यहां रहने वाले कुछ लोगों ने मिलकर एक इग्लू बनाया है. इस बारे में और बताएं उससे पहले बता देते हैं कि इग्लू आखिर होता क्या है? इग्लू का मतलब है बर्फ का घर. वैसे तो आर्कटिक में रहने वाले एस्कीमो लोग इग्लू बनाते हैं. इस इग्लू के अंदर ठंड बहुत कम होती है. अब आप कहेंगे कि ऐसे कैसे बर्फ के घर में कम ठंड लगेगी? Igloo में ठंड कम क्यों लगती है? इसके जवाब के लिए हम पहुंचे अपने साइंसकारी वाले आयुष के पास. उन्होंने बताया,
हमें ठंड तब लगती है, जब हमारे शरीर से हीट (उष्मा) निकलती है. हीट हमेशा ज़्यादा तापमान से कम तापमान की ओर बहती है. जब बाहर का तापमान हमारे शरीर के तापमान से कम होता है, तो हीट हमारे शरीर से बाहर निकलती है. आपके शरीर से जितनी हीट निकलेगी, आपको उतनी ठंड लगेगी.
हमारा शरीर रेडिएशन के ज़रिए हीट निकालता है. अगर इस रेडिएशन को किसी तरह रोक लिया जाए तो हम ठंड से बच सकते हैं. कंबल यही काम करता है. कंबल आपके शरीर से निकलने वाले रेडिएशन को बाहर नहीं जाने देता. इसलिए हमें कंबल के अंदर गर्माहट महसूस होती है.
इग्लू के काम करने के तरीके को समझने के लिए हमें इग्लू की बुनियाद को समझना होगा. आइस और स्नो के बीच का फर्क समझना होगा. बोलचाल की भाषा में हम आइस और स्नो दोनो को बर्फ बोलते हैं. लेकिन ये दोनों बहुत अलग चीज़ें होती हैं. आइस यानी बर्फ पानी के पूरी तरह जमने से बनती है. जबकि स्नो यानी हिमपात में लगभग 10% पानी होता है और 90% हवा. ये स्नो उष्मा की बहुत बुरी संचालक होती है.
जब इग्लू के अंदर आपका शरीर हीट रेडिएट करता है, तो ये हीट ऊपर जाती है. स्नो के बुरे उष्मा संचालक होने के कारण ये हीट उसके बाहर नहीं जा पाती. इस तरह ये इग्लू एक कंबल का काम करता है. और हमें ठंडी से बचा लेता है.
आप ये समझ लीजिए कि अगर बाहर का टेम्परेचर -27 डिग्री है तो इग्लू के अंदर का टेम्परेचर 1 से 2 डिग्री तक मेंटेन किया जा सकता है. एक और बात, इग्लू के अंदर जितने ज्यादा लोग होंगे वो उतना ज्यादा गर्म होगा. अब बात लाहौल स्पीति वाले इग्लू की? लाहौल स्पीति के क्वारिंग गांव में इग्लू बनाया गया है. साल 2017 में भी लाहौल में इग्लू बनाया गया था, सैलानियों के लिए. हालांकि, कोई सैलानी वहां रहने नहीं पहुंचा था. अब अटल टनल खुलने के बाद स्थानीय लोगों ने एक बार फिर इस प्रयोग को दोहराया है. इग्लू बनाने वाली टीम के रिगजिन सेमफल हायेरपा (Rigzin Samphel Hayerpa) ने फोन पर हमसे बात की. उन्होंने बताया,
"मनाली में हमारे दोस्तों ने इग्लू बनाया था. वहां 5500 रुपये नाइट के हिसाब से सैलानी बुकिंग करते हैं. हमें आइडिया अच्छा लगा. अब अटल टनल खुलने के बाद यहां भी पर्यटक आने लगे हैं. हमने यूट्यूब पर देखा कि इग्लू कैसे बनाते हैं, वहां से सीख कर बनाया. तीन दिन लगे. लोगों ने पसंद किया है. हालांकि अभी कोई बुकिंग नहीं मिली है लेकिन जब बुकिंग मिलेगी तो और इग्लू भी बनाएंगे."

रिगजिन सेमफल हायेरपा अपने इग्लू के साथ
उन्होंने बताया कि वे अपने इग्लू में खाना, चाय भी उपलब्ध कराएंगे. साथ ही लाइट के लिए एक बैटरी से चलने वाली लालटेन भी देंगे. सोने के लिए एक डबल बेड इग्लू के अंदर डाला गया है. साथ में रजाई और कंबल भी है. इसके अलावा बोन फायर का भी इंतजाम है. इस इग्लू को एक गेस्ट हाउस के पास बनाया गया है ताकि अगर ठंड लगे, या फिर इग्लू रास ना आए तो टूरिस्ट गेस्ट हाउस के अंदर भी जा सकता है. इस सुविधा के लिए रिगजिन और उनके साथियों ने 4000 रुपये रोज का टैरिफ सेट किया है.
रिगजिन काफी वक्त से टूरिज्म सेक्टर में ही सक्रिय हैं. गांव के काफी युवाओं को पर्यटन के जरिए ही रोजगार मिलता है. गर्मी में तो लोग आ जाते हैं लेकिन सर्दी में यहां आने से पर्यटक परहेज करते थे. अटल टनल ने हालात बदले हैं और अब पर्यटक लाहौल-स्पीति पहुंच रहे हैं. कोरोना के कारण भी पर्यटकों की आवाजाही इलाके में कम थी. स्थानीय लोग बाहर से आने वालों का विरोध भी कर रहे थे. पर रिगजिन बताते हैं कि अब इलाके में कोरोना के केवल छह केस बचे हैं.
तो अब आप बताइए कि आपको ये इग्लू कैसा लगा? पसंद आया कि नहीं? अगर आपको इग्लू से जुड़ा कोई और फैक्ट पता हो तो हमारे साथ जरूर शेयर करिएगा.