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अंगूर में नींद की दवा मिलाकर तिहाड़ से भागने वाले चार्ल्स शोभराज की कहानी!

नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने उसे रिहा करने के आदेश क्यों दिए हैं?

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चार्ल्स शोभराज (फोटो: इंडिया टुडे)

No one has ever caught me. I expected to feel great guilt, but I did not. I felt free.

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‘कोई भी आज तक मुझे पकड़ नहीं पाया. मुझे लगा था कि मैं बुरा महसूस करूंगा. लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ. बल्कि मैंने खुद को आज़ाद महसूस किया.’

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ये डायलॉग 2021 में नेटफ़्लिक्स पर आई वेब सीरीज़ ‘द सर्पेंट’ से लिया गया है. ये डायलॉग बोलने वाले का नाम चार्ल्स शोभराज था. जिसे पूरी दुनिया कुख्यात बिकिनी किलर के नाम से जानती है. वही चार्ल्स शोभराज, जो वियतनाम में पैदा हुआ और दुनियाभर में हत्या और लूटपाट की अनगिनत घटनाओं को अंजाम दिया. वही शोभराज, जिसने पुलिस को इतना चकमा दिया कि उसका नाम सर्पेंट या सांप पड़ गया. जिसे तिहाड़ जेल की चहारदीवारी भी क़ैद नहीं कर पाई. जिसके ऊपर बेशुमार किताबें लिखी गईं, फ़िल्में और वेब सीरीज़ बनाईं गई. वो चार्ल्स शोभराज पिछले 19 बरसों से नेपाल की जेल में बंद था. अब उसकी आज़ादी के दरवाज़े खुलने जा रहे हैं. क्योंकि नेपाल की सर्वोच्च अदालत ने उसकी रिहाई का आदेश जारी कर दिया है.

तो आइए समझते हैं-

- चार्ल्स शोभराज की कहानी क्या है?

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- वो पुलिस को कैसे चकमा देता रहा?

- उसकी गिरफ़्तारी कैसे हुई?

- नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने उसे रिहा करने के आदेश क्यों दिए हैं?

साल 1944 की बात है, उस वक्त वियतनाम पर फ़्रांस का क़ब्ज़ा था. साइगॉन शहर में एक कपल रहते थे. लड़का भारत का और लड़की वियतनामी. वो लोग बेहद साधारण ढ़ंग से अपनी ज़िन्दगी बिता रहे थे. फिर उनका एक बेटा हुआ. बेटे का नाम रखा गया चार्ल्स शोभराज. उस कपल ने कभी शादी नहीं की थी. बच्चे के जन्म के बाद पिता ने उसे रखने से इंकार कर दिया. कपल का कुछ वक्त में सेपरेशन हो गया. शोभराज की मां ने फ़्रेंच आर्मी के एक लेफ्टिनेंट से शादी रचा ली. शोभराज की परवरिश ऐसे माहौल में हो रही थी जहां अपराध बहुत फैला हुआ था. इसका असर उसपर भी पड़ने लगा. मां-बाप ने उसे एक कैथोलिक स्कूल में डाला लेकिन उसका वहां मन नहीं लगा, अपनी किशोरावस्था में ही वो छोटे-मोटे अपराधों में शामिल रहने लगा. 1963 में शोभराज को चोरी के लिए पहली बार हिरासत में लिया गया. पेरिस के पास पॉसी जेल में उसने अपनी पहली सज़ा काटी.

जेल के बाहर चार्ल्स शोभराज (AP)

सज़ा काटने के बाद शोभराज भारत आया. अपने रिश्तेदारों के साथ रहने. भारत में उसका मन नहीं लगा तो बैग पैक कर फिर फ्रांस चला गया. इस बार फ्रांस में उसकी मुलाकात अंडरवर्ल्ड के कुछ लोगों से हुई. वो उनके साथ घुलने-मिलने लगा. अपराध की दुनिया में उसकी दिलचस्पी बढ़ने लगी थी. उसने अपराध करके बचने के तौर-तरीके सीखे. इसके साथ ही उसकी मुलाकात पेरिस की एक महिला शांटाल से हुई. शोभराज एक तरफ वो अंडर वर्ल्ड के लोगों के साथ घूमता और दूसरी तरफ शांटाल से मिला करता. वो शांटाल के साथ ज़्यादा वक्त बिताने लगा. दोनों को प्यार हुआ, शोभराज ने जिस दिन शांटाल से शादी के लिए पूछा उसी दिन उसकी गिरफ्तारी हो गई. उसे 8 महीने की जेल हुई. इन 8 महीनों के दौरान शांटाल उसके साथ बनी रही. इस बात से शोभराज काफी प्रभावित हुआ. उसने जेल से छूटते ही शांटाल से शादी रच ली.

शोभराज पर इस समय तक कई और चार्जेस के तहत केस चल रहे थे. 1970 में उसकी पत्नी गर्भवती हो गई, गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने फ्रांस को टाटा, बाय-बाय कर दिया. फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों के साथ दोनों पूर्वी यूरोप की यात्रा पर निकल पड़े. रास्ते में शोभराज कई टूरिस्ट से मिला, और उनसे दोस्ती के बहाने लूटपाट की. ये पहली बार था जब वो विदेशियों से लूटपाट कर रहा था. इन घटनाओं को अंजाम देते हुए उसने लूटपाट का एक यूनिक तरीका खोज निकाला जो जिंदगी भर उसके काम आया. तरीका ये था कि वो ड्रग्स लेने वाले फ्रेंच और अंग्रेज़ी भाषी पर्यटकों से दोस्ती गांठता. दोस्ती के झांसे में उन्हें नशीली दवाई पिलाता और बेहोश होते ही उनका माल लूटकर रफूचक्कर हो जाता. लेकिन लूटपाट का ये मामला तब संगीन होने लगा, जब शोभराज पर हत्या के आरोप भी लगने लगे.

यूरोप का चक्कर काटकर वो अपनी पत्नी के साथ मुंबई आया. वहां उनकी बेटी उषा का जन्म हुआ. कहा जाता है इसी के बाद से शोभराज के असल आपराधिक जीवन की शुरुआत हुई.

शोभराज की छोटी-मोटी चोरियां मुंबई में जारी थीं. लेकिन उसे लगता था कि वो किसी बड़े काम के लिए बना है. 1973 में उसने बड़ा हाथ आजमाने की कोशिश की. मुंबई के होटल अशोका में एक जूलरी शॉप थी. शोभराज की नज़र कई दिनों से उसपर अटकी हुई थी. वहां उसने खेल रचाया और अपने आप को ‘नेपाल का प्रिंस’ बताकर दुकान के मालिक के साथ गहने देखने चले गया, उसने मालिक को नशीली दवाई देकर बेहोश कर दिया, और वहां से भाग निकला, जब दुकान के कर्मचारी वहां पहुंचे तो उन्हें एक पासपोर्ट पड़ा मिला, उसमें शोभराज का नाम लिखा हुआ था.

पुलिस बुलाई गई, पुलिस ने फ़ौरन एयरपोर्ट में फोन लगाया और कहा कि इस नाम का कोई नागरिक आए तो तुरंत गिरफ्तार करो, ऐसा ही हुआ, उसे एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया गया. इस केस में शोभराज को जेल हुई. उस वक्त शोभराज ने अपने पिता से मदद की गुहार लगाई. बेल के लिए पैसे उधार लिए. और अपनी रिहाई करवाई. रिहाई के बाद दोनों पति पत्नी काबुल और फिर ईरान गए. वहां भी दोनों ने टूरिस्टों के साथ लूट-पाट की. मुंबई आने के 2 साल बाद तक शोभराज के पास 10 देशों के फ़र्ज़ी पासपोर्ट आ चुके थे. उसने यूरोप और मिडिल-ईस्ट के कई देशों में भी क्राइम करना जारी रखा.

इसी यात्रा के दौरान जब शोभराज इस्तांबुल गया तो वहां उसकी मुलाकात अपने सौतेले भाई आंद्रे से हुई. उसने शोभराज को जॉइन कर लिया. शोभराज और आंद्रे अपराध में पार्टनर बन गए. तुर्किए और ग्रीस में दोनों ने कई चोरियां कीं. अंततः दोनों एथेंस में जाकर गिरफ्तार हो गए. शोभराज तो जैसे-तैसे पुलिस को झांसा देकर निकल गया, लेकिन आंद्रे वहीं छूट गया. उसे ग्रीक अधिकारियों ने तुर्किए की पुलिस को सौंप दिया. आंद्रे को 18 बरस की जेल हुई.

वहां से भागकर शोभराज एक बार फिर भारत लौटा. इस बार उसकी मुलाकात अजय चौधरी नाम के लड़के से हुई. अजय शोभराज के लिए काम करने लगा, वो एक तरह से उसका सेकेण्ड इन कमांड बन गया. इतने सालों में शोभराज ने एक चीज़ नहीं भूली थी वो थी उसकी लूटने की यूनिक टेक्नीक. कैसे टूरिस्ट को चकमा देकर लूटा जाता है, वो उससे अच्छी तरह कोई नहीं जानता था, उसने अजय को भी यही सिखाया. दोनों पहले टूरिस्टों के साथ समय बिताते, दोस्ती करते. फिर उनका सारे पैसे और सामान लूटते और हत्या कर देते.

1975 में शोभराज का नेपाल की राजधानी काठमांडू जाना हुआ. वहां उसने एक अमेरिकी और कनेडियन नागरिक की हत्या की और भाग निकला. ये मामला उस वक्त तो दब गया लेकिन बाद में यही उसके लिए नासूर बना. अभी नेपाल वाले किस्से को यहीं छोड़ते हैं, इसकी कड़ी आगे जोड़ेंगे. लेकिन नेपाल की हत्या के बाद अपराध की दुनिया में उसके चर्चे बढ़ गए थे,

शोभराज की शुरूआती हत्याओं की जब जांच हुई तो एक पैटर्न पाया गया, वो पैटर्न था कि जिन महिलाओं की वो हत्या करता, वो उनके कपड़े भी उतार लेता था. महिलाओं की डेड बॉडी बिकिनी में पाई जाती थी. इसी वजह से शोभराज ‘बिकनी किलर’ के नाम से कुख्यात हो गया.

फिर आया साल 1976. इस साल जुलाई के महीने में दिल्ली में शोभराज का शिकार हुआ फ़्रांसीसी छात्रों का एक ग्रुप. शोभराज ने ग्रुप के कुछ लोगों से दोस्ती की. फिर जब उनका ग्रुप एक जगह इकठ्ठा हुआ तो उसने एक नशीला पदार्थ उनको ऑफर किया और कहा, ‘मैं तुम लोगों को फ्रांस का पानी पिलाता हूं, भारत का पानी तो गंदा है’

वे लोग उसके झांसे में आ गए और पानी पी लिया, शोभराज का इरादा उनको बेहोश करके उनके पासपोर्ट लूटने का था. ग्रुप के एक लड़के ने खतरा भांप लिया था, उसने शोभराज को वहीं धर-दबोचा और पुलिस के हवाले कर दिया. उसे तीस हजारी कोर्ट में पेश किया गया, मुकदमा चला और उसने फिर उसे तिहाड़ जेल शिफ्ट कर दिया गया. कुछ दिनों तक तो शोभराज परेशान रहा लेकिन बाद में उसने जेल में भी दोस्ती करनी शुरू कर दी. वो जेल के गार्ड्स और कैदियों के बीच मशहूर होने लगा. अपनी इंटरनैशनल क्राइम एक्टिविटी के चलते वो पहले ही वहां फेमस था. उसकी कहानियों के चर्चे पहले से चल रहे थे. उसने सबसे दोस्ती करके जेल में अपना सिक्का चलाना भी शुरू कर दिया. कहा जाता है कि उसका जेल में इतना रौब हो गया था कि जब वो अपनी सेल से जेलर के कमरे में जाता तो जेलर अपनी कुर्सी छोड़कर उसे अपनी कुर्सी ऑफर कर देता था. उसे जेल में ‘चार्ल्स साहब’ नाम से पुकारा जाता.

जेल के बाहर चार्ल्स शोभराज (AFP)

तिहाड़ में शोभराज से मिलने वकीलों और पत्रकारों का तांता लगा रहता, और कई विदेशी नागरिक भी उससे मिलने आया करते थे. इससे भी उसका जेल में रुतबा बढ़ा रहता था.  शोभराज को 12 साल जेल में काटने थे. जब जेल में शोभराज के 10 साल पूरे हुए तो उसने वहां एक आलीशान पार्टी दी. इसमें कैदियों के साथ गार्डों को भी बुलाया गया था. पार्टी में बांटे गए बिस्कुट और अंगूरों में नींद की दवा मिला दी गई थी. थोड़ी देर में शोभराज और उनके साथ जेल से भागे चार अन्य लोगों के अलावा बाकी सब निढाल हो गए.

रिचर्ड नेविल की बायोग्राफी के मुताबिक, एक दफा चार्ल्स शोभराज ने कहा था,

"जब तक मेरे पास लोगों से बात करने का मौका है, तब तक मैं उन्हें बहला-फुसला सकता हूं."

कहते हैं कि दस साल की जेल की सज़ा के आखिर में वो जान-बूझकर भाग निकला. इसके पीछे उसका प्लान था कि वो दोबारा पकड़ा जाए और जेल से भागने के लिए उस पर केस चलाया जाए. ऐसा इसलिए क्योंकि वो इससे थाईलैंड प्रत्यर्पण से बच सकता था. थाईलैंड में शोभराज पर पांच हत्याओं का केस चल रहा था. और ये लगभग तय था कि उसे मौत की सज़ा हो सकती है. 1997 में जब वो रिहा हुआ तब तक बैंकॉक में उस पर मुकदमा चलाने की समयसीमा बीत चुकी थी.

फिर आया साल 2003. एक बार फिर शोभराज नेपाल वापस पहुंचा. इस बार उसने बेख़ौफ़ होकर यहां एंट्री ली. और अकड़ ही अकड़ में प्रेस से भी बात की. उसे लग रहा था कि 28 साल पुराना मामला अब तक रफा दफा हो गया होगा. लेकिन ऐसा नही था, पुलिस को जैसे ही उसके नेपाल आने की ख़बर मिली, उन्होंने उसे पकड़ने के लिए सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया. आख़िरकार, राजधानी काठमांडू के एक कसीनो से उसे गिरफ़्तार कर लिया गया. सालों पुराना मामला वापस खुला, जिसमें उस पर फ़र्ज़ी पासपोर्ट के ज़रिए यात्रा करने और कनाडा के एक नागरिक और अमेरिका की एक महिला की हत्या का आरोप था. शोभराज ने आरोपों से इनकार किया लेकिन पुलिस ने दावा किया कि उनके पास पर्याप्त सबूत हैं. 2004 में शोभराज को आजीवन जेल की सज़ा सुनाई गई.

शोभराज की कहानी का ये खात्मा नहीं था, वो नेपाल में आजीवन कारावास काटते हुए भी सुर्खियां बना रहा था. 2008 में जेल में रहते हुए उसने नेपाली वकील निहिता विश्वास से शादी भी की. बाद में ब्रिटेन की दो पत्रिकाओं ने उसका इंटरव्यू छापा, जिसमें उसने अपनी कैद और भविष्य से जुड़ी योजनाओं के बारे में बात की थी. नेपाल की जेल में उसे दिल से जुड़ी बीमारी ने जकड़ लिया था. साल 2017 में उसकी एक सर्जरी भी की गई थी. सर्जरी करने वाले डॉक्टर बताते हैं कि उस वक्त शोभराज की हालात बहुत कमज़ोर थी. उसके पैरों में काफी सूजन थी, वो ढंग से नहीं चल पाता था. वो अपने जूतों की भी चप्पल की तरह ऊपर से पहनता था. सर्जरी के बाद से ही वो शांत रहने लगा. सेंट्रल जेल के जेलर बताते हैं कि उसका आचरण पहले से बेहतर हो गया है. वो अनुशासन से जेल में रहता है.

नेपाल जेल से रिहाई के लिए शोभराज ने कई बार याचिका दायर करवाई थी. उसका तर्क था कि जेल के नियमों के अनुसार, 70 साल से ज़्यादा उम्र के नेपाली क़ैदियों को उनके अच्छे आचरण के आधार पर रिहा किया जा सकता है. इस प्रावधान को नेपाली नागरिकों के साथ-साथ विदेशी नागरिकों के मामले में भी लागू किया जाना चाहिए. शोभराज की ये ख्वाहिश अब पूरी होती हुई दिख रही है. क्योंकि नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने उसकी रिहाई के आदेश दिए हैं.

क्या कहा कोर्ट ने?

सुप्रीम कोर्ट के जज सपना प्रधान मल्ला और तिल प्रसाद श्रेष्ठ की बेंच ने शोभराज को रिहा करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा,

‘एक 78 वर्षीय को लगातार जेल में रखना उनके मानवाधिकारों के अनुरूप नहीं है, अगर उन्हें जेल में रखने के लिए कोई दूसरा मामला लंबित नहीं है, तो ये अदालत आज ही उनकी रिहाई का आदेश देती है.'

सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता बिमल पौड़ैल ने बताया कि शोभराज द्वारा जेल से रिहा होने के लिए याचिका दायर की गई थी, चूंकि वह निर्धारित अवधि से ज्यादा समय तक जेल में बंद था, तो उसी आधार पर जेल से रिहा करने का आदेश दिया गया है. इसके साथ ही नेपाल की सर्वोच्च अदालत ने रिहाई के 15 दिनों के अंदर उसे फ़्रांस भेजने का आदेश भी दिया है.

22 दिसंबर को इस मामले में एक और अपडेट आई. नेपाल के जेल अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला मानने से मना कर दिया है. उन्होंने कहा है कि वे शोभराज को रिहा नहीं करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में ये नहीं बताया है कि शोभराज को किस केस में रिहा किया जाना है. जानकारों का कहना है कि ये मामला अभी और खिंचेगा. चार्ल्स शोभराज के बाहर आने का दरवाज़ा इतनी जल्दी तो नहीं खुलने वाला है.

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