कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बहरीन गए. वहां रहने वाले भारतीयों को संबोधित करते हुए उन्होंने भाषण दिया. कहा:
इस वक्त भारत में नौकरी, स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा को लेकर बात नहीं हो रही है. बातें इस पर हो रही हैं कि आपको क्या खाना चाहिए, विरोध करने का अधिकार किसके पास है. बातें ये हो रही हैं कि आप क्या कह सकते हैं. या फिर, आप क्या नहीं कह सकते हैं.बीजेपी चिढ़ गई है. राहुल गांधी की आलोचना कर रही है. बीजेपी का कहना है कि राहुल ने विदेशी जमीन पर भारत का अपमान किया. वहां जाकर राजनीति की. केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने बड़ी सही बात की. कहा:
जब हम विदेश जाते हैं, तो वहां पर हम अपने राजनैतिक विरोधों का जिक्र नहीं करते.

राहुल गांधी ने बहरीन में जो कहा, उसे बीजेपी मुद्दा बना रही है. बीजेपी के नेताओं ने कुछ सटीक बातें भी की हैं. मसलन रवि शंकर प्रसाद, जिन्होंने कहा कि विदेश में जाकर राजनीति नहीं करनी चाहिए. दिक्कत ये है कि ये पाठ सबसे पहले PM मोदी को दिया जाना चाहिए.
रवि शंकर प्रसाद एकदम सही बात कर रहे हैं. राजनीति और नेतागिरी देश के अंदर होनी चाहिए. बाहर जाकर आपको देश के बारे में अच्छी बातें बोलनी चाहिए. पॉजिटिव बातें. न कि वहां विपक्षी पार्टियों और उनके नेताओं पर कीचड़ उछालना चाहिए. बस एक दिक्कत है यहां पर. औरों पर उंगली उठाने वाली बीजेपी को अपना मैला गिरेबां नहीं दिख रहा. रवि शंकर प्रसाद ने जो कहा, वो बातें राहुल से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लागू होती हैं. क्योंकि मोदी जी देश के सबसे ताकतवर संवैधानिक पद पर हैं. राहुल देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष हैं, मगर संवैधानिक पद नहीं है उनके पास. इस लिहाज से PM मोदी का रवैया ज्यादा मायने रखता है. PM कई बार विदेशों में जाकर नेता प्रतिपक्ष जैसे मिजाज का बयान दे चुके हैं. विपक्ष पर चुटकी ले चुके हैं. विपक्षी पार्टियों पर कीचड़ उछालने के चक्कर में पूरे देश की फजीहत करवा चुके हैं. कुछ बयान पेश-ए-खिदमत हैं. पहले इनको पढ़िए:
एक समय था जब लोग कहते थे कि मालूम नहीं पिछले जन्म में हमने क्या पाप किए कि हिंदुस्तान में जन्म लेना पड़ा. ये कोई देश है? ये कोई सरकार है? ये कोई लोग हैं? लोगों को हिंदुस्तानी कहलाने में शर्म आती थी. (शंघाई, चीन)
मेरे प्रधानमंत्री बनने से पहले भारत की पहचान 'स्कैम इंडिया' की थी. मुझे जो विरासत मिली, उसमें गंदगी और भ्रष्टाचार भरा था. (कनाडा)
मुझे विरासत में कई दिक्कतें मिलीं. मुझसे पहले की सरकारों की सुस्ती के कारण कई काम रुके पड़े थे. उन्हें शुरू करना अब मेरी वरीयता है. (अबू धाबी, संयुक्त अरब अमीरात)
जिनको गंदगी करनी थी, वो गंदगी करके चले गए. पर हम सफाई करेंगे. (टोरंटो, कनाडा)
विदेशी दौरों में विपक्षी दलों से कुश्ती करने का क्या तुक? ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिए बयान हैं. वो पंक्तियां, जो उन्होंने अपने विदेशी दौरे के दौरान दिए गए भाषणों में बोलीं. अगर ये न बताया जाए कि ये बातें कहां कही गईं और इन्हें बोलने वाले शख्स का पद क्या है, तो लगेगा किसी नेता ने अपनी चुनावी रैली में बोला होगा. खार खाकर, खुन्नस निकालने के लिए. मोदी ने इस अंदाज में बातें कहीं, मानो उनसे पहले भारत की कोई इज्जत ही नहीं थी. कि उनके PM बनने से पहले भारत में पैदा होने वाले लोग अपनी किस्मत को रोते थे. अपनी अहमियत साबित करने का ये तरीका बड़ा वाहियात था उनका. देश के मुखिया का विदेशी जमीन पर, अपने आधिकारिक दौरों के दौरान, इस तरह घरेलू राजनीति को उठाना और अपनी पीठ खुद थपथपाना बड़ी आपत्तिजनक बात है. एक प्रधानमंत्री के तौर पर ये उनकी नाकामी है. कि अपनी काबिलियत साबित करने के लिए उनको विदेशों में भी 'विपक्ष की नाकामयाबी' का रोना रोना पड़ता है.

मोदी ने शंघाई में कहा था कि उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले भारत में पैदा होना शर्म की बात थी. इसके बाद ट्विटर पर #ModiInsultsIndia हैशटैग खूब चला था. देश के मुखिया को कहीं और जाकर ऐसी बात तो नहीं ही बोलनी चाहिए.
राहुल को नसीहत देने वाली बीजेपी थोड़ी नसीहत PM को भी दे दे आज का जो दौर है, उसमें प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति विदेश जाकर अपने देश की अच्छी बातें बेचते हैं. ताकि मुनाफा हो. निवेशक आकर्षित हों. दुनिया में छवि बेहतर हो. इन विदेशी दौरों पर PM का काम किसी सेल्समैन जैसा होता है. वो सेल्समैन जो ग्राहकों को अपना अच्छा प्रॉडक्ट बेचता है. उसकी कमियां नहीं उधेड़ता. ऐसे में अगर PM मोदी अपने विदेशी दौरों पर इतने कच्चे बयान देकर ताली बटोरें, तो उनकी घनघोर आलोचना होनी चाहिए. और BJP को इस बात का इल्म होना चाहिए. नेता एक-दूसरे को मूर्ख समझें, तो उनकी इच्छा. मगर जनता को मूर्ख न समझें. लोगों को आगा-पीछा सब याद रहता है. बीजेपी राहुल गांधी को जिस समझदारी और बड़प्पन की नसीहत दे रही है, वो ही नसीहत उसे PM मोदी पर भी खर्चनी चाहिए. और बात रही मोदी जी की, तो उन्हें ओबामा, शिंजो आबे और जस्टिन ट्रूडो जैसे विदेशी राष्ट्राध्यक्षों से सीखना चाहिए. कि देश के मुखिया को किस तरह का बर्ताव करना चाहिए.
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