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टिड्डियों का ये झुंड आ कहां से रहा है जो एक दिन में 2500 इंसानों जितना खाना खा जाता है?

गुजरात और राजस्थान में तबाही मचा रखी है.

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टिड्डियों का ये आतंक सिर्फ भारत में ही नहीं, अफ्रीकन देशों में भी काफी है. बायीं ओर तस्वीर सोमालिया की, जहां टिड्डियों का झुंड अटैक कर रहा है, दायीं ओर टिड्डी की सांकेतिक तस्वीर जिसमें पता चलता है कि ये दूसरी टिड्डियों से कैसे अलग है. (तस्वीर: रायटर्स/विकिमीडिया)
11 नवंबर, 2019 . पाकिस्तान का कराची स्टेडियम. यहां चल रहा था क्रिकेट मैच. सिंध और नॉर्दर्न पाकिस्तान की टीमों के बीच. मैच के बीच में अचानक खिलाड़ी पटापट जमीन पर लेटने लगे. दर्शक दीर्घा में खलबली मच गई. मैदान पर हमला हो गया था. ये हमला इंसानों का नहीं, टिड्डियों का था. लाखों की संख्या में जब ये मैदान पर मंडराना शुरू हुईं, लोग हक्के-बक्के रह गए. पता चला, कि पूरे कराची शहर के ऊपर टिड्डियां छा चुकी हैं.
टिड्डियों की बात क्यों कर रहे हैं हम? क्योंकि टिड्डियों ने इस वक़्त राजस्थान और गुजरात के कई जिलों में तबाही मचा रखी है. सबसे पहले, चंद ज़रूरी सवाल.
क्या होती हैं टिड्डियां?
छोटे-छोटे कीड़े. ग्रासहॉपर प्रजाति के. ग्रासहॉपर कौन? जिसको कई बार रामजी का घोड़ा भी कहा जाता है. टिड्डियां झुंड में काफी लम्बी दूरी तक उड़ सकती हैं. ये प्रजाति जो इस वक़्त तबाही मचा रही है इसे डेजर्ट हॉपर भी कहा जाता है. आम तौर पर शांत और अलग-थलग रहने वाली टिड्डियां कई बार झुंड में उग्र हो जाती हैं, अग्रेसिव हो जाती हैं. इसे वातावरण में हो रहे बदलावों से जोड़कर भी देखा जाता है.  अरब सागर के पास स्थित अफ्रीकन देशों में इनके अटैक काफी देखने को मिलते हैं. इनमें सोमालिया, इथियोपिया, एरिट्रिया शामिल हैं. ये हवा के बहाव के हिसाब से अपनी उड़ने की दिशा तय करते हैं, क्योंकि इससे मदद मिलती है उनकी उड़ान में.
Grass Wiki इस हरी टिड्डी को तो पहचानते होंगे आप. घरों में भी दिख जाती है कभी कभी. इसे राम जी का घोड़ा भी कहते हैं. इसी प्राजाति की दूसरी टिड्डियों ने आतंक मचा रखा है. (तस्वीर: विकिमीडिया)

क्या नुकसान कर रहे हैं ये?
टिड्डियां इंसानों के लिए खतरनाक नहीं होती. ये मधुमक्खियों की तरह डंक नहीं मारतीं. इनसे कोई बीमारी फैलती हो, इसके भी सुबूत नहीं मिले हैं. लेकिन ये फसलों को बर्बाद कर देती हैं. पत्तियां और पौधे खाने वाले ये कीड़े खेतों में लगी खरीफ की फसलें चट कर रहे हैं. वो भी इतनी तेजी से कि किसान हाथ मलते रह जा रहे हैं. ये पत्ते, फूल, बीज, तनों की खाल, सब चट कर जाते हैं. यही नहीं, जब लाखों की संख्या में ये उतरते हैं ज़मीन पर, तो पौधे इनके वजन से दबकर भी बर्बाद हो जाते हैं. ये हर साल आते हैं देश में. मई से नवंबर इनका ब्रीडिंग पीरियड यानी बच्चे देने का समय होता है. इस साल इनका झुंड काफी बड़ा है, और काफी ज्यादा नुकसान कर रहा है. हालांकि ये प्लेग साइकल नहीं घोषित हुआ है अभी तक. प्लेग साइकल उस साल (या एक से ज्यादा साल के पीरियड) को कहते हैं जब बहुत बड़ी संख्या में टिड्डियों का दल अटैक कर दे.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार, डायरेक्टरेट ऑफ प्लांट प्रोटेक्शन, फरीदाबाद ने बताया कि 1926-31 के दौरान इनका प्लेग फैला था. इसमें 10 करोड़ का नुकसान हुआ था. 40-46, और 49-55 के प्लेग साइकल के दौरान 2 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ, दोनों बार. इनसे होने वाले नुकसान का अंदाजा लगाना हो तो इसी बात से लगा लीजिए कि टिड्डियों का एक छोटा दल एक दिन में 2500 लोगों के बराबर खाना खा लेता है.
Locust Reuters Into शांत रहने के दौरान इनके झुंड अटैक नहीं करते. जब इनका एक्टिव मोड शुरू होता है, तब ये एक साथ अटैक करते हैं. (तस्वीर: रायटर्स)

इनकी रोकथाम कैसे की जा सकती है. अभी क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
एक संस्था है. लोकस्ट वॉर्निंग आर्गेनाईजेशन. इनकी ये ज़िम्मेदारी है कि टिड्डियों के दलों पर नज़र रखें, उनके अटैक को कंट्रोल करें, और उससे जुड़ी चेतावनियां जारी करें. ये राजस्थान, गुजरात और हरियाणा के राज्यों में लगातार सर्वे करते हैं. पता लगाते रहते हैं कि टिड्डियों की संख्या तय सीमा से ज्यादा तो नहीं बढ़ रही है.
आज तक की अहमदाबाद ब्यूरो हेड गोपी मनियार के अनुसार, गुजरात के बनासकांठा जिले में हालत काफी खराब हैं. यहां के किसानों को चिंता है कि उनकी सरसों, जीरे, और गेहूं की फसल कहीं पूरी तरह बर्बाद न हो जाए. तकरीबन 30 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्र इससे प्रभावित है. ये दल 20 किलोमीटर तक लंबा है, और इसमें तकरीबन 50 करोड़ टिड्डियां हैं. कच्छ, पाटन, थराड, सुईगाम जैसे इलाके टिड्डियों के दलों के निशाने पर हैं, और वहां भी नुकसान हो रहा है. उन्होंने बताया,
सीमित संसाधन हैं. इस वजह से जिला प्रशासन और सरकार राहत ठीक से नहीं जुटा पा रहे हैं. इससे किसान बेहाल हो गए हैं. अब टिड्डी दल के आक्रमण को रोकने के लिए केंद्र और राज्य प्रशासन दोनों काम पर लगे हैं. बनासकांठा में 11 कृषि दल, और भारत सरकार की एक टिड्डी नियंत्रण टीम पहुंची है. इस एरिया में गाड़ियों से मेथोलिटिक दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है. करीब 500 किलोग्राम दवा. साथ में फाल्कन मशीन लगाई गई है. जिससे अब दवाई का छिड़काव किया जाएगा. इस मशीन की मदद से 8 मिनट में 1 एकड़ एरिया में दवाई छिड़की जाएगी.
टिड्डियों के दल को कंट्रोल करने के लिए कीटनाशकों के अलावा भी कुछ उपाय किए जाते हैं. इनमें शामिल है शोर मचाना, केरोसिन छिड़कना, खेतों के आस-पास गड्ढे खोद तक उन्हें पानी से भर देना. हाल में ही गुजरात बीजेपी अध्यक्ष जीतू वघानी का एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें वो स्टील की प्लेट बजाते हुए खेतों में चलते दिख रहे थे.


वीडियो: बंगाल भाजपा के उपाध्यक्ष चंद्र कुमार बोस ने CAA पर सवालों की झड़ी लगाई

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