राजस्थान का सवाई माधोपुर जिला. जिले के बहरावंडा खुर्द गांव में एक बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. जयपुर के एक सरकारी टीचर मुकेश जांगिड़ चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के काम में लगे थे. परिवार ने बताया कि वह 12-12 घंटे लगातार काम कर रहे थे. फिर एक दिन उन्होंने कथित तौर पर ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी. 9 नवंबर को पश्चिम बंगाल के बर्द्धमान में एक बीएलओ के घर के आंगन में उसका शव मिला. बताया गया कि उसने भी आत्महत्या कर ली है. इस तरह की एक घटना केरल में भी हुई है.
चीन के जिस '9-9-6' के सहारे नारायण मूर्ति 72 घंटे काम करने को कह रहे, वो है क्या?
इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने फिर से युवाओं को 72 घंटे काम करने की सलाह दी है. इस बार उन्होंने चीनी कहावत 9-9-6 का सहारा लिया है.


सभी मौतों में एक चीज कॉमन थी. उनके मौत की संभावित वजह. आत्महत्या हो या दिल का दौरा. या फिर ब्रेन स्ट्रोक. सबसे पीछे उनके परिवार ने जो वजह बताई वो है बिना आराम किए काम का दबाव, जो वो झेल नहीं पा रहे थे. ‘12-12 घंटे' काम या ‘दिन-रात’ काम. परिवार वाले मौत की वजह के बारे में बस यही कह पा रहे थे. हालांकि, ये बात प्रमाणित नहीं है कि वजह असल में काम का ज्यादा लोड है या नहीं लेकिन इसके जरिए लोग ‘ओवरटाइम’ काम के सेहत पर पड़ने वाले असर की चर्चा करने लगे थे.
ठीक इसी समय भारत के एक अरबपति उद्योगपति का बयान भी वायरल है. इन्फोसिस के मुखिया नारायण मूर्ति का बयान, जिसमें वो कहते हैं- युवाओं को सप्ताह के 7 दिन में 72 घंटे काम करना चाहिए. यानी हर दिन 12 घंटे काम. 9-9-6 की तर्ज पर.
जब वो ये बयान दे रहे थे तो सबको चीन के मशहूर उद्योगपति और अलीबाबा ग्रुप के संस्थापक जैक मा की बात याद आ रही थी. 6 साल पहले 2019 में वह भी एकदम नारायण मूर्ति की भाषा बोल रहे थे. जैक मा चीन की उस ‘कुख्यात कार्यसंस्कृति’ को वरदान बता रहे थे, जिसे ‘9-9-6’ कहा जाता है. CNN की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जैक मा कहते हैं,
मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि 9-9-6 एक बहुत बड़ा वरदान है. बिना अतिरिक्त मेहनत और समय लगाए आप अपनी मनचाही सफलता कैसे पा सकते हैं?

अब नारायण मूर्ति का बयान देखिए. वो कहते हैं,
चीन में एक कहावत है- 9- 9-6. आप जानते हैं इसका क्या मतलब है? सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक काम. हफ्ते में 6 दिन. और यह 72 घंटे का वर्क वीक है. युवा भारतीयों को भी यही दिनचर्या अपनानी चाहिए.
हालांकि, न तो अलीबाबा वाले जैक मा और न इंफोसिस के नारायण मूर्ति के बयानों को वैसा समर्थन मिला, जैसा वो सोच रहे थे. बल्कि, आलोचना तगड़ी हुई. ‘9-9-6’ पूरी दुनिया में बहस का केंद्र बन गया. लोगों ने इसे बिल्कुल ‘अमानवीय’ बताया. कहा कि कड़ी मेहनत और काम को लेकर निष्ठा की वकालत करने का मतलब ओवरटाइम करवाना नहीं है. एक यूजर ने तो सोशल मीडिया पर ये लिख दिया कि अगर सारी कंपनियां ‘996 शेड्यूल’ लागू कर दें तो समय की कमी के कारण कोई बच्चे भी पैदा नहीं करेगा.
हालांकि, किसी कंपनी ने कभी भी आधिकारिक तौर पर 996 जैसा कोई शेड्यूल दुनिया के किसी कोने में लागू नहीं किया. चीन में भी नहीं लेकिन यहां अनौपचारिक तौर पर एक अलिखित अनुबंध की तरह तमाम कंपनियां लोगों से इसी शेड्यूल पर काम कराती रही थीं.
क्या है ये 9-9-6?996 एक वर्क सिस्टम है, जिसका मतलब है, सुबह 9 बजे काम शुरू. रात को 9 बजे घर जाना. यानी दिन में 12 घंटे काम और वो भी सप्ताह में 6 दिन. नारायण मूर्ति चीन के इसी 9-9-6 सिस्टम की बात अपनी ‘अनेक’ हो चुकी ‘नेक सलाह’ में कर रहे थे. इससे पहले भी उन्होंने एक बार 70 घंटे काम करके देश की इकनॉमी को बूस्ट करने की सलाह दी थी. L&T कंपनी के सुब्रह्मण्यन तो उनसे भी कई कदम आगे निकल गए. उन्होंने कर्मचारियों के लिए हफ्ते में 90 घंटे काम करने की वकालत करके हंगामा ही मचा दिया.
ऐसे लोगों के पास चीन के ज्यादा काम से अंधाधुंध विकास का चौंधियाता उदाहरण तो है लेकिन इसके पीछे जान गंवाते कर्मचारियों की कड़वी सच्चाई के अंधेरे को देखने की दृष्टि नहीं है.
चीन में कब शुरू हुआ 9-9-6 वर्क कल्चरआप कैलेंडर की किसी एक तारीख पर उंगली रखकर ये नहीं कह सकते कि चीन में यहीं से 9-9-6 वर्क कल्चर की शुरुआत हुई थी लेकिन माना जाता है कि 2010 के दशक में चीन की टेक इंडस्ट्री खासकर अलीबाबा, टेनसेंट, बाइटडांस, हुआवै जैसी कंपनियां तेजी से ग्रोथ कर रही थीं. इस वक्त यहां ओवरटाइम कल्चर शुरू हो गया था. हां, लेकिन इसे 9-9-6 जैसा कोई नाम नहीं दिया गया था. लेकिन 2019 में ‘996’ का नाम और कॉन्सेप्ट पहली बार तब पब्लिकली पॉपुलर हुआ जब अलीबाबा के फाउंडर जैक मा ने इसे खुलकर सपोर्ट किया और बोले कि युवाओं को 996 काम करना चाहिए क्योंकि यह ‘बड़ा सौभाग्य’ (huge blessing) है. इसके बाद से ही ये टर्म दुनिया भर में वायरल हो गया.
दुनिया भर में इसका जमकर विरोध भी हुआ. 27 मार्च 2019 को कोड-शेयरिंग प्लेटफॉर्म ‘GitHub’ पर एक ट्रेंड शुरू हो गया- 996ICU. यहां जैक मा के बयान को लेकर लोग मजाक में कहते, ‘996 काम करो, और सीधा ICU में जाओ.’ उनका इशारा ओवरटाइम से सेहत को पहुंचने वाले नुकसान की तरफ था. इतना ही नहीं, यूजर्स ने ओवरटाइम कराने वाली कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करना भी शुरू कर दिया.
चीन के अखबार ‘पीपुल्स डेली’ ने भी इस सिस्टम पर कमेंट किया कि ‘मेहनत और संघर्ष को बढ़ावा देने का मतलब यह नहीं है कि कर्मचारियों को जबर्दस्ती ओवरटाइम करवाया जाए.’ अखबार ने आगे कहा कि ‘वह कॉरपोरेट संस्कृति जो कर्मचारियों के आराम और स्वास्थ्य की कीमत पर खड़ी होती है, लंबे समय तक न तो टीम भावना बनाती है और न ही कंपनी में ऊर्जा ला पाती है.’

हालांकि, चीन के कानून के अनुसार 9-9-6 शेड्यूल काम कराने का अवैध तरीका है. यहां अगर कर्मचारी ओवरटाइम करते हैं तो कंपनी को उन्हें अतिरिक्त वेतन देना होता है. ओवरटाइम की भी सीमाएं हैं. जैसे- सामान्य हालत में रोज 1 घंटे से ज्यादा ओवरटाइम नहीं होना चाहिए. कोई स्पेशल कंडीशन हो तो 3 घंटे. उससे ज्यादा नहीं. एक महीने में कुल 36 घंटे से ज्यादा का ओवरटाइम नहीं कराना है.
इस कानून से साफ होता है कि 9-9-6 वर्क सिस्टम पूरी तरह से श्रम कानून का उल्लंघन है लेकिन फिर भी ये सिस्टम चीन में इतना पॉपुलर हो गया कि कई कंपनियों ने अनधिकारिक तौर पर अपने यहां इसे लागू करना शुरू कर दिया. बिजनेसमैन लोगों ने तो इस शेड्यूल का खुलकर समर्थन किया. इसके पीछे ढाल बनाया ‘फ्रीडम ऑफ चॉइस’ थ्योरी को. कहने लगे कि लोग तो अपनी इच्छा से ज्यादा काम करना चाहते हैं.
चीन और भारत जैसे विकासशील देशों में दफ्तरों में काम कराने का यही कल्चर आज भी धड़ल्ले से चल रहा है.
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के 2025 के आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय कर्मचारी औसतन 46.7 घंटे प्रति सप्ताह काम करते हैं. इनमें से आधे से ज्यादा 49 घंटे से ज्यादा काम करते हैं. ये आंकड़े पश्चिमी यूरोप के कामकाजी घंटों से भी ज्यादा हैं. ILO की रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे समय तक काम करने की आदत लोगों की मानसिक सेहत और उनकी सामाजिकता को बेहद प्रभावित करता है.
WHO की रिपोर्ट है चेतावनीविश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने साल मई 2021 में Environment International में एक रिपोर्ट छापा. इसके मुताबिक, साल 2016 में लंबे समय तक काम करने की वजह से 7 लाख 45 हजार लोगों की मौत स्ट्रोक और हार्ट डिसीज से हुई. साल 2000 की तुलना में ये संख्या 29 फीसदी ज्यादा थी.
WHO और ILO ने दुनिया भर में पहली बार ऐसा सर्वे किया था. उसने बताया कि 2016 में 3 लाख 98 हजार लोग स्ट्रोक से और 3 लाख 47 हजार लोग दिल की बीमारी से मरे. ये लोग हर हफ्ते कम से कम 55 घंटे काम कर रहे थे. सर्वे में बताया गया कि साल 2000 से 2016 के बीच लंबे काम के घंटों की वजह से दिल की बीमारी से मौतों में 42 फीसदी और स्ट्रोक से मौतों में 19 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. कुल मौतों में 72 फीसदी पुरुष थे.
रिपोर्ट बताती है कि हफ्ते में 55 घंटे या उससे ज्यादा काम करने वाले लोगों में 35-40 घंटे काम करने वालों की तुलना में स्ट्रोक का खतरा 35 फीसदी ज्यादा और दिल की बीमारी से मरने का खतरा 17 फीसदी ज्यादा होता है. इस रिपोर्ट के आने के बाद तत्कालीन WHO प्रमुख डॉ. टेड्रोस ने कहा कि कोई भी नौकरी स्ट्रोक या दिल की बीमारी के जोखिम के लायक नहीं है. उन्होंने सरकारों, कंपनियों और कर्मचारियों से कहा कि उन्हें मिलकर तय करना होगा कि काम के घंटों की एक सीमा हो.
साल 2016 की रिपोर्ट में ये बताया गया कि दुनिया की लगभग 9 फीसदी आबादी हफ्ते में 55 घंटे से ज्यादा काम करती है. अब 2025 चल रहा है. कार्पोरेट कंपटीशन पहले से ज्यादा बढ़ा है. नौकरियां पहले से ज्यादा कम हुई हैं. काम पहले से ज्यादा बढ़ा है. आप कल्पना कीजिए कि आज की तारीख में कितने लोग लंबे घंटों तक काम करने से होने वाले खतरों के दायरे में होंगे.
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