ओडिशा के दक्षिण में घने जंगलों और लहरदार पहाड़ियों से घिरा कोरापुट इलाका लंबे समय तक सिर्फ अपनी आदिवासी संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता था. लेकिन पिछले कुछ सालों में इसी जमीन से एक नई खुशबू उठी. कॉफी की खुशबू. और वो भी ऐसी कॉफी, जो न सिर्फ ओडिशा बल्कि भारत के नक्शे से निकलकर अंतरराष्ट्रीय बाजार तक छा गई है. रविवार 26 अक्टूबर 2025 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘मन की बात’ कर रहे थे तब उन्होंने भी इस कॉफी का खासतौर पर जिक्र किया और कहा कि इसका स्वाद ‘गजब का’ है.
कोरापुट कॉफी में ऐसा क्या है जो PM मोदी को 'गजब का' लगा?
ओडिशा की कोरापुट कॉफी की चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में की है. भारत में इस खास कॉफी की पैदावार 100 साल पहले शुरू हुई थी.
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ओडिशा के कोरापुट इलाके में उगाई जाने वाली इस स्पेशल कॉफी का नाम है- कोरापुट कॉफी (Koraput Coffee). तकरीबन 100 साल पहले एक राजा के प्रयोग के तौर पर शुरू हुई इस कॉफी को अब दुनिया भर में ‘भारतीय कॉफी’ के रूप में पहचाना जाने लगा है.
कोरापुट कॉफी क्या है?इस सवाल का मतलब तभी है, जब आप कॉफी-कॉफी में अंतर कर पाते हों. कितनी तरह की कॉफी आमतौर पर होती है, ये बात जानते हों. एस्प्रेसो, कैपचिनो, लाते, मोका, ये तो बनाने के तरीके के आधार पर कॉफी के अलग-अलग प्रकार हैं. लेकिन क्या आपको ये पता है कि बीन्स की क्वालिटी के आधार पर भी कॉफी मुख्य तौर पर 4 तरह के होते हैं. Nescafe की वेबसाइट पर चारों कॉफी के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. इनमें पहली है-
1. रोबस्टा कॉफी बीन्स. यह दुनिया में दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली कॉफी बीन है. ये खासतौर पर यूरोप, मिडिल ईस्ट और अफ्रीका में बहुत पसंद की जाती है. तीखा, तेज और कभी-कभी थोड़ा कड़वा स्वाद रखने वाली इस कॉफी बीन्स में काफी मात्रा में कैफीन होती है. इसकी खूशबू भी काफी तेज होती है.
2. अरेबिका सबसे मशहूर और सबसे ज्यादा पी जाने वाली कॉफी बीन है. इसकी शुरुआत इथियोपिया से हुई थी और कहा जाता है कि सबसे पहले इंसानों ने यही वाली कॉफी पी थी. बाद में यह अरब में खूब लोकप्रिय हुई और इसलिए इसका नाम पड़ गया- अरेबिका. यह ऊंचाई वाले इलाकों में उगती है. जैसे ब्राज़ील के पहाड़ी वर्षावन. ब्राजील आज अरेबिका का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. इसका स्वाद रोबस्टा के मुकाबले थोड़ा सॉफ्ट, मीठा और महकने वाला होता है.

3. तीसरी है लिबेरिका कॉफी बीन्स. यह अफ्रीका के लाइबेरिया और आस-पास के देशों में पाई जाती है. इसकी खुशबू फूलों जैसी होती है और स्वाद थोड़ा स्मोकी यानी धुएं जैसा गाढ़ा होता है. लेकिन इसकी खेती बहुत कम होती है. दुनिया की कॉफी का सिर्फ 2 फीसदी. इसी वजह से इसे ज्यादातर दूसरी बीन्स के साथ मिलाकर बेचा जाता है. अकेले ये बहुत कम मिलती है.
4. एक्सेलसा कॉफी बीन को अब लिबेरिका की ही एक किस्म माना जाता है, यह ज़्यादातर दक्षिण-पूर्व एशिया में उगाई जाती है और इसका उत्पादन बहुत कम है. इसका स्वाद थोड़ा फल जैसा और हल्का खट्टा-मीठा होता है. इसमें कैफीन की मात्रा भी कम होती है.
कोरापुट कॉफी अरेबिका प्रकार की कॉफी होती है, जिसका कुल इतिहास ही 100 साल पुराना है. कोरापुट ओडिशा के दक्षिण में एक जगह का नाम है, जहां इस कॉफी को पहली बार उगाया गया था. इसी के नाम पर इस कॉफी का नाम कोरापुट कॉफी मशहूर हो गया.
कैसे शुरू हुई ये कहानी?कोरापुट में कॉफी की शुरुआत कोई कॉर्पोरेट प्रोजेक्ट नहीं थी, बल्कि एक राजा के प्रयोग से इसका उत्पादन शुरू हुआ था. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरापुट में कॉफी की कहानी शुरू हुई थी साल 1930 में, जब जयपुर (जैपोर) रियासत के महाराजा राजबहादुर रामचंद्र देव ने यहां पहली बार कॉफी की खेती की शुरुआत की.
आजादी के बाद ओडिशा सरकार ने इस पर और काम किया. सरकार के मृदा संरक्षण विभाग (Soil Conservation Department) ने कोरापुट में कॉफी उत्पादन को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया ताकि मचकुंड जलविद्युत परियोजना (Machkund hydro-electric project) में मिट्टी जमने (siltation) की समस्या को रोका जा सके.

1950 से 1960 के दशक में Coffee Board of India और ओडिशा की राज्य सरकार ने इस राजा के इस प्रयोग को संगठित खेती में बदल दिया. इन प्रयासों का नतीजा ये हुआ कि अब कोरापुट में करीब 3 हजार 500 हेक्टेयर में कॉफी की खेती हो रही है. इनमें से लगभग 778 हेक्टेयर जमीन पर निजी खेती होती है, जो करीब 4 हजार 300 आदिवासी किसान संभालते हैं.
कोरापुट कॉफी के अच्छे दिन तब आए, जब ओडिशा सरकार ने 2019 में इसे एक ब्रांड के रूप में लॉन्च किया और आउटलेट्स और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के माध्यम से घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी बिक्री को जोरदार तरीके से बढ़ाया.
कोरापुट अब सस्टेनेबल खेती और संगठित मार्केटिंग के मॉडल के रूप में उभर चुका है. यहां के अनुभव से प्रेरित होकर और भी किसान कॉफी की खेती अपना रहे हैं. एक सरकारी अध्ययन के मुताबिक, कोरापुट में 1.46 लाख हेक्टेयर जमीन कॉफी के लिए उपयुक्त है. ऐसे में, यहां जिला प्रशासन ने भी तय किया है कि साल 2025-26 में 1 हजार हेक्टेयर भूमि पर कॉफी के लिए शेड प्लांटेशन (छाया पेड़ों की खेती) शुरू की जाएगी.
क्या है कोरापुट कॉफी की खासियतकोरापुट की असली खूबसूरती उसकी जमीन और मौसम में बसती है. यह इलाका पूर्वी घाट (ईस्टर्न घाट) की गोद में बसा है. चारों तरफ लहरदार पहाड़ियां फैली हैं. गहरी घाटियां हैं. बहती नदियां और शानदार झरने हैं. पेड़ों से ढके जंगल इलाके की खूबसूरती पर चार चांद लगाते हैं. कोरापुट की हवा में नमी रहती है और धूप भी भरपूर मिलती है. यही माहौल कॉफी के पौधों के लिए बिल्कुल परफेक्ट माना जाता है.
समुद्र तल से 3000 से 4500 फुट की ऊंचाई पर स्थित कोरापुट की कॉफी धीरे-धीरे पकती है. पकने का यह धीमापन ही है जो इसके बीजों में गजब का फ्लेवर लेकर आती है. कोरापुट की कॉफी अपने तीखी एसिडिटी, चॉकलेट जैसी मिठास और फूलों की हल्की सुगंध के लिए जानी जाती है.
कोरापुट कॉफी की खास बात सिर्फ इसका स्वाद नहीं है, बल्कि इसके उगाने का तरीका भी है. कोरापुुट में पूरी तरह जैविक (ऑर्गेनिक) तरीके से कॉफी उगाई जाती है. लाल और पकी हुई चेरी को हाथ से तोड़ा जाता है. फिर उन्हें सुखाया, भूना और पीसा जाता है.
द हिंदू की एक रिपोर्ट में ओडिशा की आदिवासी विकास सहकारी निगम लिमिटेड (TDCCOL) की प्रबंध निदेशक मानसी निंभाल बताती हैं कि कोरापुट कॉफी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए तोड़े जाने वाली रात ही कोरापुट के प्रोसेसिंग यूनिट में फलों का गूदा अलग (de-pulp) किया जाता है. इसके बाद इनके बीजों को 11 दिनों तक धूप में सुखाया जाता है. ये पूरा प्रोसेस अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक किया जाता है. यही वजह है कि उसके स्वाद में वैश्विक क्वालिटी झलकती भी है.
TDCCOL ही वह संस्था है, जो कोरापुट कॉफी की खरीद, इसे सुखाने, ग्रेडिंग और मार्केटिंग का काम करता है.

दुनिया भर में कोरापुट की कॉफी ने अपनी अलग पहचान बना तो ली है लेकिन यह जिस प्रदेश में होती है, वह देश का सबसे ज्यादा कॉफी उत्पादक राज्य नहीं है.
भारत दुनिया के सबसे ज्यादा कॉफी उत्पादक देशों में 6ठे नंबर पर आता है. ब्राजील, वियतनाम, कोलंबिया, इंडोनेशिया, इथियोपिया और होंडुरास के बाद भारत का नंबर है. भारत की इस वैश्विक हैसियत के लिए अगर आपको किसी एक राज्य का शुक्रिया अदा करना है तो वह कर्नाटक है. पश्चिमी घाट की आदर्श जलवायु के कारण यह राज्य देश की 70 प्रतिशत से ज्यादा कॉफी उगाता है.
अगला नंबर केरल का है, जो भारत की लगभग 20 प्रतिशत कॉफी का उत्पादन करता है. यहां के प्रमुख क्षेत्र वायनाड और इडुक्की के कुछ हिस्से हैं, जहां भारी बारिश और छायादार बागानों की वजह से रोबस्टा कॉफी की खूब खेती की जाती है.
तमिलनाडु भारत की लगभग 5 फीसदी कॉफी का उत्पादन करता है. नीलगिरि पहाड़ियों और शेवरॉय पहाड़ियों की ठंडी जलवायु और उपजाऊ मिट्टी कॉफी के लिए बेस्ट है.
भारत की बाकी कॉफी पूर्वोत्तर राज्यों, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र में पैदा होती है. पूर्वोत्तर में नागालैंड और मेघालय जैसे राज्यों में कॉफी उगाई जा रही है. आंध्र प्रदेश की अराकू घाटी आदिवासी समुदायों के अपने ऑर्गेनिक कॉफी आंदोलन के लिए पहले ही विश्वस्तर पर अपनी पहचान बना चुकी है. महाराष्ट्र की कॉफी मुख्यतः चंद्रपुर और गढ़चिरौली क्षेत्रों से आती है.
और ओडिशा में कोरापुट कॉफी उत्पादन के नए और बड़े केंद्र के रूप में उभरकर सामने आ रहा है.

मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के कुल कॉफी उत्पादन में कोरापुट का हिस्सा धीरे-धीरे बढ़ रहा है और इसके निर्यात में भी बढ़ोतरी हो रही है. दुनिया भर में इसकी मांग बढ़ने लगी है और यही वजह है कि पीएम मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में इस कॉफी का खासतौर पर जिक्र किया है.
क्या कहा पीएम मोदी ने?रविवार 26 अक्टूबर को पीएम मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि कोरापुट कॉफी का स्वाद अद्भुत होता है और केवल इतना ही नहीं. स्वाद के अलावा कॉफी की खेती से ओडिशा के किसानों को लाभ भी हो रहा है. उन्होंने इसे ‘ओडिशा का गौरव’ बताया और कहा कि 'दुनियाभर मे भारत की कॉफी बहुत लोकप्रिय हो रही है और भारतीय कॉफी की पहचान दुनियाभर में और मजबूत हो रही है. इसी कारण कॉफी को पसंद करने वाले कहते हैं- India's coffee is coffee at its finest. It is brewed in India and loved by the world.'
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