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फोन वाला गरीब नहीं, साइकिल वाला गरीब नहीं, रेडियो वाला गरीब नहीं, तो गरीब आखिर है कौन?

नीति आयोग ने गरीबी तय करने वाली MPI रिपोर्ट जारी की है

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बहुआयामी गरीबी सूचकांक यानी MPI की एक रिपोर्ट NITI आयोग ने 26 नवंबर को जारी की है.
भारत सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग (NITI Aayog) ने शुक्रवार 26 नवंबर को राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक यानी MPI की एक रिपोर्ट जारी की है. MPI गरीबी को स्वास्थ्य, शिक्षा और लाइफ़ स्टाइल के कुछ महत्वपूर्ण और बुनियादी मानकों के आधार पर परिभाषित करती है. यानी आपके पास कितने रुपए हैं, इससे यह तय नहीं हो सकता कि आप गरीब हैं या नहीं. MPI की रिपोर्ट जिन मानकों के आधार पर गरीबी को परिभाषित करती है, उन मानकों पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. और इसके चलते ही यह पूरी रिपोर्ट विवादों में आ गई है. आइए समझते हैं कि ये मामला क्या है? MPI क्या है? पहले ये जान लेते हैं कि MPI क्या है? 25 सितंबर, 2015 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 17 सस्टेनेबल डिवेलप्मेंट गोल्स (SDG) तय किए थे. SDG का सबसे बड़ा मकसद हर जगह और सभी रूपों में गरीबी को समाप्त करना है. SDG में यह भी साफ़ तौर पर कहा गया है कि गरीबी किसी एक मानक से तय नहीं की जा सकती. इसी वजह से MPI को विकसित किया गया. MPI से UN को दुनियाभर में गरीबी की स्थिति का आंकलन करने में मदद मिलती है. MPI की गणना कुछ अलग-अलग मानकों (इंडिकेटर्स) के आधार पर होती है. इसका एक लेखा-जोखा भी संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बनाया है. हालांकि, हर देश अपनी स्थिति के मुताबिक़ इन इंडिकेटर्स में थोड़ा बहुत बदलाव कर सकता है. भारत में MPI की गणना कैसे होती है? भारत में MPI की गणना 12 इंडिकेटर्स के आधार पर की जाती है. इनमें पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, प्रेग्नन्सी के दौरान देखभाल, स्कूली शिक्षा के साल, स्कूल में उपस्थिति और खाना पकाने में कौन से ईंधन का इस्तेमाल होता है, जैसे इंडिकेटर्स शामिल हैं. इसके अलावा स्वच्छता, पीने के पानी की उपलब्धता, बिजली है या नहीं, घर है या नहीं, संपत्ति कितनी है और बैंक या पोस्ट ऑफ़िस में खाता है या नहीं, इन्हें भी 12 इंडिकेटर्स में शामिल किया गया है. अब सवाल यह कि MPI के लिए ये आंकड़े कैसे जुटाए गए?
Mpi Niti Aayog
नीति आयोग द्वारा इस्तेमाल किए गए इंडिकेटर. (फ़ोटो- रिपोर्ट का स्क्रीनग्रैब)
NHFS-4 ही क्यों? MPI की रिपोर्ट के लिए ये आंकड़े नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे यानी NHFS-4 के डेटा से जुटाए गए हैं, जिन्हें 2015 और 2016 के बीच इकट्ठा किया गया था. NHFS-4 का इस्तेमाल इस वजह से किया गया क्योंकि तब तक मोदी सरकार की गरीबों के लिए बनाई गईं कई बड़ी योजनाएं शुरू नहीं हुई थीं. प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY), जल जीवन मिशन (JJM), स्वच्छ भारत मिशन (SBM), प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य), प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY), प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) और पोषण अभियान जैसी कई कल्याणकारी योजनाएं सरकार ने 2014 के बाद लागू की हैं.
केंद्र सरकार ने शनिवार 27 नवंबर को एक बयान जारी करते कहा भी,
"NHFS-4 के डेटा से जुटाए गए ये (आँकड़े) आधारभूत स्तर पर हालात का सही जायज़ा लेने में मदद करेंगे. क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण योजनाओं के बड़े पैमाने पर रोलआउट होने से पहले के डेटा के आधार पर इन्हें तैयार किया गया है."
सरकार ने अपने बयान में ये भी कहा है कि अब जो दूसरी MPI जारी की जाएगी, वो NHFS-5 के डेटा के आधार पर की जाएगी, जो 2019 और 2020 के बीच जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित होगी. और इससे सरकारी योजनाओं के लागू होने की स्थिति भी साफ़ पता चल जाएगी. बिहार में 51 प्रतिशत तो केरल में केवल 0.7 प्रतिशत ग़रीबी दर इस MPI की रिपोर्ट के मुताबिक़, केरल में ग़रीबी दर सबसे कम है. केरल में महज़ 0.71 प्रतिशत गरीबी है. वहीं गरीबी के मामले में सबसे ख़राब स्थिति बिहार की है, जहां 51.91% ग़रीबी है. बिहार के बाद झारखंड में 42.16%, उत्तर प्रदेश में 37.79% और मध्य प्रदेश में 36.65% ग़रीबी दर है. MPI की रिपोर्ट में क्या गलत बताया जा रहा है? MPI की रिपोर्ट को कई लोग गलत बता रहे हैं. इसके 12 इंडिकेटर्स पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. इसको लेकर NITI आयोग की काफ़ी आलोचना हो रही है. आइये इस विवाद को समझते हैं.
  • MPI के इंडिकेटरर्स के मुताबिक़ अगर किसी परिवार में इनमें से एक से ज़्यादा चीजें हैं, जैसे कि मोबाइल फ़ोन, रेडियो, टेलीफ़ोन, कम्प्यूटर, बैलगाड़ी, साइकिल, मोटर साइकिल, फ़्रिज आदि. तो वह गरीब नहीं है. यानी अगर किसी परिवार में साइकिल भी है और रेडियो भी, तो वो परिवार ग़रीब नहीं माना जा सकता.
  • ठीक इसी तरह अगर किसी का घर मिट्टी, गोबर से नहीं बना है, तो वो गरीब नहीं है. चाहे घर कितना ही छोटा क्यों न हो.
  • अगर किसी के घर बिजली आती है, तो वो गरीब नहीं है.
  • अगर किसी के परिवार में किसी भी सदस्य के पास बैंक अकाउंट है या पोस्ट ऑफ़िस में अकाउंट है, तो भी वो गरीब नहीं है.
  • अगर किसी परिवार को साफ़ पानी लाने में 30 मिनट से ज्यादा का समय लगता है, तो ही उस परिवार को ग़रीब माना जाएगा. यह समय पैदल दूरी तय करने के आधार पर कैल्क्युलेट किया जाएगा.
  • अगर कोई परिवार गोबर, पराली, लकड़ी और कोयला के अलावा खाना बनाने के लिए किसी और ईंधन का इस्तेमाल करता है, जैसे कि केरोसीन या LPG, तो उसे ग़रीब नहीं माना जाएगा.
पॉलिसी से जुड़े मसलों पर शोध करने वाली संस्था ट्राय-कॉन्टिनेंटल इंस्टिट्यूट फ़ॉर सोशल रीसर्च में काम करने वाले अर्थशास्त्री सुबिन डेनिस बताते हैं कि MPI में दिए गए आँकड़े भ्रामक हैं. वो कहते हैं,
"जिन पैमानों के आधार पर ये MPI बनाया गया है, उससे शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले ज़्यादातर लोग ग़रीबी रेखा में नहीं आएंगे, जो दिल्ली के आँकड़ों में दिखता भी है. जहां गरीबी महज़ 4.79 प्रतिशत बताई गई है."
सुबिन यह भी कहते हैं कि जब NHFS-5 के आधार पर आँकड़े आएंगे, तो ऐसा लगेगा कि देश से ग़रीबी मानो ग़ायब हो गई, जो सिर्फ़ और सिर्फ़ भ्रामक होगा.
ग़रीबी के अलग-अलग पैमाने बताते चलें कि ईकनॉमिक्ली वीकर सेक्शन यानी कि EWS के तहत जिन तबकों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता उन्हें भी 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है. इसका पैमाना बस इतना है कि परिवार की कुल आय 8 लाख रुपए से कम होनी चाहिए. ठीक ऐसे ही, अन्य पिछड़े वर्ग यानी कि OBC से आने वाले लोगों के लिए भी आरक्षण तब मिलता है, जब उनके परिवार की कुल आय 8 लाख रुपए से कम होती है.
ऐसे में सरकार ने 8 लाख का आँकड़ा कैसे तय किया था, इसका जवाब अब तक किसी के भी पास नहीं है. सुप्रीम कोर्ट भी सरकार से ये सवाल पूछ चुकी है. जवाब अभी तक नहीं मिला है. ऐसे रिपोर्ट्स के आधार पर सरकार नीतियां बनाती है मोदी सरकार ने उज्ज्वला योजना, जन-धन बैंक खाते, घर-घर बिजली जैसी कई जन-कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं. ऐसे में ये देखना रोचक होगा कि NHFS-5 के आधार पर जब MPI जारी की जाएगी, तो उसकी क्या कहानी होगी. लेकिन अभी एक और बात का ज़िक्र होना बहुत ज़रूरी है. ये आँकड़े सिर्फ़ UN या उनकी संस्थाओं के लिए उपयोगी नहीं हैं, ये भारत सरकार के नीति निर्धारण में भी उतनी ही अहम भूमिका निभाते हैं. इस रिपोर्ट की शुरुआत में MPI और इससे जुड़े चैप्टर में ये बात साफ़-साफ़ बताई गई है. इन आँकड़ों के आधार पर ही सरकार योजनाएं बनाती है, जिसका लाभ हमें मिलता है. अब अगर ये आँकड़े भी भ्रामक होंगे तो नीति निर्धारण पर इसका कितना भारी प्रभाव पड़ेगा आप समझ सकते हैं.

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