The Lallantop

जब ओशो को मिला 48 घंटे में पुणे छोड़ने का हुक्म

मुंबई में बंगला खोजा. नहीं मिला. पुणे आए. पर टिकने नहीं दिया गया, क्योंकि...

Advertisement
post-main-image
फोटो - thelallantop
ओशो. लैटिन भाषा के शब्द ओशोनिक से लिया गया है. यानी सागर में समा जाना. ओशो के फॉलोअर्स आज दुनियाभर में हैं. आचार्य रजनीश उर्फ ओशो आध्यात्मिक गुरु थे. ओशो भारत और अमेरिका दोनों जगह रहे. लेकिन एक बार ओशो का पुणे में अजब तरीके से 'स्वागत' हुआ. किस्सा 1986 आखिर का है. ओशो स्वेच्छाचारियों के गुरु थे. 80 के दौर में वो मुंबई (बंबई) में बंगला तलाश रहे थे. लेकिन उन्हें बंगला नहीं मिल पाया. तब 1986 में करीब 6 साल बाद ओशो पुणे के कोरेगांव के अपने आश्रम पहुंच गए. लेकिन तब वहां के कमिश्नर थे बीजे मिसर. पुलिस कमिश्नर मिसर ने आदेश दिया कि ओशो 48 घंटे के भीतर पुणे छोड़ दें. वजह बताई गई कि ओशो के शिष्य मादक द्रव्यों के सेवन और खुली जगहों पर अश्लील हरकत कर सकते हैं, जिससे शहर की शांति भंग होगी. लेकिन मिसर के आदेश के खिलाफ ओशो के शिष्य बंबई हाईकोर्ट गए. कोर्ट ने स्टे लगा दिया. दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया. ओशो ने वादा किया कि सिर्फ तीन महीने वो पुणे में रहेंगे. मिसर ने अपना आदेश तीन महीने के लिए रोक दिया. लेकिन इस शर्त के साथ कि ओशो के विदेशी भक्त जब आश्रम से बाहर निकलें तो भारतीय परंपरा का ख्याल रखें.

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement