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लड़कियों के होंठ फाड़कर डाल देते हैं डिस्क, कहानी उस कबीले की जहां औरत होना आज भी श्राप है

कल्पना करिए कि कोई आपका निचला होंठ बीच से फाड़ दे. लेकिन मुर्सी जनजाति (Mursi Tribe) की महिलाओं के लिए ये उनकी सांस्कृतिक धरोहर है. एक महिला, लड़की के निचले होंठ को काटती है और उस काटे गए हिस्से में लकड़ी की एक छोटी डंडी फंसा देती है. लेकिन ये सब किया क्यों जाता है?

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मुर्सी ट्राइब को दुनिया की सबसे खतरनाक जनजातियों में से एक माना जाता है. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

तलवारों की तरह हवा में लहराई जाती एके-47. स्त्रियों के सिर पर गाय की सींघ और निचले होठ पर लटकता अजीब तरह का चक्का. ये किसी एक स्त्री या किसी एक घर की बात नहीं है. बल्कि ये लगभग हर घर और हर स्त्री की कहानी है. हम स्टोन एज की भी बात नहीं कर रहे हैं. ये सब इसी सदी के दृश्य हैं. इसी धरती के एक कोने की तस्वीरें हैं. जगह है इथियोपिया देश की ओमो वैली. जिनकी बात हो रही है उन लोगों का ताल्लुक मुर्सी ट्राइब्स से है. ऐसा माना जाता है कि ये दुनिया की सबसे खतनाक जनजातियों में से एक है.

इस आर्टिकल में इसी मुर्सी जनजाति की बात करेंगे. इस जनजाति के बारे में कहा जाता है कि ये किसी को मारे बगैर जिंदा रहने से अच्छा मर जाना मानते हैं.

होंठ से लटकते डिस्क

मुर्सी जनजाति की स्त्रियों का सुंदरतम गहना है, उनके निचले होंठ से लटकती हुई डिस्क. जितनी बड़ी डिस्क, उतनी सुंदर स्त्री. हालांकि इसको लेकर अलग-अलग मत हैं. पहला मत ये है कि डिस्क स्त्रियों की खूबसूरती का प्रतीक है. यही सबसे पॉपुलर मत भी है. लेकिन कुछ जगहों पर ऐसा भी माना जाता है कि लड़कियों को खतरनाक दिखाने के लिए डिस्क डाली जाती है. ताकि उन्हें दूसरे समुदाय के पुरुषों के लिए कम आकर्षक बनाया जा सके.

ऐसा नहीं है कि ये डिस्क बचपन में ही डाल दी जाती है. इसके लिए किशोर अवस्था तक इंतजार किया जाता है. जब लड़की 15-16 साल की उम्र में पहुंचती है, तब शुरू होती है लड़की को आभूषित करने की प्रक्रिया. ये बेहद दर्दनाक होती है. कल्पना करिए कि कोई आपका निचला होंठ बीच से फाड़ दे. लेकिन मुर्सी महिलाओं के लिए ये उनकी सांस्कृतिक धरोहर है.

एक महिला, लड़की के निचले होंठ को काटती है और उस काटे गए हिस्से में लकड़ी की एक छोटी डंडी फंसा देती है. वक्त के साथ कटे हुए स्थान की परिधि बढ़ती जाती है. हर रात पिछली डंडी से बड़ी डंडी उस जगह फंसाई जाती है. कुछ समय बाद इस जगह पर लकड़ी का चक्का डाल दिया जाता है. उनके अलग-अलग डिजाइन होते हैं. इन्हें तरह-तरह की पेंटिंग्स से सजाया जाता है. उम्र के साथ डिस्क का आकार भी बढ़ता जाता है. कई मौकों पर ये 12 सेमी के व्यास तक का होता है. ये मुर्सी समाज में साहस और दृढ़ता का प्रतीक मानी जाती है.

डिस्क के साइज से तय होता है दहेज

उन स्त्रियों को आलसी समझा जाता है, जो अपने निचले होंठ पर ये चक्का नहीं लगातीं. ये चक्का परिवार की प्रतिष्ठा का भी प्रतीक होता है. जिस घर की लड़की के होंठ में जितने बड़े व्यास का चक्का, उतना प्रतिष्ठित परिवार. डिस्क के साइज के आधार पर लड़की के दहेज की मात्रा तय होती है. जितना बड़ा चक्का, दहेज में उतने ज्यादा मवेशी मिलते हैं. यहां दहेज पुरुष को नहीं, बल्कि लड़की के पिता को मिलता है. इसे वधूधन कहा जा सकता है. सीधे शब्दों में कहें, तो पुरुष को किसी स्त्री से शादी करने के लिए उसके पिता को धन के तौर पर मवेशी देने पड़ते हैं.

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महिलाओं को लगाई जाने वाली डिस्क | फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स

‘Ethnographic Reflections on Marriage in Mursi’ नाम के रिसर्च पेपर से पता चलता है,

जब कोई मुर्सी पुरुष विवाह करता है, तो वह बहुत सारे मवेशी देता है. मुर्सी पत्नी के लिए आदर्श वधूधन में 38 मवेशी शामिल हैं. इसमें ज़्यादातर गाय होती हैं.

मिट्टी से रंगते हैं शरीर

मुर्सी लोगों में मिट्टी और धरती के दूसरे मिनरल्स से शरीर रंगने की भी प्रथा है. खासकर पुरुष ऐसा करते हैं. शरीर रंगना न केवल सजावट है, बल्कि प्रतीकात्मक भी है. मुर्सी मानते हैं कि ऐसा करने से बुरी आत्माएं दूर भागती हैं, दुश्मन डरता है और विपरीत लिंग आकर्षित होता है.

पुरुषों के बीच शादी को लेकर एक प्रतियोगिता होती है. इसमें लाठियां चलती हैं. इस विशेष प्रकार की लाठी को डोंगा कहते हैं. ये लाठी 2 मीटर की होती है. बारी-बारी से दो-दो लोग डोंगा युद्ध करते है. अंत में फाइनल मैच के बाद जो विजेता घोषित होता है, उसे शादी का हक़दार माना जाता है.

महिलाओं का एक झुंड विजेता को अपने साथ ले जाता है और वहां ये तय होता है कि उस पुरुष की शादी किस महिला से होगी. मुर्सी कबीले में पकड़ौआ विवाह के भी कुछ साक्ष्य मिलते हैं. महिलाओं को किडनैप करके भी उनसे शादी की जाती है. हालांकि डोंगा बैटल सबसे प्रचलित तरीका है.

ताकत के लिए जानवरों का खून पीते हैं मुर्सी

कहते हैं, लड़ाई से पहले पुरुष ताकतवर बनने के लिए जानवरों का ख़ून भी पीते हैं. माना ये भी जाता है कि पुरुषों के बीच हक़ के लिए एक अलग तरह की लड़ाई होती है. ये तब तक नहीं रुकती, जब तक दो में से किसी एक की मौत नहीं हो जाती है.

डेविड टर्टन ‘How to Make a Speech in Mursi’ नाम की किताब में इस कबीले की लीडरशिप के बारे में लिखते हैं,

मुर्सी समाज में नेतृत्व की एकमात्र परिभाषित भूमिका पुजारी की है, जिसे कोमोरू कहा जाता है. यह एक विरासत में मिली भूमिका है और मुख्य रूप से अनुष्ठान और धार्मिक महत्व की है. महिलाओं का लीडरशिप में कोई योगदान नहीं होता है. पुरुष ही राजनीतिक और सार्वजनिक नेतृत्व करते हैं. मुर्सियों के बीच महत्व का एक और पद ‘जलाबा’ का है. पर्सनल स्किल्स और वाक कौशल के ज़रिए मुर्सी पुरुष इस पद तक पहुंच सकते हैं.

मुर्सी ट्राइब्स में उम्र के हिसाब से भी लीडरशिप डिसाइड होती है. इनमें तीन एज सेट्स होते हैं. सबसे पहले नंबर आता है, रोरा यानी जूनियर एल्डर ग्रेड. ये मुर्सी पुलिस की भूमिका निभाते हैं. जब नया ग्रेड बनता है, तो रोरा ग्रेड वाले बारा यानी सीनियर एल्डर ग्रेड में आ जाते हैं, और बारा वाले करुई यानी रिटायर्ड एल्डर ग्रेड में पहुंच जाते हैं. बारा पुरुष अधिकार की स्थिति में होते हैं, जो उन्हें मुर्सी समाज से जुड़े मामलों में अंतिम निर्णय लेने की अनुमति देता है. उनका रोरा पर भी नियंत्रण होता है. रिटायर्ड करुई सुपरवाइजर और सलाहकार की भूमिका में होते हैं.

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मुर्सी कबीले में महिलाओं का लीडरशिप में कोई रोल नहीं होता है | फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स

टर्टन ये भी लिखते हैं कि लगभग सभी मुर्सी लोगों के पास कम से कम एक AK47 ज़रूर होती है. दरअसल 80s-90s के दौरान लोअर ओमो वैली में ऑटोमैटिक वेपन्स का चलन बढ़ा. उसी के परिणामस्वरूप मुर्सी लोगों के पास रायफ़ल्स पहुंची. साउथ सूडान की खर्तूम सरकार ने आदिवासी लड़ाकों को स्पॉन्सर करना शुरू किया, उसी में मुर्सी ट्राइब्स भी शामिल हो गई. क्योंकि ये इथियोपिया में ओमो रिवर के किनारे पर बसे हैं, जो साउथ सूडान से बॉर्डर साझा करता है.

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डोंगा की जगह AK47

अभी हमने डोंगा नाम के एक डंडे का जिक्र किया था, किसी ज़माने में मुर्सी पुरुष ये लेकर चलते थे. अब इसकी जगह AK47 ने ले ली है. ये अब स्टेटस सिंबल हो गया है. मुर्सी अपनी सुरक्षा के लिए अपने पास रायफ़ल भी रखते हैं. चूंकि ओमो वैली सीमावर्ती इलाका है, ऐसे में घुसपैट और चोरी का डर भी बना रहता है. साथ ही AK47 से ख़ुद का अलंकरण उनके आक्रामक रवैये को भी दिखाया जा सकता है. मुर्सियों में किलिंग्स (हत्या) को फ़क्र की बात माना जाता है. पुरुष अपने कंधे पर उतने निशान दागते हैं, जितने दुश्मनों को वो मौत के घाट उतारते हैं. किसी को मारे बगैर ज़िंदा रहने में उन्हें मज़ा नहीं आता.

अब मुर्सी थोड़े मॉडर्न और होशियार हो गए हैं. Jody Ray नाम के ट्रैवेल राइटर और फोटो जर्नलिस्ट ने इस पर एक लंबा लेख लिखा है, How This ‘Most Dangerous’ African Tribe Cleverly Fools Tourists.

वो इस लेख में बताते हैं कि साउथवेस्ट इथियोपिया में फोटोग्राफर्स मुर्सी कबीले की तस्वीरें खींचने पहुंचते हैं. पहले वो फ्री में तस्वीरें खींच लिया करते थे, मुर्सी बड़े शौक से AK 47 थामे फोटो खिंचाते थे, लेकिन अब वो इसके पैसे लेते हैं. चाहे रायफ़ल के साथ पोज़ करते हुए फोटो खिंचाना हो या फिर निचले होंठ पर लगी डिस्क वाली महिलाओं की तस्वीरें उतारना हो.

अब मर रहे हैं मुर्सी!

हालांकि अब मुर्सी ट्राइब दुनियाभर के आदिवासियों की तरह विकास के दंश झेल रही है. ओमो नदी पर बनने वाले डैम और गन्ने की खेती के लिए इन्हें विस्थापित किया गया. मुर्सी को अपने घर छोड़ने पड़े. उनके जीने के तरीक़े को बरबस बदलने का प्रयास हुआ. इस वजह से इनमें कई बीमारियां हो रही हैं. कुपोषण से लोग मर रहे हैं. नवम्बर 2022 में रिपोर्ट्स छपीं कि कुपोषण के चलते एक गांव के 22 लोग मर गए. भुखमरी से मौतों की तमाम खबरें आ रही हैं. 15 से 20 हजार तक की जनसंख्या वाली जनजाति पूंजीवाद और विकास के बुलडोजर तले दबी जा रही है.

वीडियो: तारीख: कहानी ऐसे कबीले की जहां महिलाओं के होंठ फाड़कर डिस्क डाल दी जाती है