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क्रूर सिद्धांत निकोलो मैकियावली के, जो चाणक्य का करप्ट वर्जन था

तमाम नेताओं ने इस आदमी से सीखा है कि 'प्रजा पर जो अत्याचार करना है, एक बार में कर डालो'.

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पॉलिटिकल फिलॉसफर निकोलो मैकियावली (फोटो: leaderonomics)
himanshu singh
हिमांशु सिंह दी लल्लनटॉप के दोस्त हैं. हमें पढ़ते रहते हैं और हमारे लिए लिखते भी रहते हैं. हमारे लिए लिखा है इसका मतलब आपके लिए लिखा है. इस बार हिमांशु लिख रहे हैं निकोलो मैकियावली और उसके सिद्धांतों पर. जो उसके जितने ही अजीब और किसी-किसी जगह तो बेहद क्रूर थे. पढ़िए:


हज़ारों साल पहले मिस्र यानि इजिप्ट में परंपरा थी कि राजा या रानी के मरने पर उनकी पसंदीदा चीजों को उनके साथ ही दफ़ना दिया जाता था. करीबी नौकरों और मुंहलगी दासियों का भी यही हश्र होता था. कारण ये बताया जाता था कि ये चीजें और ये लोग राजा और रानी की अगली दुनिया में उसके काम आएंगे, लेकिन असलियत कुछ और थी. दरअसल ये मिथक इसलिए गढ़ा गया था ताकि करीबी नौकर और दासियां राजपरिवार के साथ गद्दारी न करें और हर तरह से उनकी रक्षा करें. राजा की इस कुटिलता को अगर एक शब्द में समेटा जाए तो वो शब्द होगा- मैकियावेलेनिज़्म (Machiavellianism). ये 'मैकियावेलेनिज़्म' दरअसल निकोलो मैकियावली नाम के एक पॉलिटिकल फिलॉसफर के नाम से आया है, जो चाणक्य का करप्ट वर्जन था.
सन 1469, यानी जिस साल अपने यहां गुरू नानक देव का जन्म हुआ, ठीक उसी साल इटली के फ्लोरेंस शहर में ये "शैतान का शागिर्द" पैदा हुआ और भारत में पानीपत की पहली लड़ाई के साल भर बाद यानी सन 1527 में ये मर गया. अपनी 58 साल की ज़िंदगी में इस "तानाशाहों के उस्ताद" ने जो सिद्धांत दिए, उसकी मौत के 5 साल बाद 'द प्रिंस' नाम की किताब में पब्लिश हुए. उन्हीं सिद्धांतों की बदौलत आज भी दुनियाभर के तमाम राजनेता अपनी जनता को ठग रहे हैं.
'द प्रिंस' नाम की किताब में उनके सिद्धांत छपे.
'द प्रिंस' नाम की किताब में उनके सिद्धांत छपे.

सच्चाई तो ये है कि पहली बार जब मैंने इस मैकियावली के सिद्धांत पढ़े, तो मैं ये सोचकर हैरान था कि आज भी हमारे राजनेता किस कदर इस कुटिल विचारक की कही बातों का शब्दशः पालन करते हैं और सफल रहते हैं. आप खुद पढ़िए और अनुमान लगाइए कि हमारे किस नेता पर कौन सी बात का असर है -
# राजा को जो भी अत्याचार करना हो, एक ही बार में कर डालना चाहिए.
# जनता दरअसल आशाओं और आश्वासनों की भूखी होती है. मधुर वचन बोलकर उसका उत्साह बढ़ाना जरूरी है. लेकिन जब उसके सुंदर सपने टूट जाते हैं, तब भी वह अपने प्रिय नेताओं से सांत्वना और संवेदना के शब्द सुनकर आश्वस्त हो जाती है. मैकियावली लोगों की इस कमजोरी को पहचानता था.
# चूंकि साधारणतः मनुष्य कृतघ्न, सनकी, धूर्त, डरपोक और लालची होते हैं, इसलिए उन्हें डराकर काबू में रखना चाहिए, प्रेम से नहीं. ऐसे लोगों के साथ राजा को सिर्फ सच्चरित्रता का ढोंग करना चाहिए. वो डंके की चोट पर कहता था कि "संपत्ति नष्ट करने वाले की तुलना में कोई व्यक्ति अपने पिता के हत्यारे को जल्दी माफ़ कर देता है."
# यदि ऊंचे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अनैतिक साधन भी अपनाए जाते हैं तो लोग इसके अच्छे परिणाम देखकर उन अनैतिक साधनों के प्रयोग को क्षमा कर देंगे.
# राज्य की स्थापना के लिए बल की जरूरत होती है, लेकिन उसे चलाने के लिए छल की जरूरत होती है.
# राजा को शेर की तरह बहादुर और लोमड़ी की तरह चालाक होना चाहिए.
खैर, सच्चाई तो ये है कि मैकियावली राजतंत्र का समर्थक था. उसके लिए राजा और उसकी सत्ता साध्य थे, जबकि प्रजा और राज्य साधन. समझने की बात है कि उसके ये सिद्धांत राजतंत्र के लिए भले ही हितकारी रहे हों, पर लोकतंत्र में ये पूरी तरह से जनता विरोधी हैं. लेकिन दुख की बात ये है कि भारत जैसे आदर्श लोकतांत्रिक देश में भी ये मैकियावलिज़्म अपने पूरे उफान पर है.


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