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केंद्र से SC बोला 'मणिपुर में सिर्फ CBI जांच या SIT से काम नहीं चलेगा'

कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से की मांग 'मामले की जांच असम से बाहर हो'

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मणिपुर मुद्दे पर CJI का तीखा सवाल, 'मणिपुर के लिए केंद्र ने कितना रिलीफ़ पैकेज दिया'

> '4 मई को घटना घटी थी. महिलाओं को निवस्त्र कर जुलूस निकाला गया और कम-से-कम 2 महिलाओं के साथ रेप किया गया. तब पुलिस क्या कर रही थी?'
> '4 मई को ये वारदात हुई और 18 तारीख को FIR दर्ज की गई. 4 तारीख से 18 तारीख तक पुलिस क्या कर रही थी.'
> जीरो FIR को पक्की FIR करने में एक महीने तीन दिन का समय क्यों लगा?

20 जुलाई, को लल्लनटॉप ने यही सवाल मणिपुर की बीरेन सिंह सरकार से पूछे थे. इनकी सरकार में जो दूसरा इंजन लगा है - केंद्र की मोदी सरकार, उनकी जवाबदेही भी तय की थी. कट टू 31 जुलाई 2023, माने आज. देश की सबसे बड़ी अदालत में जब मणिपुर के इस मामले की सुनवाई हुई, तो देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने भी ठीक यही सवाल सरकार की तरफ दागे. CJI की अध्यक्षता वाली ट्रिपल बेंच ने सिर्फ सवाल नहीं किए. कुछ जवाब भी दिए. और कुछ बेहद जरूरी टिप्णियां भी कीं. सुप्रीम कोर्ट की एक सुनवाई में वो सारे तर्क धराशायी हो गए हैं, जिनके पीछे सरकार छिपने की कोशिश कर रही थी.

सुनवाई के दौरान सबसे पहले दलील देने के लिए खड़े हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, जो उन दो महिलाओं की तरफ से पेश हुए, जिन्हें निवस्त्र कर परेड कराई गई है, वीडियो बनाया गया. सिब्बल ने पहली दलील देते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने मामले को CBI को सौंप दिया है. साथ ही वो ये भी चाहते हैं कि मामले की जांच असम से बाहर हो. सिब्बल ने कहा, हम इन दोनों के ही खिलाफ हैं. इस पर सरकार के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार महता ने कहा कि मामले की जांच असम से बाहर करने के लिए कभी नहीं कहा गया. मणिपुर से बाहर जांच हो, सिर्फ ये कहा गया है.

सिब्बल के बाद जिरह के लिए खड़ी हुईं वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह. जयसिंह भी इसी मामले में पीड़ित पक्ष की तरफ से पेश हुईं. दरअसल, मणिपुर हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लगी थीं. CJI ने सुनवाई की शुरुआत में ही कह दिया था कि सभी मामलों को क्लब करके सुना जाएगा.

इंदिरा जयसिंह ने कहा कि- मणिपुर में सिर्फ दो महिलाओं के साथ ही यौन हिंसा नहीं है. ऐसे पर्याप्त संकेत हैं कि बहुत सी महिलाओं के साथ सेक्शुअल असॉल्ट हुआ है. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि- ये वीडियो मणिपुर में महिलाओं पर होने वाला एकमात्र हमला नहीं है. ऐसी कई घटनाएं हैं...इसलिए इसे इकलौती घटना नहीं माना जा सकता.

उन्होंने कहा- हमें एक ऐसा मेकैनिज़्म बनाने की जरूरत है जिससे महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं को व्यापक स्तर पर जांचा जा सके. इस मेकैनिज़्म की जरूरत इसलिए है ताकि इस तरह के सभी मामलों तक पहुंचा जा सके. इसके बाद CJI ने पूछा कि 3 मई के बाद से अबतक मणिपुर में इस तरह की कितनी FIR दर्ज हुई हैं? हमारे पास अबतक सभी तथ्य और रिकॉर्ड नहीं हैं.

चीफ जस्टिस की टिप्पणी के बाद सिब्बल ने कहा कि अब तक सामने आए तथ्यों से ये साफ हो चुका है कि हिंसा फैलाने वालों के साथ में पुलिस का तालमेल है. दर्ज किए गए बयानों में कहा गया है कि पुलिस का काम था पीड़ितों को भीड़ से बचाकर बाहर निकालना. लेकिन पुलिस पीड़ितों को भीड़ तक लेकर गई. पुलिस ने महिलाओं को भीड़ के हवाले कर दिया. सिब्बल ने पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा कि एक पीड़ित महिला के पिता और भाई की हत्या कर दी गई. अब तक उनके शव तक नहीं मिले हैं. जीरो FIR 18 मई को दर्ज हुई. वो भी तब जब इस कोर्ट ने मामले को सज्ञान लिया. तो बताइए कैसे हमें इन पर भरोसा होगा. सिब्बल ने मांग की कि महिलाओं को निवस्त्र कर परेड कराने वाले मामले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए. कोई लॉ ऑफिसर या अटॉर्नी जनरल कैसे इस मामले की जांच कर सकता है जब इतना पक्षपात हो रहा है. संकेत ये, कि AG सरकार के ही वकील हैं. ऐसे में वो भी एक पक्ष से हुए. सिब्बल ने कहा कि पुलिस ने अब तक अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल को ये तक नहीं बताया है कि कितनी FIR दर्ज हुई हैं. क्या यही काम करने का तरीका है?

इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि उन्हें कोई आपत्ति नहीं है अगर जांच न्यायालय की सरपरस्ती में हो.

इसके बाद पीड़ित पक्ष से दलील पेश करते हुए इंदिरा जयसिंह ने कहा कि रेप पीड़िता आमतौर पर बात नहीं करतीं. उनके लिए ट्रॉमा से बाहर आना ही मुश्किल है. सबसे जरूरी है उनका भरोसा जीतना. और सवाल ये है कि जब CBI जांच शुरू करेगी तो पीड़ित महिलाएं सामने आएंगी या नहीं. जय सिंह ने मांग की कि एक हाई पावर्ड कमेटी होनी चाहिए जिसमें सिविल सोसाइटी के लोग हों जिन्होंने इस तरह के मामलों को डील किया हो. उन्होंने कमेटी के लिए सयैद हमीद, उमा चक्रवर्ती और रोशनी गोस्वामी के नाम भी सुझाए.

इस पर CJI ने पूछा कि अगर जांच कमेटी बना दी जाए तो इस दौरान अपराधियों को पकड़ेगा कौन. तो जयसिंह ने कहा कि ये काम कानूनी है. और लॉ इन्फोर्समेंट ऑफिसर ये काम करते रहेंगे. जयसिंह ने कहा कि ये काम पुलिस ना करें. जिस अफसर को नामित किया जाए, वो करें. इस दौरान उन्होंने कहा कि सबसे अहम सबूत हैं. सबूत नष्ट नहीं होने चाहिए. और दूसरी बात ये कि क्या पीड़ित महिलाओं को पुरुष मजिस्ट्रेट के सवालों के जवाब देनें होंगे? या फिर वो भी महिला होंगी? जयसिंह ने कहा कि सबसे अहम बात ये है कि जांच करेगा कौन? क्या पीड़ित महिलाओं को वैसा माहौल मिलेगा जिसमें वो सहज हो सकें?

इस दौरान वकील कॉलिन गोंज़ाल्विस ने भी कहा कि 5 रिटायर्ड DGP की एक जांच कमेटी बनाई जा सकती है. उनका तो किसी पॉलिटिकल पार्टी से कोई लेनादेना भी नहीं है. और जांच करने का अनुभव भी है. इसके बाद कोर्ट महिला DGPs की कमेटी बनाने की भी बात कही गई. हालांकि इस दौरान गोंज़ाल्विस ने एक अहम बात की ओर ध्यान दिलाया. उन्होंने कहा कि जांच सिर्फ इस एक मामले की नहीं होनी चाहिए. बल्कि मणिपुर में जिस तरह से महिलाओं के रेप किए गए हैं वो एक बड़ी साजिश की ओर इशारा करता है. इनका एक पैटर्न नज़र आता है.

इस दौरान इंदिरा जयसिंह ने कहा कि मणिपुर में दोनों समुदायों के बीच सेक्शुअल वॉयलेंस हुआ है. लेकिन ये जाहिर है कि कुकी महिलाओं को टार्गेट किया गया, जो कि वहां अल्पसंख्यक हैं. इस पर तुषार मेहता ने कहा अगर हमें किसी समुदाय का नाम नहीं लेना चाहिए. इससे और हिंसा फैलने का खतरा है. जयसिंह ने सॉलिसिटर जनरल को काटते हुए कहा कि इस टार्गेटेड वायलेंस को जाहिर किया जाना जरूरी है. सांप्रदायिक हिंसा के दौरान महिलाओं के रेप किए गए  हैं. ग्रोवर ने ये भी कहा कि इन घटनाओं की FIR में SC/ST एक्ट का जिक्र नहीं है.

कोर्ट में दलील के दौरान एक दफे CJI को हस्तक्षेप भी करना पड़ा. दरअसल, वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि ज्यादातर खाना और राशन लोग स्वेच्छा से दान कर रहे हैं. जो कि जल्द खत्म हो सकता है. इंदिरा अपनी बात कह ही रही थीं अटॉर्नी जनरल उन्हें टोकने लगे. इस पर CJI ने हस्तक्षेप किया और कहा कि वो सिर्फ समस्याएं बता रही हैं. अगर पीड़ित लोग राशन संबंधी समस्या से जूझ रहे हैं तो वो बिल्कुल अपनी बात कह सकते हैं.

इसके बाद कई और वकीलों ने दलीलें दीं. इसके बाद अटॉर्नी जनरल ने अपना पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि मणिपुर में कई ऐसे मामले हैं जो एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं. इसलिए सबको एक जैसे ट्रीट नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि वो SIT के विरोध में नहीं हैं लेकिन पहले हम सारे तथ्य तो जुटा लें. इस जांच में सरकार की भी भागीदारी जरूरी है सिर्फ सिविल सोसायटी के नहीं.

इसके बाद CJI ने पूछा कि हम उस केस की सुनवाई कर रहे हैं जिसमें महिलाओं के निवस्त्र कर परेड कराई गई. इस मामले में FIR कब दर्ज हुई? इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अभी उनके पास पूरी जानकारी नहीं है. वो सिक्वेंस ऑफ इवेंट को पता करके विस्तार से बताएंगे.

इस पर CJI ने कहा- क्या ये सही है कि FIR 18 मई को हुई थी. सॉलिसिटर जरनरल ने हामी भरी.

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि 18 मई को जो FIR हुई तो वो जीरो FIR थी. ऐसी और भी बहुत सी FIR दर्ज हुई हैं.

तब CJI ने पूछा- कितनी FIR दर्ज हुईं?

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि- 20 FIR उसी पुलिस स्टेशन में दर्ज हुईं जबकि पूरे राज्य में कुल 6 हजार FIR दर्ज हुईं.

तब CJI ने पूछा कि 4 मई को घटना हुई तो 18 मई तो पुलिस क्या कर रही थी. FIR क्यों नहीं दर्ज हुई? CJI ने हैरान होकर सरकार के वकील से कहा कि पुलिस ने एक जीरो FIR दर्ज करने के लिए 14 दिन ले लिए.

CJI ने पूछा कि इस मामले की मजिस्ट्रेट तक पहुंचने में यानी जीरो FIR को पक्की FIR करने में एक महीने तीन दिन का समय क्यों लगा? और अगर उसी पुलिस स्टेशन में 20 और ऐसी FIR हैं तो उन मामलों में क्या हुआ?

फिर चीफ जस्टिस ने सरकार से पूछा कि जो 6000 FIR हुईं हैं उनमें से महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़ी कितनी हैं? क्या इसका कोई रिकॉर्ड है? इनमें से जीरो FIR कितनी हैं?  और इन मामलों में क्या हुआ? और क्या महिलाओं को निवस्त्र कर जुलूस निकालने का ये मामला इकलौता है? अगर नहीं, तो उन मामलों में क्या किया गया? उन्होंने ये भी पूछा कि अगर ऐसा एक हजार मामले हैं तो क्या CBI सभी की जांच करेगी?

आगे CJI ने कहा कि ऐसे कई मामले हैं जो मीडिया में हैं और पब्लिक की जानकारी में हैं. लेकिन सरकार को इनके बारे में जानकारी कैसे नहीं है. ऐसी भी जानकारी आई है कि पुलिस ने पीड़ित महिलाओं को खुद भीड़ के हवाले किया. यह निर्भया जैसा मामला नहीं है जिसमें एक महिला से सामूहिक बलात्कार हुआ था. वह भी भयावह था लेकिन दोनों मामले अलग-अलग हैं. यहां हम सिस्टेमैटिक हिंसा से निपट रहे हैं जिसे भारतीय दंड संहिता अपराध मानता है.

इस टिप्पणी के बाद CJI ने फिर सरकार से सवाल पूछे. पूछा कि मणिपुर को केंद्र की तरफ से कितना रिलीफ पैकेज दिया गया है. हालांकि इसकी जानकारी सरकार के वकील नहीं दे पाए. सरकार निरुत्तर थी, तो CJI ने फिर टिप्पणी की. कहा कि सिर्फ CBI की जांच या SIT से काम नहीं चलेगा. हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि एक 19 साल की लड़की का रेप हुआ है. जिसने अपने परिवार को भी खो दिया. इस केस में ये नहीं हो सकता कि वो लड़की मजिस्ट्रेट के पास तक जाए और बयान दे. हमें ये इन्श्योर करना पड़ेगा कि न्याय पीड़ित के दरवाजे तक पहुंचे.

तब अटॉर्नी जनरल ने एक ऐसा जवाब दिया, जिसने कई लोगों को हैरान किया.

AG बोले - हमें पूरी जानकारी की जरूरत है. सिर्फ थ्योरीज़ पर बात नहीं हो सकती. CJI इससे संतुष्ट नहीं हुए और कहा, इतना समय है नहीं. तीन महीने बीत चुके हैं. यानी सबूत नष्ट हो रहे हैं. मैंने अखबार में पढ़ा कि दो महिला गवाहों की हत्या कर दी गई.

सुनवाई खत्म होते-होते सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की तरफ से भी कमेटी बनाने को लेकर नाम मांगे. अंत में CJI ने वही बात दोहराई जो 20 जुलाई को वीडियो सामने आने के बाद कही थी. उन्होंने कहा कि हमारी दखलअंदाजी इसी बात पर निर्भर करेगी कि सरकार ने अब तक क्या कदम उठाए. अगर सरकार के काम से संतुष्ट हुए तो हम इंटरवीन नहीं करेंगे.

यहां दी लल्लनटॉप एक बात स्पष्ट करना चाहता है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई अंग्रेज़ी में हुई थी. हमने आपको हिंदी भावानुवाद बताया है. सुनवाई के प्रमुख बिंदु शामिल किए हैं. विस्तृत जानकारी के लिए दर्शक कोर्ट रिकॉर्ड का रुख कर सकते हैं.

अब एक दूसरे बिंदु पर आते हैं, जिसका संबंध आज की सुनवाई से ही है. वकील बांसुरी स्वराज भी सुनवाई के दौरान कोर्ट में थीं. बांसुरी स्वराज का एक परिचय ये भी है कि वो पूर्व-विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की बेटी हैं. 16 साल का वकालती अनुभव है और इसी साल के मार्च में उन्हें भाजपा के दिल्ली प्रदेश के विधि प्रकोष्ट का प्रदेश सह-संयोजक नियुक्त किया गया है. वो, एक इंटरवीनिंग याचिका की जिरह कर रही थीं.

सादी भाषा में इसका मतलब हुआ, एक वकील एक दूसरे पक्षकार की तरफ से इस मामले में हस्तक्षेप की अनुमति चाहता था, क्योंकि वो मामलों में समानता देख रहा था. लौटते हैं कोर्टरूम में -
बांसुरी ने CJI से कहा, ऐसा ही मामला बंगाल में भी हुआ है. CJI ने कहा कि वो उन्हें सुनेंगे, मगर पहले मणिपुर. स्वराज ने अपनी दलील जारी रखी. कहा कि बंगाल की एक पंचायत उम्मीदवार का वीडियो भी आया है, जिसके कपड़े उतारकर घुमाया गया. इस पर CJI चंद्रचूड़ ने उन्हें टोका और कहा कि बिला'शक देश भर में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध हो रहे हैं. ये हमारी सामाजिक वास्तविकता है. लेकिन यहां, हम एक ऐसी चीज़ की बात कर रहे हैं, जो अभूतपूर्व है: सांप्रदायिक हिंसा. मणिपुर के लिए आपके पास जो सुझाव हों, वो बताइए.

इसपर बांसुरी ने कहा: पूरे भारत की बेटियों की रक्षा करनी है. पश्चिम बंगाल में, बीकानेर में भी ऐसे उदाहरण हैं.. केवल मणिपुर नहीं. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा: क्या आप कह रही हैं कि या तो सभी महिलाओं की रक्षा करें या किसी की भी न करें?

ये एक ज़रूरी टिप्पणी है. इस लिहाज़ से कि जब से मणिपुर का वीडियो सामने आया है, बहस छिड़ी हुई है कि मणिपुर पर बोलने वाले राजस्थान और बंगाल पर चुप क्यों हैं? प्रधानमंत्री ने भी जो इकलौती बार मणिपुर पर पीड़ा व्यक्त की, उसमें भी राजस्थान का ज़िक्र किया. महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने तो सदन के पटल से कहा, कि दम है तो राजस्थान, बिहार और बंगाल में हो रही हिंसा पर चर्चा कीजिए.

विपक्ष के लिए हम जवाबदेह नहीं हैं. पर कम से कम हमने तो नियमित तौर पर सारे मामलों को कवर किया है. देश में किसी भी महिला के ख़िलाफ़ कोई भी अपराध हो, हम उस पर चुप नहीं हैं. न रहेंगे. लेकिन दोनों को एक टेबल पर नहीं रखा जा सकता. जहां, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में चूक लॉ-ऐंड-ऑर्डर की है. वहीं, मणिपुर का मसला दूसरा है. यहां सांप्रदायिक हिंसा में एक खास आग्रह के साथ महिलाओं को प्रताड़ित किया गया. और रेप को सीधे तौर पर weapon of conflict की तरह इस्तेमाल किया गया. इसीलिए ये मामले भले महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध के ही हों, उनका संदर्भ बिलकुल अलग है.