कभी-कभी कुछ चीज़े ऐसी हो जाती है जिस पर आप कहते हैं आज सूरज पश्चिम से उदय था क्या. संसद में आज एक मौका ऐसा ही आया. दिल्ली सर्विसेज़ बिल पर चर्चा चल रही थी. और इसी दौरान गृह मंत्री अमित शाह बीजेपी और कांग्रेस की जुगलबंदी की दास्तान सुनाने लगते हैं. शाह कहा कि 1991 में संसद में 69वां संविधान संशोधन किया गया. जिसके तहत संसद को दिल्ली के किसी भी क्षेत्र के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया. तब ये व्यवस्था चली आ रही थी. कांग्रेस ने भी भाजपा के साथ झगड़ा नहीं किया. भाजपा ने भी कांग्रेस के साथ झगड़ा नहीं किया. कोई विवाद था ही नहीं. कोई झगड़ा नहीं.
'दिल्ली बिल' पर बहस चल रही थी, अधीर रंजन अमित शाह से बोले 'मुंह मीठा कराऊंगा'
कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली बीजेपी के नेता अपनी पार्टी और कांग्रेस से कह रहे हैं कि हमारे बीच तो कोई विवाद ही नहीं था.

राजनीति क्या कुछ नहीं कराती साहब. आप विडंबना देखिए. कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली बीजेपी के नेता अपनी पार्टी और कांग्रेस से कह रहे हैं कि हमारे बीच तो कोई विवाद ही नहीं था. कभी कोई झगड़ा ही नहीं हुआ. जो नरेंद्र मोदी और अमित शाह अपनी राजनीतिक रैलियों में ये कहते आए हैं कि कांग्रेस ने पिछले 70 सालों में क्या किया. वही आज संसद में कह रहे हैं कांग्रेस की मंशा तो सेवा थी.
शाह की कांग्रेस की तारीफ पर अधीर रंजन ने यहां तक कह दिया कि वो अमित शाह का मुंह मीठा कराना चाहते हैं.
बात आज दिल्ली के बिल पर थी. निशाने पर केजरीवाल थे. शाह ने कांग्रेस और बीजेपी की पारस्परिक समन्वयता बताई और तुरंत केजरीवाल की पार्टी को घेर लिया. शाह ने सीधा हमला करते हुए कहा कि दिल्ली में जो सरकार आई है उसकी मंशा सेवा करना नहीं अधिकार हथियाना है.
शाह ने यहां से तोप का मुंह खोल दिया था. और एक-एक करके दिल्ली सरकार और केजरीवाल पर गोले दागे जा रहे थे. शाह ने कहा कि इस बिल को लेकर को किसी को दिक्कत है ही नहीं. बात तो ये है कि विजिलेंस को कंट्रोल में लेकर बंगले का सच छिपाना है. जो भ्रष्टाचार हो रहा है उसका सच छिपाना है.
आपको ध्यान होगा कि कुछ महीने पहले दिल्ली के सीएम के बंगले की तस्वीरें सामने आई थीं. विजिलेंस डिपार्टमेंट ने जो रिपोर्ट उप राज्यपाल को सौंपी थी उसमें कहा गया था कि मुख्यमंत्री के बंगले और ऑफिस के रिनोवेशन में 52 करोड़ से ज्यादा खर्च हुए हैं.
इसके बाद शाह ने विपक्ष के गठबंधन INDIA पर निशाना साधा. शाह ने कहा कि देश और दिल्ली के भले के लिए कानून बनाया जा रहा है. और विपक्ष भष्ट्रचार को छिपाने के लिए गठबंधन कर रहा है. थोड़ी देर पहले तक जो अमित शाह कह रहे थे कि कांग्रेस ने दिल्ली में सेवा की. उन्होंने अगले 10 मिनट बाद कहा कि UPA 2 के दौरान 12 लाख करोड़ के घोटाले हुए इसीलिए कांग्रेस आज विपक्ष में है.
शाह ने विपक्ष के गठबंधन पर चुटकी लेते हुए कहा कि जैसे ही ये बिल पारित हो जाएगा केजरीवाल की पार्टी गठबधंन से अलग हो जाएगी. इसलिए विपक्ष को भी बिल का समर्थन करना चाहिए.
अमित शाह के बाद कांग्रेस की तरह से बिल का विरोध करने के लिए खड़े हुए सदन में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी. चौधरी ने कहा कि अध्यादेश लाने की जल्दबाजी क्या थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जब कोर्ट की छुट्टियां शुरू हुईं तब ये अध्यादेश लाया गया. अध्यादेश लाने की क्या जरूरत थी. सीधे बिल भी तो लाया जा सकता था.
अधीर रंजन ने कहा कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने दिल्ली में पावर शेयरिंग को लेकर फैसला सुनाया. अधीर रंजन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की व्याख्या को पढ़ते हुए कहा कि कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 239 (a)(a) की व्याख्या की. और कहा कि भले ही दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता लेकिन संघीय ढ़ाचे का ध्यान रखा जाएगा. कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि दिल्ली में इस बिल को लाकर केंद्र सरकार संघीय ढांचे को बिगाड़ने की कोशिश कर रही है. अधीर रंजन उसी अनुच्छेद 239 (a)(a) की बात कर रहे थे जिसे अमित शाह ने भी कोट किया था. शाह ने कहा था कि दिल्ली ना तो पूर्ण राज्य है. ना संघ शासित प्रदेश है. और ना ही संघ शाषित राज्य समेत विधानसभा है. क्योंकि ये राजधानी क्षेत्र है इसको ध्यान में रखते हुए 239 (a)(a) के तहत दिल्ली के लिए विशेष प्रावधान किए हैं. यानी विधानसभा बनाई गई है.
अधीर रंजन ने आरोप लगाया कि सारी शक्तियां ब्यूरोक्रेसी को सौंपने की कोशिश की जा रही है. तो फिर चुनी हुई सरकार का मतलब ही क्या रह जाएगा. उन्होंने कहा कि जब चुन कर जनता के नुमाइंदे विधानसभा जाते हैं तो क्या उनके अधिकारों को खत्म कर दिया जाएगा.
अधीर रंजन ने यहां NCCSA का जिक्र किया. NCCSA यानी National Capital Civil Service Authority. उन्होंने कहा कि NCCSA कहता है कि Government of National Capital . Territory of Delhi के अधिकारियों का प्रतिनिधि दिल्ली का चीफ सेक्रेटरी होगा. यानी दिल्ली में चीफ सेक्रेटरी मुख्यमंत्री से ऊपर होगा. वो मुख्यमंत्री के फैसले को पलट भी सकता है.
अधीर रंजन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इसी बात को गलत ठहराता है. उन्होंने कहा कि कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि NCCSA से अधिकारियों को चुनी हुई सरकार के कंट्रोल से बाहर करने की कोशिश की गई है.
बीजेपी की तरफ से दिल्ली की सांसद मिनाक्षी लेखी ने केजरीवाल पर निशाना साधा. उन्होंने तो केजरीवाल को दिल्ली का एक चौथाई मुख्यमंत्री कहकर संबोधित किया. उन्होंने कहा कि दिल्ली में 1300 करोड़ रुपये तो सिर्फ होर्डिंग टांगने पर खर्च कर दिए गए. उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि दिल्ली जल बोर्ड में तो 70 हजार करोड़ का घोटाल किया है. लेखी ने कहा कि इसीलिए इस बिल को लाने की जरूरत है. लेकिन मीनाक्षी लेखी ने भाषण के दौरान ED का जिक्र किया और हंगामा मच गया. दरअसल विपक्ष के एक सांसद ने कंद्रीय एजेंसी को लेकर सरकार पर तंज किया. इस पर जवाब देते हुए लेखी ने कह दिया कि शांत रहिए कहीं आपके घर भी ED ना आ जाए.
जगन मोहन रेड्डी की YSRCP पहले ही इस बिल पर सरकार का समर्थन करने का ऐलान कर चुकी है. उनके सांसद पीवी मिथुन रेड्डी ने लोकसभा में खड़े होकर बिल का सर्मथन किया भी. बीजेडी के सांसद पिकना मिस्रा ने भी इस बिल का समर्थन किया. लेकिन INDIA और जाहिर तौर NDA से दूर रहने वाली AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी ने बिल का विरोध किया.
शरद पवार की NCP से बोलते हुए सुप्रिया सुले ने बीजेपी पर कई सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि आज बीजेपी के सांसद लोकसभा में कह रहे हैं कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता. तो फिर बीजेपी दिल्ली के हर चुनाव में मेनिफेस्टो में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात क्यों कहती है.
इसके बाद विपक्ष की तरफ से कांग्रेस के शशि थरूर ने बिल का विरोध जताया. शाह ने डिबेट में पंडित नेहरू का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर नेहरू ने विरोध जताया था. इस पर थरूर ने कहा कि तब की दिल्ली और अभी की दिल्ली में बहुत अंतर हैं. तब दिल्ली के चुने हुए प्रतिनिधि नहीं होते थे. अब हैं. थरूर ने मजाकिया लहजे में ये भी कहा कि बीजेपी हर मामले में नेहरू का विरोध करती है तो फिर इस मसले पर क्यों नहीं विरोध जता रही है.
थरूर ने भी संविधान में कहा गया है कि संसद दिल्ली के लिए कानून बना सकती है. लेकिन अधिकारियों की सर्विसेज स्टेट लिस्ट में आती हैं. और उनके लिए कानून बनाना कॉन्टिट्यूशनल फ्रेमवर्क के साथ छेड़छाड़ है.
बढ़ते हैं दिन की दूसरी बड़ी खबर की तरफ. दिन की दूसरी बड़ी ख़बर में अब दिल्ली से आपको लिए चलते हैं मणिपुर. आज - 3 अगस्त को - मणिपुर के बिष्णुपुर ज़िले में सशस्त्र बलों और मैतेई समुदाय के प्रदर्शनकारियों के बीच गोलीबारी हुई. हथियारों और पत्थरों से लैस भिड़ंत हुई. इस भिड़ंत में कम से कम 17 लोग घायल हुए हैं. आपने टीवी पर गोलीबारी की वीडियो देखे होंगे.
अब आपको बताते हैं, कि स्थिति बिगड़ी क्यों? मणिपुर की इस भयानक हिंसा के तीन महीने पूरे हो गए हैं. माहौल में वाक़ई भय है. बड़ी संख्या में लोग पलायन कर गए हैं. कई इलाक़ों में घरों पर ताले लटके हैं. गांवों में वीरान जैसी चुप्पी है. सरकार कुकी और मैतेई समुदाय के बीच सामंजस्य बनाने के प्रयास कर रही है, मगर बहुत सफल हो नहीं पा रहीं.
इस बीच आदिवासी संगठन इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फ़ोरम (ITLF) ने एलान किया, कि हिंसा में कुकी-ज़ो समुदाय के जो लोग मारे गए हैं, उन्हें साथ में दफ़नाएंगे. चुराचांदपुर ज़िले के लम्का शहर में है, तुईबोंग शांति मैदान. यहीं पर 35 मृतकों को दफ़नाया जाना था. ये इलाक़ा चुराचांदपुर और बिष्णुपुर ज़िले के बॉर्डर पर पड़ता है. और स्थानीय रिपोर्ट्स के मुताबिक़, चुराचांदपुर में तो कुकी आबादी ही ज़्यादा है, लेकिन तुईबोंग मैतेई-बाहुल्य है. सो मैतेई इलाक़े में कुकियों के दाह-संस्कार की ख़बर फैलने से तनाव बढ़ गया.
क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान और जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान -- इन्हीं दोनों अस्पतालों की मोर्चुरी में जातीय संघर्ष में मारे गए लोगों के शव रखे हुए हैं. ITLF के एलान की बात फैली, तो दोनों अस्पतालों के पास बड़ी भीड़ जमा हो गई. हालांकि, पुलिस ने स्थिति को क़ाबू में कर लिया.
ITLF के इस निर्णय को ऐसे देखा गया कि ये जगह जानबूझकर चुनी गई है क्योंकि इसी क्षेत्र में पहली बार दोनों समुदायों के बीच हिंसा भड़की थी. चूंकि, ITLF कुकी समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है और अलग राज्य की मांग की जिरह करता है, इसीलिए ऐसे भी देखा गया कि ITLF सामूहिक दाह-संस्कार कर के एक अनौपचारिक सीमा खींचना चाहते हैं. मैतेई सिविल सोसाइटी ग्रुप Coordinating Committee on Manipur Integrity (COCOMI) ने सीधे तौर पर कहा कि ये क़दम दोनों समुदायों के बीच फिर से हिंसा उकसाने का सुनियोजित प्रयास है.
अब भिड़त की ऐसी आशंका थी, तो मणिपुर हाई कोर्ट ने मामले में दख़ल दिया. तड़के 5 बजे सुनवाई हुई और 6 बजे आदेश पारित हुआ. चीफ़ जस्टिस एम वी मुर्लीधरन और जस्टिस ए गुनेश्वर की बेंच ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार और दोनों समुदाय के लोगों से कहा कि अगली सुनवाई तक यथास्थिति बनाए रखी जाए. अदालत ने राज्य के मुख्य सचिव और DGP से कहा है कि वो मामले पर अपना रिस्पॉन्स कोर्ट को सौंपें. अगली सुनवाई 9 अगस्त को होगी.
इधर कोर्ट के आदेश, गृह मंत्रालय के अनुरोध और मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा के हस्तक्षेप के बाद, ITLF ने इस mass burial को स्थगित करने का एलान कर दिया. उच्च न्यायलय और ITLF के फ़ैसले के बाद क़ायदे से मामला शांत हो जाना था. लेकिन ये एलान जनमानस तक पहुंचे, इससे पहले ही लम्का शहर में भीड़ जुटने लगी. मैतेई महिलाओं के नेतृत्व में सैकड़ों स्थानीय रहवासियों ने सेना और RAF के बैरिकेडों को पार करने की कोशिश की. मांग की, कि उन्हें दफ़न स्थल तक जाने दिया जाए. इसी के बाद संघर्ष शुरू हुआ. फिर पत्थरबाज़ी, फिर पुलिस का रिटैलियेशन.