
इसी सिलसिले में भोजपुरिया बेल्ट के कुछ लोगों ने अपना लेख लल्लनटॉप को भेजा. इस पूरे मुद्दे पर अपनी बात रखने की उनकी ये कोशिश है. इन्हीं में से एक हैं अतुल कुमार राय. बलिया निवासी हैं, काशी के वासी हैं. वहीं काशी हिंदू विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ परफार्मिंग आर्ट्स से एम.म्यूजिकोलॉजी की पढ़ाई कर रहे हैं. साहित्य में रखते हैं और एक ब्लॉग चलाते हैं. जल्द उपन्यास लाने वाले हैं.
आदरणीया कल्पना जी,
सादर प्रणाम..
उम्मीद है डीह बाबा,काली माई की किरपा से आप जहां भी होंगी सकुशल होंगी.
मैम, मैनें अभी आपका एक वीडियो देखा. कोई कार्यक्रम था. पता चला आप मेरे जनपद में आई थीं. देखा आपको लोग स्टेज पर तंग कर रहे थे. आपके ऊपर फूल फेंक रहें थे. आपसे वो सब गाने की फरमाइश कर रहे थे, जिसके लिए आप दुनिया भर में विख्यात हैं.
मैनें देखा आप दर्शकों को भिखारी ठाकुर जी के गीत सुनाना चाह रही थीं. लेकिन वो आवारा दर्शक "गमछा बिछाकर दिल लेने की टेक्नीक'' बताने वाला आपका सुमधुर गीत सुनना चाहते थे.
आप चंपारण सत्याग्रह और गंगा स्नान गाकर भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में तुरन्त शामिल करवाना चाहती थीं. लेकिन लोग.."मिसिर जी तू त बाड़s बड़ी ठंडा" सुनकर गर्म होना चाहते थे.
सच कहूं तो भारी दुःख हुआ. अपने घर में अपने ही उम्र के लड़कों से एक इतनी बड़ी महिला कलाकार का ये अपमान मुझ जैसे एक संगीत के छात्र से भला कैसे बर्दाश्त होगा?
मैं राजनाथ सिंह जी की कसम खाकर इसकी कड़ी निंदा करता हूं.
सच कहूं तो आपके साथ हुई अभद्रता से मन आज बड़े रोष से भर गया है. लेकिन मैम, आपने कभी सोचा कि समस्त भोजपुरीया बेल्ट में ये हालात कैसे पैदा हो गए? और इस हालात का कौन जिम्मेदार है ?

कल्पना पटवारी ने भिखारी ठाकुर पर शोध करने का दावा किया है, जिसे लेकर भोजपुरी समाज का एक बड़ा तबका नाराज है.
मैं आपको बताता हूं - आप जहां खड़ी होकर गा रही थीं न, उसी के ठीक दस कदम पीछे बलिया जनपद का राजकीय कन्या इंटर कालेज है. आपको पांच मिनट के लिए उस कॉलेज में आज से नौ साल पहले लेकर चलता हूं.
आप बस कल्पना कर लीजिए कि ये सन 2007 का अप्रैल है. और एक लड़की है, जिसका नाम पूजा है. पूजा उस कन्या इंटर कालेज में ग्यारहवीं की छात्रा है और वो भरी दोपहरी में कॉलेज से पढ़कर हकासी-पियासी अपने घर जा रही है. जैसे ही पूजा कालेज से निकलर दस कदम आगे बढ़ती है, आगे वाले चौराहे पर कुछ आवारा लौंडे उसको घूरने लगते हैं और आप ही की आवाज में एक गाना-
''होठ प लाली कान में बाली गाल दुनु गुलगुल्ला देखs चढ़ल जवानी रसगुल्ला."उस पूजा की चढ़ी जवानी को समर्पित करके पूछते हैं,
"काहो रसगुल्ला... काम ना होई" ?मैम, मैं आपको पूछता हूं, कभी दो मिनट के लिए दिल पर हाथ रखकर पूजा के दिल का हाल सोचिएगा, कैसा लगता होगा पूजा को ?
अच्छा, पूजा की छोड़िए. आप जहां खड़ी थीं, उसी के ठीक बगल में बलिया रेलवे स्टेशन है, जहां कैसेट की तमाम दुकानें हैं और बलिया के कोने-कोने में जाने के लिए बस-टैम्पो स्टैंड है. जिले भर के लोग यहां बाजार करने आते हैं. जरा दो मिनट सोच लीजिए कि आप ही की उम्र की एक भद्र महिला दो पुरुषों के साथ जीप में कहीं जाने के लिए बैठी है. तब तक जीप वाले ने बजा दिया है -
"बीचे फील्ड में विकेट हेला के हमके बॉलिंग करवलस हम त रोके नाहीं पईनी बलमुआ छक्का मार गइल.."

कल्पना के गाए गीत हमेशा से द्वीअर्थी रहे हैं.
मैम, दिल पर हाथ रखकर बताइएगा. क्या तब भी आपको इतना ही गुस्सा आएगा ? क्या तब भी आप ऑटो वाले या बस वाले पर इतना ही गुस्साएंगी ? आपको तो पांच मिनट में बड़ा कष्ट हुआ. आपने कभी सोचा कि पूरे भोजपुरीया बेल्ट में दसों सालों तक आपके गानों ने महिलाओं और लड़कियों को कितना कष्ट दिया है ? रास्ते में, बाज़ार में, सड़क पर, शादी और ब्याह में उनको कितना बेइज्जत किया है ?
आप तो शायद अंग्रेजी में ये कहेंगी कि "आय एम फ्रॉम आसाम, आई डोंट नो भोजपुरी"
मैम, सच कहूं तो जब आप जब ऐसा कहती हैं कि मुझे भोजपुरी नहीं आती तो आपके इस छद्म बनावटीपन और भोलेपन पर तरस आता है.
क्या इतना डूबकर गहराई से गाने वाली एक गायिका इतनी मासूम हैं कि उसे पता नहीं कि फील्ड में विकेट डालकर छक्का मारने का मतलब क्या होता है और वो कमबख्त कौन सा दिल है, जो गमछा बिछाकर दिया जाता है?
अरे ! मैम आप जैसे सभी लोगों को इतनी ही चिंता भोजपुरी की होती तो ये नौबत नहीं आती. आज तो पवन, निरहुआ, खेसारी, मनोज तिवारी से लेकर रवि किशन सबको भोजपुरी के स्वभिमान की बड़ी चिंता है. लेकिन मैं पूछता हूं कि इंटरव्यू के बाद अश्लील आइटम सॉन्ग को गाते और उस पर नाचते समय ये चिंता कहां चली जाती है?
सच कहूं तो आप लोगों का ड्रामा देखकर भोजपुरी नाम का कोई जीता-जागता आदमी होता तो अब तक मूस मारने वाली दवाई खाकर मर गया होता. इतना ही कहूंगा कि दर्शकों को भिखारी के नाम पर उल्लू बनाकर, भोजपुरी के स्वाभिमान और सत्याग्रह का रोना बन्द करिए.

भिखारी ठाकुर पर शोध करने वाले और कर चुके कई रिसर्चर और प्रफेसर भी कल्पना के शोध के दावे से नाराज हैं.
भिखारी को आप अच्छा गा रहीं हैं. मुझे भी कुछ गाने आपके ठीक लगते हैं. आपकी गायकी लाजवाब है. लेकिन दिल से कहूं तो भिखारी के कई गानों में भिखारी कहीं नहीं दिखाई देते. कल्पना हावी हो जाती हैं. क्योंकि ट्यून और लिरिक्स सुनकर भिखारी को गाना आसान है, भिखारी होना नहीं.
आपसे पूछता हूं. आपने भिखारी को गाया है लेकिन क्या इतना सीखा है कि एक कलाकार का काम समाज का मनोरंजन करना और शोहरत बनाकर पुरस्कार लेना भर नहीं होता है. इसके अलावा भी उसकी कोई नैतिक जिम्मेदारी है. आपको पता है भिखारी के गीत, उनके नाटक, उनके संवाद, समाज में फैली विद्रूपता और आह से उपजे थे. न की आपकी तरह नकल करने से.
आप जानती हैं? उस नाऊ भिखारी ने विधपा विलाप नाटक तब लिखा, जब उस क्षेत्र की परम्परा के अनुसार एक विधवा के सिर के बाल काटकर रोते हुए वो घर लौटा था. और फिर ऐसा गीत रचा कि वो नाटक आज भी देखते समय हर दर्शक एक विधवा का दर्द महसूस करने लगता है.
आपके पॉपुलर गीत सुनकर लड़कियां आज भी सर झुका लेती हैं. आपको पता है उस अनपढ़ भिखारी ने बेटी-बेचवा तब लिखा, जब समाज में लड़कियां पैसों के लिए बेच दी जाती थीं. और उस नाटक का इतना गहरा असर हुआ कि लड़कियों ने अपने घर वालों से विद्रोह कर दिया.

कल्पना अब भिखारी ठाकुर के लिखे गीतों को सुर दे रही हैं.
मैं आपसे पूछता हूं. आप बताइए कोई ऐसा गीत है आपका, जिसने समाज को बदलने का कार्य किया हो ? अरे ! साफ कहिए न कि आप भिखारी के नाम पर अपनी टिपिकल इमेज को बदलना चाहती हैं. अच्छा है. बदलिए. इस कदम का स्वागत रहेगा. बदलना ही चाहिए. लेकिन मैम अब बड़ी देर हो चुकी है. लोग आपको चुम्मा देने वाले गीत से जानते हैं. सत्याग्रह से नहीं. न ही इस जन्म में आपको भिखारी के नाम से जानेंगे.
जो होना था वो हो गया. सौ मर्डर करके सहस्रकुंडीय महायज्ञ कराने से पाप कम नहीं हो जाते मैम. आप महामंडलेश्वर भले बन जाइये. लोग देखते ही कहेंगे,
"बक्क ई तो सरवा बड़का हिस्ट्रीशीटर है. आज साधु बन गया."मेरी बात सोचिएगा. और पूछिएगा आप ही के साथ एनडीटीवी से लेकर रियलिटी शोज में जज की कुर्सी शेयर करने वाली पद्मश्री मालिनी अवस्थी जी से कि आप तो ददरी मेला में जाती हैं जहां लाखों लंठ जुटते हैं. क्या बलिया वालों ने आपके साथ अभद्रता की है? कभी पदम्श्री शारदा सिन्हा जी मिलेंगी तो उनसे भी जरूर पूछिएगा कि उनके साथ बलिया वालों ने कब इस तरह का व्यवहार किया है ?
बस. बुरा लगे तो माफी. अपने जिले के उन आवारा लड़कों की तरफ से भी माफी. जिनको आप जैसे सैकड़ों गायक-गायिकाओं ने भिखारी और महेंद्र मिसिर के गीत सुनने से आज तक वंचित रखा है.
आपकी कुशलता की कामना के साथ.
एक भोजपुरीया.