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48 साल से चांद पर कोई इंसान क्यों नहीं गया?

3 साल में 12 इंसान चांद पर पहुंचाने वाले NASA के मून मिशन्स पर एक नज़र.

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'एक छोटा कदम, पूरी मानव जाति के लिए बड़ी छलांग साबित होगा.' - नील आर्मस्ट्रांग
पिछले कुछ हफ्तों से चर्चा का विषय चांद है. तो इस स्टोरी का मकसद होगा कि हम आपको मून मिशन्स का एक ठीक-ठाक ओवरव्यू दे डालें. वो मून मिशन्स जिन्होंने इंसान को चांद पर पहुंचाया.
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पहले ज़रूरी बात

बचपन से ही, जब भी हमने चांद की बातें सुनी है (मामा, प्रेमिका के इतर), अक्सर उन बातों में एक जीके का सवाल सुना है.
चांद पर जाने वाले पहले भारतीय कौन थे?
कुछ लोग जवाब देंगे राकेश शर्मा. मैं भी बहुत दिनों तक इसी भरम में रहा. लेकिन ये जवाब गलत है.
अगर गूगल सर्च करके देखें तब भी हमारे हाथ यही गलत जानकारी लगती है. मुझे नहीं पता कि हम लोगों तक ये गलत जानकारी कैसे पहुंची? लेकिन अब मुझे सही जानकारी पता चल चुकी है. सही जानकारी है-
राकेश शर्मा स्पेस यानी कि अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय हैं. वे स्पेस में जाने वाले न केवल पहले बल्कि इकलौते भारतीय हैं. और हां, चांद पर अब तक किसी भी भारतीय ने कदम नहीं रखा है.
भारत और अंतरिक्ष के सफर में अक्सर हम कल्पना चांवला और सुनिता विलियम्स का भी नाम सुनते हैं. लेकिन हमें उनके बारे में पूरी जानकारी पता नहीं होती.
भारत और अंतरिक्ष के सफर में अक्सर हम कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स का भी नाम सुनते हैं. लेकिन हमें उनके बारे में पूरी जानकारी पता नहीं होती.

कल्पना चावला का जन्म भारत में हुआ था लेकिन वे अमेरिकी नागरिक थीं. सुनीता विलियम्स भी भारतीय मूल की थीं. लेकिन वो अमेरिका में जन्मीं थी वहीं की नागरिक भी थीं. यही वजह है कि कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स की फोटो में अमेरिकी झंडा नज़र आता है. जबकि राकेश शर्मा की फोटो में भारतीय झंडा दिखता है.
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विक्रम को लेकर लेटेस्ट खबर ये है कि  नासा के जिस ऑर्बिटर को विक्रम की लैंडिंग साइट की तस्वीरें लेनी थी, वो तस्वीरें नहीं ले पाया है. करीब दो हफ्ते पहले यानी 7 सितंबर को विक्रम के चांद पर लैंड करना था. लेकिन चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर पर ISRO का विक्रम से संपर्क टूट गया. चंद्रयान पर चर्चा के बीच मैं मून मिशन्स के बारे में पढ़ रहा था. और कुछेक बातें मुझे बड़ी चौंकाने वाली लगीं. खासकर नासा के मून मिशन्स. जिन मिशन्स ने धड़ाधड़ इंसानों को चांद पर पहुंचाया. किस माहौल में उन मिशन्स का जन्म हुआ? और क्यों अचानक से वो मिशन्स बंद हो गए?

ऑन योर मार्क, गेट सेट, गो - स्पेस रेस

स्पेस एक्प्लोरेशन की कहानी शीत युद्ध से शुरू होती है. अमेरिका और सोवियत रूस ने शीत युद्ध का एक मोर्चा अंतरिक्ष में भी खोला. और जन्म हुआ स्पेस रेस का. इस रेस को आपको एक नज़र में देखना हो तो विकिपीडिया की मून मिशन्स वाली लिस्ट
पर नज़र मारिए. आपको सिर्फ दो ही झंडे नज़र आएंगे. आपको ये भी नज़र आएगा कि 1958 से 1975 के बीच मून मिशन्स की संख्या कितनी ज़्यादा है.
स्क्रीनशॉट की सीमा होती है. लिस्ट बहुत ही लम्बी है.
स्क्रीनशॉट की सीमा होती है. लिस्ट बहुत ही लम्बी है.

शीत युद्ध के बीच पनपी स्पेस रेस का ही नतीजा है कि चांद पर झंडा गाड़ना देश की शक्ति का एक बहुत बड़ा प्रतीक है. वैसे तो स्पेस अनंत है और स्पेस एक्प्लोरेशन को रेस मानना एक छुटभइया बात होगी. लेकिन पल दो पल को हम छुटभइया हो जाएं और साथ ही चांद को इस रेस की एक फिनिशिंग लाइन मान लें, तो यूएस और रूस की स्पेस रेस का विजेता ढूंढने में ज़्यादा देर नहीं लगेगी.
चांद पर कदम रखने वाला पहला इंसान एक अमेरिकन था. और यही नहीं अब तक चांद कदम रखने वाले 12 के 12 इंसान अमेरिकी नागरिक थे.

चंद अमेरिकन्स और चांद पर अपोलो

कुल जमा छह स्पेस-फ्लाइट्स हैं, जो सफलतापूर्वक इंसान को चांद तक ले गईं. इन स्पेस-फ्लाइट्स के नाम किन्ही प्रचीन राजवंश के राजाओं की तरह हैं. इनके पीछे का बस नंबर बदलता है. नाम वही रहता है. इन छह स्पेस-फ्लाइट्स के नाम हैं -
अपोलो 11 अपोलो 12 अपोलो 14 अपोलो 15 अपोलो 16 अपोलो 17
अपोलो एक ग्रीक देवता का नाम है. जिसके नाम पर अमेरिका ने अपने तीसरे स्पेस प्रोजेक्ट का नाम रखा. इससे पहले अमेरिका के दो स्पेस प्रोजेक्ट्स ऑलरेडी एक्शन में थे. प्रोजेक्ट मर्क्यूरी और प्रोजेक्ट जेमिनी. इन दोनों प्रोजेक्ट्स ने अपोलो के लिए ज़मीन तैयार की.
1961 में यूएस कांग्रेस को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी ने राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित किया था -
'इस दशक के अंत तक चंद्रमा पर एक आदमी को उतारना और उसे पृथ्वी पर सुरक्षित वापस लाना है'
जॉन एफ कैनेडी.
जॉन एफ कैनेडी.

पहला नशा - अपोलो 11

दो साल बाद 1963 में कैनेडी की हत्या हो गई. लेकिन जो लक्ष्य उन्होंने निर्धारित किया था वो उनकी हत्या के 6 साल बाद पूरा हुआ. और इसे पूरा किया अपोलो 11 ने.
अपोलो 11 ने 1969 में उड़ान भरी. कैनेडी के ऐलान के 8 साल बाद. और जहां से इसे लॉन्च किया गया उस जगह का नाम था - कैनेडी स्पेस सेंटर.
चांद पर दूसरा कदम बज़ एल्ड्रिन ने रखा था.
चांद पर दूसरा कदम बज़ एल्ड्रिन ने रखा था.

अपोलो 11 चांद पर इसानों को पहुंचाने वाला पहला अंतरिक्षयान था. वही अंतरिक्षयान जिसने नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज़ एल्ड्रिन को चांद की सतह पर उतारा. इनके साथ गए माइकल कॉलिन्स चांद के ऑर्बिट में ही चक्कर काटते रहे.
ये अपोलो के मून मिशन्स का एक स्टैंडर्ड प्रोसीजर था. स्पेस-फ्लाइट्स में कुल तीन लोग धरती से निकलते थे. तीन में से एक जन चांद के ऑर्बिट में चक्कर काटता था. और दो लोग चांद की सतह पर जाते थे. यही सिंपल सी मैथ्स है कि कुल छह सफल मिशन्स ने 12 लोगों को चांद की सतह पर उतारा.

हादसे

सफलता की शुरुआत अपोलो 11 से हुई. आखिरी सफल मिशन अपोलो 17 था. इस हिसाब से कुल सात मिशन्स होने थे. लेकिन चांद तक पहुंचने वाले मिशन्स की लिस्ट में हैं कुल छह मिशन्स. हमसे भूल नहीं हुई है. लेकिन नासा से एक चूक ज़रूर हुई थी. और इसी चूक का शिकार हुआ था- अपोलो 13.
अपोलो 13 के पहले दो मिशन्स चांद की सतह पर पहुंच चुके थे. ये तीसरा मिशन था. उम्मीद थी कि ये भी सफल होगा.
11 अप्रैल, 1970 को अपोलो 13 कैनेडी स्पेस सेंटर से चांद की लिए रवाना हुआ. लॉन्च को दो ही दिन हुए थे कि अपोलो 13 के ऑक्सीजन टैंक में गड़बड़ हो गई. अपोलो 13 चांद के नज़दीक था. लेकिन उसे चांद की सतह पर नहीं उतारा गया. वापस धरती बुला लिया गया.
अपोलो 13 मूवी का एक सीन. इस मूवी का सबसे फेमस डायलॉग है - Houston, we have a problem.
अपोलो 13 मूवी का एक सीन. इस मूवी का सबसे फेमस डायलॉग है - Houston, we have a problem.

अपोलो 13 का एक्सीडेंट और उसकी धरती तक सफल वापसी अपने आप में एक लंबा किस्सा है. उसको किसी और दिन के लिए छोड़ देते हैं.

अब तक का आखिरी - अपोलो 17

अपोलो 13 की गलती से नासा ने सीखा और अगले चार मिशन्स सफल रहे. अपोलो 17 ने दिसंबर, 1972 में चांद की सतह को छुआ था. ये आखिरी बार था जब किसी इंसान के कदम चांद को छू रहे थे.
आखिर ऐसा क्या हुआ कि तीन साल में 12 लोगों को चांद पर उतारने वाले नासा का मन छिटक गया. एक जवाब हमें खर्चे के एक ग्राफ से मिल सकता है. ये ग्राफ हमें बताएगा कि किस साल अमेरिका ने स्पेस पर अपने बजट का कितना हिस्सा खर्च किया.
नीचे एक ग्राफ है जो खर्च के अलावा यूएस और रूस के बीच के तनाव और शीत युद्ध में कॉम्पिटीशन के रोमांच के बारे में भी बहुत कुछ बताता है. 1957 में सोवियत रूस ने स्पेस में पहली सैटेलाइट छोड़ी थी. आपको 1958 में ग्राफ शुरू होता दिखेगा. 1961 में रूस ने पहला अंतरिक्षयात्री भेजा. यहां आपको ग्राफ तेज़ी से चढ़ता दिखेगा. और ये खर्चा 1967 तक चढ़ता ही जाएगा. क्योंकि 1966 तक इस स्पेस रेस में रूस अमेरिका से बहुत आगे था.
ग्राफ हमें बहुत कुछ बताते हैं. कम शब्दों में. ये ग्राफ स्पेस रेस में गर्मी और ठंड बता रहा है.
ग्राफ हमें बहुत कुछ बताते हैं. कम शब्दों में. ये ग्राफ स्पेस रेस में गर्मी और ठंड बता रहा है.

इसके बाद इस रेस में अमेरिका ही आगे रहा. रूस चांद पर एक भी इंसान नहीं उतार सका. जबकि अमेरिका ने चांद पर 12 इंसान उतारे. लगातार आगे रहने से अमेरिकन्स का ध्यान स्पेस रेस से दूर जाने लगा.

आगे का प्लान - बुश, ओबामा और ट्रंप

अपोलो 17 नासा के मून मिशन की आखिरी स्पेस-फ्लाइट थी. आगे चलकर अमेरिका ने चांद पर इंसान पहुंचाने वाले और भी प्रोग्राम्स किए. सबसे चर्चित जॉर्ज बुश के कार्यकाल में शुरू हुआ कॉन्सटेलेशन प्रोग्राम था, जिसे बाद में ओबामा ने बंद करा दिया.
बुश (2001-2009). ओबामा(2009-2017). ट्रंप(2-17-अब तक)
बुश (2001-2009). ओबामा(2009-2017). ट्रंप(2-17-अब तक)

2017 में अमेरिका में फिर सरकार बदली. डॉनल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने. उन्होंने नासा को वापस चांद पर एस्ट्रोनॉट भेजने के निर्देश दिए हैं. नासा का प्लान था कि 2028 में चांद पर एस्ट्रोनॉट भेजे जाएंगे. लेकिन 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' का नारा इतनी देर तक इंतज़ार नहीं कर सकता. अब नासा को 2024 तक अगला मनुष्य चांद पर पहुंचाने के निर्देश हैं.


वीडियो - नील आर्मस्ट्रांग के साथ अपोलो 11 में चांद पर गए बज़ एल्ड्रिन ने चांद पर पेशाब कर दिया

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