सोशल मीडिया का कीड़ा है, तो अब तक आप अवधी बोलने वाले लोटावन काका से मिल चुके होंगे. उन दादी से भी मिले होंगे, जो पड़ोसी से अपनी बहू की बुराई करते हुए कहती हैं, 'ई छुलाछन जब से हमरे घर मां पांव धरिस है जिज्जी, तब से हमार घर चउपट हुइगा. बुढ़ऊ नीक-नीक रहे, उनके मति मारी गै. छोट हमरे लड़िका, वै घर छोड़ि परदेस. मारिस तहस-नहस कहि दिहिस.' ये दादी अपनी बहू से इतना परेशान हैं कि कहती हैं, 'पतोहुआ मिलै तो नीक मिलै, नाईं तौ लरिका अइसै रंडुआ रहांय जिंदगीभर. बिहाय होय चाहे आगि लागै.'
कौन है ये आदमी, जिसके वीडियो देखकर जनता लहालोट हुई जा रही है
ये आदमी जब सास बनकर बहू की बुराई करता है, तो लगता है जैसे फूल झर रहे हैं.

इन दोनों किरदारों से मिले हैं, तो गैस से पीड़ित उस सास से भी मिले होंगे, जो अपनी बहु के भाई से बात कर रही हैं. उससे शादी के दिनों की शिकायत करते हुए कहती हैं, 'तुम्हार बप्पा तिलकिया चढ़ावै लागे जब, तौ उनके सांस फूलै लाग. कहिके गए रहांय 21 हजार, चढ़ाइन 11. तब्बै जाने रहान.' फिर बड़के बप्पा की शिकायत करती हैं, 'ठीक हैं? हां भइया 11 साड़ी तय भइ रहाय तिलकि चढ़ावैम. तौ तुम्हारा बड़के बप्पा कहिन ग्यारह के जगह हम एकईस चढ़ाइब. और आईं केतना... पांच. सब तीन सै वाली रहीं.'
महीनेभर से ये वीडियो फेसबुक से यूट्यूब और वॉट्सऐप तक गनगना कर शेयर हो रहे हैं. इंटरनेट से होते हुए ये वीडियो लोगों को फोन तक में जगह बना चुके हैं. और सबसे खास बात ये है कि वीडियो में इन सारे किरदारों को निभाने के पीछे सिर्फ एक आदमी है- रमेश दुबे.
रमेश को औरतों और बुजुर्गों के किरदार में अवधी बोलते देखना अपने-आप में सुख है. ये सिर्फ बोली का ज्ञान होने, टोन पकड़ने या अच्छी स्क्रिप्ट लिखने की बात नहीं है. रमेश जब अपने कैरेक्टर में अवधी बोलना शुरू करते हैं, तो मुस्कान न जाने कहां से आकर आपके चेहरे पर बैठ जाती है. वीडियो आगे बढ़ने के साथ-साथ आप हैरान होते जाते हैं कि सिर पर अंगौछा डाले ये आदमी क्या जादू किए दे रहा है. आप पहले एक और नमूना देखिए, फिर आगे बतियाते हैं.
रमेश के यूट्यूब चैनल का नाम है- उन्नति फिल्म्स हाउस. अवधी में उनके जो वीडियो आते हैं, उनका टाइटल होता है, 'हंसते हंसते जीना सीखो'. रमेश के वीडियो देखकर हमें उनके बारे में और जानने की इच्छा हुई. हमने उनसे बात की. बातचीत का जो हासिल रहा, वो आपके सामने पेश है.
कौन हैं रमेश, कहां से आते हैं
30 साल के रमेश उत्तर प्रदेश के गोंडा की पैदाइश हैं. यहां के करनैलगंज के परसा महेसी गांव के. ये जिला लखनऊ से पूर्वांचल की तरफ 120 किमी बढ़ने पर पड़ता है. भोजपुरी में जितना क्रिएटिव काम हो रहा है, उसका स्तर किसी से छिपा नहीं है. और अवधी में बाद के बरसों में इतना कम काम हुआ है कि मिलेनियल अभी इससे अछूता है. भोजपुरी के अश्लील और फूहड़ कॉन्टेंट से चट चुके रमेश अवधी का हाथ पकड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं.

एक वीडियोे की शूटिंग के दौरान रमेश
रमेश के पिता पिछले करीब 20 साल से लखनऊ में आचार्य हैं. वो गोमती नगर के एक मंदिर में रहते हैं और वहीं आसपास के तमाम लोग उनके यजमान हैं. पिता घर से दूर थे और परिवार गरीबी से दौर से गुज़र रहा था, तो रमेश 12वीं तक ही पढ़ाई कर पाए. लेकिन कन्हैयालाल कॉलेज से 12वीं पास करने से पहले ही रमेश की लाइन डिसाइड हो चुकी थी. बचपन से ही दादा-दादी और गांव के लोगों की नकल उतारा करते थे. स्कूल में फंक्शन होता था, तो मिमिक्री और दूसरी स्टेज परफॉर्मेंसेस देते थे.
ये आर्टिस्ट वाली लाइन कहां से पकड़ी
2004 में इंटर करके जब रमेश गोंडा से लखनऊ पहुंचे, तो उनका वास्ता पड़ा भारतेंदु नाट्य अकादमी से. जैसा नेचर था, उसके मुताबिक रमेश को जगह जम गई. लगा कि वो यहां से अपने मतलब का कुछ निकाल सकते हैं. तो 2004 में रमेश ने भारतेंदु से 6-6 महीने की ड्रामा प्रोडक्शन की दो वर्कशॉप कीं. रमेश ज़ोर देकर बताते हैं कि उन्होंने एक्टिंग की ट्रेनिंग नहीं ली. अभी जिस एक्टिंग की वजह से उनका नाम और तारीफ हो रही है, वो उसे ऊपरवाले का आशीर्वाद मानते हैं.

लखनऊ की भारतेंदु नाट्य अकादमी
इन वर्कशॉप से रमेश के लिए आगे का रास्ता बना. लखनऊ में थिएटर और नुक्कड़ नाटक करने वालों से वास्ता पड़ा, तो नुक्कड़ नाटक करने लगे. पल्स पोलियो और एड्स के बारे में जागरूकता फैलाने वाले नुक्कड़ नाटक करने वो मेरठ, बुलंदशहर, देवरिया और गोरखपुर तक गए. इससे उनका खर्चा निकलने लगा. रमेश बताते हैं, 'गरीबी थी, लेकिन स्टेज ने मुझे पैसा दिया. जहां-जहां परफॉर्म करते थे, वहां पेमेंट मिलता था और कई बार इनाम भी मिलता था. जब देखने वाले एकदम गदगद हो जाते थे, तो कई बार पेमेंट के साथ-साथ इनाम भी रख लेने दिया गया. इसका नतीजा ये निकला कि मुझे नौकरी नहीं करनी पड़ी.'
लेकिन 2009 आते-आते पोलियो का असर कम होने लगा था. इसकी कैंपेनिंग डल हो गई, तो पैसा भी कम हो गया. फिर रमेश को आर्थिक दिक्कतें आने लगीं. अब उन्हें कमाई के नए और स्थायी ज़रिए की तलाश थी, तो उन्होंने अपना ऑर्केस्ट्रा बैंड बना लिया. नाम रखा- रमेश दुबे ऐंड पार्टी.

एक शो के दौरान अपने साथियों के साथ रमेश.
बेटी के नाम से शुरू किया यूट्यूब चैनल
वैसे इस कामकाज के चक्कर में ये बताना तो भूल ही गए कि 2005 में रमेश की शादी हो गई थी. रमेश कहते हैं, 'आप समझ सकते हैं कि गांव वाला माहौल था और हम ब्राह्मण हैं, तो वहां शादी कम उम्र में ही करा दी जाती है.' वैसे उस समय शादी का फैसला रमेश के लिए जितना भी मुश्किल रहा हो, लेकिन आज वो 7 साल की उन्नति और 4 साल के मुदित के पिता हैं. पत्नी किरन के साथ घर एकदम चकाचक चल रहा है. अपनी बिटिया के नाम पर ही उन्होंने अपना यूट्यूब चैनल बनाया है- उन्नति फिल्म्स हाउस.

रमेश का यूट्यूब चैनल
हमें सबसे ज़्यादा हैरानी ये जानकर हुई कि रमेश अपने वीडियो में जो किरदार दिखाते हैं, वो उनके आसपास के नहीं, बल्कि काल्पनिक हैं. वो बताते हैं, 'मैं अपने गांव के ढेर सारे लोगों की नकल करता था और मेरे पास वैसा बहुत सारा मसाला है. लेकिन किसी को बुरा न लगे, इसलिए मैंने सब कुछ काल्पनिक रखा. मैंने उन लोगों के किरदार अपने वीडियो में कॉपी नहीं किए हैं.'
थिएटर और नुक्कड़ नाटक करते हुए रमेश का कैसा शोषण हुआ
रमेश बताते हैं कि उनका असली स्ट्रगल 2010 के बाद से शुरू हुआ. वो लखनऊ में टिक चुके थे, लेकिन थिएटर लॉबी के लोगों से सपोर्ट नहीं मिल रहा था. ऐसे क्रिएटिव काम करते हुए क्रेडिट न दिया जाना, पैसा न दिया जाना, डीमोरलाइज़ किया जाना... ये सब आम किस्म के शोषण हैं. रमेश को भी ये झेलना पड़ा. वो बताते हैं,
'पहले मैं जब भी कोई नया काम शुरू करने जा रहा होता था, तो आसपास के लोगों को उसके बारे में बताता था. लेकिन तब लोग उसे सिरे से खारिज कर देते थे. कहते थे कि ये बेकार है, नहीं चलेगा. गांव में इस तरह का काम करने में दिक्कत होती है. लोग कहते हैं कि ब्राह्मण होकर भी ऐसे काम कर रहे हो. पर इस बार हम जुट गए. मैंने अपने साथी गौतम के साथ मिलकर ये अवधी वाले वीडियो बनाने शुरू किए. इसके बारे में हमने किसी को नहीं बताया. सब कुछ खुद ही किया. खुद लिखा, खुद शूट किया और संसाधनों के अभाव में खुद ही एडिट किया. पोस्ट प्रोडक्शन न होने के बावजूद आज लोग इन वीडियो को पसंद कर रहे हैं, ये मेरे लिए बड़ी बात है. मैं बरसों जिसके लिए भटका हूं, वो मुझे अब मिलना शुरू हुई है. मैं भरोसा दिलाता हूं कि मेरे पास बहुत सारी स्क्रिप्ट हैं. लोग मुझे सपोर्ट करेंगे, तो मैं आप सबके लिए बहुत सारे अच्छे-अच्छे वीडियो लाऊंगा.'

अपने एक वीडियो की शूटिंग के दौरान रमेश
एक्टिंग के अलावा और क्या करते हैं रमेश
ऑर्केस्ट्रा बनाने के बाद रमेश अपनी टीम के साथ स्टेज परफॉर्मेंस देने लगे. रमेश खुद को बेसिकली मिमिक्री आर्टिस्ट और ऐंकर मानते हैं. वो बताते हैं कि ऑर्केस्ट्रा बनाने के बाद दूसरे ग्रुप के लोग भी उन्हें मिमिक्री और ऐंकरिंग के लिए अपने शोज़ में बुलाते हैं. वो बताते हैं, 'मैंने अभी मिमिक्री के वीडियोज़ यूट्यूब पर डाले नहीं हैं, वरना मैं 100 के आसपास एक्टर्स की मिमिक्री कर सकता हूं. गांव में ब्लैक ऐंड वाइट टीवी पर मैंने खूब फिल्में देखीं. मुझे एक बार सुनते ही डायलॉग याद हो जाते हैं, तो जब मैं किसी फिल्म के पूरे के पूरे सीन की मिमिक्री करता हूं, तो लोगों को मज़ा आ जाता है.'
पिछले 3-4 साल से रमेश लखनऊ में ही रह रहे हैं और ऑर्केस्ट्रा के साथ गोंडा, फैजाबाद, बाराबंकी, गोरखपुर और आजमगढ़ वगैरह तक परफॉर्म कर चुके हैं. रमेश के इस सफर में उनके रिश्तेदार एस. कुमार गौतम ने उनका बड़ा साथ दिया. गौतम रिश्ते में रमेश के काका लगते हैं, लेकिन उम्र में दो साल छोटे हैं. रमेश वीडियो लिखते हैं और डायरेक्ट करते हैं, जबकि शूट गौतम करते हैं.

गौतम के साथ रमेश
ये 'रमेशवा' नाम के पीछे क्या कहानी है
रमेश अपने वीडियो में अपना नाम रमेश दुबे 'रमेशवा' बताते हैं. जब हमने उनसे इस 'रमेशवा' की कहानी पूछी, तो उन्होंने बताया, 'अपने गांव में मेरी आज तक किसी से लड़ाई नहीं हुई. कम से कम सामने तो मुझे हर कोई प्यार करता है. तो वहां कोई भी काम पड़ने पर लोग कहते थे कि रमेशवा को बुला लाओ. तो वीडियो बनाना शुरू करने के दौरान मैंने सोचा कि मेरी इतनी उम्र तो रह नहीं गई है कि मैं अपने नाम 'दीवाना' या 'मस्ताना' टाइप कुछ रखूं, तो मैंने 'रमेशवा' ही इस्तेमाल करना शुरू कर दिया.'
रमेश को अपने वीडियोज़ के लिए गज़ब का रिस्पॉन्स मिल रहा है. खुद के यूट्यूब चैनल पर उनके वीडियोज़ पर भले 20-25 हज़ार व्यूज़ आए हों, लेकिन सोशल मीडिया पर ये वीडियो गदर काट चुके हैं. डाउनलोग करके तो न जाने कितने ही लोगों ने फॉरवर्ड किए हैं. रमेश एक किस्सा बताते हैं कि उनके किसी परिचित वकील के फोन में उनका वीडियो पड़ा था, जिसे वकील साहब की मां और पत्नी देखती थीं. एक दिन उनसे वीडियो डिलीट हो गया, तो मां और पत्नी नाराज़ हो गईं. बोलीं कि अब जब वीडियो ले आाना, तब बात करना.

एक शूट के दौरान गांववालों के साथ रमेश
बच्ची के स्कूल में सुपरस्टार बन चुके हैं रमेश
रमेश अपनी बेटी के स्कूल का ऐसा ही एक किस्सा बताते हैं. 'पहले मैं जब बच्ची के स्कूल जाता था, तो वो मुझे चुटकुले सुनाने या कुछ करने के लिए स्टेज पर बुलाते थे. पर अब मेरी बेटी ने बताया कि पहले सारी टीचर अलग कमरों में लंच करती थीं, लेकिन अब वो साथ में बैठती हैं, टिफिन के पीछे मोबाइल में रमेश के वीडियो चला लेती हैं और फिर लंच करती हैं.' आसपास के गांवों में लोग रमेश को पहचानने लगे हैं, मिलने पर उन्हें घेर लेते हैं. अब जिस चीज़ की कसर बची है, वो है लोगों का ईमानदारी वाला प्यार. रमेश तो तभी बढ़ेंगे, जब उनका यूट्यूब चैनल 'उन्नति फिल्म्स हाउस' बढ़ेगा.
सोसायटी के लिए क्या करना चाहते हैं रमेश
और आखिर में सबसे प्यारी बात. हमने रमेश से पूछा कि उनके वीडियोज़ में सारे किरदार अपने घरवालों की बुराई क्यों करते रहते हैं, तो रमेश बताते हैं, 'हमारे समाज में हर घर में लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं. सास-बहू के बीच, भाई-भाई के बीच. मैं अपने वीडियो से हर घर की कलह खत्म कर दूंगा. अभी तो वीडियो छोटे स्तर पर बन रहे हैं, लेकिन आगे मैं ऐसे वीडियो बनाऊंगा, जिसमें आधे में दिखाऊंगा कि झगड़े क्यों होते हैं और आधे में दिखाऊंगा कि क्या करने से झगड़े नहीं होंगे.'
दी लल्लनटॉप की तरफ से रमेश को ढेर सारी शुभकामनाएं.