The Lallantop

'यहां क्यों बैठे हो, इंगेजमेंट हो गई तुम्हारी?'

मध्य प्रदेश पुलिस ने पार्क में बैठे हुए कपल्स को उठाया. फिर जो बर्ताव किया, शर्मनाक है.

Advertisement
post-main-image
फोटो - thelallantop

-'हां हो गई. '

'सबूत क्या है?'

हॉस्टल में एक दोस्त हुआ करती थी. उसका बॉयफ्रेंड दिल्ली आया. दोनों एक अच्छे 3-स्टार होटल में ID प्रूफ के साथ बुकिंग करने गए. होटल वालों ने पूछा, रिलेशन क्या है आप दोनों का? लड़के ने कहा, गर्लफ्रेंड है. होटल रिसेप्शन वाले ने कहा, पहाड़गंज चले जाओ या कोई महंगा होटल देख लो. यहां 'उस तरह' का काम नहीं होता.
https://www.youtube.com/watch?v=z-kgRaAuiE8&feature=youtu.be
'उस तरह का काम' का मतलब सेक्स. कमाल की बात है कि जिस समाज में सेक्स को इतनी बड़ी बात माना जाता है, वहां हर रिश्ते को सबसे पहले सेक्स से जोड़कर देखा जाता है. इस पार्क के पुलिस वाले हों, या करोल बाग के होटल वाले, दोनों के लिए ये मानी हुई बात है कि शादी के पहले किया गया प्रेम मात्र शारीरिक सुख के लिए होता है. और शादी के पहले शारीरिक सुख भोगना तो अनैतिक होता है. दो प्रेमी मिलकर अपने सुख-दुःख, अपनी इच्छाएं और अपने डर बांट सकते हैं, ये सामाजिक स्ट्रक्चर में दर्ज नहीं होता.

'पेरेंट्स को फ़ोन लगाऊंगी अभी. उन्हें बताकर आई हो तुम यहां हों?' एड्रेस तो बताना ही पड़ेगा'

एक लड़की जब घरवालों की डांट, मार का रिस्क लेते हुए मुंह पे कपड़ा बांध, प्रेमी से मिलने के लिए निकलती है, वो 'परिवार' नाम की नैतिक व्यवस्था को पीछे छोड़ आती है. पुलिस, जिनका काम लोगों की सेफ्टी का ध्यान रखना है, उन्हें सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस करवाती है. जिसके लिए उन्हें मार-पीट का भी सहारा नहीं लेना पड़ता. 'घर पर फ़ोन लगाऊं?', इतना ही काफी होता है. पुलिस लड़की को याद दिलाती है कि जिस व्यवस्था को वो छोड़कर आई है, एक दिन उसे उसी में वापस जाना है. लड़कियां इस बारे में सोचती हैं, और घबरा जाती हैं.

'हम कुछ गलत नहीं कर रहे थे'

लेकिन गलत और सही तो तय है.
लड़के को लगता है जैसे सब उसकी गलती है. लड़की ने उसी से मिलने के लिए रिस्क लिया. और वो एक लड़का होकर भी उसको सेफ न रख सका. वो असहाय महसूस करता है. कहता है, लड़की को छोड़ दो. बीमार पड़ जाएगी.
लड़कियां पुलिस को देखते ही मुंह ढक लेती हैं. 'उस तरह का काम' करते हुए कोई और न देखे. कहीं अख़बार में न छप जाए, टीवी पे न चल जाए. बेटी, जिसको घर की 'इज्जत' बनाकर उसपर पीढ़ियों से चला आ रहा संस्कारों का हजारों किलो का बोझ डाल दिया जाता है, बदहवास हो जाती है. रोने लगती है. एक छोटा सा वीडियो, या तस्वीर उसका प्रेम, उसका बाहर आना-जाना, उसका पूरा करियर ख़त्म कर सकता है.

'तो यहां आई क्यों'

ये पब्लिक पार्क है. यहां कोई भी आ सकता है. लेकिन लड़का-लड़की ये जवाब नहीं दे सकते. क्योंकि प्रेमी होना उन्हें 'पब्लिक' से अलग कर देता है. 'पब्लिक' के तौर पर उन्हें ही मान्यता मिलती है, जो 'परिवार' वाले लोग हों.
मुंह तो वो छिपाते हैं जिन्होंने कुछ गलत किया हो. लेकिन गलत तो पुलिस ने किया है और वो चौड़े होकर घूम रहे हैं. शिवराज सिंह चौहान इस सूबे के मुखिया हैं. पुलिस उन्हीं के अंडर काम करती है. तीन बार से लगातार मुख्यमंत्री बन रहे हैं और बीजेपी के सबसे काबिल मुख्यमंत्री कहलाते हैं. सर, अपने हिस्से की थोड़ी विनम्रता अपनी पुलिस को भी सिखा दीजिए. पार्क में बैठना क्राइम नहीं है.

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement