'दी टाइम्स ऑफ इंडिया' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रोजेक्ट के काम के तहत चट्टानों की ढलानें काटने का काम चल रहा है. ये स्लोप कटिंग वर्क लैंडस्लाइड का कारण बन रहा है. बारिश के बीच कायदे से से काम रोक देना चाहिए, लेकिन चल रहा है, क्योंकि ऑल वेदर रोड को जल्द से जल्द पूरा करना है.
क्या है ये प्रोजेक्ट? क्यों इसे पूरा करने की इतनी जल्दी है? इससे क्या होगा? क्या इस प्रोजेक्ट के नाम पर कुदरत से समझौता हो रहा है? जानते हैं.
क्या है ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट
करीब 889 किमी लंबी रोडों को चौड़ा किए जाने का प्रोजेक्ट है. इनकी मरम्मत की जा रही है, हाइवे में बदला जा रहा है. साल 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले दिसंबर 2016 में पीएम नरेंद्र मोदी ने इसका ऐलान किया था. पहले इस प्रोजेक्ट का नाम ‘ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट’ था. लेकिन बाद में नाम बदलकर ‘चारधाम प्रोजेक्ट’ कर दिया गया.ये चारधामों को सड़क से जोड़ने का प्रोजेक्ट है. इसमें आने और जाने, दोनों तरफ डबल लेन सड़कें बनाई जाएंगी. पुरानी सड़कों को ठीक किया जाएगा. जहां पर सड़कों की चौड़ाई कम है, वहां पर चौड़ाई बढ़ाकर 12 मीटर तक की जाएगी.
कहां-कहां से गुजरेगा प्रोजेक्ट
प्रोजेक्ट में एक मुख्य सड़क है, जिस पर आगे बढ़ने के साथ चार अलग-अलग रास्ते निकलते हैं, जो चारों धाम को जाते हैं. यह सड़क ऋषिकेश से शुरू होकर उत्तर दिशा में माना नाम के गांव तक जाती है.पहला रास्ता, ऋषिकेश से निकलेगा, जो धारासु नाम की जगह तक जाएगा.
दूसरा, धारासु से एक रास्ता यमुनोत्री और दूसरा गंगोत्री जाएगा.
तीसरा, यह रास्ता भी ऋषिकेश से शुरू होगा और रुद्रप्रयाग तक जाएगा. रुद्रप्रयाग से एक रास्ता केदारनाथ के लिए गौरीकुंड तक निकल जाएगा.
चौथा, रुद्रप्रयाग से एक रास्ता आगे बद्रीनाथ के लिए माना गांव तक जाएगा.
लागत – करीब 12 हजार करोड़ रुपए
कब पूरा होगा – अनुमान के मुताबिक 2021 के अंत तक.

ऑल वेदर रोड नाम क्यों पड़ा?
इस बारे में हमारे साथी शक्ति ने उत्तराखंड के पत्रकार रोहित जोशी से बात की थी. उन्होंने बताया था –"कहने को तो यह प्रोजेक्ट चारधाम है. इसे सुनकर यह धार्मिक रूट लगता है. लेकिन यह प्रोजेक्ट रणनीतिक रूप से भी अहम है. इसे ऑल वेदर रोड कहना ज्यादा सही होगा. इसके जरिए भारत अपनी सीमा के नजदीक तक पहुंच रहा है. पिछले दिनों भारत ने लिपुलेख में जो सड़क बनाई थी, वह भी एक तरह से इसी प्रोजेक्ट का हिस्सा है. वह रास्ता कैलाश मानसरोवर जाने के लिए है. लिपुलेख की रोड रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. इसके जरिए अब भारतीय सेना आसानी से चीन-नेपाल सीमा तक पहुंच जाती है."
प्रोजेक्ट पर सवाल क्यों उठ रहे?
पर्यावरण से जुड़े अध्ययन करने वाले हेमंत जुयाल ने 'दी टाइम्स ऑफ इंडिया' से कहा था कि जिन जगहों से सड़क गुजर रही है, वे काफी संवेदनशील हैं. यहां पर हिमालय काफी कमजोर है. ऐसे में सड़क चौड़ी करना घातक है.“हमने कहा है कि पीपलकोटी और पातालगंगा तक के रास्ते को तो छेड़ा भी न जाए. हमारे पास इमारतें बनाने और सड़कें चौड़ी करने का पैसा तो है, लेकिन भूस्खलन यानी चट्टानों को गिरने से रोकने का पैसा नहीं है. उत्तराखंड जैसे इलाकों में यही काम सबसे अहम होता है. जहां पर सड़क चौड़ी करने के लिए पहाड़ों को काटा जा चुका है, वहां पर भी केवल 5.5 मीटर में ही सड़क बनाई जाए. बाकी जगह हरियाली और पैदल चलने के लिए छोड़ दी जाए. पूरे प्रोजेक्ट में 12 मीटर चौड़ी सड़क बनाना नुकसानदेह है.”
क्या किसी ने ध्यान नहीं दिया?
प्रोजेक्ट साल 2017 में शुरू हुआ. इसको लेकर कई शिकायतें आईं. आरोप लगे कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. नियमों का पालन नहीं हो रहा. मनमानी से पेड़ कट रहे हैं. मलबा नदियों में गिराया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में 25 सदस्यों की हाई पावर कमेटी बनाई.सड़क की चौड़ाई के मसले पर कमेटी दो गुटों में बंट गई. कमेटी के मुखिया रवि चोपड़ा और उनके तीन साथियों ने सड़क की 12 मीटर चौड़ाई पर सवाल उठाए. वहीं 21 लोगों ने इसे सही बताया. इस गुत्थम-गुत्थी में ही बात अब तक अटकी है और प्रोजेक्ट बदस्तूर जारी है.
बहरहाल, इस प्रोजेक्ट के बारे में और भी बारीकी से यहां
पढ़ सकते हैं.
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