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जब ईरान के आख़िरी शाह ने दी 5000 करोड़ की पार्टी!

दुनिया की सबसे महंगी पार्टी के खाने के मेन्यू में क्या-क्या था?

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1971 में पर्शियन साम्राज्य की 2500 वीं सालगिरह उपलक्ष्य में इतिहास की सबसे महंगी पार्टी का आयोजन हुआ था, इस पार्टी के मेज़बान थे ईरान के शाह मोहम्मद रज़ा पहेलवी (तस्वीर- Wikimedia commons/Luxtionary)

आठ टन राशन.
27 सौ किलो गोश्त. 
2500 बोतल शैम्पेन की. 
हज़ार बोतल बरगंडी की
पेरिस के सबसे महंगे होटल के सबसे बेहतरीन ख़ानसामे.
स्विट्जरलैंड के वेटर और खाना परोसने के लिए लंदन से ख़ास मंगाई गई, सोने के पानी से नक़्क़ाशी की गई दस हज़ार प्लेट (Most Expensive Party)

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ये बयाना था साल 1971 में दी गई एक पार्टी का. जिसके बारे में लाइफ़ मैगज़ीन ने लिखा था “सदी की सबसे बड़ी पार्टी.” तीन दिन तक चली इस पार्टी में 65 देशों के राष्ट्राध्यक्ष और उनके नुमाइंदे पहुंचे. कुल 600 लोगों ने शिरकत की. और खर्चा आया, महज़ 100 मिलियन डॉलर. इन्फ्लेशन को हिसाब में रखें तो आज के हिसाब से लगभग पांच हज़ार करोड़ रुपए. हालांकि सिर्फ़ पैसे खर्च हुए होते तो कोई बात न थी. ये पार्टी कुछ ज़्यादा महंगी साबित हुई क्योंकि इसके चक्कर में ख़त्म हो गई एक राजशाही, और हमेशा हमेशा के लिए बदल गया एक देश. (Iranian Revolution)

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Persepolis
ये पार्टी पर्सेपोलिस में आयोजित की गयी थी. पर्सेपोलिस पर्शियन साम्राज्य की पहली राजधानी थी (तस्वीर- Wikimedia commons)

सबसे महंगी पार्टी 

ये पार्टी दी गई थी साल 1971 में. और मेज़बान थे मोहम्मद रज़ा पहेलवी. ईरान के आख़िरी शाह. इस पार्टी ने ईरान की तक़दीर को बदलकर रख दिया. कैसे? जानेंगे. लेकिन पहले एक सवाल. चाकू जिसे कहते हैं, हथियार है या औज़ार?

आसान जवाब- खानसामे के हाथ में औज़ार, और कातिल के हाथ में हथियार. ऐसी ही एक और चीज़ है जिसे लेकर साल 2022-2023 के बीच भारत और ईरान, दो देशों में काफ़ी विवाद पैदा हुआ. हिजाब. भारत में जहां कई महिलाओं ने हिजाब पहनने को निजी हक़ बताया तो वहीं ईरान में औरतों ने हिजाब जला डाले. तर्क एक ही था- आज़ादी. पहनने या ना पहनने, दोनों की आज़ादी. ये तो दो देशों की बात हुई. एक ही देश ईरान में अलग-अलग वक्त में हिजाब अलग अलग प्रकार के विद्रोह का सिम्बल बना. ईरान में साल 1979 में राजशाही के ख़िलाफ़ क्रांति हुई. राजशाही के ख़िलाफ़ औरतें बुर्का पहनकर सड़क पर उतरीं. अब सवाल ये कि जिस देश में महिलाएं 2023 में हिजाब जला कर प्रदर्शन कर रही हैं. उसी देश में कुछ दशक पहले महिलाएं हिजाब का समर्थन क्यों कर रहीं थी. और इस सबसे उस पार्टी का क्या लेना देना था जिसकी चर्चा अभी थोड़ी देर पहले की.

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इस सब की शुरुआत हुई साल 1970 से. ईरान में तब मुहम्मद रजा पहेलवी का शासन था. रुतबे में कोई कमी ना आ जाए इसलिए पहेलवी को शाहों के शाह कहा जाता था. अमेरिका के परम मित्र थे. एकदम लिबरल भी माने जाते थे. हिजाब जैसी प्रथाओं के सख़्त ख़िलाफ़ थे. हालांकि खुद ही ये भी कहते थे कि औरतें क़ानून की नज़र में चाहे बराबर हों. क़ाबिलियत में आदमी-औरत एक बराबर नहीं हो सकते. कुछ और दिक्कतें भी थीं, शाह के शासन में. देश में तेल के भंडार थे. लेकिन जनता ग़रीबी में जी रही थी. स्कूल हॉस्पिटल समेत तमाम सुविधाओं की कमी थी. इसके बावजूद साल 1970 में पहेलवी को एक जलसा कराने की सूझी. जलसा अगले साल होना था. लेकिन ऐसा होना था कि तैयारी के लिए पूरे एक साल की ज़रूरत थी.

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इस पार्टी के आयोजन में उस वक़्त लगभग 100 मिलियन डॉलर खर्च हुए थे (तस्वीर- Alimentarium.org)

1971 में पर्शियन साम्राज्य की 2500 वीं सालगिरह पड़ रही थी. शाह ने तय किया कि ऐसा भव्य जलसा कराएंगे कि पूरी दुनिया देखती रह जाएगी. मंत्रियों ने सुझाया कि राजधानी तेहरान में जलसा रखना ठीक होगा. लेकिन शाह ने कहा नहीं. जलसा दूर रेगिस्तान में रखा जाएगा, जहां पर्शिया के पहले सम्राट सायरस का मक़बरा था. शाह का हुक्म था. हुक्म की तामील हुई. पर्सेपोलिस नाम की जगह पर तीस किलोमीटर के इलाक़े को ख़ाली करवाया गया. इंसानों से नहीं, सांप बिच्छुओं से. फिर पेड़ लगाए गए. एक रनवे बनाया गया. और राजधानी से पर्सेपोलिस तक एक 600 किलोमीटर की रोड बनाई गई.

मेहमानों की लिस्ट 

अब बारी थी शामियाने लगाने की. 50 के आसपास शामियाने लगाए गए. शामियाने से यहां महज़ टेंट न समझिए. इन शामियानों को सजाने के लिए इतना रेशम लगा था, कि ज़मीन पर फैला दें तो 37 किलोमीटर तक पहुंच जाए. हर शामियाने में दो बेडरूम, दो बाथरूम और एक सलून बना हुआ था. शामियानों के बीच लगा हुआ था पानी का एक फ़व्वारा. आसपास 10 हज़ार पेड़. जिनमें चहचहाने के लिए 50 हज़ार गौरया यूरोप से लाई गई. सिक्योरिटी का टाइट बंदोबस्त किया गया.

ये तो था बाहरी बंदोबस्त. अब अंदर किचन का हाल सुनिए. शाह ने पेरिस के सबसे महंगे रेस्त्रां के सबसे अच्छे शेफ़ को खाना पकाने के लिए बुलाया. 200 वेटर बुलाए गए स्विट्जरलैंड से. ईरान की फ़ौज के ज़रिए एयर लिफ़्ट कर पेरिस से बर्तन मंगाए गए जिनका अपना ही वजन डेढ़ सौ टन था. व्यंजनों की लिस्ट तो आप पहले सुन ही चुके हैं. अब बात मेहमानों की. 
तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्षों को न्यौता भेजा गया. ब्रिटेन की तरफ से रानी एलिज़ाबेथ के पति प्रिंस फ़िलिप पधारे और अमेरिका की तरफ़ से न्यौते का मान रखा उप राष्ट्रपति ने. 

भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति VV गिरी भी इस समारोह में शामिल हुए थे. वहीं मुख्य अतिथि बनाया गया था इथियोपिया के राजा हैली सैलासी को. हैली सैलासी जब पार्टी में पहुंचे उनके साथ 6 लोग थे. लेकिन सबकी नज़र थी उनके पालतू कुत्ते की तरफ़. जिसने हीरों जड़ा पट्टा पहना हुआ था. मेहमानों की लिस्ट को लेकर एक स्कैंडल भी हुआ जब फ़्रांस के राष्ट्रपति ने ऐन मौक़े पर आने से इंक़ार कर दिया. एक अंदाज़े के अनुसार राष्ट्र्पति जी, शाह की बेगम के बग़ल में बैठना चाहते थे लेकिन ये स्थान मुख्य अतिथि के लिए रिज़र्व था. लिहाज़ा लास्ट मोमेंट पर उन्होंने आने से इंक़ार कर दिया. इस पार्टी की ऑर्गनायज़र फ़ीलिक्स रियल एक स्विस मैगज़ीन में लिखे आर्टिकल में बताती हैं, मुख्य अतिथि के आगे रखी टेबल पर एक मेज़पोश बिछाया गया था. जिसकी कढ़ाई में 125 औरतों को 6 महीने का वक्त लगा.

Party chef from Maxim’s de Paris
पार्टी में खाना पकाने के लिए उस वक़्त के पेरिस के सबसे महंगे रेस्त्रां 'मैक्सिम्स' से शेफ़ बुलाये गए थे (तस्वीर- Alimentarium.org)

50 हजार गौरया मर गई  

टाइम मैगज़ीन ने लिखा, ये दुनिया की सबसे आलीशान पार्टी है. दुनिया के तमाम अख़बारों और पत्रिकाओं में पार्टी के चर्चे हुए. इसे दुनिया की सबसे महंगी पार्टी का तमग़ा मिला. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक में नाम दर्ज हुआ और होता भी क्यों नहीं. ईरान की पुलिस का मालिक खुद पार्टी में मौजूद था, इसलिए पार्टी रोकता कौन. पार्टी पूरे 3 दिन तक चली. हालांकि इस दौरान कुछ दिक्कतें भी आई. फ़ीलिक्स रियल के अनुसार पार्टी में जो कॉफ़ी मशीन लाई गई थी, वो एक वक्त में सिर्फ़ दो कप कॉफ़ी बना सकती थी. जो 600 गेस्ट के लिए नाकाफ़ी थी. इसलिए कॉफ़ी को बड़ी बड़ी केतलियों में घोलकर मेहमानों को पिलाया गया.

हैली सैलासी के कुत्ते ने भी काफ़ी मौज की. लेकिन एक काम अच्छा न हुआ. याद है हमने बताया था इस मौक़े के लिए यूरोप से पचास हज़ार गौरैया लाई गई थीं. तीन दिन बाद जब पार्टी ख़त्म हुई, उनमें से एक भी ज़िंदा नहीं बची. कारण था रेगिस्तान का तापमान, जो दिन में चालीस डिग्री हो जाता, तो रात को ज़ीरो से भी नीचे चला जाता था. इस तापमान का हालांकि शाह और उनके मेहमानों पर कोई असर नहीं था. दिन में एयर कंडीशनर मौजूद था. और रात को मखमली लिहाफ़. पार्टी के अंत में एक आतिशबाजी शो भी रखवाया गया था. जिसके बाद तमाम मेहमानों ने एक अंतिम तस्वीर खिंचवाई और अपने अपने घरों को चले गए.

दुनिया की सबसे बेहतरीन पार्टी देने के बाद शाह पहेलवी खुश थे. पैसा ज़रूर कुछ खर्च हुआ था, लेकिन शाह को इस बात की कोई चिंता नहीं थी. ख़ासकर तब जब इस शोशे बाजी से उन्हें ईरान के तेल के नए ग्राहक मिल गए थे. जैसा पहले बताया टाइम मैगज़ीन ने इस पार्टी पर हुए कुल खर्चे की रक़म 100 मिलियन डॉलर बताई. लेकिन आगे जाकर शाह को अहसास हुआ कि ये पार्टी उन्हें इससे कहीं ज़्यादा महंगी पड़ गई है.

महंगी पड़ी पार्टी 

पहेलवी की बेगम फ़राह डीबा अपने संस्मरणों में लिखती हैं. 

"इस पार्टी की तैयारियों में जिस बात ने मुझे सबसे ज़्यादा परेशान किया वो था प्रेस से निपटना. आए दिन ऐसी बातें छप रही थीं कि देश भूखा है और शाह अपने दोस्तों के साथ दावत उड़ा रहे हैं".

अयातुल्लाह खोमैनी, जो शाह के सबसे बड़े आलोचक थे, और उस समय देश से बाहर रह रहे थे, उन्होंने भी इस पार्टी को लेकर शाह पर जमकर निशाना साधा. इस जलसे की खबर जैसे-जैसेफैली, जनता में शाह के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा बढ़ता गया.

Ayatollah Sayyid Ruhollah Musavi Khomeini
अयातुल्लाह खोमैनी 1979 में हुए ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता थे. खोमैनी पश्चिमी सभ्यता के समर्थक, ईरान के शाह मोहम्मद रज़ा पहेलवी, का खुल कर विरोध करते थे (तस्वीर- Wikimedia commons)

शाह लिबरल होने का दावा करते थे. इस पार्टी ने उनकी एक असंवेदनशील शासक की छवि को और पुख़्ता कर दिया. वेस्ट की ओर शाह के झुकाव के कारण भी लोगों में भारी नाराजगी थी. लोग प्रदर्शन के लिए जुटने लगे. शाह की पुलिस ने लोगों को जेल में डाला लेकिन विद्रोह रुका नहीं. औरतें बुर्का पहनकर सड़क पर निकलने लगीं. बुर्के पर क़ानूनी पाबंदी नहीं थी, लेकिन अघोषित रूप से बुर्का पहनने वाली महिलाओं को भेदभाव झेलना पड़ता था. इसलिए बुर्का ईरान की क्रांति का एक बड़ा सिम्बल बना.

1979 तक हालात ऐसे बन गए कि शाह को देश छोड़कर भागना पड़ा. अयातुल्लाह खोमैनी की वापसी हुई. और उन्होंने ईरान को इस्लामिक रिपब्लिक में तब्दील कर दिया. शाह इसके बाद ताउम्र ईरान नहीं लौट पाए. 1971 में उनके द्वारा आयोजित पार्टी ने डॉमिनो एफेक्ट का रूप लिया और पहेलवी राजशाही का ख़ात्मा हो गया. ईरान की क्रांति का हालांकि एक ख़ामियाज़ा उन महिलाओं को भी झेलना पड़ा, जिन्होंने शाह की मुख़ालफ़त की थी. जो हिजाब शाह के ख़िलाफ़ विद्रोह का सिम्बल बना था, नए निज़ाम ने उसी हिजाब को उनके लिए बंधन बना दिया. अच्छी बात ये है कि बंधन तोड़े जा रहे हैं. कहीं एक तरीके से तो कहीं उसके ही विपरीत तरीके से.

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