उसका असिस्टेंट फीडबैक देता है कि ऑडिशन कितने सही हैं, कितने गलत हैं. क्या कम-बेशी उन्हें लग रहा है. उसके बाद कास्टिंग वाले फिर जुटते हैं. जिन रोल में एक्टर नहीं जचे होते उसके लिए और भी ऑप्शन निकाले जाते हैं. या ऑडिशन दोबारा लिए जाते हैं. किसी पिछले ऑडिशन में कोई एक्टर ठीक लगा लेकिन रोल को लेकर उसकी अप्रोच अलग है तो उसे दोबारा ब्रीफ करके फिर उस नए अंदाज में ऑडिशन लिया जाता है. दूसरे राउंड के ऑडिशन फिर डायरेक्टर को भेजे जाते हैं. फिर दोबारा कास्टिंग के साथ मीटिंग होती है डायरेक्टर की. वो या तो संतुष्ट हो जाते हैं, या फिर और फीडबैक देते हैं. और ऑप्शन खोजने के लिए कहते हैं. कई व्यावहारिक दिक्कतें होती हैं, बजट, स्थानीयता या किसी और लिहाज से, उस पर बात होती है. इस पर एक के बाद एक राउंड होते जाते हैं जब तक कि हर रोल में एक एक्टर (उसका बैकअप ऑप्शन भी) तय न हो जाए डायरेक्टर की तरफ से.
फिर शूटिंग की डेट्स को लेकर कॉर्डिनेशन होता है. वहां से उस एक्टर के साथ फिल्म या सीरीज का प्रोडक्शन विभाग बात करना शुरू करता है. उनका कॉस्ट्यूम, उनकी ट्रैवलिंग की डेट, उनकी प्रेपिंग वगैरह. फिर शूटिंग शुरू होती है. कई बार डायरेक्टर चाहते हैं तो कास्टिंग टीम के लोग सेट पर मौजूद रहते हैं, ताकि एक्टर्स से कम्युनिकेट कर सकें या एक्टिंग स्मूद रखने में मदद करें.
अभी प्रमुख कास्टिंग वाले कौन कौन हैं - शानू शर्मा - यशराज फिल्म्स गौतम किशनचंदानी मुकेश छाबड़ा (एमसीसीसी) अनमोल आहूजा, अभिषेक बैनर्जी (कास्टिंग बे) जोगी मलंग अभिमन्यु रे नंदिनी श्रीकांत श्रुति महाजन वैभव विशांत (एंटी कास्टिंग) प्रशांत सिंह हनी त्रेहन (अब कम करते हैं) अतुल मोंगिया (अब कम करते हैं)

(5.) पाताल लोक में क्या 10 कास्टिंग असिस्टेंट ने काम किया है?

ऐसा कुछ जगहों पर कहा गया कि पाताल लोक में कास्टिंग बे के 10 लोगों ने काम किया है, या इसमें इतने कास्टिंग से जुड़े लोगों ने एक्टिंग की है. हमारी पड़ताल में ये पता लगा -
इसमें कास्टिंग बे के तीन लोग ही नजर आते हैं.
1. अभिषेक बैनर्जी - हथौड़ा त्यागी का रोल किया. कास्टिंग बे के सह-संस्थापक हैं.
2. निकिता ग्रोवर - लेडी कॉन्स्टेबल मंजू वर्मा का रोल किया. कास्टिंग बे में काफी वक्त से काम कर रही हैं. लेकिन अधिकतर खुद को कास्ट नहीं किया. 'ओके जानू' में छोटे से रोल में दिखीं. 'पाताल लोक' की वे मेन कास्टिंग असोसिएट थीं.
3. गुलशन सूर्यवंशी - भूपिंदर का रोल किया. जब अंसारी पंजाब में तोप सिंह के घर का पता पूछता है, तो घर में कुत्ता लेकर खड़ा होता है वो पात्र. जो अपने दो दोस्तों के साथ मिलकर मंजारों को गाली देता है. फिर तोप सिंह उसके मुंह पर चाकू मारता है. गुलशन अभी भी कास्टिंग बे में है. मेन असोसिएट.
Paatal Lok Cast Abhishek Banerjee As Hathora Tyagi, Nikita Grover As Constable Manju And Gulshan Suryavanshi As Bhupinder
अपने किरदारों में अभिषेक, निकिता और गुलशन. (फोटोः एमेज़ॉन प्राइम वीडियो/क्लीन स्लेट फिल्म्स)

अन्य कास्टिंग से जुड़े लोग -
4. आसिफ ख़ान - कबीर एम का रोल किया. चार पकड़े गए अभियुक्तों में से एक. पहले कास्टिंग बे से जुड़े थे, अब नहीं हैं. 'पाताल लोक' से पहले एमेजॉन की सीरीज़ 'पंचायत' में दिखे.
5. श्रीधर दुबे - चित्रकूट के पत्रकार अमितोष त्रिपाठी का रोल किया. पहले मुकेश छाबड़ा के साथ कास्टिंग करते थे. बताया जाता है कि अब सिर्फ एक्टिंग करते हैं. कास्टिंग बे से कोई लिंक नहीं.
6. जोगी मलंग - राजबीर गुर्जर का रोल किया जो स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर होता है. जोगी खुद एक नामी कास्टिंग डायरेक्टर हैं, अलग कंपनी हैं उनकी. पीकू, उड़ान, पिंक, विकी डोनर, राजी ये सब उन्होंने कास्ट की हैं. उनका कास्टिंग बे से कोई संबंध नहीं.
Paatal Lok Cast Asif Khan As Kabir M, Shreedhar Dubey As Amitosh Tripathi And Jogi Mallang As Ranjbir Gujjar
अपने किरदारों में आसिफ, श्रीधर और जोगी मलंग. (फोटोः एमेज़ॉन प्राइम वीडियो/क्लीन स्लेट फिल्म्स)

काफी ढूंढ़ने के बाद ये नाम मिलते हैं. हो सकता है कुछ और हों, हो सकता है न हों. 'पाताल लोक' की कास्ट में करीब 200 एक्टर्स हैं.

(6.) कौन हैं अभिषेक बैनर्जी और उनका क्या कहना है?

अभिषेक बैनर्जी बंगाल मूल के हैं. दिल्ली की पैदाइश. एक्टर ही बनना था, कास्टिंग डायरेक्टर नहीं. लेकिन सरवाइवल के लिए कास्टिंग की तरफ मुड़े. 2008-09 में 'देव डी' बन रही थी तब कास्टिंग डायरेक्टर गौतम किशनचंदानी को असिस्ट किया. फिर 'वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई' में. बाद में 'द डर्टी पिक्चर' में उनको चीफ कास्टिंग डायरेक्टर का काम मिला. फिर उन्होंने अनमोल आहूजा के साथ मिलकर कास्टिंग बे नाम से कंपनी बनाई. 'पाताल लोक' में हथौड़ा त्यागी का रोल करने से पहले उन्होंने 'स्त्री', 'ड्रीम गर्ल', 'बाला', 'अज्जी' जैसी फ़िल्मों में ठीक रोल किए हैं. उनका सबसे पहला रोल 2006 में 'रंग दे बसंती' में था. 2016 में द वायरल फीवर के 'दारू पे चर्चा' में वे विजय माल ले गया (विजय माल्या पर बेस्ड) के रोल में दिखे.
Abhishek Banerjee As Hathora Tyagi In Paatal Lok
अभिषेक. दूसरी ओर पाताल लोक के अपने किरदार में.

पाताल लोक के कास्टिंग इश्यू पर हमने उनसे बात की. अभिषेक ने कहा - "ये ऐसा विषय है जिसके बारे में डायरेक्टर्स से ही पूछा जाना चाहिए. ये कोई नया इश्यू नहीं है. ये एक आम शुबहा है जिसे लेकर सिर्फ डायरेक्टर ही बेस्ट नज़रिया दे सकते हैं. यहां बोलने का दायित्व उन्हीं का है."
उन्होंने ये भी कहा है कि वे 10 बरस से कास्टिंग कर रहे हैं और उन्हें पहला प्रोजेक्ट आठ साल बाद मिला. अगर खुद को प्रमोट करना होता तो काफी पहले कर चुके होते.
जिन फिल्मों में वे चुने गए हैं, उनके उलट ऐसी फिल्में भी रही हैं जिनमें उन्हें नहीं लिया गया. जैसे 'घनचक्कर' में उन्होंने इदरिस के कैरेक्टर के लिए ऑडिशन दिया था जो बाद में नमित दास को मिला. 'नो वन किल्ड जेसिका' में उन्होंने मेन विलेन मनीष भारद्वाज के रोल के लिए ऑडिशन दिया था जो बाद में मोहम्मद जीशान अयूब को मिला. अप्रैल 2020 में नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई फ़िल्म 'एक्सट्रैक्शन' में बांग्लादेशी गैंगस्टर अमीर आसिफ के रोल के लिए ऑडिशन दिया जिसमें प्रियांशु पेन्यूली चुने गए. बावजूद इसके कि कैरेक्टर बंगाली बोलता है, प्रियांशु को आती नहीं है, अभिषेक को आती है.

(7.) पाताल लोक के राइटर-क्रिएटर सुदीप शर्मा क्या कहते हैं


Sudip Sharma Paatal Lok Creater Writer
सुदीप, इस सीरीज की शूटिंग के दौरान.

हमारे मैसेज का सुदीप ने जवाब नहीं दिया. लेकिन इस सीरीज़ के रिलीज़ होने से पहले उन्होंने पाताल लोक के कास्टिंग प्रोेसेस पर बात की थी. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था - "अभिषेक कास्टिंग बे से हमारे पास आते थे और हम मीटिंग करते थे. उनके बारे में कोई ऐसी बात थी कि हमने उनको ऑडिशन देने के लिए कहा. वो इच्छुक तो थे लेकिन नर्वस भी थे क्योंकि उन्हें लग रहा था कि हम ये रोल उनको नहीं देने वाले हैं. लेकिन उनका ऑडिशन इतना अच्छा था कि जिस पल उन्होंने ऑडिशन दिया तभी हमने मन बना लिया था."
कास्टिंग से जुड़े अंदरूनी लोग बताते हैं कि हथौड़ा त्यागी के रोल में अभिषेक का ऑडिशन पावरफुल था. 'अज्जी' ऑडिशन भी.

(8.) अमर कौशिक ने 'स्त्री' में जना का रोल अभिषेक को क्यों दिया?


Amar Kaushik Director On Stree And Bala Casting
अमर कौशिक एक फिल्म फेस्टिवल में उपस्थिति के दौरान.

राज-डीके की लिखी 2018 में आई हॉरर कॉमेडी 'स्त्री' ही वो फ़िल्म थी जिसने अभिषेक बैनर्जी को पहली बड़ी पहचान दी. उन्होंने जना का हंसाने वाले किरदार किया था. इसके बाद से उनके लिए एक्टिंग में स्पेस बनने लगा. उस फिल्म में अभिषेक की कास्टिंग क्या भाईचारे में हुई, या योग्यता के आधार पर हुई, इसका जवाब 'स्त्री' के डायरेक्टर अमर कौशिक देते हैं. अमर बताते हैं - "स्त्री में कास्टिंग का काम कास्टिंग बे कंपनी ने नहीं किया था. किसी और ने किया था. अभिषेक को मैं जानता था. क्योंकि ये हमेशा कास्टिंग करता था. ये क्यूज़ बहुत अच्छे देता था. मुझे लगता था इसमें एक्टर छुपा हुआ है. मैंने कहा कि इस कैरेक्टर के लिए ऑडिशन दे. उसने कहा, क्या मैं कर पाऊंगा? मैंने कहा, तू दे. उसने दूसरे रोल के लिए ऑडिशन दिया था. लेकिन मैंने उसे जना के रोल लिए लिया."
वे कहते हैं - "सबसे बड़ी बात ये है कि कास्टिंग वाले कभी भी डायरेक्टर को इनफ्लूएंस नहीं कर सकते हैं. डायरेक्टर के लिए सबसे बड़ी चीज फिल्म होती है. वो किसी के भी कहने पर ऐसे एक्टर को नहीं लेगा, जो परफॉर्म न कर सके. कास्टिंग वाला ये बता सकता है कि किसी एक्टर का पोटेंशियल क्या है. वो कहेगा कि - ये एक्टर अच्छा करेगा. आपको ऑडिशन में समझ नहीं आ रहा तो मैं एक और ऑडिशन करके दिखाता हूं. बहुत बार वो खुद डायरेक्टर से कहते हैं कि आप आ जाओ और इस कैरेक्टर के ऑडिशन के लिए एक्टर को ख़ुद ब्रीफ करो. ब्रीफ बहुत जरूरी होती है. एक लाइन को बोलने के बहुत तरीके होते हैं. उसके लिए कास्टिंग डायरेक्टर को एक्टिंग आनी चाहिए. जितने भी कास्टिंग डायरेक्टर हैं उनमें कहीं न कहीं एक्टर हैं. क्योंकि उनको एक्टर से बात करनी होती है. बहुत बार एक्टिंग नहीं आती और बुलाकर सीन पढ़ा रहे होते हैं तो कोई मतलब नहीं है. उसे सीन समझाना होता है, कि इस किरदार की ये दुनिया है, ऐसा करो, वैसा करो. न कि कैमरा पकड़कर डायलॉग बुलवा लो. पहले ये होता था. जब मैं असिस्टेंट था. हमें तब सिर्फ पकड़ा देते थे कि ये कैरेक्टर लिस्ट है. इसमें ये कैरेक्टर ऐसा करेगा, वो वैसा करेगा. बाकी तुम ढूंढ लो. फिर हम फोन करके बुलाते थे किसी को भी. गौतम (किशनचंदानी) ने कास्टिंग सिस्टम को व्यवस्थित ढंग से शुरू किया."
Abhishek Banerjee In Amar Kaushik Films Stree And Bala
'स्त्री' और 'बाला' में अभिषेक.

अमर ने बाद में अभिषेक को 'बाला' (2019) में हेयर स्टाइलिस्ट अज्जू के रोल में भी लिया. इसे लेकर वे बताते हैं - "बाला में अभिषेक कास्टिंग डायरेक्टर थे. वे इस रोल के लिए किसी और एक्टर को पुश कर रहे थे. लेकिन मैंने कहा कि ये वाला कैरेक्टर तू कर. उन्होंने कहा, क्या तुम श्योर हो? तो मैंने कहा कि मुझे अज्जू तुझमें दिखता है. मैं श्योर था. वो कहता था, अरे मेरे को क्यों ले रहे हो, मैं कुछ और कर लूंगा. उसकी डेट्स का इश्यू था. उसने कभी कोई रोल मांगा नहीं. छोटे कैरेक्टर तो हम रैंडम शूट में ले लेते हैं किसी को भी. जब कोई मिलता नहीं है तब. बहुत से डायरेक्टर भी खुद सीन कर लेते हैं. इसका मतलब ये नहीं कि हम ऑडिशन नहीं करते एक्टर का."
वे कहते हैं - "कभी सलेक्शन नहीं होता किसी एक्टर का, तो वो इनसिक्योर हो जाता है कि कास्टिंग वाले ने ही खुद को ले लिया. लेकिन मैं लिखकर दे सकता हूं कि कोई किसी डायरेक्टर को इनफ्लूएंस नहीं कर सकता. एक कैरेक्टर के लिए कास्टिंग वाले न जाने कहां कहां से एक्टर लाते हैं. जैसे 'बाला' में आयुष्मान के भाई के रोल में लड़का कहीं मिल गया था, वो एक्टर नहीं था. उसने सिर्फ एक रैप किया था. कास्टिंग वाले उसे लाए. मैंने कहा, इससे सीन तो करवा. तो उन्होंने कहा कि आप एक सीन ब्रीफ करके करवाओ. तो हमने वीडियो कॉल किया और उससे वहीं करवाकर देखा. और वो मुझे जम गया. जिस दिन कोई भी किसी कैरेक्टर के लिए अच्छा ऑडिशन देगा न, तो कोई डायरेक्टर पागल होगा जो उसे छोड़ेगा. एक्टर को कभी लगता है अपने हिसाब से हमने अच्छा किया है. लेकिन बहुत सारे मापदंड होते हैं. कोई बुरा नहीं करता. लेकिन कई चीजें चैक करनी होती है."
Actor Dheerendra Kumar Gautam In Bala Movie As Ayushmann Khurrana Younger Brother
'बाला' के छोटे भाई के किरदार में नॉन-एक्टर धीरेंद्र कुमार गौतम.

(9.) डायरेक्टर लोगों का क्या मानना है - अनुराग कश्यप, राजकुमार गुप्ता, हंसल मेहता

ब्लैक फ्राइडे, देव डी, गैंग्स ऑफ वासेपुर, अग्ली और चोक्ड (2020) जैसी फ़िल्मों के डायरेक्टर अनुराग कश्यप नहीं मानते कि कास्टिंग वाले खुद को ही कास्ट कर लेते हैं. अपने ट्वीट्स ने उन्होंने ये कहा - "ऐसा क़तई नहीं होता. उनको (कास्टिंग वालों को एक्टिंग रोल्स में) भी हम ही चुनते हैं, वो खुद को नहीं चुनते. वो सिर्फ़ ऑडिशन करते हैं. ऑडिशन के बाद कास्टिंग चुनते वक़्त सब बैठते हैं और फ़ाइनल डिसिज़न निर्देशक और शो रनर का होता है. कास्टिंग एक कला है जो सब के बस की बात नहीं. जैसे हम अक्सर संगीतकार को खुद ही गाने को कहते हैं क्योंकि हमें उनकी आवाज़ में भाव ज़्यादा मिलता है. मैं सालों से नए कलाकारों के साथ काम करता आ रहा हूं और ऐसे ऐसे आरोप सुनते आ रहा हूं. बहुत सुना है और भुगता है. 90 प्रतिशत (एक्टर) आलसी हैं और सबको लगता है कि मौक़ा मिलता तो दिखा देते. मौक़ा भी दिया है और पछताया भी हूं. मीडियम उनको समझ में आता नहीं, और डायलॉग बोलने को अभिनय समझते हैं. कास्टिंग, पात्र की आवश्यकता अनुसार होती है. हम लोगों से पहले कास्टिंग डायरेक्टर होते कहां थे."
शाहिद, दिल पे मत ले यार जैसी फिल्मों के डायरेक्टर हंसल मेहता ने भी ट्वीट के जरिए कहा - "अच्छी और ज़रूरी बहस है ये. और अनुराग की बात से मैं काफी हद तक सहमत हूं. बाकी एक बार मिलके इस पर बात करनी चाहिए क्योंकि आप जो कह रहे है वो मैं कई कलाकारों से सुनता हूं और उसमें ज़्यादातर कोई तथ्य नहीं होता. ज़्यादातर में कास्ट न होने का फ्रस्ट्रेशन होता है."
Rajkumar Gupta And Anurag Kashyap On Paatal Lok Controversy
'इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड' की शूटिंग के दौरान अर्जुन कपूर के साथ डायरेक्टर राजकुमार गुप्ता. दूसरी ओर, अनुराग कश्यप. (फोटोः अनुराग इंस्टाग्राम)

हमने राजकुमार गुप्ता से भी बात की. वे इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड, रेड, आमिर, नो वन किल्ड जेसिका जैसी फ़िल्मों के डायरेक्टर हैं. कास्टिंग बे ने उनकी फिल्मों की कास्टिंग भी की है. राजकुमार कहते हैं - "जब भी एक कास्टिंग डायरेक्टर किसी कैरेक्टर के लिए एक्टर दिखाता है, तो एक-दो नहीं दिखाता, सौ एक्टर देखे जाते हैं. किसी-किसी फिल्म में 100 से ऊपर पात्र होते हैं. तो उसमें हर पात्र के लिए कम से कम 4 से 5 ऑप्शन होते ही हैं. कास्टिंग डायरेक्टर ऑडिशन छुपाते नहीं, वो बहुत सारे ऑप्शन दिखाते हैं. उन पर इल्ज़ाम लगाना गलत है, नाइंसाफी है. डायरेक्टर को एक-दो ही ऑडिशन कोई दिखा देगा, और वो चुन भी लेगा, ऐसा नहीं होता. मेरी फिल्मों में बहुत सारी कास्टिंग अभिषेक और कास्टिंग बे ही करते हैं. उससे पहले गौतम (किशनचंदानी) करते थे. बहुत मेहनत लगती है. अगर मैं फिल्म बना रहा हूं तो उसमें मैं अपने सारे ऑप्शन खर्च करता हूं. उसके बाद फैसला लेता हूं कि मैं किसे लूंगा, किसे कास्ट करूंगा. हर केस में फाइनल कॉल तो डायरेक्टर का ही होता है. ये कहना गलत होगा कि वो बंद कमरों में खुद ही खुद को कास्ट कर लेते हैं."
क्या कास्टिंग वालों को सिर्फ कास्टिंग करनी चाहिए और एक्टर्स को सिर्फ एक्टिंग? राजकुमार कहते हैं कि ये सोच गलत है - "ये हिंदुस्तान है. यहां आज़ादी है, कोई कुछ भी कर सकता है. ये कहना अन्यायभरा और बेतुका है कि कास्टिंग वाला एक्टिंग न करे. बहुत से मामलों में डायरेक्टर को भी लगता है कि किसी कास्टिंग वाले में एक्टिंग की काबिलियत अच्छी है. ऐसे में अगर कास्टिंग वाला किसी और को भी रेकमेंड करता है और डायरेक्टर को लगता है कि दूसरा ऑप्शन ज्यादा ठीक है तो वो उसे चुनता है. हर आदमी मेहनत करता है. उनमें प्रतिभा होती है. लोगों को निराश नहीं होना चाहिए. वे अच्छा काम कर रहे हैं. लेकिन किसको एक्टिंग करनी चाहिए, किसको नहीं, ऐसा बोलेंगे तो आप डिक्टेटर बन रहे हैं. हमारे यहां वो हो नहीं सकता है."
नाराज़ एक्टर्स ये भी कहते हैं कि पहले का सिस्टम ठीक था जब एक्टर सीधे डायरेक्टर से मिलते थे. अब कास्टिंग वाले मिडिलमैन बनकर बैठे हैं. इस पर राजकुमार कहते हैं - "ऐसा नहीं होता कि एक्टर, डायरेक्टर से बिलकुल नहीं मिलते हैं. लेकिन डायरेक्टर के लिए ये संभव नहीं होता कि वो हर किसी से मिले. कास्टिंग डायरेक्टर के प्रोसेस को बनाया ही इसलिए है कि एक्टर्स को ज्यादा समय मिले. वो कास्टिंग वाले के साथ बैठकर कैरेक्टर को समझे. उनसे बात करें, उन्हें समय दे. इस प्रक्रिया ने एक्टर्स को भी हेल्प किया है, डायरेक्टर्स को भी. लेकिन इसमें आखिरी निर्णय फिल्म डायरेक्टर का होता है. कास्टिंग का तरीका सभी के लिए हेल्पफुल है और ज्यादा प्रोफेशनल भी है. हर किसी को लगता है कि वो अच्छा एक्टर है, अच्छा डायरेक्टर है और वो जो कर रहा है अच्छा कर रहा है. लेकिन वाकई में ऐसा हो, ये ज़रूरी नहीं."

(10.) पाताल लोक में राजबीर गुर्जर बने कास्टिंग डायरेक्टर जोगी मलंग क्या कहते हैं?

जोगी मलंग मुंबई में कास्टिंग की दुनिया में बड़ा नाम हैं. उनकी कंपनी का नाम है - जोगी फिल्म कास्टिंग कंपनी. पहले दिल्ली में थियेटर करते थे. एक्ट वन, जन नाट्य मंच से जुड़े रहे. 1998 में कास्टिंग शुरू की थी. टेलीविजन शोज़ से. भंवर, अग्निचक्र वगैरह. उनकी कास्टिंग वाली आगामी फिल्मों में एसएस राजामौली की आरआरआर, शूजीत सरकार की उधम सिंह, महेश भट्ट की सड़क-2, करण जौहर बैनर की शेरशाह और गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल शामिल हैं. इसके अलावा वे राज़ी, पिंक, पीकू, अक्टूबर, विकी डोनर, लव सोनिया, इश्किया, उड़ान, एनएच 10, अग्निपथ, दिल्ली-6, मनोरमा सिक्स फीट अंडर भी कास्ट कर चुके हैं.
Jogi Mallang
नंदिता दास और विश्वजीत प्रधान जैसे एक्टर्स के साथ, दिल्ली थियेटर के दिनों में, जोगी मलंग (सबसे दाएं.)

हमसे बात करते हुए जोगी ने कहा - "20-25 साल हो गए मेरे को कास्टिंग करते. दिल्ली थियेटर से हूं. एक्टर हूं. एक्टर हूं इसीलिए कास्टिंग भी कर पाता हूं. हमारे यहां जितने भी कास्टिंग असिस्टेंट होते हैं, हम प्रेफर करते हैं कि चीजों को समझने वाला बच्चा होना चाहिए. उसे क्यू देना भी आना चाहिए. वो एक्टर भी होना चाहिए. कहानी को समझ पाए. इन एक्टर्स ने जो मसले उठाए हैं तो कुछ बात होगी, लेकिन बहुत टाइम से एक्टर्स को काम नहीं मिला होगा तो उन्हें कुछ लगा होगा. हम बहुत ईमानदारी से ऑडिशन करते हैं. चाहे कोई एक्टर हो. चाहे एक-दो सीन के लिए ही क्यों न हो.
..जहां तक सवाल कास्टिंग वाले के एक्टिंग करने का है, तो चाहे वो कोई भी हो उसे कैमरे के आगे काम करके तो दिखाना ही पड़ेगा. जैसे मुझे 'सांड की आंख' के लिए गौतम (किशनचंदानी) ने फोन किया कि ऑडिशन करना पड़ेगा. मैंने कहा जरूर करूंगा. गौतम आए थे अपने असिस्टेंट के साथ. मैंने बाकायदा ऑडिशन दिया. जबकि मैं इतने साल से काम कर रहा हूं फिर भी दिया. मैंने कभी अपने किसी प्रोजेक्ट में खुद को कास्ट नहीं किया. न सुदीप से कहा कि मुझे (पाताल लोक में) लो. मैंने कोई भी बड़ा रोल नहीं लिया. मेरे एक-दो रोल ही रहते हैं, वो भी छोटे. राज़ी में छोटा सा रोल किया जबकि कास्टिंग मेरी थी. मैं कभी नहीं करता. मुझे कास्टिंग में ही परस्यू करना था, मजा आता है इसलिए करता हूं."
एक्टर्स के संगठन 'सिंटा' (सिने एंड टीवी आर्टिस्ट्स एसोसिएशन) के सदस्य जोगी कहते हैं - "अगर आप किसी के रिश्तेदार भी हैं तो भी अगर काबिल नहीं हैं तो कोई कैसे कास्ट कर लेगा आपको? जितने भी कास्टिंग वाले हैं, वो एक्टर भी होते हैं. एक्टर का प्रोफेशन ऐसा है जिसे आप मर्जी से चुनते हैं. आज भी पेरेंट्स नहीं चाहते कि उनके बच्चे एक्टर बने. क्योंकि ये दुनिया का ऐसा पेशा है जिसमें गारंटी नहीं है कि कल क्या होगा. लेकिन फिर भी लोग खिंचे चले आते हैं. सबकी पर्सनल कहानी होती है. काम नहीं मिलता तो पैरेंट्स से कहते हैं कि एक साल हो गया मम्मी कुछ हो नहीं पा रहा. पैरेंट्स कहते हैं कुछ और जॉब कर लो. अब हरेक तो नहीं शाहरुख खान बन सकता न. मैं तो प्रार्थना करता हूं कि सबको कामयाबी मिले. हम भी योगदान करें."
Jogi Mallang With Amitabh Bachchan
अमिताभ बच्चन के साथ एक अवसर पर जोगी.

एक्टर्स की शिकायत रहती है कि वे चक्कर निकालते रहते हैं और कास्टिंग डायरेक्टर पांच-पांच साल तक नहीं मिलते. इस पर जोगी मलंग बताते हैं - "नए एक्टर्स की मदद हो सके इसलिए अपने कास्टिंग पेज पर मैं उनके लिए वीडियो डालता रहता हूं. हमारा मेल आईडी है jogifilm20@gmail.com मैं सिर्फ इसी पर काम करता हूं. वहां जितने भी लोग प्रोफाइल भेजेंगे तो मेरे ऑफिस में मैंडेटरी है उसे देखना. जो डिज़र्विंग होते हैं, उनकी लिस्ट बनाता हूं. कि कौन थियेटर बैकग्राउंड से है, कौन कहां से है. फिर ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलता हूं मसरुफियत से. मुंबई में पूछेंगे तो सबको पता है. फिर उन्हीं में से शॉर्ट लिस्ट करता हूं. उन्हीं में से बुलाता हूं. उन्हें फिर छांटते हैं. कि इसे अभी नहीं तो अगले प्रोजेक्ट में लेंगे. मैंने ज्यादातर नए लोगों के साथ काम किया है. 'गुलाबो सिताबो' की कास्टिंग हमने ही की है. जो अब रिलीज हो रही है 12 जून को एमेज़ॉन प्राइम पर. इसमें सिर्फ चार लोग ही मुंबई से कास्ट किए हैं, बाकी सब लखनऊ से हैं. मैंने मुंबई वालों को भी बता दिया था कि आप लखनऊ चले जाएं वहां कास्टिंग हो रही है."
विरोध कर रहे एक्टर्स के बारे में वे कहते हैं - "मेरी सहानुभूति इन लोगों के साथ है जो नाखुश हैं. लोग हतोत्साहित भी हो जाते हैं. इतने टाइम से लगे रहते हैं. ये संवाद करना जरूरी है. जो नेगेटिव सोचता है वो नेगेटिव ही लेगा. मैं इनका स्वागत करता हूं. उन्होंने शिकायत की है तो कोई बात नहीं, मैं चाहता हूं इनकी चिंताए जल्दी दूर हो. हमारे थ्रू भी हो जाएं तो अच्छी बात है."

(11.) कास्टिंग डायरेक्टर हनी त्रेहन इस शो पर और इश्यू पर क्या कहते हैं?

हनी त्रेहन हिंदी फिल्मों की कास्टिंग में बेहद अनुभवी और संजीदा नाम हैं. हालांकि अब उन्होंने कास्टिंग बहुत कम कर दी है. उनकी कास्ट की फिल्मों में कमांडो-2, सोन चिड़िया, मणिकर्णिकाः द क्वीन ऑफ झांसी, तुम्बाड, बियॉन्ड द क्लाउड्स, फोर्स-2, हिंदी मीडियम, उड़ता पंजाब, तलवार, डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी, हॉलिडे, रईस, मकबूल, ओमकारा, कमीने, मटरू की बिजली का मंडोला, डेढ़ इश्किया, मकड़ी, मौसम शामिल हैं. 2015 में उन्होंने अपनी कंपनी मैकगफिन पिक्चर्स शुरू की. इसमें उन्होंने डेथ इन द गंज, सोन चिड़िया, तलवार को प्रोड्यूस (क्रिएटिव प्रोड्यूसर) किया.
Honey Trehaan Cating Director
हनी त्रेहन.

हमने उनसे बात की. हनी सबसे पहले बताते हैं कि उन्हें ये शो कैसा लगा - "मैंने पूरा पाताल लोक देखा. क्योंकि उसके क्रिएटर सुदीप हमारे राइटर भी रहे हैं. अभिषेक (चौबे) जो मेरा पार्टनर है उसकी 'उड़ता पंजाब' और 'सोन चिड़िया' सुदीप ने लिखी है. शो मुझे जबरदस्त लग रहा है. जयदीप ने जो किया है वो अद्भुत काम किया है. मेरे फेवरेट तो कई एक्टर हैं इसमें. लेकिन जो जयदीप भाई ने किया है और जो स्वास्तिका ने किया है. उस छोटे से रोल में वो इतना गहरा असर छोड़ती हैं. हर किरदार का जो पास्ट बताया गया है और उसमें जो छोटे बच्चे कास्ट हुए हैं, उन बच्चों ने अद्भुत काम किया है. जैसे - जिस बच्चे ने चीनी का रोल किया है. मुझे कास्टिंग अच्छी लगी. मुझे शो इतना ज्यादा पसंद आया न. उस शो का हीरो, राइटिंग है. पाताल लोक की बेस्ट राइटिंग सुदीप खुद हैं जिन्होंने शो लिखा है."
उसके बाद वो इस शो की कास्टिंग को लेकर हो रहे चर्चे पर बात करते हैं - "वो कास्टिंग बे के ही लोग हैं या जो भी है, पर वो हैं तो एक्टर हीं. ऐसा तो है नहीं कि कास्टिंग बे ने उनको एक्टर बनाकर काम दिया. अगर दे भी दिया तो उन्होंने कम से कम, हमारे सिनेमा में एक नया एक्टर तो दिया है न. और कास्टिंग डायरेक्टर, हर रोल के लिए 50-50 ऑडिशन करता है. तो सिर्फ कास्टिंग बे के ही लोगों ने ऑडिशन दिया होगा ऐसा नहीं है. दोनों डायरेक्टर्स (अविनाश अरुण, प्रोसित रॉय) को मैं बहुत अच्छे से जानता हूं, मेरे दोस्त हैं. वो बहुत सलेक्टिव हैं. उनको हर कैरेक्टर के ऑडिशन में मैरिट दिखी होगी. इसमें कोई डाउट नहीं है."
वे कहते हैं - "आप जब एक कैरेक्टर को देख रहे है जिसे एक्टर प्ले कर रहा है, अगर आपको कैरेक्टर दिखाई देता है तो फिर वो कास्टिंग सफल है. हम खुद सारे एक्टर्स में कैरेक्टर ही तो ढूंढ रहे हैं. ये कहने में एक अलग चीज है कि ये रोल में मुझे बहुत अच्छा एक्टर चाहिए. लेकिन आप एक्टर नहीं ढूंढ रहे होते. आप देखते हो कि कैरेक्टर में कौन ठीक लग रहा है. सुदीप, प्रोसित, अविनाश को कैरेक्टर उस एक्टर में दिखा होगा तभी वो एक्टर सीरीज में है. अब कास्टिंग बे का आदमी है या कोई और है, इससे कोई लेना देना नहीं. ज्यादा से ज्यादा ये हो सकता है कि वो लोग ज्यादा प्रिविलेज्ड हैं. इसमें कुछ भी गलत नहीं है. ये जबरदस्ती तूल देने वाली बात है. जो रोल वे कर रहे हैं, अच्छे से तो कर रहे हैं न."
Jaideep Ahlawat And Abhishek Banerjee In Paatal Lok
'पाताल लोक' के दृश्य में हाथीराम और हथौड़ा त्यागी के किरदार. (फोटोः एमेज़ॉन प्राइम वीडियो/क्लीन स्लेट फिल्म्स)

क्या कास्टिंग वाले रोल में अपने लोगों को सेट कर सकते हैं? इस इस पर हनी कहते हैं - "नहीं. जिसे ऐसा लगता है उसमें समझ कम है फिर. अगर डायरेक्टर या राइटर को 100 लोग पसंद नहीं आएंगे तो नहीं ही आएंगे. आपको जचता नहीं है तो ऑडिशन मत दो. आप ऐसे एक्टर बनो कि सामने वाले को दो बार सोचना पड़े मना करने से पहले. क्योंकि फाइनल फैसला डायरेक्टर या प्रोड्यूसर का होता है. उसके भी ऊपर एमेजॉन के जो क्रिएटिव है उनका भी दखल रहता है. वो भी ऑप्शन देखते हैं. खाली कास्टिंग वाले की कोई पावर नहीं है."
कास्टिंग बे के बारे में वो कहते हैं - "इस कंपनी के जो हैड है उनको बहुत अच्छे से जानता हूं. पिछले 10-10 साल से जानता हूं. बहुत एथिक्स वाले और डिग्निटी के साथ काम करने वाले लोग हैं अनमोल, अभिषेक. बहुत खूबसूरत इंसान हैं. अलग-अलग मिलेंगे तो भी और साथ में मिलेंगे तो भी. आपको पता होता है कि कौन कितना ऊपर-नीचे करते हैं. मैं कद्र करता हूं उनके काम की."

(12.) तिग्मांशु धूलिया का क्या मानना है, जिन्हें पहला कास्टिंग डायरेक्टर बोला जाता है

इस पूरे मसले के तीन पक्षकार हैं - कास्टिंग डायरेक्टर, एक्टर, फिल्म डायरेक्टर. तिग्मांशु धूलिया ऐसे व्यक्ति हैं जो ये तीनों विधाएं करते हैं (राइटर और प्रोड्यूसर भी हैं). वे पान सिंह तोमर, हासिल, साहब बीवी और गैंगस्टर, शागिर्द, क्रिमिनल जस्टिस के डायरेक्टर रहे हैं. ज़ीरो, हीरो, गैंग्स ऑफ वासेपुर (रामाधीर सिंह) जैसी फिल्मों में एक्टिंग की. और इन दोनों से भी परे, उन्होंने 1993-94 में 'बैंडिट क्वीन' की व्यवस्थित कास्टिंग की थी, जब फिल्मों में अलग से कास्टिंग विधा होती नहीं थी. इसी लिहाज से उन्हें शुरुआती कहा जाता है.
Tigmanshu Dhulia On Casting Director Controversy
'हासिल' की शूट पर इरफ़ान के साथ तिग्मांशु धूलिया.

हमने उनसे बात की. तिग्मांशु की छोटी और साफ टिप्पणी थी. उन्होंने बोला - "कास्टिंग डायरेक्टर मैं खुद रह चुका हूं. भारत का शायद पहला हूं. जब ये डिसिप्लिन भी नहीं था तब से कर रहा हूं. दो चीजें होती हैं. उस पर्टिकुलर कैरेक्टर के हिसाब से अच्छे कैरेक्टर, उस डायरेक्टर के सामने लेकर जाना. डिसाइड तो डायरेक्टर ही करता है. डायरेक्टर ही देखेगे कि फिल्म के लिए क्या सही है. उसके हित में क्या है. रोल में बेस्ट फिट कौन है. अब उसमें कास्टिंग डायरेक्टर खुद एक्टिंग कर रहा है उससे डायरेक्टर को कोई मतलब नहीं है. सड़क पर चल रहा हो कोई तो उससे भी एक्टिंग करवा सकता है. अब दूसरी बात ये तथ्य है कि अगर मैं कास्टिंग डायरेक्टर होता, और तिग्मांशु न होता, तो शायद मैं ये न करता. ये हर व्यक्ति के विवेक और ज़मीर पर डिपेंड करता है. कि उसकी जिम्मेदारी क्या है और क्या नहीं है. डायरेक्टर की कोई गलती नहीं, उसको तो जो रोल में फिट लगे, वो लेता है."
वे कहते हैं - "इतने सारे एक्टर होते हैं, सबको खुश नहीं कर सकता कास्टिंग डायरेक्टर. संभव नहीं है. दो-तीन बार एक्टर के साथ ऐसा हो जाता है तो फिर उसे यही लगने लगता है कि मेरे साथ खासकर किया जा रहा है. और कुछ कास्टिंग वाले होते ही होंगे जो अपने ही लोगों को रोल देते होंगे."

(13.) पहले कब कास्टिंग डायरेक्टर या नॉन-एक्टर्स फ़िल्मों-सीरीज़ में नज़र आए हैं?

एक्टिंग सिर्फ एक्टर के लिए होनी चाहिए, कोई दूसरे पेशे का आदमी एक्टिंग न करे. कुछ इस प्रकार का तर्क भी आक्रोशित एक्टर्स ने दिया है. मगर इसका कोई पूर्व-उदाहरण नहीं है. कि सिर्फ एक्टर ही एक्टिंग करते रहे हों. नॉन-एक्टर्स, राह चलते लोगों, डायरेक्टर्स, सिंगर्स, लाइन प्रोड्यूसर्स, प्रोड्यूसर्स, राजनेता, कारोबारी, पत्रकार भांत-भांत के लोग फिल्मों में नजर आते रहे हैं.
Gufi Paintal With Mahabharat Starcast
'महाभारत' की कास्ट के साथ गूफी पेंटल. यहां मुकेश खन्ना के साथ खड़े दिख रहे हैं. (फोटोः गूफी पेंटल)

अगर कास्टिंग डायरेक्टर को ही लें तो सबसे बड़ा उदाहरण 'महाभारत' में मिलता है. 1988 में शुरू हुई बी. आर. चोपड़ा की इस पौराणिक टीवी सीरीज़ में कास्टिंग डायरेक्टर थे गूफी पेंटल. बाद में उन्होंने इसमें शकुनि का रोल भी किया. ये एक प्रमुख रोल था और पूरी स्टोरीलाइन में चला था. गूफी एक्टिंग के अलावा कास्टिंग, राइटिंग, डायरेक्टर को असिस्ट करना ये सब भी करते रहे. पंजाब एरिया में लाइन प्रोडक्शन का काम करने वाले दर्शन औलख कैथलीन बिगलो की 'ज़ीरो डार्क थर्टी' से लेकर 'सुल्तान' और 'बजरंगी भाईजान' जैसी हिंदी फिल्मों में छोटे रोल्स में दिखे हैं. वे फिल्मों के बाकी डिपार्टमेंट्स में भी रुचि लेते रहते हैं. 'भाग मिल्खा भाग' में भी लाइन प्रोड्यूसर ने मिल्खा सिंह (फरहान अख़्तर) के बचपन के दोस्त का रोल किया.
नॉन-एक्टर्स की बात करें तो 1953 में आई थी फिल्म 'आह'. उसमें राज कपूर का किरदार तांगे में बैठकर जा रहा है. और तांगा चलाने वाला गाता है - 'छोटी सी ये ज़िंदगानी'. ये रोल किया था सिंगर मुकेश ने. बिज़नेस कंसल्टेंट, कॉलमिस्ट सुहैल सेठ 'गुजारिश' और 'रोग' जैसी फिल्मों में दिखे. सुभाषिनी अली, बृंदा करात जैसी पोलिटिशियन शोनाली बोस की फिल्म 'अमु' (2005) में एक्टिंग करती दिखीं.
Hitchcock Cameo In His Films
'टू कैच अ थीफ' (1955) के एक दृश्य में हिचकॉक.

डायरेक्टर्स तो अपनी फिल्मों में बहुत दिखे हैं. अल्फ्रेड हिचकॉक अपनी 52 में से 39 फिल्मों में कैमियो में दिखे. सुभाष घई अपनी बहुत सी फिल्मों में थोड़ी थोड़ी देर के लिए दिखते रहे. खासकर गानों में. जैसे - राम लखन (1988) के गाने 'तेरा नाम लिया' में. 'ब्लैक' फिल्म में एक सीन में अमिताभ नहीं थे तो उनकी जगह डायरेक्टर को असिस्ट कर रहे रणबीर कपूर को खड़ा करके सीन शूट किया गया.

(14.) सत्यजीत राय ने कास्टिंग को लेकर क्या ऑब्ज़र्व किया?

निर्विवाद रूप से वे दुनिया के महानतम फिल्ममेकर्स में से हैं. सत्यजीत राय. 1976 में उनकी लिखी बुक 'Our Films Their Films / हमारी फ़िल्में उनकी फ़िल्में' छपी. इसमें एक चैप्टर है - 'मेरे क्राफ्ट के कुछ पहलू'. इसमें वे संक्षेप में कास्टिंग को लेकर अपना मन सामने रखते हैं.
Satyajit Ray On Casting
राय.

राय लिखते हैं - "हॉलीवुड के लोग अपने प्रभुत्व के दिनों में, ख़ूब पैसा कमाने वाले स्टार्स के टैलेंट को सूट करने के लिए प्रॉपर्टीज़ खरीदा करते थे और वैसी ही फ़िल्मी कहानियां लिखा करते थे. मैं बहुत यकीन के साथ कह सकता हूं कि महत्व के मामले में यहां फिल्मों की स्टोरीज़ से भी पहले स्टार्स को दर्जा मिलता था. परफॉर्मिंग आर्ट जितने भी होते हैं, उनमें सदियों से ये होता चला आया है. मोज़ार्ट ने कुछ ख़ास कलावंतों के लिए महत्वपूर्ण संगीत लिखा. मेधावी बैले डांसर्स के इर्द गिर्द बैले कंपोज किए गए हैं. हाल के वर्षों में, बेंजामिन ब्रिटन, रोस्ट्रोपोविच के लिए सेलो कॉन्सर्टो लिखने के लिए प्रेरित हुए हैं. ऐसा ही हॉलीवुड फ़िल्मों में हुआ है. गार्बो, डीट्रिच, बोगार्ट, ब्रैंडो, मैरिलिन मनरो - इनके लिए कहानियां लिखी गईं. क्या चैपलिन हमेशा से ट्रैंप/आवारा की तलाश में नहीं रहते थे? और ज़्यादा हालिया दौर में देखें तो एंटोनियोनी और मोनिका विट्टी, गोदार और एन्ना करीना, फैलिनी और जुलिएट्टा मसीना के बारे में क्या कहेंगे? मुझे लगता है कि अगर बर्गमैन ने विक्टर होस्ट्रोम को श्रद्धांजलि देने की इच्छा न महसूस की होती, तो वो कभी 'वाइल्ड स्ट्रॉबैरीज़' नहीं बना पाते."
अपनी फ़िल्मों की कास्टिंग की बात करते हुए सत्यजीत राय बताते हैं - "मेरी जो तीन फिल्मों (पाथेर पांचाली, अपराजितो, अपूर संसार) की ट्रिलजी है, वो एक ऐसा काम है जिसे तब के उपलब्ध एक्टिंग मटीरियल के संदर्भ के बिना ही सोचा गया था. नतीजतन, इन फिल्मों के अधिकतर हिस्सों को नए लोगों से भरना पड़ा था. वहीं दूसरी तरफ, मैंने 'पारस पत्थर' लिखी तो तुलसी चक्रवर्ती को दिमाग में रखकर. 'नायक' लिखी तो उत्तम कुमार के लिए. 'कंचनजंगा', 'देवी' और 'जलसाघर' लिखी तो छबी बिस्वास के लिए."
राय अंत में कहते हैं कि "बहुत सी कहानियां तो मनन के स्तर के आगे ही नहीं जा पाती क्योंकि वो uncastable यानी कास्टिंग न कर पाने लायक साबित होती हैं."

(15.) निष्कर्ष / विचार

विस्तार से ऊपर बहुत कुछ कवर हो चुका है. ये कुछ बातें हैं जो सारे पक्षों और लोगों से सीधे या ऑफ द रेकॉर्ड बात करके समझ आती है.
1.  किसी भी कला क्षेत्र में आप आर्टिस्ट को बांध नहीं सकते, कि वो क्या करेगा और क्या नहीं करेगा. जिसको जो ठीक लगे वो करे. दस चीजें एक साथ करना चाहे तो करे. तो कास्टिंग डायरेक्टर, अगर एक्टिंग करना चाहे तो बिलकुल करे. 2.  कोई कास्टिंग डायरेक्टर जिस प्रोजेक्ट की कास्टिंग ख़ुद कर रहा है, अधिक से अधिक ये हो सकता है कि वो उसमें खुद काम करने से बचे. लेकिन ये भी किसी पर थोपा नहीं जा सकता. अगर डायरेक्टर-क्रिएटर को कोई कास्टिंग असिस्टेंट जच रहा है तो वो उसे क्यों न ले. पूरा प्रोसेस डेमोक्रेटिक होना चाहिए. 3.  एक्टर्स की निराशा को संबोधित करने के लिए कुछ किया जाए. ये ठीक है कि कास्टिंग का काम हेक्टिक होता है, उसकी अपनी मजबूरियां हैं. चाहे कितने ही साधन हों, ऑडिशन हों, कास्टिंग वाला एक परफेक्ट एक्टर ढूंढ़ने के लिए संयोगों पर भी बहुत निर्भर रहता है. हाथ पांव मारता ही रहता है. हो सकता है बेहतर एक्टर 10 मकान दूर ही रहता हो, लेकिन वो उससे कभी मिल ही न पाए. लेकिन एक्टर्स की इस शिकायत को दूर करने के लिए कुछ होना चाहिए कि 10 साल हो गए यहां और किसी ने अच्छा रोल ऑफर नहीं किया. 4.  इसका एक समाधान कम्युनिकेशन बढ़ाने में निहित है. जिन एक्टर्स के बारे में कास्टिंग डायरेक्टर बहुत अच्छा सोचते हैं कि कमाल का एक्टर है इसे मैं आगे जरूर कहीं न कहीं लूंगा. उन्हें ये बात किसी तरह कन्वे करें. उन्हें बताएं कि मैं तुम्हे देख रहा हूं, मुझे समय दो मैं जरूर तुम्हारे लायक कुछ काम तुम तक लाऊंगा. 5.  ऑडिशन की कतारें लंबी होती हैं. धूप में दूर दूर से एक्टर आते हैं. पैसा होता नहीं है. परिवार मुंबई में रहने लायक मदद ज्यादा दिन कर भी नहीं पाता. ऐसे में कास्टिंग कंपनियां आगे ख़ुद को इवॉल्व करते हुए इन कंडीशंस को भी बेहतर करें. 6.  जिन लोगों को वे सलेक्ट नहीं भी कर रही हैं, और अगर वे ऑडिशन देने आ रहे हैं तो उन्हें सम्मान से रखें. पानी, छाया, चाय, हो सके तो बेसिक नाश्ता, फल भी मुहैया करवाएं. वो ऑडिशन जिस प्रोडक्शन के लिए हो रहे हैं उसे इसका खर्च लेना चाहिए. इसमें कोई लाखों रुपये का खर्च भी नहीं आता है. 7.  हॉलीवुड में ऐसा होता है, अभी इस तर्क के लिए हिंदी फिल्म उद्योग यंग है. ख़ासकर कास्टिंग डिपार्टमेंट के लिहाज से. अभी ये इंडस्ट्री बनने की प्रक्रिया में ही है. धीरे धीरे ढांचे बेहतर होंगे. हमारे यहां प्रति व्यक्ति आय का फर्क पश्चिमी देशों के मुकाबले काफी है. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि कास्टिंग में जूनियर पदों पर काम करने वालों को पैसा बहुत कम दिया जाता है, कभी कभी दिया ही नहीं जाता है. ये अमानवीय है. पिछले साल जब सरकार ने 44 श्रम कानूनों को हटाकर उनकी जगह चार संहिताएं बनाईं तो श्रम मंत्रालय ने उसमें 178 रुपये का न्यूनतम वेतन का प्रस्ताव रखा. जिसे 'भुखमरी पगार' भी कहा गया. मंत्रालय की समिति ने न्यूनतम वेतन 375 रुपये करने का सुझाव दिया था. क्या कास्टिंग कंपनियों में इस हिसाब से भी पैसा दिया जाता है? जबकि उन्हें एक फिल्म या सीरीज़ की कास्टिंग करने के लाखों रुपये मिलते हैं. 8.  जिन एक्टर्स ने कास्टिंग कंपनियों पर संदेह जताया है और जो कारण बताए हैं, उनमें बहुत सी बातें hearsay / सुनी सुनाई बातें लगती हैं. उनका कोई साक्ष्य नहीं है. हालांकि इसका भी कोई प्रमाण नहीं है कि कास्टिंग की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी है. जिसे पारदर्शी होने की जरूरत है. कास्टिंग करने वालों को एक्टिंग करने से रोककर इसे पारदर्शी नहीं बनाया जा सकता. बल्कि एक्टर्स को अधिक मौके देकर, ज्यादा ऑडिशन के लिए इनवाइट करके इस पारदर्शिता को बढ़ाया जा सकता है.
यहां कोई अदालत नहीं लगी है, जहां कोई आरोप लगाने वाला है और कोई गुनहगार. यहां सिर्फ एक ऐसी कलात्मक व्यवस्था की बात है जिसे ज्यादा मानवीय, अवसरों से भरी और सहानुभूति पूर्ण बनाने की ज़रूरत है.
2019 में रिलीज़ हुई टॉड फिलिप्स की मूवी 'जोकर' में आर्थर, इंसानों की आपसी क्रूरता और निष्ठुरता को लेकर जो कहता है वो शायद हम सभी को अपनी दीवारों पर लिख लेने की ज़रूरत है. वो कहता है - “हर कोई एक-दूसरे पर चीखता चिल्लाता रहता है. कोई भी अब सभ्य नहीं रहा. कोई भी ये नहीं सोचता कि सामने वाला इंसान होना क्या होता है.”
Joker Movie Dialogue About Human Behaviour
हम सब आर्थर हैं.