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सब कुत्ते काशी चले जाएंगे तो हांडी कौन चाटेगा?

नौकरी चाहिए, सपने पूरे करने हैं. ऐसे ही लोग समाज को बिगाड़ रहे हैं. क्योंकि...

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फोटो - thelallantop
आजकल हर जगह फ्रस्टियाए लोग मिलते हैं. वो भी किस लिए? एडमिशन नहीं हो रहा या नौकरी नहीं मिल रही. साला ये भी कोई वजह हुई फ्रस्टियाने की?
हमारे जान पहचान की एक दीदी हैं. पूरे दिन नींद और पढ़ाई के बीच जद्दोज़हद करती हैं. एक बार पूरी रात पढ़ के गईं थीं, लेकिन टेस्ट में 10 में 3 नंबर ही आ पाए थे. जब मिलो तब हैरान, परेशान एक ही बात बोलती हैं- "यार नौकरी नहीं मिल रही."
कैसे कैसे लोग होते हैं! नौकरी चाहिए...सपने पूरे करने हैं. फिर करियर की ऊंचाइयां छूनी हैं. कैसी मिडिल क्लास सोच है! ऐसे ही लोग समाज को बिगाड़ रहे हैं. वैसे ही जैसे किसी मोहल्ले में नई आंटी कामवाली को 800 की बजाए 1000 देकर आदत बिगाड़ देती हैं. इसे मज़ाक की तरह हल्के में मत लीजिए. सोचिए समाज में बाकी लोगों पर ऐसे ही बड़े-बड़े काम करने का कितना दबाव बनता है. संतोषी आदमी का जीना हराम हो जाता है. जो आदमी 1 BHK के फ्लैट, स्कूटर और एक पेट भर सकने वाली नौकरी से खुश हो सकता है, उसे ज़बरदस्ती बड़े सपने देखने पड़ते हैं. नहीं मतलब आप सोच के बताइए, क्या ज़रूरी है कि सारे लोग वही चाहें जो आप चाहते हों?
मेरा भाई हमसे 7 साल बड़ा है. ये सुनते ही लोग पूछते हैं- "क्या करता है?" हमें बड़ा अजीब लगता है. क्या करता है का क्या मतलब है? हैं? खाना खाता है. सोता है. बातें करता है. सांस लेता है. वही करता है जो सब लोग करते हैं. फिर लोग बोलते हैं- "नहीं! क्या करता है मतलब काम क्या करता है. या पढ़ता है, तो क्या पढ़ता है?"
अरे! दुनिया में यही दो काम हैं? इतना कुछ पड़ा है दुनिया में. लोगों को बस यही दो चीज़ें मिलती हैं पूछने को? उसने इतने बड़े-बड़े काम किए हैं. पूरे स्कूल की नाक में दम किया है. हर त्योहार के दिन नियम से मार खाई है. कॉलेज के हर एग्जाम छोड़े हैं. महीनों स्कूल गोल कर के आवारागर्दी की है. बकरी से लड़ाई की है. घर की पानी की टंकी में कछुआ पाला है. इस सब के बारे में कोई क्यों नहीं पूछता?
बता दें कि मेरा भाई फिलहाल नौकरी और पढ़ाई जैसी दो मिडिल क्लास चीज़ों में से एक भी नहीं करता है. और जब मेरे मम्मी-पापा को कोई समस्या नहीं है तो दूसरे लोग चिंता करके क्यों आधे हुए जा रहे हैं. हम तो सिर्फ इसी से खुश रहते हैं कि वो शाम को अपने घर वापस आ जाता है.

अब बताइए जब घर में इतनी सुख-शांति रहती हो तो कोई क्यों कुछ भी बदलना चाहेगा? जब देखो तब अड़ोसी-पड़ोसी मुंह उठा कर पूछ देते हैं- "बेटा अब कुछ काम करना शुरू किया तुमने?" नहीं किया. और करेगा भी नहीं. क्यों करे? आपने काम करके क्या उखाड़ लिया?

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वैसे ऐसा भी नहीं है कि हमारे मम्मी-पापा ने कोशिश नहीं की, मेरे भाई से काम करवाने की. आखिर वो भी भारतीय मां-बाप हैं. लेकिन मेरे भाई ने जो तर्क दिया, उसके आगे उन्हें हथियार डालने पड़े. उसने कहा,

"अगर सारे कुत्ते काशी चले जाएंगे तो हांडी कौन चाटेगा?" पापा के पास कोई माकूल जवाब नहीं था. ये एक लाइन मेरे भाई की ज़िंदगी का Motto बन चुकी है. इस एक तर्क ने हम सब की ज़िंदगी ही बदल दी है. इसने मेरे मम्मी-पापा को प्रोग्रेसिव बना दिया है और मेरे भाई को कॉन्फिडेंट.
'सब कुत्ते काशी चले जाएंगे तो हांडी कौन चाटेगा?' सोचिए क्या कमाल का जुमला है. ये आप में कभी inferiority complex (हीनभावना) नहीं पनपने देगा. ये बोल कर आप उन 'चार' लोगों के बीच कभी बगलें झांकने की हालत में नहीं पहुंचेंगे. किसी शर्माजी के लड़के में इतना दम नहीं होगा कि अपने 98-99 परसेंट से आपकी नींद हराम कर सके. ये लाइन आपको 'परम ज्ञान' की उस चरम सीमा तक ले जाएगी, जहां आप मोह-माया, खोया-पाया, लिया-दिया, सब से ऊपर उठ जाएंगे.
'सब कुत्ते काशी चले जाएंगे तो हांडी कौन चाटेगा?' ये सवाल बरसों से चले आ रहे सभी स्टीरियोटाइप्स को चुनौती देता है. ध्यान से देखिए ये क्लास डिफरेंस को मुंह चिढ़ाता है. और तो और ये सवाल रिलीजियस रिफॉर्म्स लाने का भी माद्दा रखता है. काशी के वर्चस्व को चुनौती देता है. अरे हम तो कहते हैं ये सवाल कबीरपंथी है. कबीर स्वर्ग-नरक में यकीन नहीं करते थे. और काशी में मरने से ही स्वर्ग मिलता है- इसे बकवास मानते हुए अपने अंत समय में मगहर चले गए थे.
कोई शर्म की बात नहीं है अगर आप काशी जाने वाले नहीं, बल्कि हांडी चाटने वाले कुत्ते हैं. आप दुनिया बदल सकते हैं. आप इस मटीरियलिस्ट दुनिया में 'हायर नॉलेज' की एक मिसाल कायम कर सकते हैं.
बस! अब ये मत पूछिएगा कि मेरा भाई क्या करता है.


पारुल
पारुल

(ये पीस पारुल ने लिखा है.)
 

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