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आरक्षण को लेकर फिर मचा बवाल, अब इस OBC कैटेगरी के लोगों ने रेल रोक दी

झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में आऱक्षण की मांग को लेकर लोगों ने रेल रोकी.

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कुर्मी आंदोलन के दौरान कई ट्रेन रोकी गईं. (फोटो-इंडिया टुडे)

झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में रह-रहकर उछाल मारने वाली मांग फिर से सुर्खियां में है. नाम है कुर्मी आंदोलन. पिछले तीन दिन से तीनों राज्यों में 30 से ज्यादा रेलगाड़ियोें की आवाजाही प्रभावित हो चुकी है. न्यूज़ एजेंसी PTI की खबर के मुताबिक 15 से ज्यादा ट्रेन कैंसिल हो गई हैं, 10 से ज्यादा ट्रेन के रास्ते बदले गए और करीब इतनी ही ट्रेन के रूट को छोटा कर दिया गया. आंदोलन से साउथ ईस्टर्न रेलवे बुरी तरह प्रभावित हुआ है. आंदोलनकारियों ने रेल की पटरियों और कई रेलवे स्टेशन्स को निशाना बनाया. इसके अलावा बताया जा रहा है कुछ जगहों पर नेशनल हाईवे को भी बाधित किया गया है.

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कुर्मी आंदोलन की क्या मांग है?

कुर्मी जाति फिलवक्त OBC यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के अंतर्गत आती है. ये यूपी और बिहार के कुर्मी समुदाय से अलग हैं और इन लोगों को कुड़मी कहा जाता है. इस समुदाय के ज्यादातर लोग छोटा नागपुर पठार के बाशिंदे हैं. ओडिशा के कुछ हिस्से और पश्चिम बंगाल में कुछ जगहों पर भी कुर्मी लोग रहते हैं. तीनों ही राज्यों में रहने वाले कुर्मी समुदाय की मांग है कि उन्हें ST यानी अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाए. 

बहरहाल, ये मांग आज की नहीं है. सालों से इस मांग लेकर आवाज़ उठती रही है. दरअसल, इस समुदाय का कहना है कि ब्रिटिश राज में 1931 की अनुसूचित जनजाति की लिस्ट में ये कुर्मी समुदाय शामिल था. 1950 तक कुर्मी ST के तौर पर ही जाने जाते थे. लेकिन 1950 में आई लिस्ट में इन्हें ST से निकालकर OBC में शामिल किया गया. साथ ही आंदोलनकारी कुर्माली भाषा को संविधान के 8वें शेड्यूल में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं.  इसी बात को लेकर ये मांग और आंदोलन तेज होता रहता है कि इन्हें दोबारा ST लिस्ट में शामिल किया जाए.

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बिज़नेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक गुजरात में पाटीदार आंदोलन को हवा मिलने पर झारखंड में कुर्मी समाज की मांग भी जोर पकड़ने लगी थी. खबर के मुताबिक तब झारखंड कुर्मी संघर्ष मोर्चा के नेता शैलेंद्र महतो ने कहा था कि तब के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने कुर्मी समाज की पीठ पर छुरा घोंपा है. उन्होंने कहा था कि हम प्रधानमंत्री को इस मामले में चिट्ठी भेजेंगे और उसके बाद प्रदर्शन करेंगे.

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक 7 दिसंबर, 2018 ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में कुर्मी जाति को ST में शामिल करने की मांग को लेकर रैली हुई. रैली में शामिल लोगों की पुलिस से झड़प भी हुई.

कहां पर कितनी जनसंख्या?

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यहां 10-12 प्रतिशत कुर्मी है. जबकि कुर्मी नेता इस बात का दावा करते हैं कि राज्य में इनकी आबादी 22 प्रतिशत के करीब है. वहीं ओडिशा में लगभग 25 लाख कुर्मी रहते हैं. मुख्यतः मयूरभंज, क्योंझर, सुंदरगढ़, बालासोर, जाजपुर और संबलपुर जिलों में इनकी आबादी रहती है. वहीं पश्चिम बंगाल में इस जाति की आबादी 30 लाख से ज्यादा बताई जाती है. बंगाल के जंगल महल इलाके में इनकी ज्यादातर आबादी रहती है. पश्चिमी मिदनापुर और झारग्राम इसी इलाके में आते हैं. पश्चिम बंगाल की 42 सीटों पर ये जाति प्रभावी मानी जाती है.

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कुर्मी आंदोलन और राजनीति

बताया जा रहा है कि बीते हफ्ते ही ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक ने केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा को पत्र लिखकर 160 समुदायों को एसटी सूची में शामिल करने की मांग की थी. पटनायक ने पत्र में दावा किया कि 1978 से ओडिशा सरकार ने राज्य के इन समुदायों को एसटी सूची में शामिल करने की सिफारिश की है लेकिन सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया गया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि एसटी सूची में शामिल होने में देरी के कारण ये समुदाय "ऐतिहासिक अन्याय के शिकार" रहा है.

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार भी कुर्मी समुदाय को ST में शामिल करने की पक्षधर है. खबरों के मुताबिक 2019 में ममता बनर्जी ने इस बाबत केंद्र को चिट्ठी भी लिखी थी.

एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि झारखंड में सरना समुदाय के कुछ लोग अपने लिए अलग धर्म की मांग कर रहे हैं और सीएम हेमंत सोरेन खुद भी सरना समुदाय के अनुयायी हैं.

इसके अलावा 2004 में तब की झारखंड सरकार के सीएम अर्जुन मुंडा की कैबिनेट ने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि कुर्मी समुदाय को ST में शामिल किया जाए. बिज़नेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक इसके बाद 2014 बीजेपी के ही सीएम रघुबर दास ने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखकर अर्जुन मुंडा की सिफारिश से इतर यथास्थित बनाए रखने की बात कही.

खैर, फिलहाल अर्जुन मुंडा ही केंद्र में जनजातीय मामलों के मंत्री हैं और आंदोलन की आवाज़ तेज होेने के बाद अबतक केंद्रीय मंत्री की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.

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